स्त्री का साहचर्य / पवित्र पाप / सुशोभित
सुशोभित
फ़ेदरीको फ़ेल्लीनी की फ़िल्म ‘आठ और आधे’का यह दृश्य है।
मार्चेल्लो मास्त्रोयान्नी एक प्रख्यात फ़िल्म निर्देशक है। वह एक महत्वाकांक्षी फ़िल्म बना रहा है, लेकिन उसका चित्त स्थिर नहीं है। रोम के उपनगरीय इलाक़े में एक स्पा-टाउन है, जहां एक कैथोलिक कार्डिनल स्टीम-बाथ लेने आए हैं। वह उनसे मिलने जाता है। भाप का नहान लेने के बाद कृशकाय विवर्ण कार्डिनल धूप में अपना काला चोगा पहने, हाथ में छड़ी सम्हाले बैठे हैं। पीछे चीड़ के दरख़्तों से भरी धरती किंचित उठंगी और ढलाऊ है।
मार्चेल्लो कार्डिनल से कहता है, ‘मैं ख़ुश नहीं हूं।’
कार्डिनल कहते हैं, ‘तुमसे कहा किसने कि तुम यहां ख़ुश होने के लिए आए हो?’
मार्चेल्लो चुपचाप सिर हिला देता है।
दूर कहीं कोई परिंदा बोलता है। कार्डिनल कहते हैं, ‘सुना तुमने, ऐसा लग रहा है, जैसे यह कोई शोकगीत गा रहा है, उसके स्वर में क्रंदन है।’
मार्चेल्लो ध्यान से सुनने की कोशिश करता है। उसकी नज़र ढलान से नीचे उतरती एक स्त्री पर पड़ती है, जो अपने स्कर्ट को उठाए है और उसकी सफ़ेद पिंडलियां और नंगी जांघें नज़र आ रही हैं।
मार्चेल्लो चौड़े फ्रेम वाली ऐनक को अपनी आंखों से ऊपर उठाता है और ग़ौर से उस स्त्री की देहयष्टि का मुआयना करता है। उसे सारागिना नामक एक वेश्या की याद आती है, जो उसके बचपन के दिनों वाले कोस्टल टाउन में रहती थी और वह मुस्करा देता है। सारागिना से मिलने पर उसे उसके मिशनरी स्कूल के पादरियों द्वारा दंडित किया गया था।
इस दृश्य का क्या अर्थ है?
इसका यह अर्थ है कि जब ईश्वर के थोथे संदेशवाहक चुक जाएंगे, और उपदेशकों और उपचारकों के शब्द खंख हो जाएंगे, तब एक स्त्री आएगी और हमारी रक्षा करेगी।
फ़ेल्लीनी बचपन से ही ऐसा एक स्वप्न देखा करता था कि वह एक समुद्र में डूब रहा है और विशाल वक्षों वाली एक स्त्री उसे बचाने आई है!
और ऐन इसी बिंदु पर मुझे याद आ रहा है अंद्रेइ तारकोव्स्की की फ़िल्म ‘द सेक्रिफ़ाइस’ का वह दृश्य, जिसमें अलेक्सांद्र को अतींद्रिय शक्तियों द्वारा यह निर्देश दिया जाता है कि ध्वंस की ओर अग्रसर हो रही दुनिया को केवल तभी बचाया जा सकेगा, जब वह एक स्त्री से प्रेम की याचना करेगा।
कैफ़ी ने कुछ सोचकर ही कहा था--
‘उनको ख़ुदा मिले है ख़ुदा की जिन्हें तलाश
मुझको बस एक झलक मेरे दिलदार की मिले!’
ईश्वर ने दुनिया बनाई होगी, किंतु ईश्वर की इस दुनिया को स्त्रियों ने जीत लिया है! इस सत्य को पुरुषों को घुटनों के बल झुककर, हाथ में प्रणय का पुष्प लिए स्वीकार कर लेना चाहिए!