प्रतीक योजनाएँ / बलराम अग्रवाल

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अपनी रचनाओं में जिब्रान ने अन्य भी कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जिन्होंने पारम्परिक अरब साहित्य की शुष्कता और स्थापित जड़ता पर प्रहार किया। उदाहरणार्थ — प्रेम, शक्ति और न्याय। उनके द्वारा प्रयुक्त प्रतीक हृदय और आत्मिक अनुभूति की गहराई से उद्भूत हैं। जैसे कि पिंजरा (क्रूर और अमानवीय तरीके से लोगों को गुलाम बनाए रखने का प्रतीक), जंगल (सुरक्षित स्थान, आज़ादी, पुनर्नवीनीकरण और अमरता का प्रतीक), आँधी या तूफान (विध्वंस और पुनरुत्पत्ति का प्रतीक), धुंध (अलौकिकता और असीमता अथवा अल्पज्ञेय तत्व का प्रतीक), बच्चे (धारणा और विश्वास का प्रतीक), नदी (मानव जीवन की दिशा का प्रतीक), समुद्र (उच्चतर ‘स्व’ अथवा महान आत्मा का प्रतीक), चिड़िया (आत्मा द्वारा दिव्यता की खोज का प्रतीक), दर्पण (मौन एवं आत्म-साक्षात्कार का प्रतीक), रात (अबोधता व सुप्तावस्था का प्रतीक), सूर्योदय (आत्मिक जाग्रति का प्रतीक)।