भारतीय दर्शन का प्रभाव / बलराम अग्रवाल
जिब्रान की अधिकतर रचनाएँ भारतीय दर्शन के अत्यंत निकट प्रतीत होती हैं। अत: भारतीय दर्शन में जिब्रान की रुचि की बात करना असंगत न होगा। जिब्रान पर भारतीय दर्शन के प्रभाव को इंद्राणी दत्ता चौधरी ने तीन खंडों में विभाजित करके देखा है — (1) जिब्रान के जीवन-संदर्भों में, (2) निकटवर्ती मित्रों को लिखे उनके पत्रों में, तथा (3) उनकी अंग्रेजी रचनाओं में इंगित ‘द्वंद्व’ में।
प्रथमत: जीवन-संदर्भ के बारे में : अमेरिकी आलोचक मारियो कोज़ा (Mario Kozah) का यह बयान ध्यातव्य है — “… आरिदा (Aridah) ने अपने जर्नल के सितम्बर 1916 अंक के लिए जिब्रान से उनका आत्मकथ्य माँगा और उसे ज्यों का त्यों प्रकाशित किया : ‘जिब्रान का जन्म वर्ष 1883 में लेबनान के बिशेरी में (जैसे कहा जाए कि भारत के बम्बई में) हुआ… ’ ” यह निश्चय ही आश्चर्य की बात है कि जिब्रान ने भारत के बम्बई (अब मुंबई) में पैदा होने की बात क्यों की, वह भी ऐसे जर्नल में जो मुख्यत: ‘अरबी’ बोलने वालों के बीच जाता था? अमेरिका में उन्हें ‘सुप्रसिद्ध भारतीय कवि’ के रूप में प्रस्तुत किया जाता था। कोज़ा आगे लिखते हैं : “मेरी हस्कल ने अपने संस्मरण में लिखा है — जिब्रान पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। बातचीत के दौरान वह अपने पूर्वजन्मों को तथा उनके पाप-पुण्यों को गिनाते थे… उनका विश्वास था कि अपने एक पूर्वजन्म में वह भारत में पैदा हुए थे।” अपनी पुस्तक ‘खलील जिब्रान : मैन एंड पोयट’ में जो जेनकिन्स (Joe Jenkins) और सुहैल बुशरई (Suheil Bushrui) ने लिखा है कि जिब्रान ने अपने अनेक मित्रों को यह बता रखा था कि उनका जन्म भारत के एक शाही परिवार में हुआ था और उनके दादा शेर पालते थे।
द्वितीयत: पत्रों को लेते हैं; विशेषत: मेरी हस्कल और मे ज़ैदी को लिखे पत्रों को। अपने एक दैनिक जर्नल में मेरी ने लिखा : ‘जिब्रान ने अपने ‘पूर्वजन्मों और पापों’ को गिनाया — ‘दो बार सीरिया में — अत्यल्प जीवन; एक बार इटली में — 25 वर्ष की आयु तक; ग्रीस में — 22 वर्ष की आयु तक; इजिप्ट में — अति वृद्धावस्था तक छह या सात बार चेल्दिया में; एक बार भारत में और एक बार फारस में। सभी जगह मानव-रूप में जन्मा।’
तृतीयत: — रचनाओं में व्यक्त ‘द्वंद्व’। जोसेफ पीटर गुसाइयन (Joseph Peter Ghougassian) जैसे आलोचकों ने इस पर काफी प्रकाश डाला है। उन्होंने अनेक रचनाओं में प्रयुक्त ‘पुनर्जन्म और निर्वाण’ संबंधी जिब्रान की धारणाओं को उद्धृत किया है। अपने पीएच.डी. शोधग्रंथ ‘एन अरब एक्सपेट्रिएट इन अमेरिका: खलील इन अमेरिकन सेटिंग’ में सुहैल हाना ने जिब्रान की ‘द प्रोफेट’ और वॉल्ट व्हिटमैन की ‘सांग ऑव मायसेल्फ’ में समानता दर्शाते हुए सिद्ध किया है कि दोनों ही कवि उपनिषदों से प्रभावित थे। इस संबंध में सर्वोत्कृष्ट विवेचन सुहैल बुशरई की रचना ‘खलील जिब्रान ऑव लेबनान’ में मिलता है जिसमें उन्होंने जिब्रान के प्रोफेट अलमुस्तफा और भगवद्गीता के श्रीकृष्ण के बीच समानता को दर्शाया है। उनका कहना है कि किसी सिद्ध-कवि में अनंत आकाश की ओर जाती चिड़िया का प्रतिरूपण करके जिब्रान हिंदू उपनिषदों में व्यक्त अनंतवाद का संदेश देते हैं।