बवेरिया का बावरा / बावरा बटोही / सुशोभित
सुशोभित
उन्नीसवीं सदी में बवेरिया में एक बावरा हुआ था (अवाम उसे 'बावरा राजा' के नाम से बुलाती थी) : लुडविग द्वितीय। वो साल 1845 में जन्म लेकरा 1886 में मर गया था।
'बूड़ा वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल' जैसा ही कुछ मामला था। उस पर नायाब दुर्ग, क़िले, बुर्ज़ बनाने की धुन सवार हो गई थी। सरकारी ख़ज़ाने को होम करके वह आल्प्स और अल्पाइन की तराइयों में क़िले बनवाता रहता।
महान संगीतकार रिचर्ड वैगनर का वह दोस्त था, इसलिए क़िले बनवाने के लिए वह आर्किटेक्टों के बजाय थिएटर के सेट डिज़ाइन करने वालों की मदद लेता था, गोया अपने क़िलों से उसे राजपाट नहीं करना था, वहाँ ओपरा का मंचन करवाना था!
न्यूख़वांश्टाइन, लिंडरहॉफ़, हेर्रेनख़िमसी, म्यूख़नर रेसिदेंत्स... लुडविग द्वारा बनवाए गए ये क़िले और महल आज बारोक शिल्पकला की धरोहर हैं, लेकिन तब लुडविग के दरबार-ए-ख़ास के लिए वे सिरदर्द का सबब बन गए थे। आखिर, हुक़ूमत का काम जंग लड़ना होता है, नक़्क़ाशसाज़ी करना नहीं। कहते हैं, इसी से तंग आकर लुडविग के मंत्रियों ने उसकी हत्या करवा दी थी।
जर्मन फ़िल्मकार वेर्नर हरज़ोग ने कहा था कि अगर उनके सिवा कोई और व्यक्ति 'फ़िट्ज़काराल्डो' सरीखी असम्भव फ़िल्म बना सकता था, तो वह लुडविग द्वितीय ही था। यक़ीनन, हरसोग के रचनाकर्म और लुडविग के संतप्त, भव्य, साहसी और काव्यात्मक संभावनाओं से भरपूर क़िलों में एक गहरी आत्मिक संगति है। लुडविग हरसोग की प्रेरणा के सहज आलम्बन हैं। हरसोग और लुडविग दोनों ही गर्वीले 'बवेरियाई' तो ख़ैर थे ही।
हाल ही में मेरे एक मित्र यूरोप यात्रा पर रवाना हुए। मैंने पूछा, कहाँ जा रहे हो? उन्होंने कहा, जर्मनी। मैंने पूछा, जर्मनी में कहाँ जा रहे हैं? उन्होंने पूछा, आप क्यों जानना चाहते हैं?
मैंने कहा, क्योंकि जर्मनी भी एक कहाँ है। लिहाजा, अगर आप न्यूरेमबर्ग जा रहे हैं तो होली रोमन एम्पायर की यशस्वी राजधानी किंतु नात्सियों की कलंकित पवित्र-नगरी में जा रहे हैं, यदि बर्लिन जा रहे हैं तो बीसवीं सदी की राजनीतिक हलचलों के सबसे बड़े केंद्र में जा रहे हैं, यदि फ़्रांकफ़ुर्त जा रहे हैं तो यूरोप के वित्तीय केंद्र नहीं, आत्मपरक मार्क्सवाद की भूतपूर्व विद्यापीठ में जा रहे हैं, यदि ड्रेस्डन जा रहे हैं तो एक झुलसी हुई सभ्यता से मिलने जा रहे हैं और अगर कोलोन जा रहे हैं तो राइन नदी के शीशे में जर्मनी की बाईं बांह को निहारने जा रहे हैं।
वे मुस्कराए। उन्होंने कहा, मैं म्यूनिख़ जा रहा हूं। मैंने कहा, तब तो कहिए कि आप बवेरिया जा रहे हैं, जर्मनी नहीं। बवेरिया बवेरिया है। जैसे कातालोनिया, स्पेन नहीं; मोराविया, चेक नहीं; उसी तरह बवेरिया जर्मनी नहीं है। देन्यूब की बांक और काले जंगलों की रोमावलियों वाले इस प्रांत की शख़्सियत जर्मनी और पूर्व प्रशिया से बहुत मुख़्तलिफ़ है।
अबकी वे मुस्कराए नहीं, ठहाका लगाकर हंस पड़े- किसी बावरे की तरह।