बेथेलेहम की मर्दुमशुमारी / बावरा बटोही / सुशोभित
सुशोभित
वह पीतर ब्रुएगेल था, जिसने एक सम्मोहित कर देने वाली लैंडस्केप पेंटिंग बनाई थी : 'द सेन्सस एट बेथेलेहम!' यानी बेथेलेहम की मर्दुमशुमारी या बेथेलेहम की जनगणना।
साल 1566 में बनाई इस पेंटिंग में बीसियों ब्योरों के साथ ही बीच में हम देख सकते हैं- खरहे को खींचते जोसेफ़। खरहे पर वर्जिन मेरी सवार हैं और उनके गर्भ में हैं जीज़ज़।
उस दिन बेथेलेहम की मर्दुमशुमारी में जीज़ज़ की गणना तो ख़ैर नहीं ही की गई होगी ना। पंजी पर उनका नाम नहीं ही लिखा गया होगा ना। उस व्यक्ति का नाम, जिससे सारी गणनाएं पश्चिम के इतिहास में प्रारम्भ होती हैं, जीज़ज़ से पहले और जीज़ज़ के बाद। 'गोस्पेल ऑफ़ ल्यूक' में यह कहा गया था-
'...और सीज़र ऑगस्तस ने हुक़्मनामा जारी किया कि पूरी दुनिया की मर्दुमशुमारी की जाएगी, सभी के नाम अपने-अपने शहरों की पंजियों में दर्ज किए जाएंगे, लिहाज़ा नज़ारेथ के नगर से जोसेफ़ भी जूदा पहुंचा, जो कि डेविड का शहर था और बेथेलेहम कहलाता था, और उसके साथ थी उसकी पत्नी मेरी, जिससे वह बहुत प्यार करता था, और मेरी के पेट में बच्चा था।' वर्जिन मेरी गर्भवती थी।
सीज़र के हुक़्म से बेथेलेहम में अपने ख़ाविंद के साथ पंजियों में वह अपना नाम दर्ज़ कराने गई थी।
वहीं उसने एक संतान को जन्म दिया, और चूंकि किसी भी सराय ने उसे आसरा नहीं दिया था, इसलिए उसने शिशु को एक हौद में रख दिया। तब देवदूतों ने चरवाहों के एक समूह को ख़बर दी कि येसुस आए हैं और वे नवजात शिशु को देखने बेथेलेहम पहुंचे।
बेथेलेहम शब्द का मतलब होता है 'रोटी का घर।' यरूशलम में सलीब पर चढ़ाए जाने से ठीक पहले जीज़ज़ ने शराब के साथ सूखी रोटी खाई थी, जिसको लियोनार्दो दा विंची की चित्रकृति 'द लास्ट सपर' ने अमर कर दिया है। कौन जाने, मर्दुमशुमारी के उस दिन 'रोटी के घर' में जीज़ज़ ने अपने जीवन का पहला भोजन ग्रहण किया हो- वर्जिन मेरी का दूध।
साल 1565 में हैब्सबर्ग में यूरोपियन इतिहास की सबसे हाड़ कंपा देने वाली सर्दियाँ दर्ज की गई थीं। पीतर ब्रुएगेल ने उन सर्दियों को अपनी हडि्डयों में अनुभव किया था। 'गोस्पेल ऑफ़ ल्यूक' में वर्णित प्रसंग पर चित्र बनाने की प्रेरणा तब उन्हें अपनी कंपकंपाती हुई अस्थियों के भीतर से ही मिली होगी। किंतु उनका वह चित्र मंत्रमुग्ध कर देने वाला है।
मैं पीतर को नहीं जानता था, किंतु मैं अंद्रेई तारकोव्स्की को अवश्य जानता था।
अंद्रेई की फ़िल्मों में महान कलाकारों के तैलचित्र हूबहू उभरकर सामने आते रहते थे, जैसे 'सोलारिस' में रेम्ब्रां की 'रिटर्न ऑफ़ द प्रोडिगल सन', 'सेक्रिफ़ाइस' में विन्ची का 'द अडोरेशन ऑफ़ थ्री किंग्ज़' और मिरर में पीतर ब्रुएगेल का 'हंटर्स इन द स्नो।' उनकी फ़िल्म 'अंद्रेई रूब्ल्योफ़' तो ख़ैर एक आइकन पेंटर के जीवन पर ही एकाग्र थी।
मैं 'अंद्रेई रूब्ल्योफ़' का एक रिव्यू पढ़ रहा था और उसमें यह पंक्ति थी कि इस फ़िल्म के अनेक दृश्य ऐसे मालूम होते हैं, जैसे पीतर ब्रुएगेल द एल्डर के कैनवास सजीव हो गए हों। यह टिप्पणी मुझे पीतर की ओर ले गई, और तब मैं उनके इस अद्भुत तैलचित्र तक पहुंचा।
एक समूचा जीवनकाल जलकर बुझ सकता है और मुमकिन है कि आप कभी भी 'द सेन्सस ऑफ़ बेथेलेहम' तक नहीं पहुंच सकें। किंतु शायद मुझे यह चित्र देखे बिना मरना नहीं था।
शीत से नग्न दरख़्तों, पृष्ठभूमि के ध्वस्त दुर्गों, और यहाँ से वहाँ तक फैली बर्फ़ की चादर के बीच बेथेलेहम की वो मर्दुमशुमारी, और उसके बीच खरहे पर सवार वर्जिन मेरी। मुंदी आंखों में करुणा की लौ संजोए। वही करुणा, जिसने जीज़ज़ के हृदय को बेध देना था। मेरी के दूध ने जिस देह को पोसना था, उसे गोलगॉथ में सलीब पर ख़ून बनकर बह जाना था। जीज़ज़, ओह जीज़ज़! मैं इस चित्र को अपनी अस्थियों के भीतर उसी तरह स्मरण रखना चाहता हूं, जैसे साल 1565 की सर्दियों को पीतर ब्रुएगेल ने याद रखा था!