बांसगांव की मुनमुन / भाग - 7 / दयानंद पाण्डेय

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एक दिन राम निहोर और राम किशोर आमने-सामने पड़ गए। राम निहोर ने राम किशोर को देखते ही कहा कि, 'पापी तुम्हें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी।'

'नरक तो आप झेल रहे हैं अभी से कोढ़ी हो कर।' उन के चर्म रोग को इंगित करते हुए राम किशोर ने दांत किचकिचा कर कहा। बात बढ़ गई। हमेशा शांत रहने वाले राम निहोर राम किशोर को मारने को लपके। राम किशोर भी राम निहोर की ओर मारने के लिए लपका। अभी बात हाथापाई तक ही आई थी कि गांव के कुछ लोग आ गए और बीच बचाव कर छुड़ाया। एक आदमी बोला, 'राम निहोर चाचा आप भी इस उमर में इस पापी के मुंह लगते हैं?'

तो राम किशोर उस के ऊपर भी किचकिचा गया। राम निहोर सिर झुका कर घर आ गए। घर में सारा हाल बताया। जगदीश ने कहा कि, 'बड़का बाबू जी अब से आप घर से कहीं अकेले नहीं जाया करेंगे।'

राम निहोर मान गए। पर राम किशोर नहीं माना। राम निहोर की सारी खेती बारी इस तरह से अपने हाथ से जाता देख वह हज़म नहीं कर पा रहा था। कहां तो उस ने सोचा था कि उस के दोनों बेटों के नाम जगदीश के बराबर ही खेती होगी। कहां जगदीश के पास उस के बेटों से चार गुनी खेती हो गई थी। वह चिंता में घुला जा रहा था। हफ़्ते भर में उस का ब्लड प्रेशर ज़्यादा बढ़ गया। इतना कि पैरालिसिस का अटैक हो गया। दायां हिस्सा पूरा का पूरा लकवाग्रस्त। दवा डाक्टर बहुत किया पर कुछ ख़ास काम नहीं आया सब। अब राम किशोर बिस्तर के हवाले था। गांव के लोगों ने स्पष्ट कहा कि उस के पाप की सज़ा उसे इसी जनम में मिल गई। राम निहोर के साथ उस का दुर्व्यवहार, उस की बेइमानी लोगों की ज़बान पर रही। उस के साथ इक्का-दुक्का को छोड़ कर किसी की सहानुभूति नहीं हुई।

पर राम निहोर को हुई। आखि़र छोटा भाई था। राम निहोर गए भी उस के घर उसे देखने। उस के माथे पर हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना दिया और हाथ ऊपर उठा कर कहा कि, 'भगवान जी सब ठीक करेंगे।'

'बड़का भइया!' कह कर राम किशोर भी फफक कर रो पड़ा। पर आवाज़ स्पष्ट नहीं निकल पा रही थी। आवाज़ लटपटा गई थी। चिंतित राम निहोर घर लौटे। राम अजोर से बोले, 'हमारे घर के सुख पर किसी की नज़र लग गई। थाना, मुक़दमा हो गया। हमें यह बीमारी हो गई, राम किशोर ने बिस्तर पकड़ लिया।' राम अजोर ने उन की बात पर ग़ौर नहीं किया तो राम निहोर तड़प कर बोले, 'आखि़र हम हैं तो एक ही ख़ून! मुनीश्वर राय की संतान!'

राम अजोर समझ गए कि बड़का भइया भावुक हो गए हैं। दिन बीतते गए और मुक़दमा चलता रहा। घर के बीच की दीवार से भी बड़ी दीवार दिलों में बनती गई। यहां तक कि ख़ुशी, त्यौहार और शादी ब्याह में भी राम किशोर और राम अजोर के परिवार में आना जाना बातचीत सब बंद हो गया। लोगों को लगने लगा कि राम किशोर के लड़के राम अजोर के लड़के जगदीश का ख़ून कर देंगे। कुछ लोगों ने जगदीश को समझाया भी कि, 'अब से राम निहोर के हिस्से का खेत बारी आधा-आधा कर लो नहीं किसी दिन ख़ूनी लड़ाई छिड़ जाएगी।' जगदीश आधे मन से तैयार भी हो गया। पर राम निहोर एक प्रतिशत भी इस बात से सहमत नहीं हुए। उन्हों ने जगदीश को गीता के कुछ सुभाषित सुनाए और कहा कि, 'डर कर मत रहा करो।'

'जी बड़का बाबू जी!'

मुनक्का राय जब ससुराल पहुंचे तब तक दोपहर हो चुकी थी। लेकिन वहां जो नज़ारा उन्हों ने देखा तो आ कर पछताए। सारा शोक विवाद की भेंट चढ़ा हुआ था। गांव इकट्ठा था, रिश्तेदार और परिचित इकट्ठे थे और राम किशोर के दोनों लड़के कह रहे थे कि, 'बड़का बाबू जी दोनों भाइयों के बड़े भाई थे। सो उन का सब कुछ आधा-आधा बंटेगा। उन की लाश भी।' वह सब छटक-छटक कर उछल रहे थे कि, 'आधी लाश हमारी, आधी लाश तुम्हारी।'

'कहीं लाश का भी बंटवारा होता है?' गांव के किसी ने अफ़सोस करते हुए कहा तो राम किशोर के बेटे मुकेश ने लपक कर उस का गला दोनों हाथों से दाब दिया और बोला, 'चुप साले!'

विवाद बढ़ चुका था। आरी आ चुकी थी। राम निहोर की लाश को आधा-आधा करने के लिए। फ़ोटोग्राफ़र आ चुका था। फ़ोटो खींचने के लिए। राम किशोर के दोनों बेटे छटक-छटक कर राम निहोर की लाश के साथ फ़ोटो खिंचवा रहे थे। कभी इस एंगिल से, कभी उस एंगिल से। राम अजोर और जगदीश अपना-अपना माथा पकड़े चुप-चाप बैठे यह असहनीय तमाशा अभिशप्त हो कर देख रहे थे। आजिज़ आ कर किसी ने थाने पर फ़ोन कर पुलिस को ख़बर कर दिया। पुलिस आई तब कहीं जा कर मामले का निपटारा हुआ। राम निहोर की लाश के दो टुकड़े होने से बचे। राम किशोर के एक बेटे की फिर भी ज़िद थी कि 'बड़का बाबू जी को मुखाग्नि वही देगा।' अंततः पुलिस ने पूछा कि, 'अंतिम समय में राम निहोर राय किस के साथ थे और किस ने उन की सेवा की?' गांव वालों ने स्पष्ट बता दिया कि, 'राम अजोर राय और उन के बेटे जगदीश ने उन की सेवा की और वह उन्हीं के साथ रहते थे। सारी जायदाद भी उन्हों ने इन्हीं के नाम लिख दी है।'

'पर इस का मुक़दमा अभी चल रहा है।' मुकेश तमतमा कर बोला, 'दाखि़ल ख़ारिज अभी नहीं हुआ है।'

'तो अब मैं तुम्हें दाखि़ल कर दूंगा अभी थाने में।' दरोग़ा ने जब डपट कर मुकेश से यह बात कही तो वही भीड़ में दुबक गया।

'राम नाम सत्य है' के उद्घोष के साथ राम निहोर की शव यात्रा शुरू हुई। पुलिस के पहरे में। गांव से भीड़ उमड़ पड़ी। आस पास के गांवों की भी भीड़ जुड़ती गई। यह सोच कर कि श्मशान घाट पर भी कुछ बवाल ज़रूर होगा। राम निहोर राय की लाश के दो टुकड़े करने की बात गांव के आस पास के गांवों तक में आग की तरह फैल गई। ऐसा पहले कभी किसी ने न सुना था, न देखा था। सो यह उत्सुकता सरयू नदी के श्मशान घाट तक सब को खींच ले गई। मुनक्का राय भी अभी तक हतप्रभ थे। ज़िंदगी भर की वकालत में उन्हों ने किसिम-किसिम के झगड़े, प्रपंच और पेंच देखे थे पर ऐसा तो 'न भूतो, न भविष्यति!' वह बुदबुदाए।

श्मशान घाट पर मुकेश एक बार फिर कुलबुलाया, 'मुखाग्नि मैं दूंगा।'

पर ज्यों दरोगा ने उसे घूरा वह फिर भीड़ में दुबक गया। फिर कोई विवाद नहीं हुआ। ज़्यादातर भीड़ आ कर पछताई। कि कोई तमाशा न हुआ! मुनक्का राय भी श्मशान घाट से लौट कर आए। थोड़ी देर अनमना हो कर बैठे। राम अजोर से संवेदना जताई। पत्नी और मुनमुन को ले कर देर रात बांसगांव लौट आए। घर आ कर पत्नी से बोले, 'ई तुम्हारा मझला भाई राम किशोर शुरू से दुष्ट है। तुम्हें पता है जब हमारी शादी के लिए हमें देखने आया था तो तरह तरह के खुरपेंची सवाल पूछता था। इतना ही नहीं सुबह-सुबह जब लोटा ले कर दिशा मैदान गया तो बात ही बात में मुझे ललकार कर कोस भर दौड़ा दिया कि देखें कौन जीतता है? मैं समझ गया कि यह हमारी दौड़ नहीं देखना चाहता, हमारी परीक्षा लेना चाहता है। वह मेरा अस्थिमा चेक करना चाहता था मुझे दौड़ा कर। मैं दौड़ तो गया पर भगवान की कृपा से मेरी सांस तब नहीं फूली और यह बेवक़ूफ़ मुझे अपनी परीक्षा में पास कर गया। शादी हो गई हमारी। बेवक़ूफ़ कहीं का बड़ा होशियार समझता है अपने आप को।' कहते हुए मुनक्का राय इस शोक की घड़ी में भी पत्नी की ओर देख कर मुसकुरा पड़े।

वह जानते हैं कि पत्नी की मझले भइया से ज़्यादा पटती है। मझले भइया मतलब राम किशोर भइया। उस को अच्छा नहीं लग रहा है फिर भी वह बता रहे हैं कि, 'एक बार तो ससुरे ने हद ही कर दी। अचानक कचहरी आ गया भरी दुपहरिया में। उन दिनों नया-नया कोका कोला आया था देश में। मैं ने सोचा कि साले साहब का स्वागत कोका कोला से कर दूं। मुंशी से कह कर कोका कोला मंगवाया। आठ-दस लोग बैठे थे तख़ते पर। सो इस के चक्कर में सब के लिए मंगवाया। सब ने कोका कोला पिया। पर इस ने नहीं। हाथ जोड़ लिया। और देहाती भुच्च ने सारी नातेदारी रिश्तेदारी में मुझे पियक्कड़ डिक्लेयर कर दिया। सब को पूरा विस्तार देते हुए बताता कि बताइए बोतल चल रही है। खुल्लम खुल्ला। वह भी दिनदहाड़े। मैं गया तो बेशर्म मुझे भी पिलाने लगा। किसी तरह से हाथ जोड़ कर छुट्टी ली। मैं सफ़ाई दे-दे कर हार गया। पर कोई मानता ही नहीं था। तब के दिनों में कोका कोला का इतना चलन भी नहीं था। सो लोग कोका कोला समझे नहीं। बोतल समझे। और बोतल मतलब शराब!' वह भड़के, 'अब पड़ा है अपने पापों की गठरी लिए बिस्तर पर हगता मूतता हुआ। नालायक़ अपने धर्मात्मा भाई राम निहोर भाई साहब को भी नहीं छोड़ा। ज़िंदगी भर तो डसता ही रहा, मरने के बाद भी अपने संपोलों को भेज दिया आधी लाश काटने के लिए। नालायक़ को नर्क में भी यमराज महराज जगह नहीं देंगे।'

मुनक्का राय का एकालाप चालू था कि मुनमुन ने आ कर उन को टोका, 'बाबू जी कुछ खाएंगे-पिएंगे भी या मामा जी को कोस-कोस कर ही पेट भरेंगे?'

'हां, कुछ रूखा सूखा बना दो।'

'सब्जी बना दी है। नहा धो लीजिए तो रोटी सेकूं।'

'ठीक है।'

'और हां, अम्मा तुम भी कुछ खा लो।'

'मैं कुछ नहीं खाऊंगी आज। इन्हीं को खिला दो।'

खा पी कर सो गए मुनक्का राय। दूसरे दिन से फिर वही कचहरी, वही खिचखिच, वही मुनमुन, वही शादी खोजने की रामायण फिर से शुरू हो गई। और शादी काटने की गिरधारी राय की सक्रियता भी। राम निहोर राय की लाश आधी-आधी काटने के त्रासद तमाशे की रिपोर्ट गिरधारी राय को भी मिल गई थी। सो वह विवेक-मुनमुन कथा में खाने के बाद स्वीट डिश की तरह इस कथा को भी परोसने-परोसवाने लगे। वह कहते, 'जिस लड़की का ननिहाल इतना गिरा हुआ, इतना बवाली हो उस लड़की का किसी परिवार में आना कितना भयानक होगा? आखि़र आधा ख़ून तो उस का उसी ननिहाल का है।'

और जब उन्हों ने देखा कि मुनक्का राय अब शादी खोजेते-खोजते फ़ुल पस्त हो गए हैं और कहीं बात बन नहीं रही है तो बाहर से दिखने में चकाचक पर भीतर से पूरी तरह खोखले एक परिवार से रिश्ता करने की तजवीज़ एक वकील साहब के मार्फ़त परोसवा दिया। वह परिवार कभी रमेश का मुवक्क़िल भी रहा था और गिरधारी राय के ससुराल पक्ष से दूर के रिश्ते में भी। लड़का गिरधारी राय की तरह ही इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का बेस्ट फेलियर था। साथ ही स्रिजनोफेनिया का पेशेंट भी था और फ़ुल पियक्कड़ भी। गिरधारी राय के हिसाब से मुनक्का राय को निपटाने के लिए फ़िट केस था। जब कि लड़के का पिता घनश्याम राय एक इंटर कालेज में लेक्चरर था और अपना एक हाई स्कूल भी चलाता था। दबंगई में भी वह थोड़ा बहुत दख़ल रखता था। ब्लाक प्रमुख रह चुका था, घर में ट्रैक्टर, जीप सहित खेत मकान सब था। मुनक्का राय जब उस के यहां पहुंचे तो उस ने उन की ख़ूब ख़ातिरदारी की। ख़ूब सम्मान दिया। मुनक्का राय गदगद हो गए। पर जब उन को पता चला कि लड़का राधेश्याम राय अभी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एम.ए. में पढ़ ही रहा है तो वह बिदके। पर लड़के के पिता ने झूठ बोलते हुए कहा कि, 'होनहार है और पी.सी.एस. की तैयारी भी कर रहा है।' तो उन की जान में जान आई। फिर लड़के के पिता घनश्याम राय ने कहा, 'आप के बेटे उच्च पदों पर प्रतिष्ठित हैं इस को भी अपनी तरह कहीं खींच लेंगे। और जो फिर भी कुछ नहीं हुआ तो अपना हाई स्कूल तो है ही। दोनों मियां-बीवी इसी में पढ़ाएंगे। आप की बेटी के शिक्षा मित्र होने का अनुभव भी काम आएगा।'

'हां-हां, क्यों नहीं?'

मुनक्काी राय को इस रिश्ते में एक सुविधा यह भी दिखाई दी कि यहां इंगलिश मीडियम, इंजीनियर, एम.बी.ए., एम.सी.ए. वग़ैरह की चर्चा या फ़रमाईश लड़के के पिता ने नहीं की। लेकिन जब बात लेन देन की चली तो उस में उस ने कोई रियायत नहीं की। दस लाख रुपए सीधे नगद मांग लिए उस ने। मुनक्का राय थोड़ा भिनभिनाए तो वह बोला, 'आप के बेटे सब इतने प्रतिष्ठित पदों पर हैं। तो आप के लिए क्या मुश्किल है। आप के तो हाथ का मैल है दस लाख रुपए।'

'पर आप मांग बहुत ज़्यादा रहे हैं।' मुनक्का राय इस बार थोड़ा स्वर ऊंचा कर के बोले, 'यह रेट तो नौकरी वाले लड़कों का भी नहीं है। फिर आप का लड़का तो अभी पढ़ रहा है।'

'पढ़ ही नहीं रहा, पी.सी.एस. की तैयारी भी कर रहा है।' वह बोला, 'जब पी.सी.एस. में सेलेक्ट हो जाएगा तो आप को पचास लाख में भी नहीं मिलेगा। उड़ जाएगा।' वह मुनक्का राय से भी थोड़ा ऊंचे स्वर में बोला, 'पकड़ लीजिए अभी नहीं जब उड़ जाएगा तब नहीं पकड़ पाइएगा।'

'फिर भी!' मुनक्का राय फीके स्वर में बोले।

'अरे मुनक्का बाबू वह भी इस लिए हां कर रहा हूं कि आप के सभी बेटे प्रतिष्ठित पदों पर हैं, अच्छा परिवार है, कुलीन है तो मैं आंख मंूद कर हां कर रहा हूं।'

फिर ही-हा के बीच पंडित जी बुलाए गए। कुंडलियों की मिलान की गई। पंडित जी ने बताया कि, 'शादी बाइस गुण से बन रही है।'

फिर तो दोनों पक्षों ने एक दूसरे को बधाई दी। गले मिले। मुनक्का राय वापस बांसगंाव के लिए चल दिए। बिलकुल गदगद भाव में। उन्हों ने रास्ते में एक बार अपने कटिया सिल्क के कुर्ते और जाकेट पर नज़र डाली। उन्हें अच्छा लगा। फिर उन्हों ने सोचा कि कहीं इस कुर्ता जाकेट की फ़ोकसबाज़ी ने ही तो नहीं बात बना दी? फिर उन्हों ने यह भी सोचा कि कहीं इस जम रहे कुर्ता जाकेट के भौकाल में ही तो नहीं लड़के के पिता ने दहेज के लिए इतना बड़ा मुंह बा दिया?

फिर भी उन्हें यह रिश्ता जाने क्यों पहली नज़र में बहुत अच्छा लगा। अब उन्हें यह क्या पता था कि वह गिरधारी राय की बिछाई बिसात पर प्यादा बन कर रह गए हैं। राहुल का फ़ोन आने पर उन्हों ने बता दिया कि, 'तमाम देखी शादियों में एक शादी मुझे जम गई है। वह घनश्याम राय का बेटा राधेश्याम राय है। लड़का होनहार है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है और पी.सी.एस. की तैयारी भी कर रहा है।'

'मतलब आप को पूरी तरह पसंद है।'

'हां, पसंद तो है लेकिन वह दहेज थोड़ा ज़्यादा मांग रहा है।'

'कितना?'

'दस लाख रुपए नगद।'

'हां, यह तो थोड़ा नहीं बहुत ज़्यादा है।' राहुल बोला, 'आप भइया लोगों को भी बता दीजिए। क्या पता बातचीत से कुछ कम कर दे।'

'ठीक है।' मुनक्का राय आश्वस्त हो गए।

रमेश से बात हुई तो उस ने कहा कि, 'बाबू जी घनश्याम राय तो हमारा मुवक्किल रहा है उस का फ़ोन नंबर दीजिए तो मैं एक बार बात करता हूं। कुछ क्या ज़्यादा पैसे कम करवा लूंगा।'

'फ़ोन नंबर अभी तो नहीं है पर पता कर के बताऊंगा।'

'और हां, लड़के के बारे में ज़रा ठीक से जांच पड़ताल कर लीजिएगा। वैसे भी घनश्याम राय ज़रा दबंग और काइयां टाइप का आदमी है। यह भी देख लीजिएगा।'

'ठीक है।'

बाद में जब रमेश ने घनश्याम राय से बात की तो वह 'जज साहब, जज साहब!' कह-कह कर विभोर हो गया। कहने लगा, 'धन्यभाग हमारे कि आप ने हम को फ़ोन किया। हम को तो विश्वास ही नहीं हो रहा।'

'वह तो सब ठीक है पर आप जो दस लाख रुपए मांग रहे हैं उस का क्या करें?' वह बोला, 'एक बेरोज़गार लड़के का इतना दहेज तो सोचा भी नहीं जा सकता। और आप इस तरह मांग ले रहे हैं।'

'आप जैसा कहें हुज़ूर हम तो आप के पुराने मुवक्किल हैं।' कह कर वह घिघियाने लगा।

'नक़द, दरवाज़ा, सामान वग़ैरह कुल मिला कर पांच लाख रुपए में तय रहा। अब आप तय कर लीजिए कि क्या सामान लेना है और कितना नक़द। यह सब पिता जी को बता दीजिए।' रमेश ने लगभग फ़ैसला देते हुए कहा।

'अरे जज साहब इतना मत दबाइए।' घनश्याम राय फिर घिघियाया।

'हम को जो कहना था घनश्याम जी, कह दिया। बाक़ी आप तय कर लीजिए और पिता जी को बता दीजिए। प्रणाम!' कह कर रमेश ने फ़ोन काट दिया। फिर बाबू जी को यह सारी बात बताते हुए कहा कि, 'बाक़ी उत्तम मद्धिम आप अपने स्तर से देख लीजिएगा। ख़ास कर लड़का और लड़के का स्वभाव वग़ैरह। चाल-चलन, सूरत-सीरत। यह सब भी ज़रूरी है।'

'बिलकुल बेटा।' मुनक्का राय बोले, 'बस एक बार तुम सब भाई भी आ कर देख लेते तो अच्छा होता।'

'अब उस के घर हम को तो मत ले चलिए।' रमेश बोला, 'धीरज, तरुण से बात कर लीजिए।'

लेकिन धीरज और तरुण भी टाल गए। कहा कि, 'बाबू जी, आप ने देख लिया है, आप को पसंद आ गया है। आप अनुभवी भी हैं। आप का फ़ैसला ही अंतिम फ़ैसला है।'