भाग 18 / हाजी मुराद / लेव तोल्सतोय / रूपसिंह चंदेल

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आक्रमण के बाद अगले दिन की सुबह जल्दी ही बटलर किसी प्रकार पिछले दरवाजे से टहलने के लिए निकल गया और सुबह की चाय से पूर्व, जो वह प्राय: पेत्रोव के साथ लेता था, उसने ताजी हवा में सांस ली थी। सूर्य पहाड़ों के ऊपर चमकने लगा था, और उसकी रोशनी में सड़क के दाहिनी ओर सफेदी किये हुए मिट्टी के मकानों पर दृष्टि डालना उसे आहत कर रहा था, लेकिन बायीं ओर दूर अंधेरे जंगली पहाड़ों और सदैव अपने को बादलों में छुपाये होने का आभास देने वाले चमकते हुए हिम पर्वतों की धुंधली श्रृखंला का निरंतर अवलोकन उसके लिए आनंददायक और सुखद था।

बटलर ने इन पर्वतों की ओर देखा, गहरी सांस ली और यह सोचकर आनन्दित हुआ कि वह जीवित था, विशेषरूप से वह, और इस प्रकार के शानदार स्थान में। वह थोड़ा, इस बात से भी खुश था, कि कल के युद्ध में उसने स्वयं अच्छा संचालन किया था, विशेषरूप से प्रति आक्रमण के समय, जब युद्ध पूर्णरूप से उग्र हो उठा था। और वह यह याद करके भी आनन्दित हुआ कि किस प्रकार मोली, अथवा मेरी द्मित्रीव्ना, पेत्रोव की पत्नी ने, अभियान से उनके घर लौटने पर दावत दी थी, और किस प्रकार सभी के प्रति निराले ढंग से सरल और मधुर बनी रही थी। लेकिन उसके प्रति वह विशेषरूप से सहृदय थी, उसने ऐसा सोचा। घनी चोटी बांधे, चौड़े, उन्नत वक्ष वाली मेरी द्मित्रीव्ना ने, जिसके चकत्तेदार सौम्य चेहरे पर हर समय मुस्कान खिली रहती थी, हृष्ट-पुष्ट अविवाहित नौजवान बटलर को, अपरिहार्यरूप से आकर्षित किया था, और उसने सोचा था कि उसे भी उसकी चाहत है। लेकिन उसने यह भी सोचा था कि यह अपने स्नेही, सरल-हृदय मित्र के साथ कपटपूर्ण व्यवहार होगा, और उसने मेरी द्मित्रीव्ना के साथ अत्यधिक सहज और सम्मानजनक व्यवहार का पालन किया था और प्रसन्न था कि उसने ऐसा किया था।

उसके विचार धूलभरी सड़क पर दौड़ते घोड़ों की टॉपों की आवाज से भंग हुए थे। कुछ लोगों का समूह सरपट दौड़ता आ रहा था। उसने अपना सिर ऊपर उठाया और देखा कि घुड़सवारों का एक समूह सड़क के अंतिम सिरे से चलता हुआ समीप पहुंच रहा था। बहुत से कज्जाक थे, जिनके आगे दो आदमी चल रहे थे। उनमें से एक सफेद कपड़े और ऊंची पगड़ीदार फर कैप पहने हुए था। दूसरा सांवला और टेढ़ी नाकवाला, अपनी यूनीफार्म में चांदी के मूल्यवान तमगे धारण किये हुए और हथियार लिए हुए एक रूसी सैन्य अधिकारी था।

पगड़ीधारी घुड़सवार छोटे सिर और सुन्दर आंखो वाले मनोहर चितकबरे घोड़े पर सवार था और अधिकारी ऊंचे, ऐंठकर चल रहे करबख घोड़े पर था। अश्वप्रिय बटलर ने, तुरंत पहले घोड़े के उत्साह और ताकत के महत्व को समझ लिया, और वे लोग कौन थे यह पूछने के लिए उसने उन्हें रोका। अधिकारी बटलर की ओर घूमा।

“वह कमाण्डिगं अफसर का घर है? ” अव्याकरणिक भाषा और उच्चारण से अपने को गैर-रूसी मूल का प्रकट करते हुए अधिकारी ने पूछा। बटलर ने कहा वही घर है।

“वह कौन है? ” अधिकारी के अति निकट पहुंचते हुए और पगड़ीधारी व्यक्ति पर दृष्टिपात करते हुए बटलर बोला।

“वह हाजी मुराद है। वह मिलिटरी कमाण्डर के साथ रहने आया है, “अधिकारी बोला।

बटलर ने हाजी मुराद और रूसियों के समक्ष उसके आत्म-समर्पण के विषय में सुना था, लेकिन यहाँ इस छोटी - सी छावनी में उसे देखने की उसने अपेक्षा न की थी।

हाजी मुराद ने उस पर सद्भावनापूर्ण दृष्टि डाली।

“स्वागत -- कोशकिल्डी,” उसने तातार में, जो उसने सीख रखी थी, अभिवादन किया।

“सौबुल,” अपना सिर हिलाते हुए, हाजी मुराद ने उत्तर दिया। वह बटलर के पास तक आया और दो उंगलियों से अपनी चाबुक झुलाते हुए, अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया।

“कमाण्डर? ” वह बोला।

“नहीं, कमाण्डर वहाँ हैं, मैं जाकर उन्हें बुला लाऊंगा,” अधिकारी को संबोधित करते हुए बटलर ने कहा। सीढ़ियाँ चढ़कर उसने दरवाजे को धकियाया।

लेकिन परेड मार्ग का प्रवेश द्वार,जैसा कि मेरी द्मित्रीव्ना उसे पुकारती थी, बंद था। बटलर ने खटखटाया, लेकिन जब कोई उत्तर नहीं मिला तब वह घूमकर पिछले दरवाजे की ओर गया। उसने नौकर को आवाज दी, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला और, नौकारों को न पाकर, उसने रसोई में प्रवेश किया। मेरी द्मित्रीव्ना, अपने सिर पर शॉल लपेटे हुए, अपने लाल चेहरे और अपनी गोल गोरी बाहों पर आस्तीनों को ऊपर की ओर मोड़े हुए, वह अपने हाथ जैसी सफेद रोल्ड पेस्ट्री को मालपुओं के लिए छोटे टुकड़ों में काट रही थी।

“नौकर कहाँ हैं? ” बटलर ने पूछा।

“बियर पीकर धुत्त होगें, ” मेरी द्मित्रीव्ना बोली, “आप उन्हें क्यों चाहते हैं? ”

“मैं दरवाजा खुलवाना चाहता हूँ। कबीलाइयों का एक पूरा दल घर के आगे एकत्रित है। हाजी मुराद आया हुआ है। ”

“एक अच्छी मनगढंत कहानी, ” मेरी द्मित्रीव्ना ने मुस्कराते हुए कहा।

“ईमानदारी से, मैं मजाक नहीं कर रहा हूं। वे डयोढ़ी पर खड़े हैं। ”

“क्या वास्तव में यह सच है? ” मेरी द्मित्रीव्ना बोली।

“मुझे इन बातों की कल्पना क्यों करनी चाहिए? आओ और एक नजर देख लो ; वह ड्योढ़ी के पास खड़ा है। ”

“कैसा आश्चर्य है,” अपनी आस्तीनें नीचे मोड़ती हुई और अपनी मोटी चोटी में हेयर पिन की आवश्यकता अनुभव करती हुई मेरी द्मित्रीव्ना ने कहा। ”बेहतर है कि मैं जाऊं और इवान मैथ्यू को जगा दूं, ” वह बोली।

“नहीं, मैं स्वयं जाऊगां। ” बटलर बोला।

“तब, बहुत अच्छा,” मेरी द्मित्रीव्ना बोली और अपने काम के लिए लौट गयी।

इवान मैथ्यू यह जानकर कि हाज़ी मुराद ठहरने के लिए आया था, किचिंत् भी आश्चर्यचकित नहीं हुआ, क्योंकि वह पहले से ही जानता था कि वह ग्रोज्नाया में था। सहारा लेकर उसने अपने को खड़ा किया, एक सिगरेट ली, उसे सुलगाया और आवाज के साथ खांसते हुए कपड़े बदलना प्रारंभ किया और इस ब---- को उसके पास भेजने के लिए अपने उच्चाधिकारियों पर भुनभुनाता रहा। जब उसने कपड़े बदल लिए तब अपने नौकर से 'दवा' के लिए पूछा। नौकर जानता था कि 'दवा' से उसका क्या आभिप्राय था, और उसने उसे थोड़ी-सी 'दवा' ला दी थी।

“एक मिश्रण से बुरा कुछ भी नहीं होता, ” वोद्का पीते हुए और उसके बाद कुछ काली ब्रेड खाते हुए वह भुनभुनाया था। “कल मैनें देशी ब्राण्डी पी थी, और मेरा सिर दर्द करता रहा। अच्छा, मैं तैयार हूं,” उसने वोद्का समाप्त की और बैठक में गया, जहाँ बटलर पहले ही हाज़ी मुराद और उसके साथ के अफसर को ले आया था।

मार्गरक्षी अधिकारी ने इवान मैथ्यू को पश्चिमी मोर्चे के कमाण्डर से प्राप्त एक आदेश पत्र सौंपा जिसमें हाजी मुराद को लेने और गुप्तचरों के माध्यम से कबीलाइयों के साथ उसे सम्पर्क रखने, लेकिन कज्जाक अनुरक्षक के साथ के बिना कभी छावनी न छोड़ने के लिए उसे अनुमति देने का आदेश था।

इवान मैथ्यू ने जब आदेश पढ़ लिया, उसने हाजी मुराद पर पैनी दृष्टि डाली और कागज को पुन: ध्यान से देखा। अनेक बार अपनी ऑंखें बारी-बारी से कागज और हाजी मुराद पर डालने के बाद, उसने अंतत: अपनी ऑंखें हाजी मुराद पर स्थिर कर दीं और बोला :

“यक्षी, बेक, यक्षी ( बहुत अच्छा, श्रीमान् )। उसे बना रहने दो। उसे बता दो कि उसे जाने की छूट न देने का मुझे आदेश है। और आदेश आदेश होते हैं। हम उसे कहां रखेंगे? तुम क्या सोचते हो, बटलर --- हम उसे आफिस में रखेंगे? “

बटलर के उत्तर देने से पहले मेरी द्मित्रीव्ना रसोई से बाहर आयी और दरवाजे पर खड़ी होकर, इवान मैथ्यू से बोली :

“क्यों? उसे यहीं रखो। हम उसे बैठक और स्टोर रूम दे देंगे। कम से कम वह हमारी ऑंखों के नीचे रहेगा, ” वह बोली, और हाज़ी मुराद की ओर देखा, और जब उससे उसकी ऑंखें मिलीं वह तेजी से दूर देखने लगी थी।

“हाँ, मैं सोचता हूं मेरी द्मित्रीव्ना ठीक कह रही हैं, “बटलर ने कहा।

“तुम यहाँ से चली जाओ ; औरतों का यहाँ कोई काम नहीं है,” त्योरियाँ चढ़ाते हुए, इवान मैथ्यू बोला।

बातचीत के दौरान पूरे समय हाजी मुराद अपने हाथ से अपनी कटार की मूंठ को पीछे से पकड़े हुए, अपने चेहरे पर एक फीकी अवज्ञापूर्ण मुस्कराहट लिए बैठा रहा था। उसने कहा कि उसे आपत्ति नहीं है कि उसे कहाँ रहना है ! उसे एक चीज की आवश्यकता थी --- और जनरल ने इसकी अनुमति दी थी --- कबीलाई लोगों से संबन्ध रखने की, और इसलिए वह चाहता था कि उन्हें उसकी बात स्वीकार कर लेनी चाहिए। इवान मैथ्यू ने कहा कि उसे कार्यान्वित किया जायेगा। वह आवश्यक कागजात तैयार करने और अपेक्षित व्यवस्था करने के लिए कार्यालय जा रहा था। उसने बटलर से निवेदन किया कि जब तक उनके लिए भोजन और उनका कमरा तैयार होते हैं तब तक वह अतिथि का मन बहलाव करे।

नये मित्र के साथ हाज़ी मुराद के संबन्ध बहुत स्पष्ट रूप से तुरंत परिभाषित हो गये थे। इवान मैथ्यू के साथ अपने प्रथम परिचय में ही उसने उसके लिए तुरंत नफरत और तिरस्कार का भाव प्रकट किया था और उसके प्रति सदैव तिरस्कार पूर्ण व्यवहार करता रहा था। मेरी द्मित्रीव्ना, जिसने भोजन पकाया था और उसके लिए परोसा था, उसकी विशेष कृपापात्र रही थी। वह उसकी सरलता के लिए, उसके विशिष्ट सौन्दर्य के लिए जो एक विदेशी जाति से संबन्ध रखता था, और अपने प्रति उसके स्नेह के लिए, जो अनजाने ही वह प्रकट करती रही थी, उसे पसंद करने लगा था। वह प्रयास करता रहा था कि वह उस पर दृष्टि न डाले अथवा उससे बातचीत न करे, लेकिन उसकी ऑंखें अनजाने ही उसकी ओर घूम जातीं थीं और उसकी गतिविधि का अनुगमन करती रहती थीं।

प्रथम परिचय में ही बटलर के साथ उसकी मित्रता हो गयी थी और वह उसके साथ स्वेच्छा से और बहुत अधिक बातें करता रहता, उसके जीवन के विषय में पूछता रहता, अपने जीवन के बारे में बताता रहता, उसके परिवार की स्थिति के विषय में जो समाचार गुप्तचर लाते थे वह उसे सूचित करता था, और उसकी सलाह भी पूछता था कि क्या करना है।

गुप्तचर जो समाचार लाये थे वह हतोत्साहित करने वाला था। छावनी में उसके चार दिनों के प्रवास-काल के दौरान वे उसके पास दो बार आये थे, और दोनों बार ही समाचार खराब थे।