भाग 19 / हाजी मुराद / लेव तोल्सतोय / रूपसिंह चंदेल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाजी मुराद के रूसियों की ओर जाने के तुरंत बाद उसके परिवार को वेदेनो गाँव ले जाया गया था और शमील के फैसले की प्रतीक्षा करते हुए वहाँ कैद में रखा गया था। महिलाएं ---उसकी माँ फातिमा और उसकी दो पत्नियाँ -- और उनके पाँच छोटे बच्चे मुखिया इब्राहीम रशीद के मकान में निगरानी में रह रहे थे, और उसके अठारह वर्षीय पुत्र को, एक छ: फीट गहरे गड्ढे वाले तहखाने में चार अपराधियों के साथ रखा गया था। वे लोग भी अपने भाग्य के निपटारे के लिए इंतजार कर रहे थे।

उन सबके विषय में कोई निर्णय नहीं लिया जा पाया था क्योंकि शमील गैरहाज़िर था। वह रूसियों के खिलाफ युद्ध कर रहा था।

6 जनवरी 1852 को शत्रु के साथ एक मुठभेड़ के बाद शमील वेदेनो में अपने घर लौटा था। रूसियों के अनुसार उस युद्ध में वह पराजित हुआ था और वेदेनो भाग गया था, लेकिन स्वयं शमील और उसके मुरीदों की राय में वह विजयी हुआ था और उसने रूसियों को पराजित किया था। इस युद्ध में उसने स्वयं एक राइफल का प्रयोग किया था। यह एक बहुत ही असाधारण घटना थी। यदि उसके साथ चल रहे मुरीदों ने उसे रोका नहीं होता तो हाथ में तलवार लिए, वह अपने घोड़े सहित सीधे रूसियों पर कूद पड़ा होता। इस युद्ध में शमील के दो मुरीद मारे गये थे।

यह दोपहर का समय था जब, अपने चारों ओर कूदते-फांदते, अपनी राइफलों और पिस्तौलों से फायर करते और लगातार “अल्लाह हू, अल्लाह हू “गाते हुए, मुरीदों के एक दल से घिरा हुआ शमील अपने घर पहँचा था।

विशाल वेदेनो गाँव की समस्त जनता अपने शासक के स्वागत के लिए गलियों और छतों पर खड़ी थी, और विजय के प्रतीक स्वरूप अपनी राइफलों और पिस्तौलों से फायर भी कर रही थी। शमील एक सफेद अरबी घोड़े पर सवार था। घर के निकट पहुंचकर उसने प्रसन्नतापूर्वक झटके के साथ अपने घोड़े की लगाम खीचीं थी। घोड़ा सोने-चाँदी के आभूषणों से सज्जित नहीं था। उसकी साज-सज्जा सादगीपूर्ण थी। लगाम में उच्च कोटि का लाल रंग का कसीदाकारी का काम किया हुआ था। पूरी लगाम खांचेदार थी। रकाबें धातु की बनी हुई थीं, और काठी के नीचे एक लाल रंग का कपड़ा दिखाई दे रहा था। इमाम ने फ़र का कोट पहना हुआ था जो भूरे रंग के कपड़े से ढका हुआ था, जिसके गले और आस्तीनों पर गोलाकार काली झब्बेदार फ़र लगी हुई थी। उसने अपने लंबे छरहरे शरीर पर काली बेल्ट बांध रखी थी, जिसमें उसने कटार रखी हुई थी। उसने सफेद पगड़ी पर, जिसका अंतिम एक सिरा गले तक लटका हुआ था, काले फुंदने वाली ऊंची चौरस सिरे वाली फ़र की टोपी पहन रखी थी। उसने हरे रंग के नरम जूते पहने हुए थे और उसकी पिण्डलियाँ साधारण फीते से सज्जित सख्त काले टंगावरण से लिपटी हुई थीं।

इमाम ने कुछ भी वैभवशाली, सोना या चाँदी नहीं पहना हुआ था। उसके लंबे, तने हुए, शक्तिशाली शरीर पर साधारण वस्त्र थे। वह सोने और चाँदी की कसीदाकारी किये हुए कपड़ों और हथियारों से लैस अपने मुरीदों से घिरा हुआ था जो उसके प्रताप के प्रभाव को ठीक उसी प्रकार प्रकट कर रहा था जैसाकि वह चाहता था। वह जानता था कि लोगों पर प्रभुत्व को किस प्रकार बनाए रखना होता है। छटी हुई लाल दाढ़ी में ढका हुआ, सदैव संकुचित रहनेवाली छोटी ऑंखों वाला, उसका पीला चेहरा, संवेगहीन था, गोया वह पत्थर में तराशा गया था। जिस समय वह गाँव से होकर गुजर रहा था उसने अनुभव किया था कि हजारों ऑंखें उस पर जीम हुई थीं ; लेकिन उसने किसी पर भी दृष्टि नहीं डाली थी। हाजी मुराद की पत्नियाँ और बच्चे भी घर के सभी लोगों के साथ गाँव में इमाम के प्रवेश को देखने के लिए बाहर बालकनी पर आ गये थे। केवल उसकी बूढ़ी माँ फ़ातिमा बाहर नहीं आयी थी, बल्कि अपने भूरे बालों को छितराये हुए, अपनी लंबी बाहों में अपने दुबल-पतले घुटनों को बांधे हुए, अंगीठी में धीरे-धीरे जलती हुई टहनियों को देखती हुई, और अपनी काली आतिश आलूद ( आग्नेय ) ऑंखों को मिचकाती हुई, वह घर के फर्श पर बैठी रही थी। अपने बेटे की भाँति, वह भी सदैव शमील से घृणा करती रही थी, और इस समय वह पहले से अधिक उससे घृणा कर रही थी, और वह उसे बिल्कुल ही देखना नहीं चाहती थी।

शमील का विजयोल्लसित प्रवेश हाजी मुराद के बेटे ने भी नहीं देखा था। अंधेरे बदबूदार गड्ढे से उसने केवल राइफलों की फायर और लोगों को गाते हुए सुना था, और अपने को संतप्त करता रहा था जैसा कि नौजवान और तेजस्वी लोग तब करते हैं जब वे स्वतंत्रता से वंचित कर दिये जाते हैं। बदबूदार गङ्ढे में बैठा, अपने दुखी, गंदे, निढाल साथी कैदियों को देखता हुआ, जो अधिकतर एक-दूसरे से घृणा करते थे, उसे इस समय भव्य घोड़ों पर अपने शासक के चारों ओर नाच रहे, हवा, प्रकाश और आजादी का आनन्द लूट रहे, अपनी बंदूकों से फायर कर रहे और आनन्दपूर्वक, “अल्लाह हू, अल्लाह हू” गा रहे लोगों से उग्र ईर्ष्या हो रही थी।

गाँव से गुजरने के बाद, शमील अपने विशाल राजमहल में प्रविष्ट हुआ जो भीतरी राजमहल से सटा हुआ था, जहाँ उसका हरम था। दो हथियारबंद लेज्गियनों ने पहले राजमहल के खुले द्वार पर शमील का स्वागत किया। यह राजमहल लोगों से भरा हुआ था। दूरवर्ती स्थानों से व्यापार के लिए आये लोग, याचिकाकर्ता, और स्वयं शमील द्वारा मुकदमें और दण्ड के लिए बुलाये गये लोग यहाँ उपस्थित थे। शमील के प्रवेश करने पर राजदरबार में उपस्थित सभी लोग उठ खड़े हुए थे और सम्मानपूर्वक, अपनी छातियों पर अपने हाथों को रख इमाम का अभिवादन किया था। जब शमील बाहरी द्वार से भीतर की ओर जा रहा था कुछ लोग घुटनों के बल झुक गये थे और उसके चले जाने के बाद तक झुके रहे थे। यद्यपि शमील ने प्रतीक्षित भीड़ में अनेक अवांच्छित चेहरों और अनेक उबानेवाले याचिकादाताओं को पहचान लिया था जो अपने मामलों के लिए उसका ध्यान खींचना चाहते थे, तथापि वह अपने चेहरे पर वही अपरिवर्तित पथरीला भाव लिए हुए उनके पास गुजर गया था । वह भीतरी राजमहल में प्रविष्ट हुआ और द्वार के बांयी ओर, अपने कमरे के बारजे पर घोड़े से उतरा।

युद्ध ने शमील को शारीरिक रूप की अपेक्षा मानसिक रूप से अधिक प्रभावित किया था, क्योंकि वह जानता था कि युद्ध में वह पूरी तरह विफल रहा था, हालांकि सार्वजनिकरूप से उसने इसे विजय बताया था। युद्ध में अनेकों चेचेन गाँव जलाये और नष्ट कर दिये गये थे। चेचेन अस्थिर और बदल जाने वाले लोग थे और अब वे डांवाडोल स्थिति में थे। उनमें से कुछ, जो रूसियों के निकटस्थ थे, उनके पास जाने को तैयार थे। यह सब बहुत गंभीर बात थी, और इसके लिए उपाय खोजना आवश्यक था। लेकिन उस क्षण शमील इस पर सोचना नहीं चाहता था। इस समय वह आराम और अपनी मुंहलगी काली ऑंखों और तेज कदमों से चलने वाली अठारह -वर्षीया क्रिश्चियन पत्नी अमीना के साथ पारिवारिक प्रेम का आनन्द लेना चाहता था। लेकिन इस समय उसके लिए अमीना से मिलने के विषय में सोचना न केवल असंभव था, जो भीतरी राजमहल में पुरुषों के कमरों से महिलाओं के कमरों को अलगाने वाले विभाजन के पीछे हाथ भर की दूरी पर थी ( शमील को पक्का यकीन था कि इस समय भी, जब वह घोड़े से उतर रहा था, अमीना उसकी अन्य पत्नियों के साथ विभाजन की दरार से उसे देख रही थी )। लेकिन वह दीवान पर लेटकर अपनी थकान से निज़ात तक नहीं पा सका। सबसे पहले उसने दोपहर की नमाज अदा की, जिसमें उसकी तनिक भी रुचि नहीं थी। लेकिन उसके लिए ऐसा न करना असंभव था। देश का धार्मिक नेता होने के कारण इसे छोड़ना उसके लिए कठिन था और इसलिए यह उसके लिए उतना ही आवश्यक था जितना उसका प्रतिदिन का भोजन। उसने वुज़ू क़िया और नमाज अदा की। नमाज खत्म करने के बाद उसने उन लोगों को बुलाया जो उससे मिलने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

सबसे पहले उसके पास जो आया वह उसका श्वसुर था। वह लंबा, भूरे बालोंवाला, हिम की भांति सफेद दाढ़ी और गुलाबी चेहरे वाला खूबसूरत वृद्ध व्यक्ति, जमालइद्दीन था। वह एक अध्यापक था। नमाज अदा कर लेने के बाद उसने शमील से युद्ध के विषय में पूछा और उसे बताया कि उसकी गैरहाज़िरी में पहाड़ों में क्या हुआ था।

उसके पास सभी प्रकार के समाचार थे --- खूनी-दुश्मनी में हुई हत्याएं, जानवारों की चोरियाँ, लोगों द्वारा मयकशी और धूम्रपान द्वारा तरिकत'( मुस्लिम आचार संहिता) का तिरस्कार आदि। जीमल इद्दीन ने रिपोर्ट दी कि अपने परिवार को रूसियों के पास ले जाने के लिए हाज़ी मुराद ने आदमी भेजे थे, लेकिन इसका पता चल गया था और उसके परिवार को वेदेनो ले आया गया था, जहाँ इमाम के निर्णय की प्रतीक्षा में उन्हें पहरे में रखा गया था। इन सभी मामलों पर चर्चा करने के लिए वृद्धजन समीप के काउन्सिल रूम में एकत्रित हुए थे। जीमल इद्दीन ने शमील को दिन छुपने से पहले उन सबको विदा कर देने की सलाह दी थी, क्योंकि वे पहले ही तीन दिन से उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

रात्रि भोजन के पश्चात, जिसे उसकी बड़ी पत्नी जै़दा लेकर आयी थी, जो सांवली, तीखी नाक वाली, एक अनाकर्षक महिला थी, और जो उसे बिल्कुल पसंद नहीं थी, शमील काउन्सिल रूम में चला गया था।

काउन्सिल की स्थापना करने वाले छ: व्यक्ति उसके इस्तकबाल के लिए उठ खड़े हुए थे। वे धूसर, भूरी और लाल दाढ़ियों वाले, ऊंची फ़र की टोपियाँ पहने हुए, कुछ पगड़ी धारण किये हुए और कुछ बिना पगड़ी के, नयी टयूनिक और वस्त्र पहने हुए और अपनी बेल्टों में कटारें खोसें हुए वृद्ध लोग थे। शमील का स्थान उन सभी में आला था। सभी ने उसके साथ हथेलियाँ ऊपर रखते हुए अपने हाथ ऊपर उठाए, अपनी ऑंखें बंद की ; सस्वर प्रार्थना की, फिर अपने हाथों को अपने चेहरों पर फेरते हुए, उन्हें अपनी दाढ़ियों तक नीचे लाये और उन्हें आपस में जोड़ दिया।

आपराधिक मामलों का निर्णय शरियत के नियमानुसार किया गया। दो आदमियों को चोरी के लिए हाथ काटने, एक को हत्या के लिए उसका सिर काटने का दण्ड दिया गया, और तीन को क्षमा कर दिया गया था। फिर वे मुख्य मामले - चेचेन लोगों का रूसियों की ओर पलायन रोकने के उपायों पर सोच-विचार पर आये थे।

इस पलायन को प्रभावहीन करने के लिए जमाल इद्दीन ने निम्नलिखित घोषणा-पत्र तैयार किया था।

“क़ादिरे मुतलक़ ( सर्वशक्तिमान ) खुदा से आपको दाइमी शान्ति मिले। मैनें सुना है कि रूसी आपको फुसला रहे हैं और आत्म-समर्पण के लिए अपील कर रहे हैं। उनका यकीन या आत्म-समर्पण न करें, बल्कि उनके खिलाफ डटे रहें। यदि इस जन्म में आप इनामयाफ्ता नहीं हुए तो आप अपना इनाम आने वाले जन्म में पायेगें। आप याद करें जब एक बार पहले उन्होनें आपके हथियार ले लिए थे। 1840, में, यदि खुदा ने आपको आजादी न प्रदान की होती तब, इस समय आप रूसियों के जब्री रंगरूट होते, और आपकी पत्नियाँ बिना पायजामी के अपमानित हो रही होतीं। बीते वक्त से भविष्य का फैसला करें। काफ़िरों के साथ रहने की अपेक्षा रूसियों से दुश्मनी में मरना अच्छा है। सब्र रखें। मैं आपके लिए कुरान और तलवार लेकर आऊंगा और रूसियों के खिलाफ आपका नेतृत्व करूंगा। मैं आपको सख्तदिली से हुक्म देता हूं कि लुत्फ उठाने, या रूसियों के सामने आत्म-समर्पण करने के विचार का, अब कोई मकसद नहीं है। ”

शमील ने इस ऐलानिया तहरीर (घोशणा-पत्र) को पसंद किया, उस पर हस्ताक्षर किये और उसे बंटवाने का निर्णय किया।

इन मामलों के बाद हाजी मुराद के प्रश्न पर चर्चा की गई। शमील के लिए यह एक महत्वपूर्ण मामला था। हालांकि वह इस बात को स्वीकार नहीं करना चाहता था, लेकिन वह जानता था कि यदि हाजी मुराद, अपनी दक्षता, बहादुरी, और साहसिकता के साथ, उसके साथ होता, तो जो स्थिति इस समय चेचेन्या में थी तब इससे भिन्न होती। हाजी मुराद के साथ सुलह करना और उसकी सेवाओं का पुन: उपयोग करना अच्छा होगा, लेकिन यदि ऐसा नहीं हो पाता तो भी उसे रूसियों की सहायता करने से रोकना आवश्यक था। इसलिए हर कीमत पर उसे वापस बुलाना आवश्यक था, और जब वह उसे वापस बुला ले, उसे मरवा दे। बेहतर तरीका यह था कि या तो एक आदमी तिफ्लिस भेजकर उसे वहीं मरवा दिया जाये या उसे वापस बुलाया जाये और ठौर ही खत्म करवा दिया जाये। इसे निपटाने का एक तरीका था --- उसका ही परिवार, मुख्य रूप से उसका बेटा, जिसके विषय में शमील जानता था कि हाजी मुराद जज्बाती हद तक उसके प्रति स्नेहशील था। इसलिए उसे उसके पुत्र के माध्यम से कार्यवाई करनी चाहिए।

जब उसके सलाहकारों ने इस पर विचार-विमर्ष कर लिया, शमील ने अपनी ऑंखें बंद कर लीं थीं और चुप हो गया था।

उसके सलाहकार जानते थे कि इसका अर्थ था कि वह पैगम्बर की आवाज सुन रहा था जो उसे बता रही थी कि उसे क्या करना चाहिए ! विधिवत साधना कर लेने के पाँच मिनट बाद शमील ने ऑंखें खोलीं थीं, ऑंखों को और अधिक सिकोड़ा था और बोला था :

“हाजी मुराद के बेटे को मेरे पास लाओ। ”

“वह यहीं है,” जीमल इद्दीन ने कहा।

हाजी मुराद का बेटा, यूसुफ, दुबला-पतला, फटीचर और बदबूदार, लेकिन तब भी शरीरिक-गठन और देखने में मनोहर था। वह अपनी दादी फ़ातिमा जैसी काली आतिश आलूद ( आग्नेय ) ऑंखों वाला था। वास्तव में, वह बुलाये जाने की प्रतीक्षा में बाहरी दरबार के गेट पर खड़ा था।

यूसुफ शमील के प्रति अपने पिता के विचारों में साझीदार नहीं था। वह पूरी कहानी जानता भी नहीं था, अथवा यदि वह जानता भी था तो विषयों की अनुभवहीनता के कारण वह समझ नहीं पाता था कि उसका पिता इस प्रकार सख्तदिली से शमील का दुश्मन क्यों था। वह केवल एक बात चाहता था। वह आसान और दर्व्यसनी जीवन जीना चाहता था जैसा उसने एक प्रधान के पुत्र के रूप में हन्ज़ख में व्यतीत किया था। शमील के साथ दुश्मनी उसे बिल्कुल ग़ैर-ज़रूरी मालूम होती थी। अपने पिता के विपरीत वह उत्साहपूर्वक शमील की प्रशंसा करता था और भय और श्रद्धा से, जो पहाड़ों में शमील को लेकर दूर- दूर तक फैली हुई थी, उसका आदर करता था। इस समय इमाम के प्रति सशंकित श्रद्धाभाव से वह मंत्रणा-कक्ष में प्रविष्ट हुआ था, और जैसे ही वह दरवाजे पर रुका था उसे शमील की गंभीर और भेदक दृष्टि का सामना करना पड़ा था। वह एक क्षण तक वहां रुका रहा था, फिर शमील के पास आया था और उसकी लंबी उंगलियों वाले गोरे हाथ को उसने चूमा था।

“तुम हाजी मुराद के बेटा हो? “

“जी इमाम, मैं उनका बेटा हूं। ”

“उसने जो कुछ किया तुम जानते हो? ”

“मैं जानता हूं, इमाम, और उसके लिए मुझे खेद है। ”

“क्या तुम लिख सकते हो? ”

“मैं मौलवी बनने के लिए पढ़ाई कर रहा था। ”

“तब अपने पिता को लिखो कि यदि वह इस समय, बैरम से पहले, मेरे पास वापस लौट आयेगा, मैं उसे क्षमा कर दूंगा, और सब कुछ पहले जैसा ही हो जायेगा। लेकिन यदि नहीं आता, और वह रूसियों के साथ ही बना रहता है, तब' ----शमील ने धमकाने वाले अंदाज में त्योरियाँ चढ़ाई ---”मैं तुम्हारी दादी और माँ को गाँवों की गलियों में घुमवाऊंगा, और मैं तुम्हारा सिर कलम करवा दूंगा। ”

यूसुफ के चेहरे पर एक भी मांस-पेशी नहीं सिकुड़ी, और संकेत स्वरूप उसने अपना सिर इस प्रकार झुकाया मानों उसने शमील के शब्दों को समझ लिया था।

“यह लिखो और उसे मेरे एलची को सौंप दो। ”

शमील चुप हो गया और देर तक यूसुफ की ओर देखता रहा।

“लिखो कि मैनें तुम पर दया किया और तुम्हें मारूंगा नहीं, लेकिन तुम्हारी ऑंखें निकाल लूंगा, जैसा कि मैं सभी विश्वासघातियों के साथ करता हँ, जाओ। ”

शमील की उपस्थिति में यूसुफ शांत दीख रहा था, लेकिन जब उसे मंत्रणा-कक्ष से बाहर ले जाया जा रहा था, वह अपने अनुरक्षक पर गिर पड़ा था, और, उसकी कटार उसके म्यान से खींचकर, उसने अपने को घायल करने का प्रयास किया था, लेकिन कटार उसके हाथ से छीन ली गयी थी, उसे बांध दिया गया था और पुन: तहखाने में डाल दिया गया था।

उसी शाम, जब शाम की नमाज समाप्त हो गयी थी, और अंधेरा गहरा आया था, शमील ने सफेद लबादा पहना था, अपनी पत्नियों के कमरों का पार्टीशन पार किया था, और अमीना के कमरे में गया था। लेकिन अमीना वहाँ नहीं थी। वह बड़ी महिलाओं के साथ थी। तब शमील, न देखे जाने का प्रयास करता हुआ, कमरे के दरवाजे के पीछे खड़े होकर, उसका इंतजार करने लगा था। लेकिन अमीना शमील से रुष्ट थी, क्योंकि शमील ने जैदा को रेशमी कपड़ा भेंट किया था, और उसे नहीं दिया था। उसने उसे आते और उसकी खोज में उसके कमरे में प्रवेश करते हुए देख लिया था और वह जानबूझकर दूर बनी रही थी। वह जैदा के कमरे के दरवाजे के पीछे, अपने पर ही हंसती हुई लंबे समय तक खड़ी रही थी, क्योंकि उसने शमील की सफेद आकृति को अपने कमरे में जाते और बाहर निकलते हुए देख लिया था। व्यर्थ में अमीना का इंतजार करते रहने के पश्चात् शमील मध्य रात्रि की नमाज के लिए ठीक समय पर अपने कमरे में वापस लौट आया था।