भाग 22 / हाजी मुराद / लेव तोल्सतोय / रूपसिंह चंदेल

Gadya Kosh से
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चेचेन्या में अपने उद्देश्य में असफल होकर, हाजी मुराद तिफ्लिस लौट आया था और प्रतिदिन वोरोन्त्सोव से मिलने लगा था। जब-जब उसकी मुलाकात वोरोन्त्सोव से होती वह उससे अनुनय करता कि वह कैदियों के रूप में बंद सभी कबीलाइयों को एकत्र करें और उसके परिवार के लिए अदला-बदली करें। वह यह कहता कि जब तक यह नहीं हो जाता वह बंधा हुआ था और जैसा कि वह चाहता था वह रूसियों की सेवा नहीं कर सकता था अथवा न ही शमील को खत्म कर सकता था। वोरोन्त्सोव ने अस्पष्ट रूप से यथा-संभव प्रयास करने का वायदा किया था, लेकिन उसने यह कहते हुए मामले को लटकाये रखा कि जनरल अर्गुतिन्स्की के तिफ्लिस आने पर वह इस प्रश्न पर विचार करेगा और वे लोग मिल-बैठकर इस पर चर्चा करेगें। तब हाजी मुराद ने वोरोन्त्सोव से यह कहना प्रारंभ किया था कि वह उसे नुखा, (सकाकेशिया में एक छोटा-सा कस्बा) जाने और अस्थाई रूप से वहाँ रहने की अनुमति प्रदान करे, जहाँ रहकर शमील और उसकी ओर के लोगों के साथ अपने परिवार के विषय में समझौता करना उसके लिए आसान होगा। इसके अतिरिक्त, नुखा, एक मुस्लिम कस्बा था, जहाँ एक मस्जिद थी, और वह मुस्लिम नियमों के अनुरूप अधिक सहजता से वहाँ नमाज अदा कर सकता था। वोरोन्त्सोव ने इस विषय में पीटर्सबर्ग को लिख भेजा था, लेकिन उत्तर मिलने में विलंब होने पर उसने हाजी मुराद को नुखा जाने की अनुमति दे दी थी।

वोरोन्त्सोव, पीटर्सबर्ग में अधिकारी, और अधिकांश रूसी लोग जो हाजी मुराद की कहानी जानते थे, इस प्रकरण को या तो कोकेशियन युद्ध में एक शुभ परिवर्तन मान रहे थे अथवा केवल एक रोचक घटना मात्र। लेकिन हाजी मुराद के लिए यह, विशेषरूप से इसका अंतिम भाग, उसके जीवन में एक भयानक क्रान्ति थी। वह कुछ अपने को बचाने और कुछ शमील के प्रति घृणा के कारण, पहाड़ों से भागा था, और हालांकि उसका भागना बहुत कठिन था, फिर भी उसने अपने लक्ष्य को पा लिया था। सबसे पहले वह अपनी सफलता से प्रसन्न था, और वास्तव में शमील पर आक्रमण करने की योजना पर उसने गंभीरता से विचार कर लिया था। लेकिन अपने परिवार को छुड़ा लेना उसकी उम्मीदों से कहीं अधिक कठिन सिद्ध हो रहा था। शमील ने उसके परिवार को पकड़ लिया था और उसे जेल में डाल दिया था, और उसने उसकी पत्नियों को गाँवों की गलियों में घुमाने और उसके बेटे को अंधा बना देने अथवा मार देने की धमकी दी थी। अब हाजी मुराद दागेस्तान में अपने समर्थकों के माध्यम से षडयंत्र द्वारा अथवा बल प्रयोग द्वारा अपने परिवार को बचाने का प्रयत्न करने के लिए नुखा गया था। नुखा में जो अंतिम गुप्तचर उसके पास आया था उसने रिपोर्ट दी थी कि उसके प्रति वफादार अवार उसके परिवार को छुड़ाने और उनके साथ रूसियों के पास आने की तैयारी कर रहे थे ; लेकिन इस कार्यवाई में भाग लेने वाले कुछ ही लोग थे। वे वेदेनो में पारिवारिक कैदखाने में यह सब करने को तैयार न थे, लेकिन यदि परिवार को कहीं अन्यत्र स्थानान्तनित किया गया तो वे इस कार्यवाई को अंजाम देगें। तब उन्होंने रास्ते में यह कार्यवाई करने का वायदा किया था। हाजी मुराद ने अपने मित्रों को यह बतलाने का आदेश दिया था कि अपने परिवार को छुड़ाने के लिए वह तीन हजार रूबल देने को तैयार था।

नुखा में हाजी मुराद को, मस्जिद और खान के महल के निकट पाँच कमरों का घर रहने के लिए दिया गया था। उसके अनुरक्षक अधिकारी, उसका दुभाषिया और उसके अंगरक्षक भी उसी मकान में रहते थे। हाजी मुराद की जीवनचर्या पहाड़ों से आने वाले गुप्तचरों की प्रतीक्षा करने और उनसे मिलने और सरकारी तौर पर अनुमति प्राप्त कर घोड़े पर जिले के इर्द-गिर्द घूमने में व्यतीत हो रही थी।

8 अप्रैल को यात्रा से लौटने पर हाजी मुराद ने पाया कि जब वह बाहर था तिफ्लिस में वोरोन्त्सोव के यहां से एक अधिकारी आया हुआ था। यह जानने की अपनी उत्सुकता के बावजूद कि अधिकारी उसके लिए क्या लाया था, हाजी मुराद पहले अपने कमरे में गया और उसने दोपहर की नमाज अदा की। जब उसने नमाज अदा कर ली, वह दूसरे कमरे में प्रविष्ट हुआ था, जिसे वह ड्राइंग रूम और स्वागत कक्ष के रूप में इस्तेमाल किया करता था। तिफ्लिस से आया हुआ अधिकारी, स्टेट काउन्सिलर किरिलोव, ने उसे बताया कि वोरोन्त्सोव ने इच्छा व्यक्त की थी कि बारह तारीख को अर्गुतिन्स्की से मिलने के समय वह भी तिफ्लिस में उपस्थित रहे।

“यक्षी”, हाजी मुराद अप्रसन्नतापूर्वक बोला। वह किरिलोव को पसंद नहीं करता था। “आप पैसा लाये हैं? ”

“मैं लाया हँ, ” किरिलोव ने कहा।

“दो सप्ताह के लिए, “हाजी मुराद ने कहा और दस और फिर चार उंगलियाँ दिखाई। “मुझे दे दीजिये। ”

“इसी क्षण,” अपने यात्री बैग से अपना पर्स निकालते हुए, अधिकारी बोला। “वह पैसा किसलिए चाहता है? ” उसने रशियन में, यह सोचकर कि हाजी मुराद समझ नहीं पायेगा, पूछा, लेकिन हाजी मुराद ने समझ लिया था और उसने क्रोधित भाव से किरिलोव की ओर देखा था। किरिलोव जब पैसे बाहर निकाल रहा था वह हाजी मुराद के साथ वार्तालाप करने की चेष्टा भी करता जा रहा था जिससे अपने लौटने पर वोरोन्त्सोव को रिपोर्ट देने के लिए उसके पास कुछ मसाला हो। उसने दुभाषिये के माध्यम से पूछा कि क्या हाजी मुराद यहाँ उदास था। हाजी मुराद ने बिना हथियार के सिविल यूनीफार्म में उस मोटे नाटे आदमी पर तिरस्कारपूर्ण दृष्टि डाली थी और कुछ नहीं बोला था। दूभाषिये ने प्रश्न दोहराया था।

“उसे बताओ कि मैं उससे बात करने का इच्छुक नहीं हूं। उसे मुझे पैसे देने दो। ”

इस प्रकार कहकर, हाजी मुराद पैसे गिनने के लिए पुन: मेज पर बैठ गया था। किरिलोव ने स्वर्ण मुद्राएं बाहर निकालीं, दस रूबलों को सात ढेरों में रखा (हाजी मुराद पाँच स्वर्ण रूबल प्रतिदिन पाता था), और उन्हें हाजी मुराद की ओर खिसका दिया। हाजी मुराद ने सोने को अपनी टयूनिक की आस्तीन में रखा, उठ खड़ा हुआ और बिल्कुल अनपेक्षित स्टेट काउन्सिलर के गंजे सिर पर थपथपाया और कमरे से बाहर चला गया। स्टेट काउन्सिलर उछलकर खड़ा हुआ और दुभाषिये को यह कहने के लिए कहा कि किसी बाहरी व्यक्ति को ऐसा करने का दुस्साहस नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह एक कर्नल के बराबर था। पुलिस प्रधान ने इस बात का अनुमोदन किया हुआ था। लेकिन हाजी मुराद केवल सिर हिलाता रहा था कि वह यह सब जानता था और कमरे से बाहर चला गया था।

“तुम उसके साथ कुछ नहीं कर सकते, ” पुलिस प्रधान ने कहा था। “वह कटार इस्तेमाल कर सकता है, और वही सब कुछ है। तुम उन शैतानों से बात नहीं कर सकते हो। मैं देख रहा हूंं कि वह जंगली बनता जा रहा है। ”

जब धुंधलका हो गया था सिर का कपड़ा नीचे ऑंखो तक खींचे हुए दो गुप्तचर आये थे। पुलिस प्रधान उन्हें हाजी मुराद के पास ले गया था। उनमें से एक काले बालों वाला, हट्टा-कट्टा तवलियन था, और दूसरा एक कृषकाय बूढ़ा व्यक्ति था। जो समाचार वे लाये थे वह गंभीर था। हाजी मुराद के जिन मित्रों ने उसके परिवार को छुड़ा लेने की योजना बनायी थी शमील के भय से अब उन्होंने साफतौर पर इंकार कर दिया था। शमील ने हाजी मुराद का साथ देनेवाले किसी भी व्यक्ति को भंयकर दण्ड देने की धमकी दी थी। जब हाजी मुराद ने गुप्तचरों की बात सुन ली उसने आड़े-तिरछे रखे अपने पैरों पर अपने हाथों को टेका, सिर झुकाया और देर तक चुप बैठा रहा था। निर्णायात्मक ढंग से वह सोचता, और सोचता रहा था। वह जानता था कि वह आखिरी बार सोच रहा था, और निर्णय लेना आवश्यक था। उसने अपना सिर ऊपर उठाया था, दो स्वर्ण रूबल निकाले थे, गुप्तचरों को एक-एक दिया था और बोला था :

“जाओ। ”

“क्या उत्तर है? ”

“उत्तर अल्लाह के पास है। जाओ। ”

गुप्तचर खड़े हुए और चले गये थे, और हाजी मुराद कालीन पर घुटनों पर कोहनी टेके शांत बना रहा था। वह देर तक बैठा सोचता रहा था।

“मैं क्या कर सकता हूं? शमील पर विश्वास करूं और उसके पास लौट जाऊं? “हाजी मुराद ने सोचा। “वह धूर्त है, और मेरे साथ विश्वासघात करेगा। यदि वह मेरे साथ विश्वासघात न भी करे, तब भी उस लाल बालों वाले विश्वासघाती के समक्ष आत्म-समर्पण करना असंभव होगा। असंभव, क्योंकि रूसियों के साथ मेरे रह लेने के बाद वह मुझ पर विश्वास नहीं करेगा, “हाजी मुराद ने आगे सोचा।

उसे एक बाज वाली तवलियन कहानी याद हो आयी जो मनुष्यों द्वारा पकड़ा गया था और उनके साथ रहा था। फिर पहाड़ों पर अपने साथयों के पास लौट गया था। वह साथियों के पास लौट आया, लेकिन उसके पैरों में चेन बंधी हुई थी, और चेन से पैरों में घण्टियाँ बंधी हुई थीं। बाजों ने उसका स्वागत नहीं किया। “उड़कर जाओ, ” वे उससे बोले थे, “उस स्थान में जहाँ उन्होनें तुम पर चांदी की घण्टियाँ बांधी थीं। ” बाज अपनी जन्मभूमि नहीं छोड़ना चाहता था, और वह वहीं रुका रहा था। लेकिन दूसरे बाजों ने उसे स्वीकार नहीं किया था और चोंच मार-मारकर उसे मौत के घाट उतार दिया था।

“यहीं रुकना है? रूसी जार के लिए काकेशस जीतकर शोहरत, इज्जत और धन-दौलत हासिल करना है। ”

“यह संभव है,” वोरोन्त्सोव के साथ अपनी बातचीत और प्रिन्सेज मेरी वसीलीव्ना के संतोष देने वाले शब्दों को याद करते हुए उसने सोचा था।

“लेकिन मुझे तुरंत निर्णय करना चाहिए, अथवा वह मेरे परिवार को समाप्त कर देगा।

सारी रात हाजी मुराद जागता रहा था और सोचता रहा था।