माधवी / भाग 2 / खंड 5 / लमाबम कमल सिंह

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शत्रुता

काँचीपुर में एक धनवान व्यक्ति रहता था, उसका असली नाम धनंजय सिंह था, किन्तु चूड़ाकरण-संस्कार के दिन जब नाई ने उसके बाल गिने तो मात्र चौदह पाए, उसके सिर का आकार त्रिकोण की तरह, ललाट उभरा हुआ और पिछला भाग सपाट था। इसलिए लोग उसे 'मशुङ् अहुम्' - आर्थत् 'तीन फाँकवाला', उपाधि से अलंकृत कर विशेष रूप से सम्मानित करते थे। वह धनवान ही नहीं था, बल्कि उसके लिए ऐसा कोई भी काम नहीं था, जिसे वह चुपचाप नहीं करवा सकता था। दूसरों के घरों में आग लगा देना, रात में नौकरों को भेजकर दूसरों के घर लुटवाना, यही सब उसका काम था। इस आदमी का एक योग्य और गुणवान पुत्र भी था; उसका नाम भुवनचन्द्र सिंह था, लेकिन लोग उसे सिर्फ भुवन और औरतें फुबन् कहकर पुकारते थे। पाठकगण इस युवक का परिचय पहले ही प्राप्त कर चुके हैं, जब वह एक युवती को उठाकर ले जा रहा था। इसलिए उसके गुणों और शक्ति का विशेष बखान न करते हुए भी पाठक उसे पहचान गए होंगे। इस गुणवान पुत्र के कारण धनंजय सिंह को लोग 'भुवन का बाप' के नाम से जानते थे।

भुवन के बाप ने यह सुन कर कि उरीरै बहुत खूबसूरत युवती है और यह जानकर कि उसका पुत्र भुवन उसे बहुत चाहता है, उरीरै के माता-पिता के पास जाकर उसे अपनी बहू बनाने का प्रस्ताव रखा था, किन्तु गुणवान बाप-बेटे से नाता जोड़ने की अनिच्छा से उरीरै के माता-पिता ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। इसी कारण क्रोधित होकर भुवन के बाप ने उनको नुकसान पहुँचाना शुरू कर दिया। याओशङ् (याओशङ् : मणिपुर में सम्पन्न होनेवाला होली का त्योहार। इस त्योहार के लिए हर मोहल्ले में लड़कों की टोली बनती है। टोलियों में शमिल लड़के रात में मोहल्लेवालों के बगीचों से बाँस, साग-सब्जी अदि की चोरी करते हैं) का त्योहार नजदीक आ जाने पर अपने नौकरों को चुपचाप होली की तैयारी करनेवाले लड़कों की टोली में शामिल करके देर रात्रि में उरीरै के घर को आग लगवा दी। माता, पिता और उरीरै, तीनों बाल-बाल बच गए। किन्तु उनका घर, ओसारा, गोशाला, अन्न-भंडार - सब कुछ राख में बदल गया। तब से उरीरै का परिवार दिन-ब-दिन दरिद्र होता चला गया। लोगों का कर्ज सिर पर चढ़ने लगा। आखिर, स्वंय उठने से पहले ही वसूलनेवाले लोग आकर उन्हें जगाने लगे। इसी वजह से बहुत दुखी होकर उरीरै का पिता परदेस पैसा कमाने चला गया। करीब तीन वर्ष बीत गए, उसकी ओर से कोई समाचार नहीं मिला। एक दिन एक तार के माध्यम से परदेस में उरीरै के पिता की मृत्यु का सन्देश मिला। माँ और बेटी इस दुख-भरे सन्देश को सुनकर खूब रोईं। अन्ततः अपना बचा-खुचा सामान, गहने आदि बेचकर श्राद्ध-कर्म सम्पन्न किया। अब भुवन और उसके बाप की खुशी का ठिकाना न रहा।