यश का शिकंजा / भाग 10 / यशवंत कोठारी
राव साहब के स्वागत में स्थानीय नेता और अफसर बिछे जा रहे थे। गाँव से काफी दूर ही उन लोगों ने तोरण द्वार बनवाए थे। जगह-जगह राजस्थानी वेश-भूषा में लड़कियों ने मंगल-गान गाए। स्त्रियों ने आरती उतारी। राव साहब फूल-मालाओं से लदे-लदे डाक-बंगले तक पहुँचे। बिना विश्राम किए वे सीधे उस स्थल के लिए पैदल ही चल पड़े, जहाँ भूरी और उसके माँ-बाप को जिंदा जला दिया गया था।
तेज धूप थी। राव साहब पैदल सबसे आगे गाँव की गलियों से गुजर रहे थे; साथ में अनेक छुटभैये और अफसर। बेचारों को पैदल चलना पड़ रहा था। मन-ही-मन वे सभी इसे बूढ़े की सनक समझ रहे थे।
'साला खुद भी मरेगा और हमें भी मारेगा!'
'अरे, इसका क्या है - आज मरा कल दूसरा दिन! हमें तो जिंदगी गुजारनी है।'
'लेकिन क्या करें! नौकरी है।'
'तो चलो पैदल! ...सब कपड़े खराब हो गए।'
तेजी से चलते हुए राव साहब पास की हरिजन की झोंपड़ी पर पहुँचे -
'जै रामजी की, काका!'
भीतर से आतंकित, आशंकित बूढ़ा बाहर आया।
'भूरी और उसके माँ-बाप यहीं रहते थे?'
'जी, अन्नदाता!'
'आपके रिश्तेदार थे?'
'हाँ हुजूर, वे मारा काका रा बेटा हा।'
'अच्छा... मुझे बहुत दुख हुआ है।' राव साहब वहीं जमीन पे बूढ़े को लेकर बैठ गए। बूढ़ा रोने लगा। और आश्चर्य के साथ सभी ने देखा, राव साहब भी उसके साथ-साथ रोने लगे। उन्होंने बूढ़े को सांत्वना दी और कहने लगे -
'काका, अब क्या हो सकता है! लेकिन मैं इस मिट्टी की कसम खाता हूँ...' राव साहब ने पास पड़ी उठा ली' कि भूरी के हत्यारे को जरूर दंड दूँगा।'
बूढ़ा ये सब देख-सुनकर कृतकृत्य हो रहा था। राव साहब ने आसपास के घरों में झाँका। एक जगह पानी पिया, कुछ और बातें कीं, और अपने काफिले को लेकर वापस लौट आए।
सायँकाल उसी स्थल पर राव साहब ने मीटिंग का आयोजन करवाया। स्थानीय नेताओं के बोलने के बाद राव साहब उठ खड़े हुए -
'माताओ, बहना ओर भाइयो!
आप पर बड़ा भारी दुख आ पड़ा है। मुझे मालूम है कि हमारी गलती या लापरवाही के कारण ऐसा हुआ। मैं आप सभी से इसकी माफी माँगता हूँ। क्षमा करें!' अब राव साहब असली बिंदु की ओर अग्रसर हुए -
'भूरी की मौत और उसके माँ-बाप को जिंदा जला दिए जाने की खबर सुनते ही मैं यहाँ दौड़ा चला आया। मैंने अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए। अफसर नहीं माने। मैंने कह दिया - मैं पहले यहाँ आऊँगा, और आया। मैं मानता हूँ कि मेरे इस तरह यहाँ आ जाने से भी भूरी के हत्यारों की पकड़ हो जाएगी, ऐसा नहीं है; लेकिन मुझे बताया गया कि आप लोग आंतकित है, भयभीत हैं; बयान नहीं देना चाहते। मैं कहता हूँ आप निर्भय रहिए, निर्भय बनिए। पहले वाले अकर्मण्य पुलिस अफसरों को हटाकर नए योग्य अफसरों को लगाया गया है। ये लोग आपके जान-माल की पूरी रक्षा करेंगे...'
'इस मक्खनबाजी से क्या होगा? हम चुनाव नहीं होने देंगे!' भीड़ में से आवाज आई। एक डी.आई.जी. और कई अन्य लोग उधर दौड़े। राव साहब ने उन्हें डाँटा।
'नहीं, आप लोग यहीं ठहरिए!'
उन्होंने भीड़ की ओर मुखातिब होकर कहा -
'ठीक है, आप में रोष है - होना चाहिए! अभी आप लोग उत्तेजित हैं। लेकिन थोड़े ठंडे दिमाग से सोचिए। क्या इस कांड का सीधा संबंध लोकसभा चुनाव से है? नहीं...
'लेकिन फिर भी अगर आप लोग नहीं चाहते तो चुनाव नहीं होंगे। हम चुनावों को स्थगित कर देंगे...
'अब आप ये सोचिए, भूरी की हत्या किसने की, और उसको पकड़वाने में आप क्या मदद दे सकते है। अगर आप लोग सहयोग करें तो, हम तीन दिन में भूरी के हत्यारों का पता लगा लें...
'अब मैं एक दूसरी बात आपसे कहना चाहूँगा। मुझे बताया गया कि ऋण-योजना में इस गाँव को अभी तक कुछ नहीं मिला...
'जब तक राज्य-सरकार और इसके अधिकारी कुछ प्रबंध करें, मैं अपने कोष से पचास-हजार रुपये इस कार्य हे्तु देता हूँ!' समर्थकों ने जोर से तालियाँ बजाई। जब तालियों की आवाज कुछ कम हुई तो राव साहब फिर बोले -
'भूरी के निकटतम रिश्तेदार काका को मैं पाँच हजार रुपये का अनुदान देता हूँ। ये रुपया वापस नहीं लिया जाएगा।'
राव साहब रुके नहीं, बोलते चले गए, मैं जानता हूँ कि पिछले दिनों विरोधी दलों ने यहाँ पर सभाएँ कीं, धरने दिए, रैलियाँ निकालीं। लेकिन एक बात आप भी याद रखिए, धरनों और रैलियों से समस्याओं का हल नहीं निकलता। समस्याओं को क्रियान्वित करना पड़ता है...।
'विरोधियों के पास केवल एक काम है, सरकार की आलोचना करना। लेकिन आलोचना से क्या होता है! हमने पिछले वर्षों में जो कार्य किए हैं, वे हमारी प्रगति के प्रमाण हैं।
'मैं आपसे फिर निवेदन करता हूँ कि आप भूरी के हत्यारों को पकड़ने में हमारी मदद करें। साथ ही आपको आज से ही ऋण-योजना का लाभ मिलना भी शुरू हो जाएगा।'
राव साहब ने मीटिंग में ही कुछ गरीबों को अपने हाथ से ऋण-योजना के कागज और रुपये बाँटे। तलियों की गड़गड़ाहट और कैमरों की चकाचौध के बीच ग्रामीणों का दुख पता नहीं कहाँ खो गया। मीटिंग की समाप्ति के बाद राव साहब एक बार फिर गाँव के लोगों से मिले, बतियाए और शहर की ओर चल पड़े।
दूसरे दिन सभी प्रमुख अखबारों में प्रथम पृष्ठ पर राव साहब ग्रामीणों को ऋण वितरित कर रहे थे। समर्थक अखबारों ने सभा की सफलता को बढ़ा-चढ़ाकर बताया और विपक्षी अखबार चुप्पी साध गए थे। इन समाचारों से विरोधी दलों के नेताओं का प्रभाव और हवा जो गाँव में बनी थी, सब साफ हो गई। विपक्षी राव साहब के इस चोंचले को नहीं समझ पाए।
राव साहब की कोठी के लॉन में राव साहब और मदनजी विचरण कर रहे हैं। राव साहब शांत और गंभीर, मदनजी वाचाल -
'कमाल कर दिया साहब आपने! विपक्षियों को वो धोबीपाट मारा है कि आपका जवाब नहीं! गाँव का बच्चा-बच्चा आपके गुण गा रहा है। हरेक की जबान पर केवल आपका नाम है।
'हूँ...!'
'इस ऋण-योजना ने तो गजब ढा दिया! लगभग सभी परिवारों को ऋण मिल गया। हर एक ने कोई-न-कोई धंधा शुरू कर दिया...'
'होना भी चाहिए। गरीबों का उदय होगा, तभी तो सभी का उदय होगा!'
'सर, एक बात है - गाँव में आपके जाने से तो पूरा माहौल ही बदल गया। अब विपक्षी दलों के लोग तो उधर जाने में भी कतराते हैं।'
'हाँ, हो सकता है! लेकिन तुम ये बताओ कि पूरे क्षेत्र की हालत कैसी है?'
'बिलकुल फस्ट किलास सर! अब ये उपचुनाव तो आपकी जेब में आया समझिए।'
'और वहाँ के गाँववाले बयान के लिए तैयार हुए या नहीं?'
'हो जाएँगे! ऋण-योजना में परोक्ष रूप से ऐसी शर्त लगा देने पर सब ठीक हो जाएगा।'
'अच्छा अब तुम जाओ!'
राव साहब अंदर आए। कुछ जरूरी फाइलें निपटाई, गोली खाई और सो रहे।
उदा बा के झोंपड़े के बाहर फिर रात के समय गाँव के बड़े-बूढ़ों ने इकट्ठा होना शुरू किया। राव साहब के गाँव से वापस चले जाने के बाद यह तीसरा दिन था। कुछ परिवारों को ऋण मिल गया था। मिले चेक को भुनाने में गाँव के लोगों को दिक्कत हो रही थी। कुछ गाँववालों को शहर आकर तहसील से रुपया ले जाने को कहा गया था।
'कारे खुमाण, थने कतरा रिप्या मिल्या?'
'काका, अंगोठों तो मैं एक हजार रिप्या पे लगायो, पण काट-कुट ने मने आठ सौ रिप्याइजदीदा।'
'अरे, भागता चोर री लँगोटी भली!'
'हाँ काका, जो आया वोई पाया!'
'अबे थू अणा रिप्या रो कई करेगा?' उदा ने सवाल उछाला।
'कई करूँगा? अरे अबे क्यूँ पूछो हो, वो रिप्या तो वणी दन वाण्या रा आदमी लेइग्या। वो नराइ दनाउ माँगतो हो। मारे पाँ तो अबे कई नी बच्चो। थोड़ा-घणा रिप्या रो धान लायो। अकाल रो वकत है। खावा ने तो छावे!'
'हाँ खूमा, या बात तो है। मारी भी हालत असीज है।' उदा बोला।
'थारी-मारी न सबकी हालत असी है! ये राव साहब तो अणी वास्त रिप्या बाँट गया कि आपांरो ध्यान भूरी पू हट जावे।'पता नहीं कहाँ से हरिया कुम्हार आ गया और उसने उपरोक्त बात कही।
'अरे छोरा, जो मर ग्यी वा तो ग्यी। आंपा सारी उमर रोवां तो भी कई नी वेई सके। देख्यो वंडो काको राव साहब रा कत्या गुण गाई रयो।'
'हाँ, पाँच हजार रिप्या रो मरहम वंडा जखम पे लाग गयो है।'- हरिया ने कहा।
'अणी वास्तेईज तो केउं कि आंपा सब अबे कईं कर सकाँ!' खुमा ने कहा। फिर उसने चिलम सुलगाई, सब पीने लगे।
रात धीरे-धीरे गहराने लगी और गाँव को अपनी गिरफत में लेने लगी।