यश का शिकंजा / भाग 11 / यशवंत कोठारी
राव साहब की मीटिंग और उसकी सफलता का जो खाका राष्ट्रीय, प्रांतीय व स्थानीय अखबारों ने खींचा था, उसे पढ़ सुनकर विरोधी दल के नेताओं के पैरों के नीचे से जमीन निकल गई। कहाँ तो वे सोच रहे थे कि यह उपचुनाव भूरी बाई की कृपा से अब उनकी जेब में हैं; लेकिन राव साहब ने पूरा पासा ही पलट दिया।
विपक्षी दलों के संयुक्त उम्मीदवार दोषी ने फिर राजधानी में अपने आकाओं के द्वार खटखटाए। रामास्वामी और उसके मित्र दोषी के साथ विचार करने लगे।
'हाँ तो दोषी, राव साहब ने गाँववालों में पैसा बाँट दिया?'
'हाँ, बाँटा तो अनुदान है, लेकिन उन्होंने गाँववालों के पास बैठकर उनसे बात की। एक के घर पानी पिया। इन बातों से काफी फरक पड़ा है।'- दोषी बोले।
'तो क्या पूरे क्षेत्र में इसकी चर्चा है?'
'हाँ और क्या! अखबारों, रेडियो, टेलीविजन की मदद से इन बातों का ऐसा प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, जैसे राव साहब बड़े देवता आदमी हैं और उन्होंने पूरे क्षेत्र का उद्धार कर दिया।'
'अच्छा...'
'और तो और, एक निर्दलीय उम्मीदवार भी राव साहब के उम्मीदवार जोशी के समर्थन में बैठ गया।'
'अरे यह तो गजब हो गया!' रामास्वामी के मित्र ने कहा।
'अरे साहब, गजब तो तब होगा, जब मेरी जमानत भी नहीं बचेगी!'
'देखो दोषी, जब ओखली में सिर दे दिया है तो मूसल से मत डरो। रामास्वामी ने कहा।
'वो तो ठीक है स्वामी साहब, लेकिन मैं तो अच्छा-भला कमा-खा रहा था, कहाँ राजनीति में फँस गया!'
'जब फँस ही गए हो तो धीरज रखो। और शांति से आगे का कार्यक्रम बनाओ।'
अब रामास्वमी आराम से पसर गए। थोड़ी देर चुप रहे और फिर कहने लगे -
'उस गाँव में किसका प्रभाव ज्यादा है?'
'एक लड़का है हरिया कुम्हार, वही कुछ पढ़ा-लिखा है; लेकिन थोड़ा सनकी है।'
'हूँ... तो क्या उसे अपने पक्ष में किया जा सकता है?'
'मुश्किल ही है! वो राजनीति से बहुत दूर रहता है।'
'दूर को तो पास लाना पड़ेगा।'
'दोषी, तुम एक काम करो - येन-केन प्रकारेण उसे अपने पक्ष में करो, और उसी से भूरी-हत्याकांड वापस उछलवाओ।'
'अच्छा, ठीक है!'
'और मुझे सूचित करो!' रामास्वामी ने कहकर दोषी को रवाना कर दिया।
अब कमरे में रामास्वामी और उसके मित्र अकेले ही रह गए।
'उस हत्याकांड का क्या हुआ?'
'कौन-सा?'
'अरे वही, जो लड़की तुम्हारी कोठी के बाहर मरी पाई गई थी।'
'कुछ नहीं यार, स्वयं स्वामी असुरानंद ने कोई केस नहीं किया।'
'मैंने भी ज्यादा मगजपच्ची नहीं की।'
'अच्छा?'
'पुलिस के पास पुख्ता सबूत तो थे नहीं, इस कारण वह भी कुछ नहीं कर सकी।'
'मैंने गृहमंत्री से भी बात कर लीं अब कुछ नहीं होगा!'
'नहीं, मैंने सोचा - यह केस तुम्हें दिक्कत करेगा।'
'नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है।'
'तब तो ठीक है?'मित्र बोल पड़े।
रामास्वामी ने एक उबासी ली। दवा खाई और मित्र के साथ सुरा देवी का आनंद लेने लगे।
गाँव का पश्चिमी भाग है यह। दूर तक छोटे-छोटे खेत। कभी इनमें हरियाली लहराती है, लेकिन इस बार अकाल है। अनावृष्टि के काररण पूरा क्षेत्र अकालग्रस्त है।
पहाड़ सब नंगे हो गए है। इधर-उधर मुँह मारते जानवर और सूखे पड़े कुओं को देखकर कलेजा मुँह को आता है। ऐसे स्थान पर, खेत की मेड़ पर हरिया कुम्हार कुछ शहरी लोगों से घिरा हुआ बातें कर रहा है।
'देखो हरिया, भूरी बाई की हत्या का राज अगर नहीं खुला, तो लानत है तुम्हारी जिंदगी पर!'
'मैं अकेला क्या कर सकता हूँ?'
'अरे तुम बहुत कुछ कर सकते हो! गाँववालों को समझाओ, जिला मुख्यालय पर धरना दो, रैली करो!'
'लेकिन इन सबसे क्या होता है?'
'अरे, हम सभी विरोधी भी तो तुम्हारे साथ हैं।' - दोषी बोला, 'अगर राव साहब ने कुछ पैसा बाँट दिया तो क्या तुम लोगों का जमीर ही मर गया?'
'सवाल जमीर का नहीं है। अब भूरी तो वापस आएगी नहीं, हम सभी चाहे कुछ भी कर लें!' - हरिया ने निराश भाव से कहा।
'अरे भाई, तुम बात को समझने की कोशिश क्यों नहीं करते... कल भूरी की हत्या हुई, परसों और किसी की होगी।' दोषी ने फिर उसे उखाड़ने की कोशिश की -
'अगर तुम इस गाँव के लोगों में असंतोष फैला दो, तो हम विधानसभा और लेकसभा में आवाज उठाएँगे। बिना यहाँ कुछ हुए, हम भी क्या कर सकते हैं!' क्षेत्रीय विधायक ने कूटनीति दिखाई।
'हाँ, ये बात तो है! अगर यहाँ पर कुछ हो तो हम लोग भी देर-सबेर अवाज उठा सकते हैं।' - हरिया बोला।
'रामास्वामी भी हमारे साथ हैं।'दोषी ने कहा।
'अच्छा...' हरिया शांत ही रहा।
'और सत्ताधारी पक्ष का एक गुट भी वैसे इस चुनाव के कारण राव साहब से नाराज है। हरिया, तुम चाहो तो तुम्हारी किस्मत चमक सकती है!' दोषी ने अब चारा फेंकना शुरू किया। थोड़ी देर की ना-नुच के बाद दोषी और उसके साथी हरिया को शहर ले गए, और वहाँ उसे अच्छी तरह से समझा-बुझाकर वापस गाँव छोड़ गए।
लेकिन राव साहब के अनुचर मदनजी ने ये स्कीम भी फेल कर दी। हरिया का शव गाँव के एक सूखे कुएँ में बरामद हुआ। पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया।
रामास्वामी ने हरिया की मौत की समस्त जिम्मेदारी सत्ताधारी पक्ष पर थोप दी। उन्होंने अपने प्रेस-वक्तव्य में कहा -
'इस चुनाव के नाजुक समय में, इस क्षेत्र में एक के बाद एक मौत ने गाँव वालों का मनोबल तोड़ दिया है। हरिया एक सक्रिय और समझदार कार्यकर्ता था; वह हमारे प्रत्याशी दोषी के लिए काम कर रहा था। यह एक राजनीतिक हत्या है।'
इतना ही नहीं, रामास्वामी और उसके समर्थकों ने संसद में भी बहस की माँग की। सताधारी पक्ष इस हमले से बौखला गया, लेकिन राव साहब शांत रहे; और अंत में बहस का जवाब देते हुए उन्होंने कहा -
'सभी जानते हैं, हरिया एक सनकी और मानसिक रूप से विकृत लड़का था। शहर में फेल हो जाने के बाद वह गाँव चला गया। गाँव में उसकी उल-जलूल हरकतों से गाँववाले परेशान थे। किसी सनक के कारण ही वह कुएँ में गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई - पुलिस और पोस्टमार्टम की रपटों से यही साबित होता है।'
इतना कहने के बाद राव साहब तनिक रुके और फिर बोले -
'उपचुनाव कौन जीतता है, यह महत्वपूर्ण नहीं; लेकिन यह आरोप कि हरिया की हत्या राजनीतिक है, बिलकुल बेबुनियाद हैं!'
इसके समर्थन में राव साहब के सांसदों ने हर्षध्वनि की। रामास्वामी के समर्थकों ने वाक्आउट करना पसंद किया।
इधर विधानसभा चुनाव के परिणामों में सत्ताधारी पक्ष मात खा गया। पाँच में से तीन प्रदेशों में विरोधी दलों की सरकारें बन गईं। इसी आधार पर लोकसभा में भी उम्मीद थी। भूरी हत्या-कांड, हरिया की मौत आदि कारण उनकी और भी मदद कर रहे थे। ऐसी विकट स्थिति में राव साहब को राष्ट्रपति ने बुलवाया।
'देश की हालत दिन-दिन खराब हो रही है।' - मितभाषी राष्ट्रपति बोले।
'नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है!'
'अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं।'
'...'
'विश्वविद्यालय बंद हैं। मिलें और फैक्टरियाँ बंद हैं। चारों तरफ अराजकता है। क्यों, आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? ...जहाँ राष्ट्रपति शासन है, वहाँ सब ठीक चलता है। क्यों नहीं आपलोग कुछ समय के लिए राजनीति से हट जाते हैं। कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन लागू कर दें, सब ठीक हो जाएगा!'
'ये कैसे हो सकता है? ऐसे कोई कारण नहीं हैं कि राष्ट्रपति शासन लागू हो। मेरी सरकार पूर्ण बहुमत में ठीक तरह से काम कर रही है।'
'तो फिर यह अराजकता क्यों?'
'इतने बड़े देश में थोड़ी-बहुत तो चलता ही है!'राव साहब ने कहा।
'नहीं, राव साहब, स्थिति ठीक नहीं है। आप कुछ कीजिए, नहीं तो मैं ही कोई कदम उठाऊँगा।' यह कहकर राष्ट्रपति अंदर चले गए।
राव साहब बाहर आए। पत्र-प्रतिनिधियों से बात नहीं की राव साहब ने, और अपनी कोठी पर आ गए।
पता नहीं किन कारणों से, राव साहब और राष्ट्रपति की भेंट की खबर रानाडे और अन्य लोगों को मिल गई। उन्होंने राव साहब को आगाह किया कि इस स्थिति में हमें तुरंत कुछ सख्त कदम उठाने चाहिए। लेकिन राव साहब इस स्थिति में नहीं थे कि कुछ करते। अपनी कोठी पर उन्होंने केबिनेट की मीटिंग बुलाई। रानाडे ने इस मीटिंग का बहिष्कार किया। मीटिंग की समाप्ति के पूर्व ही रानाडे और उनके समर्थकों ने अपना इस्तीफा भेज दिया।
राव साहब की सरकार अल्पमत में हो गई। इधर राव साहब कुछ समझें, तब तक रानाडे ने नई पार्टी गठित कर ली। और राव साहब ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज दिया।
राष्ट्रपति ने राव साहब का इस्तीफा मंजूर कर लिया। राजधानी में तेजी से बदलते हुए घटना-क्रम पर पूरे विश्व की आँखें लगी हुई थीं।
रानाडे और उसके समर्थकों ने एक पार्टी का गठन कर उसे विधिवत मान्यता दिला दी।
ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति ने कानूनी सलाहकारों की राय लेकर विपक्ष के नेता रामास्वामी को सरकार बनाने हेतु आमंत्रित किया। इस समाचार के प्रसारित होते ही राजनीतिक गतिविधियाँ अत्यधिक तीव्र हो गईं।