यश का शिकंजा / भाग 2 / यशवंत कोठारी

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प्रधानमंत्री आवास। बड़ा विचित्र और अनोखा व्यक्तित्व है प्रधानमंत्री का धीर, गंभीर! ऐसा लगता है, जैसे विचारों और समस्याओं के महासमुद्र में डूबे हैं। उम्र लगभग 75 वर्ष, शुभ्र-धवल वस्त्रों में, धोती की लांग सँभालने के साथ-साथ देश और पार्टी की बागडोर सँभालने में भी निपुण।

कार्यालय की अंडाकार मेज के पीछे रिवाल्विंग कुर्सी पर बैठे हैं, फाइलों का अंबार और टेलीफोनों की कतार। लाल, सफेद, काला और पीला-चार फोन। एक इंटरकॉम, कई तरह के बटन, कमरे में देश के महापुरुषों के चित्र।

आज राव साहब गंभीर ज्यादा ही हैं। सुबह से ही वे पार्टी के आवश्यक कार्य में व्यस्त हैं। उनके स्वयं के क्षेत्र में भयंकर सूखा था, लोग पानी की एक-एक बूँद के लिए तरस रहे थे। आदिवासी पत्तियाँ और जड़ें चबा-चबाकर अपना समय निकाल रहे थे। उड़ती हुई खबरें भूख से मरने की भी आई थीं, लेकिन राव साहब ने उसे विरोधियों की चाल कहकर टाल दिया था। उनके अनुसार -

'यह गंदी राजनीति से प्रेरित है। मेरे चरित्र-हनन का प्रयास किया जा रहा है।'

फिर भी राव साहब अपने क्षेत्र के प्रति उदासीन हैं, ऐसी बात नहीं। परसों ही वहाँ का हवाई सर्वेक्षण करके आए है। कल ही अफसरों को फोन पर नए आदेश दिए हैं। संबंधित मंत्रालयों के मंत्रियों को भी आगाह किया है। एक कनिष्ठ मंत्री की ड्यूटी अपने ही क्षेत्र के जिला-मुख्यालय पर लगा दी है। लेकिन यह रानाडे...'साला समझता क्या है, अपने आपको - 120 एम.पी. क्या हैं, इसके पास, अपने आपको खुदा समझता है!'

उन्होंने फोन पर आदेश दिया -

'सी.बी.आई. के प्रमुख को बुलाओ!'

थोड़ी देर बाद सी.बी.आई. प्रमुख ने एड़ियाँ बजाकर सेल्यूट किया।

राव साहब ने सिर के हलके इशारे से अभिवादन स्वीकार किया और बैठने का इशारा किया -

'आपका विभाग ठीक चल रहा है?'

'जी हाँ...'

'कोई राजनैतिक दबाव तो नहीं है?'

'जी नहीं!'

'देखिए, मै। चाहता हूँ कि सभी जगह कानून और व्यवस्था मजबूती से कायम की जाए ओर बिना किसी दबाव के सब कार्य करें। ...अगर कोई परेशानी हो तो सीधे मुझे बताएँ!' राव साहब बोले।

'जी, अभी तो कोई नहीं' - चीफ बोले।

'उस होटल-कांड की - जिसमें एक किशोरी की मृत्यु हो गई थी, कौन जाँच कर रहा है...?'

'वो, केस तो फाइल हो गया, सर!'

'क्यों? क्यों फाइल हो गया?'

'दैट वाज ए केस ऑफ सुसाइड!'

'सुसाइड? हाउ कैन यू से? क्या तुमसे पूछकर लड़की ने आत्महत्या की, या तुम्हें कोई सपना आया?'

सी.बी.आई. प्रमुख बगलें झाँकने लगे उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी, लेकिन अब क्या हो सकता है!

'वेल मैन, किसी ईमानदार अफसर को वापस वह केस दो और पूरी तहकीकात कराओ! मुझे शक है, इस हत्याकांड में कुछ विशेष लोगों का हाथ है।'

'ओ.के. सर!'

'और देखो, जिस एस.पी. को लगाओ, उसे कह देना-पूरी रिपोर्ट मैं स्वयं देखूँगा!'

'जी, बेहतर!'

'जाइए!'

प्रमुख ने बाहर आकर पसीना पोंछा।

रात्रि का प्रथम प्रहर, राव साहब के अध्ययन-कक्ष में टेबल-ट्यूब का प्रकाश। राव साहब कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण और गोपनीय फाइलों के अध्ययन में व्यस्त हैं।

सचिव ने आकर बताया, 'एस.पी. इंटेलीजेन्स मिलने आए हैं। राव साहब के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आई और उन्होंने एस.पी. को भेजने को कहा। एस.पी. का अभिवादन स्वीकार कर कहने लगे -

'कब से इंटेलीजेन्स में हो?'

'सर, दस वर्ष से!'

'अभी तक तुम ऊपर नहीं बढ़े?'

'...'

'खैर, जो केस तुम्हें दिया गया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ समय से राजधानी में मासूम लड़कियों से बलात्कार और हत्या की वारदातें बढ़ गई हैं, ...होटल-कांड के केस का अध्ययन किया आपने?'

'जी हाँ ...दैट इज ए केस ऑफ सुसाइड।'

'दैट इज ए केस ऑफ सुसाइड' - कितनी आसानी से बोल गए तुम! लेकिन होटल के बाहर जो कार खड़ी थी, उसमें पड़ोसी राज्य के एक भूतपूर्व मंत्री हरनाथ थे?'

'जी, हाँ...'

'वे वहाँ क्या कर रहे थे?'राव साहब ने पूछा।

'...'

'देखो'अब राव साहब ने उन्हें आत्मीयता से समझाया -

'ऐसे केसेज की गुत्थी सुलझाने में बुद्धि ओर धैर्य चाहिए। पूरे केस की स्टडी करो और देखो कि वास्तव में क्या हुआ!'

'जी...!'

'ओ.के.!' राव साहब ने कहा और एस.पी. बाहर आ गए। सचिव ने आकर बताया, 'सर, अमेरिकन राजदूत मिलना चाहते हैं।'

इधर राव साहब की शारीरिक, मानसिक और राजनीतिक शक्ति में निरंतर कमी आई है। शारीरिक रूप से वे काफी अशक्त हो गए है। सभी राजरोग उन्हें घेरे हुए हैं। मधुमेह, ब्लड-प्रेसर, हृदय रोग के अलावा यदा-कदा उन्हें वृक्क से संबंधित शिकायतें भी रहती हैं, लेकिन उन्होंने हमेशा देश और पार्टी को शरीर से उपर समझा है। यही कारण है, इस स्थिति में भी देश की बागडोर वे बूढ़े घोड़े की तरह सँभालते चले आ रहे हैं। मानसिक रूप से भी वे अपने आपको अब ज्यादा सक्षम नहीं पाते है। विरोधियों ने निरंतर अपनी शक्ति का विकास किया है, और इसी कारण राव साहब राजनीति के अखाड़े के अनुभवी खिलाड़ी होते हुए भी अपनी शक्ति को कमजोर होता देख रहे हैं।

विराधी पक्ष के कई प्रमुख नेताओं पर उन्होंने समय-असमय कई उपकार किए हैं। कोटा, परमिट, लाइसेन्स, विदेश-यात्राएँ अक्सर वे बाँटते रहते हैं। अपने दरबार से किसी विपक्षी को खाली हाथ नहीं जाने देते। लेकिन फिर भी अब वो बात नहीं रही। धीरे-धीरे उनके चारों ओर एक जमघट एकत्रित हो गया, जो केवल स्वयं अपना हित-चिंतन कर सकता है। स्थिति दिनोंदिन बिगड़ने लगी। राव साहब चाहकर भी इन लोगों से नहीं बच सकते।

उन्होंने रानाडे को मंत्रिमंडल से हटाने की सोची, लेकिन उसके बाद उत्पन्न होने वाली स्थिति का ध्यान आते ही उन्हें अपनी कुर्सी डोलती नजर आती और वे चुप रह जाते। इस बार उन्होंने रानाडे की जड़ें ही खोखली करने का निश्चय किया। तीन राज्यों में रानाडे के मुख्यमंत्री थे। सबसे पहले उन्होंने इन तीनों राज्यों में अपने विश्वस्त अनुचर भेजने का तय किया, ताकि वहाँ राजनैतिक अस्थिरता उत्पन्न की जा सके। अगर इस कार्य में वे सफल हो जाते हैं तो फिर रानाडे की जड़ों में मट्ठा डाला जा सकेगा, और किसी बहाने से वे रानाडे को मंत्रिमंडल से हटा देंगे।

फोन करके उन्होंने अपनी विश्वस्त माया को बुलवाया और उसे पूरी योजना समझाने लगे -

'देखो माया, अब स्थिति धीरे-धीरे बिगड़ रही है। सीमाओं पर अशांति है, केंद्र में राजनीतिक अस्थिरता है... और रानाडे मान नहीं रहे हैं।'

'येन-केन-प्रकारेण हमें रानाडे को डाउन करना ही है! राजधानी के होटल-कांड की मैंने नए सिरे से जाँच के आदेश दिए है। रानाडे के खिलाफ एक आयोग बैठाने की भी बात सोच रहा हूँ। लेकिन इस बीच तुम उन प्रदेशों में जाओ, जहाँ रानाडे के मुख्यमंत्री है, और किसी भी तरह वहाँ की सरकार गिराओ। जो भी संभव हो सके करो और सफल होकर आओ।'

'देखिए, तीन में से दो प्रदेशों की सरकारें तो कभी भी गिराई जा सकती हैं, क्योंकि वहाँ पर रानाडे समर्थकों का बहुमत ज्यादा नहीं है। तीसरे प्रदेश हेतु ज्यादा मेहनत होगी!'

'कोई बात नहीं, हमें सब कुछ करना है! ...अब तुम जाओ और कार्य शुरू करो, साथ में कुछ अनुचर और ले जाओ।'

'ठीक है!'

किसी प्रांत की राजधानी में मायादेवी श्रीवास्तव का पदार्पण बहुत बड़ी घटना मानी जाती है। मुख्यमंत्री जानते हैं कि केंद्र में मायाजी का आना क्या मायने रखता है, और इसी कारण उनके आगमन को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। जब से पता चला कि मायादेवी आ रही हैं, मुख्यमंत्री भयभीत हैं। उन्होंने मायादेवी के स्वागत-सत्कार की जोरदार तैयारियाँ कीं।

एअर-कंडीशंड डिब्बे से उतरते ही अपने स्वागत में मुख्यमंत्री ही नहीं, पूरे मंत्रिमंडल को देखकर वे खुश हुई, लेकिन उन्हें तो अपना काम करना था! विधानसभा बंद थी। वर्तमान मुख्यमंत्री के पास 110 विधायक थे और विपक्ष में 90। मायाजी को 10-15 विधायक तोड़कर विपक्ष में मिलाने थे।

सुबह और रात में, हर समय उन्होंने काम किया। उन्होंने नोटों की थैलियाँ खोल दीं।

उधर मुख्यमंत्री और उसके चहेते मंत्रियों ने भी डटकर मुकाबला किया। लेकिन कुछ हरिजन विधायकों को मायाजी तोड़ने में सफल हो गईं। एक विधायक को उप-मुख्यमंत्री पद का लालच दिया गया।

दूसरे दिन अखबारों में प्रमुख समाचार था -

'वर्तमान सरकार अल्पमत में।'

'सरकार का इस्तीफा!'

'नए मंत्रिमंडल का गठन शीघ्र।'

मायाजी का काम समाप्त हो गया था। वे और उनके सचिव अगले प्रदेश की राजधानी हेतु उड़ चलें; और मायाजी जब एक सप्ताह के बाद ही वापस राव साहब से मिलीं, तो राव साहब उनके कार्य से बहुत खुश थे, और इस खुशी में उन्होंने वह रात माया जी के नाम कर दी।