यश का शिकंजा / भाग 3 / यशवंत कोठारी

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वे तीनों राजधानी के एक साधारण दारू के ठेके से पीकर निकल रहे थे।

एक भूतपूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक हरनाथ थे, दूसरे एक पत्रकार थे राम मनोहर और तीसरे सज्जन व्यापारी।

'यार, इस देश का क्या होगा?' हरनाथ ने नशे में हाँक लगाई।

'होना जाना क्या है - जैसा चल रहा है, चलता रहेगा!' व्यापारी ने बनिया-बुद्धि दर्शाई।

'देखो प्यारे, इस देश का भविष्य जनता के हाथों में पूर्णरूप से सुरक्षित है। लोकतंत्र सुरक्षित है, अतः हमें चिंता की जरूरत नहीं है। आप और मेरे-जैसे पढ़े-लिखे गँवारों से ज्यादा बुद्धिमान है इस देश का अनपढ़ मतदाता, जो सही समय पर सही कदम उठाकर सरकार को चेतावनी दे देता है।'

'तुम तो यार, भाषण देने लगे! नेता मैं हूँ या तुम हो?'हरनाथ ने जोड़ा।

'देखो हरनाथ, अगर सरकारें ऐसे ही गिरती रहीं तो फिर मध्यावधि चुनाव होंगे और तुम्हारा वापस मंत्री बनने का सपना अधूरा रह जाएगा। अतः अगर कुछ कर सकते हो तो अभी कर लो। कल का भरोसा मत करो!' राम मनोहर ने अपना ज्ञान दर्शाया।

'राजनीति और पत्रकारिता में बहुत अंतर है बच्चे, फ्रूफ उठाने से छपाई नहीं हो जाती। देखो, अभी तो होटल-कांड भी चल रहा है। मैं प्रदेश का पावरफुल एम.एल.ए. हूँ, और इसी कारण मुख्यमंत्री ने भी प्रधानमंत्री को कहा है कि मुझे इस केस में फँसा दिया जाए। इधर रानाडे की नाव में छेद होता जा रहा है!'

'तो तुम क्या कर रहे हो?'

'करूँगा, समय आने पर सब कुछ करूँगा! अभी तो तुम नशे को जमाने का इंतजाम कराओ।'

तीनों ने मिलकर एक बोतल और पी, और फिर चल पड़े।

'देखो, अगर केंद्र से रानाडे हटते हैं तो हम तीनों ही नुकसान में रहेंगे।'

'राम मनोहर, तुम्हारे अखबार का कोटा मिल गया?'

'कहाँ यार!'

'तो तुम कल रानाडे से, मेरा नाम लेकर मिलो। और देखो, अपने अखबार में होटल-कांड को आत्महत्या का मामला लिख दो। बाकी मैं देख लूँगा।' हरनाथ बोले।

एस.पी. वर्मा के जीवन में पहला मौका नहीं था यह, जब उपर के आदेशों के अनुसार रपट को बदलना पड़ता है। वे ऐसे कार्यो में माहिर है और इसी कारण चीफ ने जान-बूझकर उन्हें इस काम में लगाया है।

'दूध का दूध और पानी का पानी' - करने के लिए वर्मा ने पूरी फाइल पढ़ी और कल सुबह हेतु कुछ बिंदु नोट किए।

'होटल के बाहर जो कार खड़ी थी, उसमें हरनाथ थे। उनके बयानों को नोट करना।'

'लड़की की पास्टमार्टम-रिपोर्ट पर एक डॅाक्टर के हस्ताक्षर नहीं - इसको चेक करना।'

'होटल के मैनेजर के बयान लेना।'

'कार का ड्राइवर आज तक लापता है, क्यों?'

ज्यों-ज्यों वर्माजी केस में उतरते गए, त्यों-त्यों उन्हें मजा आने लगा - अगर इस बार चीफ और पी.एम. की नजर में चढ़ जाऊँ तो सब ठीक हो जाए।

लेकिन रानाडे और हरनाथ कच्चे खिलाड़ी नहीं थे। दूसरे दिन एक सड़क-दुर्घटना में एक ट्रक ने एस.पी. वर्मा की जीप को कुचल दिया। वर्मा की मृत्यु घटनास्थल पर ही हो गई।

इस दुर्घटना पर सबसे पहला शोक-संदेश रानाडे का ही आया।

'श्री वर्मा एक कर्तव्य-परायण और जागरुक अधिकारी थे। उनके असामयिक निधन से मुझे दुख हुआ है। परमात्मा उनकी आत्मा को शांति दे!'

अखबारों ने राजधानी में बिगड़ती हुई कानून और व्यवस्था पर लंबे-चौड़े लेख सचित्र छापे। कुछ ने सरकार की निंदा की। आयंगार ने पूरा दोष संबंधित मंत्रालय पर थोप दिया जो पी.एम. के पास था।

पी.एम. इस अचानक वार से बौखला तो गए, लेकिन उन्होंने धैर्य नहीं खोया। वापस चीफ को बुलाकर किसी व्यक्ति को लगाने को कहा। इस बार इस बात का ध्यान रखा गया कि बात खुले नहीं, और गुपचुप सब तय किया गया।

इस कार्य से निपटकर पी.एम. अपनी स्टडी रूप में आए। आज उनका चित्त अशांत था। गीता उठाई और पढ़ने लगे।

अनाश्रिताः कर्मफलं कार्य कर्म करोति यः।

स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्नचाक्रियः।।

मन नहीं लगा, उन्हें याद आया -

ना दैन्यं न च पलायनम्...

- युद्ध में न तो दीनता दिखाओ और न ही पलायन करो। आज उनकी स्थिति भी ऐसी ही हो रही है, लेकिन वे दीनता नहीं दिखाना चाहते। गीता से मन उचटा तो आज उन्हें रवि बाबू की - 'चित्त जेथा भय शून्य' ...याद आई, वे उसे ही गुनगुनाने लगे।

लेकिन कहाँ, आज न निर्भयता है और न न्याय। वे परेशान हो उठे।

अभी पूरी तरह सवेरा नहीं हुआ है। मौसम साफ है। उषाकालीन प्रकाश चारों तरफ फैलना शुरू ही हुआ है। मंद-मंद समीर बह रहा है। राजधानी में ऐसी सुबहें अधिक नहीं आतीं।

राव साहब आज जल्दी उठ लिए। विशाल कोठी के हरे-भरे लॉन में वे एक खादी की शाल डाले धीरे-गंभीर चाल से टहल रहे थे। उनके साथ उनके विश्वास-पात्र मदनजी चल रहे थे। पिछले दिन की पूरी राजनीतिक गतिविधियों से राव साहब को अवगत कराने की जिम्मेदारी है मदनजी की, और उन्होंने इस कार्य में कभी कोई ढील नहीं आने दी। राजधानी के किस कोने में कब कौन-कितने एम.पी. के साथ गुप्तगू कर रहा है, उनका अगला कदम क्या होगा, और इस अगले की काट क्या होगी, तुरूप का इक्का कब और कैसे चलना चाहिए। मदनजी ने राव साहब का साथ बरसों निभाया है, नमक खाया है, और अपनी बात को सही ढंग से प्रस्तुत करना हैं। एस.पी. वर्मा की मौत को लेकर वे कह रहे थे-

'देखो, अपने रानाडे ने किस सफाई से सब काम कर दिया! साँप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी।'

'हाँ, इस बार वे सफल हो ही गए!'

उस दिन रानाडे के यहाँ मीटिंग में तीनों भूतपूर्व मुख्यमंत्री और करीब 100 एम.पी. थे, सभी मिलकर नई पार्टी बनाने की बात कर रहे थे।

'हूँ...' राव साहब कुछ नहीं बोले।

'तीनों मुख्यमंत्री तो रानाडे पर दबाव डाल रहे हैं कि वे भी सत्ता से अलग हो जाएँ।'

'तो कौन मना करता है!'

'लेकिन रानाडे नहीं निकलेंगे! वे चाहते हैं कि सरकार को गिराकर फिर अलग हों।'

'जब जहाज डूबता है तो चूहे पहले भागते हैं। और क्या समाचार है?'

विश्वेश्वर दयाल ने भी अपने सर्मथकों की मीटिंग का आयोजन किया है -

'कितने लोग थे?'

'राज्यमंत्री सुराणा और मनसुखानी थे।'

'हूँ' - राव साहब इस बार भी चुप रहें वे शांत मन टहलने लगे। मदनजी से रहा नहीं जा रहा था। आज राव साहब की चुप्पी उन्हें बहुत रहस्यमय लग रही थी। पता नहीं कब क्या हो जाए।

'अच्छा, अब तुम चलो!' उन्होंने मदनजी को जाने का इशारा किया।

मदनजी के जाने के बाद उन्होंने फोन कर मनसुखानी और सुराणा को बुलवाया। अपने चेंबर में बैठ कर वे मनसुखानी और राज्यमंत्री सुराणा का इंतजार करने लगे। गृह-मंत्रालय से उन्होंने इन मंत्रियों के खिलाफ की गई जाँच की फाइलें भी मँगवा लीं। उन्हें ही उलट-पलटकर देख रहे थे वे। दोनों मंत्री आए। बैठे।

'कल आप विश्वेश्वर दयाल के यहाँ मीटिंग में थे?'

सुराणा हकलाने लगे। मनसुखानी का पानी उतर गया।

'जी, हाँ...'

'तो क्या आप उनके साथ हैं?'

'ऐसी तो कोई बात नहीं।'

'तो फिर?'

'बात ऐसी है कि सुराणा ने कूटनीति का सहारा लिया - मुझे यह विभाग पसंद नहीं है।'

'तो आपको मुझसे मिलना चाहिए था। विश्वेश्वर दयाल इसमें क्या करेंगे!'

'...'

'खैर बोलो, क्या चाहते हो?'

'गृह मंत्रालय।' सुराणा ने सीधी बात की।

राव साहब क्षण भर को झिझके फिर उबल पड़े।

'तुम्हारे काम तो ऐसे है कि जेल भेजा जाए, और तुम गृह मंत्रालय चाहते हो। ये देखो तुम्हारी फाइलें!'

'फाइलों में क्या रखा है, साहब! मेरे साथ 60 एम.पी. हैं। बोलिए, क्या फैसला है?' राव साहब के चेहरे पर परेशानी के चिह्न उभर आए - 'और मनसुखानी तुम क्या चाहते हो?'

'अपने को तो आप उद्योग में लगा दीजिए।'

'हूँ, अच्छा हो जाएगा!'

अगले दिन समाचार-पत्रों में हेड लाइन थी -

'केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेर-बदल'

'गृह विभाग सुराणा को।'

'उद्योग मंत्रालय में मनसुखानी...'

देर रात को राष्ट्रपति ने आदेश प्रसारित कर इस फेर-बदल की पुप्टि कर दी।