यश का शिकंजा / भाग 4 / यशवंत कोठारी
केंद्रीय मंत्रिमंडल की विशेष बैठक चल रही थी। कुछ राज्यों की विधान सभाओं और लोकसभा हेतु कुछ उपचुनावों पर विचार होना है।
प्रधानमंत्री राव साहब और रानाडे के समर्थकों में सीधी तथा तीखी झड़पें होने की संभावना को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने ये मीटिंग बुलाई है। उन्होंने अपने प्रारंभिक भाषण में, देश में व्याप्त अकाल और बाढ़ की ओर अपने साथियों का ध्यान खींचा। बढ़ती महँगाई, लूटपाट, आगजनी, हत्याएँ, बलात्कार, आरंक्षण के पक्ष और विपक्ष में देश के हर कोने में रोज होनेवाले आंदोलन, विदेशों में देश की गिरती हुई प्रतिष्ठा, बढ़ती मुद्रास्फीति आदि सभी प्रश्नों को बिना लाग-लपेट के उन्होंने कहा।
मूल प्रश्न पर आते हुए उन्होंने निकट भविष्य में राज्य विधान-सभाओं के चुनाव की बागडोर अपने विश्वस्त अनुचर मदनजी को सौंपने का तय किया और लोकसभा उपचुनावों की बागडोर रानाडे को सौंपी।
रानाडे कहाँ मानने वाले थे -
'अगर विधान-सभा चुनावों में उम्मीदवारों का चयन सही नहीं हुआ तो उसका प्रभाव लोकसभा पर भी पड़ेगा, सत्ताधारी पक्ष हार जाएगा!'
'देखो, सभी कार्य एक साथ एक आदमी नहीं कर सकता। सत्ता का विकेंद्रीकरण आवश्यक है!' राव साहब रानाडे के इस वार को झेल गए।
आप और मैं, यहाँ दिल्ली में बैठकर देश के आंतरिक मामलों पर विचार तो कर सकते है, लेकिन गाँवों, झोंपड़ियों और ढाणियों में क्या हो रहा है - यह जानना भी आवश्यक है। और इस बार उम्मीदवारों का चयन ताल्लुका, तहसील और पंचायतों के आधार पर होगा।'
इस बार रानाडे फिर उलझ पड़े -
'तो फिर आप ये चुनाव नहीं जीत पाएँगे।'
'चुनाव ढाणियों में नहीं, मैदानों में लड़े और जीते जाते हैं।' मुस्कराते हुए राव साहब के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई, उन्होंने वैसे ही हुए कहा -
'जैसे भी हो, हमें सत्ताधारी पक्ष की लाज बचानी है।
'सत्ता की द्रौपदी पर सभी, कौरव और पांडव एक होकर लगे हुए है।' रानाडे फिर फुफकारे।
'आपने पिछले मास ही हमारे गुट के मुख्यमंत्रियों को गद्दी से उतार दिया।'
'कोई किसी को नहीं उतारता भाई! सब कर्मों का फल है। अगर उन लोगों को जाना था तो वे गए!' राव साहब अभी भी शांत ही थे।
'नहीं! आपने जान-बूझकर मेरा पक्ष कमजोर किया है। आप क्या मुझे बच्चा समझते हैं!' रानाडे फिर गुर्राए।
'देखो रानाडे' - अब उनके के चेहरे पर क्रोध की एक हल्की-सी छाया आई, 'क्या मैं नहीं जानता कि एस.पी. वर्मा की मृत्यु कैसे हुई या होटल-कांड में कौन लोग दोषी हैं!'
'अगर आप जानते हैं तो कार्यवाही कीजिए। हम कब मना करते हैं!' इधर रानाडे के समर्थकों ने हो-हल्ला मचाना शुरू कर दिया।
मीटिंग अधूरी छोड़नी पड़ी।
कुछ समय बाद उम्मीदवारों के चयन पर फिर बहस हुई। इस बार पी.एम. के उम्मीदवार खड़े हुए, वहाँ रानाडे ने दिग्गजों को खड़ा करने की सिफारिश की। जहाँ रानाडे के उम्मीदवार थे, वहाँ पी.एम. ने दिग्गज लोगों को खड़ा किया।
पिछले चुनावों में विरोधी दल के नेता के रूप में रामास्वामी जीतकर आ गए थे, लेकिन इनके अधिकांश सहयोगी इस चुनाव की वैतरणी को पार नहीं कर सके, और वे सभी अपने क्षेत्रों में प्रेत-काया बन विचरण करने लगे।
रामास्वामी वैसे तो मद्रास के हैं, लेकिन हिंदी ठीक-ठाक बोलने लगे हैं, इसी कारण अपने आपको राष्ट्रीय स्तर का नेता मानने लगे। जेाड़-तोड़ करके उन्होने दिल्ली में अपने खास लोगों को खास ओहदे दिला दिए। वैसे भी सचिवालय पर अंग्रेजी का आधिपत्य होने के कारण रामास्वामी को कभी कोई दिक्कत नहीं आई। नॉर्थ ऐवेन्यू के छोटे फ्लैट को छोड़कर रामास्वामी केबिनेट दर्जे की एक कोठी को सुशोभित करने लगे।
कई विरोधी दलों में से एम.पी. को तोड़-ताड़कर उन्होंने अपनी शक्ति का विस्तार कर लिया। गहरे काले रंग का चश्मा और उसी रंग के सूट में जब वे लोकसभा में विपक्ष की ओर से सरकार की बखिया उधेड़ना शुरू करते, तो कनिष्ठ मंत्री सदन का भार झेलने में असमर्थ रहते। अधिकांश मंत्री इस काल में सदन से बाहर चले जाते। आँकड़ों, तथ्यों और घटनाओं का पैना विश्लेपण करने में कुशल रामास्वामी सभी मंत्रालयों के क्रियाकलाप पर तीखे प्रहार करते। अक्सर राव साहब स्वयं उनकी जिज्ञासाओं को शांत करते और रामास्वामी चुप्पी साध जाते। सांयकाल राव साहब उनको कोठी पर बुलाते, बतियाते, सार्वजनिक मसलों पर गंभीर मंत्रणाओं का जाल रचते, और अंत में रामास्वामी कुछ समय के लिए विदेश चले जाते या अपने भतीजे-भानजे के नाम पर किसी नई फैक्ट्री का लाइसेन्स लेकर आते।
इन दिनों भी स्थिति बिगड़ रही थी। रामास्वामी होटल-कांड और राजधानी में व्याप्त हिंसा और मारपीट की घटनाओं पर बहस की माँग कर रहे थे। विपक्ष के सदस्य उनके समर्थन में थे। लेकिन सत्ताधारी पक्ष और विशेषकर रानाडे के साथी इसका विरोध कर रहे थे। अगर बहस हो तो सब गुड़-गोबर होने का अंदेशा था।
रामास्वामी ने वर्मा की रहस्यमय मृत्यु की जाँच की माँग की।
सत्ताधारी पक्ष इसे भी नकारना चाहता था। लेकिन बहस का सूत्र राव साहब ने अपने हाथ में ले लिया -
'मुझे अफसोस है कि एक कर्तव्य-परायण और ईमानदार अफसर का ऐसा दुखद अंत हुआ। हमने केस सी.बी.आई. के वरिष्ठ अधिकारी को दे दिया है। रिपोर्ट आने पर सदन को इसकी सूचना दे दी जाएगी, और अगर आवश्यक हुआ तो दोषी व्यक्तियों पर मुकदमें चलाए जाएँगे।'
'लेकिन क्या वर्मा होटल-कांड की जाँच करने के कारण मारे गए?'
'नहीं, इस केस का होटल-कांड से संबंध जोड़ना उचित नहीं होगा।' - रानाडे के एक समर्थक बीच में ही बोल पड़े।
राव साहब ने उन्हें इशारे से मना किया और कहने लगे -
'जब तक जाँच की रिपोर्ट नहीं आ जाती, हमें किसी प्रकार की अटकलबाजी नहीं करनी चाहिए। हमें रिपोर्ट आने तक इंतजार करना ही पड़ेगा!' रामास्वामी इस बार कुछ न कह सके। उनके साथी भी चुप्पी लगा गए। बहस अधूरी, हवा में लटक गई।
आज अर्से बाद रामास्वामी को रानाडे का फोन मिला। किसी गुप्त मंत्रणा हेतु।
सायँकाल के भोजन पर रानाडे और रामास्वामी साथ-साथ थे।
रानाडे उन्हें अपनी योजना समझा रहे थे -
'देश की स्थिति बिगड़ रही है। घेराव, हड़ताल, तोड़फोड़, अराजकता की स्थिति है।'
'चारों तरफ अजीब माहौल हो गया है। लगता है, कानून और व्यवस्था नाम की कोई चीज ही नहीं है! हर रोज अखबारों में ऐसे समाचार आते हैं कि बस मत पूछो!'
'विश्वविद्यालय बंद है। मुनाफाखोर, तस्कर सक्रिय हैं। विद्यार्थी आंदोलन कर रहे हैं।
'किसान रैलियाँ निकाल रहें हैं। मजदूरों ने कारखानों में काम करना बंद कर दिया है। सैकड़ों मिलों में तालाबंदी है...'
'हालात दक्षिण में भी खराब है... रामास्वामी ने कहा - 'तेलंगाना विवाद तो कहीं भाषा की लड़ाई।'
'ऐसी स्थिति में यदि हम मिल जाएँ तो राव साहब का पत्ता काट सकते हैं।'
'सो कैसे?' - रामास्वामी की आँखों में चमक आई। देखो, मेरे सौ एम.पी. हैं, तुम्हारे पास पचास-साठ है; अगर अपन मिलकर नई पार्टी की घोषणा कर दें तो यह अल्पमत की सरकार हो जाएगी - गिरेगी और राष्ट्रपति आपको बुलाएँगे। आप सरकार बना लेना।' रानाडे कुटिलता से मुस्कराया। रामास्वामी इस दाँव को समझ नहीं पाए। लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी का सपना उन्होंने अवश्य देखा था। अगर यह सब संभव हो तो क्या कहने! उन्होंने बात को तोलने की गरज से पूछा -
'आपका क्या होगा?'
'अरे भाई, हम तो तुम्हारे सहारे पड़े रहेंगे। अब मेरी पटरी राव साहब से नहीं बैठ सकती। इस कारण कह रहा हूँ।'
'कुछ कर गुजरेा! हम एक विशाल रैली का आयोजन कर रहे हैं। दस लाख लोग आएँगे; तुम चाहो तो उसी रैली में घोषणा कर दो।'
'नहीं! इतना जल्दी तो संभव नहीं होगा; मुझे मित्रों से भी पूछना होगा।'
'खैर, बाद में बता देना।'
दोनों मुस्कराते हुए बाहर आए। रामास्वामी कार में बैठे और चल दिए।
रानाडे बेडरूम में गए। गोली खाई, सचिव को मिस मनसुखानी को भेजने को कहा और सो रहे।