रेत भाग 2 / हरज़ीत अटवाल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


नोटिंग्हिल के इलाके की कई विशेषताएँ हैं। अगस्त के अन्त में लगने वाला कार्निवाल भी इन्हीं विशेषताओं से जुड़ गया है। यह कार्निवाल प्रवासियों ने आरंभ किया था और अब लंदन की एक बड़ी खासियत बन चुका है। हजारों में नहीं, लाखों में लोग एकत्र होते हैं। ‘पोर्ट बैलो’ के आसपास की सड़कों के ऊपर दो दिन निरन्तर धड़लेदार संगीत बजता है, नृत्य होता है। कालों द्वारा शुरू किया गया यह मेला अब हर नस्ल के लोगों का मेला हो गया है। दूसरे मेलों की भाँति इसके खराब पक्ष भी हैं, जहाँ लोग संगीत का, नृत्य का, रंग-बिरंगे दृश्यों का आनन्द उठाते हैं, वह जेबें भी कटवा बैठते हैं, लुट भी जाते हैं। क़त्ल तक हो जाते हैं। फिर भी, मेला बहुत भरता है। मैं इन सड़कों पर घूमता रहता था। लैंडब्रुक ग्रोव, स्कोट रोड, ऐफले रोड, पोर्ट बैलो रोड आदि मेरे काम के स्थान भी थे। यहाँ सड़कों पर मेरी टैक्सी दौड़ा करती थी।

मैंने यह मेला कभी नहीं देखा, पर इस मेले की विशालता देखी है। जब मेला खत्म होता है, उसके अगले दिन टनों के हिसाब से कूड़ा-करकट़ सड़कों पर बिखरा हुआ मैंने अपनी आँखों से देखा है, बल्कि मेरी कार इस कूड़े के ऊपर से गुजरती रही है। ‘सनराइज़ मिनी कैब’ के बहुत सारे ग्राहक इन्हीं सड़कों पर थे। इन्हीं सड़कों पर ही कुछ होटल भी थे, जिनके साथ ‘सनराइज़ मिनी कैब’ का कारोबार था, जिस कारण मुझे या मेरे जैसे ड्राइवरों को वहाँ जाना पड़ता था।

मैं कभी खाली होता, कहने का अर्थ कि मेरी कार खाली होती, तो मैं इन्हीं सड़कों पर कार खड़ी करके अखबार या कोई पत्रिका पढ़ने लगता और कंट्रोलर को अपने वहाँ होने की सूचना दे देता। वहाँ का कोई काम निकलता यानी कोई सवारी मिलती तो कंट्रोलर मुझे दे देता। ऐसा कम ही हुआ था कि मैं बहुत देर तक खाली खड़ा रहा होऊँ। कोई न कोई काम निकल ही आता। मेरी टैक्सी वाली कार मेरी अपनी थी। मिनी कैब के लिए विशेष कारों की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। साधारण कारों के ऊपर ही ऐरिअल लगाओ और बन गयी टैक्सी। ऐरिअल उतार कर रख दो तो फिर कार रह जाती। अगर काम करने का मूड नहीं हो तो ऐरिअल उतारो और घर को जाओ। मैं ऐसा ही किया करता था। काम खत्म करने के बाद मैं दफ़्तर में बैठे कंट्रोलर को बता देता था और काम शुरु करने के समय भी ख़बर कर देता कि मैंने काम शुरू कर दिया है। कंट्रोलर अगली जॉब के लिए क्यू में लगा देता। ‘सनराइज़ मिनी कैब’ में सुबह के समय कंट्रोलर जैक होता था, जिससे मेरी अच्छी बनती थी। वह मेरा ध्यान रखता और मुझे खाली न बैठने देता। बदले में मैं भी उसका दिन-त्यौहार पर ध्यान रखता, खास तौर पर क्रिसमस पर।


कार्निवाल से अगला दिन था। मैं कूड़े के ऊपर से कार दौड़ाये लिए जा रहा था। सवारी उतारी थी और चाय के कप के लिए रुकना चाहता था। एक मोड़ पर मुड़ने के लिए कार धीमी की तो एक खूबसूरत गोरी (अंग्रेज स्त्री) जाती हुई दिखायी दी। आदत के अनुसार मैं उसकी ओर देखने लगा। वह रोती हुई जा रही थी। कार को मैंने धीमा कर लिया था कुछ कहने के लिए, पर उसे रोता देखकर मैंने पूछा, “सोहणिये, तू ठीक तो है?”

“हाँ, शुक्रिया।"

“पर तुम तो रो रही हो, सब ठीक तो है?”

“हाँ, सब ठीक है।"

“मैं तेरे किसी काम आ सकता हूँ?”

“शुक्रिया, मुझे अकेला छोड़ दे, मैं ठीक हूँ।"

“अगर तू ठीक है, तो चुप क्यों नहीं कर जाती?”

तब तक मैं कार रोक कर नीचे उतर आया था। वह टिशू से आँखें साफ करती हुई तेज कदमों से आगे बढ़ गयी। मैं खड़ा होकर उसे देखता रहा। जितना वह चेहरे से खूबसूरत थी, उतना ही पीछे से भी। वैसे तो सारी गोरी औरतें ही मुझे सुन्दर लगती हैं, पर वह कुछ खास थी। उसमें कोई बड़ी चीज़ थी, जो मुझे खींच रही थी। काफी आगे जा कर उसने पीछे मुड़कर देखा, एक पल रुकी। मैंने हाथ हिलाया। वह जवाब दिये बग़ैर आगे बढ़ गयी।

वह तो चली गयी, पर उसकी सजल आँखों ने मेरा पीछा न छोड़ा। मैं उन सड़कों पर होता, तो मुझे वे आँखें बहुत याद आतीं। मैं जान बूझकर कार उस मोड़ पर ले जाकर रोक लेता, जहाँ वह मिली थी।

अभी कुछ दिन ही गुजरे थे कि वह लड़की फिर सड़क पर जाते हुए दिखाई पड़ी। मैं सवारी उतार कर आ रहा था। उसके करीब पहुँचकर कार रोक ली। आज फिर वह रो रही थी। मैंने कार उसके बराबर ले जाकर रोकी और पूछा, “क्या नाम है तेरा?”

“बीटर्स।"

“रोती क्यों है?”

“क्यों ?... तेरे काम की कोई बात नहीं।"

“कोई गंभीर बात है?”

“तुझे कहा न, तेरे काम की कोई बात नहीं, तू जा।"

“देख बीटर्स, सड़क पर रोते हुए चली जा रही है, कोई बात तो है। यूँ न रो, प्लीज़ चुप हो जा।"

“अगर न होऊँ तो?”

“फिर मैं भी रोने लगूँगा।"

मेरी बात सुनकर वह हँस दी। उसके आँसुओं में धूप की किरण उभरी। मुस्कराहट से उसका पतला-सा चेहरा भरा-भरा लगा। मैंने फिर कहा, “मेरा नाम इंदर है, टैक्सी चलाता हूँ, तेरी खूबसूरती मेरी कार को ब्रेक लगवा देती है। जब तू रोती है तो और अधिक सुन्दर लगती है। बीटर्स, रो ले, थोड़ा और रो ले, मेरा मन खुश हो जाएगा।"

“तू मुझे रुला कर खुश है?”

“नहीं, पर तू रो कर खुश है और मुझे रोने का कारण भी नहीं बता रही।"

“मेरे रोने के निजी कारण हैं।"

“पर तू रो तो पब्लिक के बीच रही है, अगर निजी कारण हैं तो घर जाकर रो।"

वह खुश हो गयी और उसका चेहरा खिलने लगा। वह बोली, “तू मेरे पीछे क्यों पड़ा है, अपना काम कर।"

“मैंने सोचा कि शायद तेरे किसी काम आ सकूँ।"

वह कुछ न बोली और ‘बाई-बाई’ कर के चली गयी। मैं बीटर्स को जाते हुए देखता रहा और उसके बारे में सोचने लगा कि यह है कौन। पहले तो कभी नहीं देखी। इतने दिनों से मैं इन सड़कों पर घूम रहा था। मैंने उसे देखा, वह जेईअर रोड की तरफ मुड़ गयी। हो सकता था कि वह यहीं कहीं रहती हो।

जब भी यहाँ आकर खाली होता, तो इन सड़कों पर यूँ ही चक्कर लगाने लग पड़ता। एक दिन बीटर्स फिर दिखायी दी। मैंने करीब जा कर कार रोकी और बाहर निकल आया। मैंने उसकी राह रोक कर कहा, “बीटर्स, क्या हाल है?”

“ठीक है, क्या नाम बताया था तुमने?”

“इंदर।"

“हाँ-हाँ, तुझे कोई काम है मुझसे?”

“हाँ, मुझे काम है। मैं तुझे चाय का कप या बियर का गिलास पिलाना चाहता हूँ।"

“क्यों?”

“इस बहाने तेरे साथ बातें हो जाएँगी। और तेरे रोने का कारण पूछ लूँगा।"

“मेरे रोने का कारण मेरा बॉय-फ्रेंड है। वह अपनी सारी तनख्वाह का जुआ खेल लेता है, मुझे जो कुछ मिलता है, वह भी छीन लेता है। ऊपर से मुझे मारता-पीटता भी है।"

उसकी बात सुनकर मैं चुप हो गया। यह तो ततैयों के छ्त्ते में हाथ डालने वाली बात थी। मुझे चुप देखकर वह बोली, “तू पूछता था न, बता, क्या मदद कर सकता है इस मामले में?”

“मैं... मैं तुझे उससे निजात दिला सकता हूँ।"

मैं बगै़र कुछ सोचे-समझे कह गया। बाद में ख़याल आया कि यह क्या बोल गया। वैसे मेरा दिल यह कह रहा था कि इतनी सुन्दर लड़की को किसी गलत आदमी से छुटकारा दिलाना बुरी बात नहीं। वह चुप थी। मैंने पूछा, “बीटर्स, तू रहती कहाँ है?”

“जेईअर रोड पर, रोबर्ट हाउस में, पन्द्रह नंबर।"

“इधर कहाँ से आयी हो?”

“मेरा छोटा लड़का नर्सरी में जाता है, इस वक्त उसे छोड़ने जाती हूँ। बड़ा भी उसी स्कूल में जाता है। उसे सवेरे ही छोड़ आती हूँ। फिर, साढ़े तीन बजे दोनों को एक साथ ले आती हूँ।"

बात खत्म कर के उसने मेरी ओर ध्यान से देखा। मैं चुप रहा। वह अलविदा कहकर चली गयी। मैं तुरन्त कार में जा बैठा और कार स्टार्ट करते हुए बोला, “इंदर सिंह, दो बच्चों की माँ पर फिदा हुआ फिरता है, अक्ल कर, अक्ल!”


उस दिन के बाद मैंने बीटर्स के विषय में सोचना बन्द कर दिया। मुझे औरत के साथ दोस्ती की भूख तो थी, पर दो बच्चों की माँ नहीं चाहिए थी। मुझे सांडरां जैसी अकेली इकहरी औरत चाहिए थी। सांडरां के साथ किसी तरह की आत्मीयता नहीं बन सकी थी, इसलिए मैं उससे किनारा कर गया। वैसे तो गुजरातिन मीना भी थी, पर वह सिगरेट बहुत पीती थी, और धुआँ मुझे पसन्द नहीं था। मीना के पास बैठना ही मेरे लिए कठिन हो जाता। मैं चाहता था कि कोई हो जिसके करीब बैठकर व्हिस्की के दो घूंट भर सकूँ, जिससे अपना दिल हल्का कर सकूँ। मैं इतना भी नहीं तरस रहा था कि बीटर्स जैसी पहले ही फंसी हुई बल्कि गृहस्थी के जंजाल में उलझी हुई औरत के साथ दोस्ती करूँ।

बीटर्स जेईअर रोड पर स्थित फ्लैटों के एक ब्लॉक में रहती थी, जैसा कि उसने बताया ही था। जेईअर रोड मेरी राह में नहीं आता था, पर मैं उधर से गुजरने लग पड़ा। रोबर्ट हाउस के बाहर फ्लैटों के नंबर लिखे हुए थे– एक से चालीस। चार मंजि़ला इमारत थी। एक मंजि़ल में दस फ्लैट। दूसरी मंजि़ल पर रहती थी वह। जेईअर रोड पर से गुजरते समय मैं रोबर्ट हाउस की दूसरी मंजि़ल की खिड़कियाँ देखते हुए गुजरता कि इनमें से कौन-सी खिड़की बीटर्स की है।

एक दिन, बीटर्स मुझे जेईअर रोड पर जाते हुए दिखायी दी। मैंने उसे पीछे से ही पहचान लिया। चाहता तो था कि चुपके से गुजर जाऊँ, पर उसको ‘हैलो’ कहना अपना नैतिक फ़र्ज़ समझते हुए मैंने उसके करीब जाकर कार धीमी कर ली। मैंने उसके चेहरे की ओर देखा और देखता ही रह गया। उसकी आँखें सूजी हुई थीं और मुँह पर नील पड़े हुए थे। लगता था, किसी ने बुरी तरह मारा था। मैं कार से उतर कर उसके करीब गया और पूछा, “बीटर्स, यह सब क्या?”

“पीटर ने मुझे बहुत बुरी तरह मारा है।"

“पीटर कौन?”

“पीटर बिंगले, जॉन का बाप। जॉन मेरा छोटा बेटा।" कहकर वह रोने लगी। इस मुल्क में इतनी अबला औरत मुझे पहली बार देखने को मिली। मैं गुस्से में बोला, “उसने मारा और तूने मार खा ली। पुलिस क्यों नहीं बुलायी?”

“पुलिस बुलायी थी। पुलिस ने कोर्ट से पीटर को मेरे घर से सौ गज दूर रहने का हुक्म दिला दिया, पर उससे क्या फर्क पड़ता है। पहले भी ऐसे हुआ था। उसके पास बहाना है कि जॉन को देखना है, इसी बहाने से फिर आ घुसता है। दो दिन सुख के निकलेंगे, फिर वही नरक शुरू...।"

“तेरी कोई मदद नहीं करता?”

“सारे पड़ोसी उससे डरते हैं, मेरी सहेली शीला का पति है टोमी, वह थोड़ी-बहुत मदद कर देता है, पर वह भी पीटर के साथ पब में जाता है, वह भी खुलकर सामने नहीं आता।"

मेरे कहने पर वह मेरे साथ आ बैठी। मैंने कंट्रोलर को बता कर छुट्टी कर ली। हैरो रोड पर एक पब था, जहाँ मैं कभी-कभी जाया करता था। मैं बीटर्स को वहाँ ले गया। उसके लिए भी बियर खरीदी, अपने लिए भी। एक नये-से मेज के गिर्द बैठते हुए मैंने अपने बारे में संक्षेप में बताया और उससे फिर पहला वाला प्रश्न दोहराया, “तेरा कोई नहीं जो तेरी मदद कर सके? मेरा मतलब है, बहन-भाई?”

“लंदन में मेरा कोई नहीं, कैंट में मेरे माँ-बाप रहते हैं, पर वे बूढ़े हो चुके हैं, मेरी मुश्किलों में मेरी सहायता नहीं कर सकते। मेरा एक भाई भी है, पर उसकी अपनी ज़िन्दगी है, उसकी भी मुश्किलें कम नहीं हैं।"

वह अपनी कहानी बताने लगी। उसका पहला बेटा डैनी जवानी में पैर रखते ही हो गया था। डैनी के पिता मैथ्यु को जब मालूम हुआ कि बीटर्स माँ बनने वाली है, तो वह उसे छोड़कर भाग गया। फिर, उसका वास्ता पीटर से पड़ा। जॉन पीटर से था। पीटर बहुत अच्छा व्यक्ति नहीं था। उम्र में भी बीटर्स से बड़ा था, पर एक बच्चे की माँ होने के कारण ढंग का व्यक्ति उसे मिल नहीं रहा था और वह पीटर के संग ही रहने लग पड़ी थी।

उसने दोनों बेटों को स्कूल से साढ़े तीन बजे लेना था। हमारे पास बहुत वक्त था। हम वहीं पब में ही बैठे रहे। फिर, वहीं से मैं उसके संग स्कूल गया। लड़कों को लेकर मैं उसे घर तक छोड़ने चला गया। राबर्ट हाउस के अन्दर पहली बार जा रहा था, जबकि बाहर से बहुत बार देखा था।

एक पुरानी-सी इमारत थी, विक्टोरियन-सी। दीवारों पर सीलन थी। दूसरी मंजि़ल पर बीटर्स का दो बैड रूम वाला फ्लैट था। साथ ही, एक बैठक और रसोई-बाथरूम। फ्लैट का किसी भी प्रकार से रख-रखाव नहीं किया गया था। पुरानी-सी सैटी, गन्दी-सी कारपेट, फटा हुआ दीवारों का पेपर। मुझे इधर-उधर देखते हुए वह बोली, “यह मेरा घर है, गरीबी की तस्वीर।"

“बीटर्स, तू खूबसूरत है, तेरा दिल खूबसूरत है, तू किधर से गरीब हुई!”

“इन चीज़ों के कोई अर्थ नहीं, आइन्डर।"

“आइन्डर नहीं, इंदर।"

वह मेरे नाम का गलत उच्चारण कर रही थी। मैंने सुधारते हुए उससे कहा तो वह मेरे नाम को बोलने का अभ्यास करने लगी, “ओ.के. आइन्डर नहीं, ईन्डर… ईन्डर… इंदर! खुश हो।"

फिर, हँसती हुई कहने लगी, “पराये नामों से मेरा अधिक वास्ता नहीं पड़ा, माफ करना।"

“कोई बात नहीं, अब पड़ जाएगा। तेरे आसपास कोई अन्य ऐशियन या काले रंग के लोग नहीं?”

“नहीं, पीटर काले रंग को पसंद नहीं करता।"

“फिर तो तुझे मेरे संग देख कर बहुत गुस्सा करेगा।"

“हो सकता है, पर मुझे परवाह नहीं। वैसे उसका दिमाग बहुत शरारती है, किसी दूध की डेयरी में काम करता है, दूध वाली फ्लोट चलाता है, पूरी हेरा-फेरी करता है, तनख्वाह भी लेता है, मेरे पैसे भी छीन लेता है, बच्चे बेशक भूखे रह जाएँ।"

“इन पैसों का क्या करता है?”

“जुआ खेल लेता है, सारे के सारे पैसे गवाँ बैठता है। बताया था न।"

“जुए में तो हारना ही हारना है।"

“वह जुए में बेशक हार जाता होगा, लेकिन ज़िन्दगी में एक विजेता की तरह रहता है। जो चाहता है, करता है। अब आएगा, अगर रोकूँगी तो मारेगा।" कहकर वह रोने लगी। मुझे उस पर बहुत तरस आया। मैंने उसके कंधे को दबाते हुए कहा, “बता, मैं किस काम आ सकता हूँ?”

“तू मेरे किस काम आएगा?... फिर, मैं तो तुझे जानती भी नहीं।"

“जानता तो मैं भी तुझे नहीं, फिर भी तेरे घर आ गया। तेरे लिए कुछ न कुछ करने के लिए तैयार हूँ।"

“तू मेरे लिए क्या कर सकेगा?”

“पता नहीं। देख ले, सोच ले।" कहकर मैंने घड़ी देखी। शाम के चार बज रहे थे। बीटर्स के बेटों ने मेरे संग मामूली-सी बातें करने के बाद टेलीविज़न देखना शुरू कर दिया था। बियर के तीन गिलास पिये जा चुके थे पब में बैठकर और उस समय तो नशा-सा हो गया था, पर अब सुस्ती पड़ने लगी थी। काम पर अब मैं जा नहीं सकता था। मैंने मन बना लिया कि घर जाकर आराम करुँगा और कल काम पर जल्दी चला जाऊँगा। मैंने जाने के बारे में सोचा ही था कि बीटर्स ने फ्रिज में से वाइन की बोतल निकाल कर दो गिलास बना दिए। वाइन कम ही थी। वाइन खत्म हुई तो किसी कोने में पड़ी वोदका की बोतल खोज लाई, जिसमें दो पैग जितनी दारू थी। उसने स्वयं छोटा-सा पैग लिया और मेरे लिए बड़ा-सा पैग बनाया। जैसा कि मुझे आदत थी, एक-एक घूँट पीने के बजाय मैंने एक ही साँस में गिलास खाली कर दिया। मुझे इस तरह पीते देखकर वह बोली, “जल्दी है?”

“नहीं, पर मैं पीने पर टाइम वेस्ट नहीं करना चाहता।"

वह हँसने लगी। वह हँसती हुई भी प्यारी लग रही थी। उसने कहा, “मुझे अधिक शराब अच्छी नहीं लगती।"

“मुझे तो अच्छी लगती है, यह शराब आदमी में शक्ति पैदा करती है, आदमी को ज़िन्दा रखती है।"

“तू आदमी दिलचस्प है। मुझसे नशा सम्भाला नहीं जाता, आपे से बाहर हो जाती हूँ। बच्चे भी तो देखने हैं।" कहते हुए वह उठी। मैं सोचने लगा- वह कौन-सी बात थी जो मुझे यहाँ तक खींच लाई। जितनी बातें मैं बीटर्स से करता, उतनी ही वह और अधिक प्यारी लगती। वह बहुत देर तक मुस्कराती। उसके चेहरे की बुरी हालत थी, फिर भी एक हौसला उसके भीतर दिखाई देता था। जब इसका आदमी इसे मार रहा होगा, तो इसके अन्दर कितने बड़े ज़ख्म हो रहे होंगे। इतने सारे ज़ख्मों के साथ मुस्कराना छोटी बात नहीं थी। यही कारण था शायद कि मैं उसकी ओर खिंचा जा रहा था। मैंने पुन: घड़ी देखी और सोचा कि अब मुझे चलना चाहिए। बीटर्स रसोई का चक्कर लगाकर आयी और कहने लगी, “मुझमें तो अब हिम्मत नहीं, बच्चों के लिए कुछ पकाने की। चिप्स ही ला दूँगी, दुकान साथ ही है।" मैं उठ खड़ा हुआ और बोला, “बीटर्स, ड्रिंक के लिए शुक्रिया। मैं चलता हूँ, ट्रैफिक हो जाएगा, दूर रहता हूँ।"

वह कहीं से रम की बोतल निकाल लायी। एक ही पैग था उसमें। वह हँसते हुए कहने लगी, “ले, ये भी पी ले, राह में ठीक रहेगा। माफ करना और ड्रिंक मेरे घर में नहीं है। हो सकता है, ये रंग-बिरंगी तुझे परेशान करे। एक ही पैग है।"

“यही बहुत है, काम करेगा, मुझे घर तक पहुँचा देगा। सिर दुखेगा, पर कोई बात नहीं।" मैंने खुश होते हुए कहा। उसने कोक डाल कर पैग बनाया और मैं एक ही साँस में पी गया। मैंने बच्चों को ‘बाई’ कहा और बीटर्स को भी, और उठ कर खड़ा हो गया। वह मुझे दरवाजे तक छोड़ने आयी। मैं सुरूर में था, पर शराबी नहीं।

मैंने दरवाजा खोला तो बाहर एक गोरा खड़ा था। करीब चालीसेक बरस का दुबला, पर गठीले बदन का यह व्यक्ति मेरी ओर घूर-घूर कर देखने लगा। उसने मुझसे ‘हैलो’ कहा और फिर मेरे पीछे खड़ी बीटर्स से बोला, “बीटर्स, आई एम सॉरी। मुझे माफ कर दे।"

मैंने बीटर्स की ओर देखा। उसने धीमे से कहा, “पीटर।" मेरा सारा नशा एकदम उतर गया। मेरी समझ में नहीं आया कि अब मैं क्या करूँ। मुझे लगा कि अब झगड़ा होगा। मैंने मन ही मन उसे तोला। वह शारीरिक तौर पर मुझसे हल्का था। मेरी ओर देखते हुए जो वहशत उसकी आँखों में आयी थी, उसके लिए मैंने खुद को तैयार कर लिया। उसने अन्दर जाने की कोशिश की। बीटर्स उसे रोकते हुए बोली, “तुझे यहाँ आने की इजाज़त नहीं। जज ने भी कहा था। तू फिर आ गया। मैं अभी पुलिस को फोन करती हूँ। तेरा भला इसी में है कि दफ़ा हो जा यहाँ से।"

“प्लीज बीटर्स, ऐसा दुबारा नहीं होगा। एक मौका और दे दे।" कहकर वह मुझे एक ओर करते हुए अन्दर जाने लगा तो बीटर्स रास्ता रोक कर खड़ी हो गयी। मैंने पीटर को रोक कर कहा, “तूने सुना नहीं, उसने क्या कहा?”

“तू कौन होता है, हम पति-पत्नी के बीच में आने वाला?”

“मैं कोई नहीं, पर बीटर्स कहती है कि अन्दर न आ, तो इसका मतलब कि न आ। उसके पास कोर्ट के आर्डर भी हैं।"

“यह मेरी पत्नी है, यह मेरा घर है, तू कौन है रोकने वाला?”

मेरे कुछ कहने से पहले बीटर्स बोली, “कौन पत्नी, किसका घर! यह मेरा घर है। तू किसी हालत में अन्दर नहीं आ सकता।"

उसने जबरन अन्दर घुसना चाहा, तो मैंने उसे बाहर धकेल दिया। वह क्रोध में दांत पीसता हुआ बोला, “ओए पाकी! हरामी! तेरी इतनी हिम्मत!”

नस्लवादी गाली मेरे सिर पर चढ़ गयी। मैं स्वयं पर नियन्त्रण न रख सका। मैंने दायें हाथ का जोरदार मुक्का उसके नाक पर दे मारा। उसके पैर उखड़ गये। तभी, मैंने बायें हाथ का एक और मुक्का छोड़ दिया। वह गिर-सा पड़ा और सामने वाली दीवार से जा टकराया। मैं और मारने के लिए आगे बढ़ा तो उसने एक बांह से अपना मुँह छिपा लिया और दूसरी बांह आत्म-समर्पण के तौर पर ऊपर उठा दी।

उसके नाक और मुँह में से खून बह रहा था। बीटर्स चीखने लगी, “उठ हरामी, उठ अब… और मार मुझे… उठ अब मुकाबला कर, चूहा क्यों बन गया?” पीटर की आँखें झुकी हुई थीं। वह आहिस्ता से उठकर सीढ़ियाँ उतर गया। बीटर्स अभी भी चीखे जा रही थी। उसे ऐसा करते देख उसके बेटे रोने लग पड़े। पीटर जा चुका था। मैंने बीटर्स को शान्त किया। आसपास के फ्लैटों के लोग बाहर निकल आए। एक बूढ़ी औरत बताने लगी, “उस दिन मैंने ही पुलिस को फोन किया था। पीटर ने अति कर रखी थी।"

हेनरी नाम का एक गोरा कहने लगा, “मैं बूढ़ा हो गया हूँ, नहीं तो पीटर की आज वाली हालत मैं कर देता।"

हर कोई पीटर के खिलाफ़ बोल रहा था और मेरे से सहमति प्रकट कर रहा था। मैंने उन सबका धन्यवाद किया और बीटर्स को लेकर वापस अन्दर चला गया। मैं अन्दर आकर सोफे पर बैठ गया और सोचने लगा कि मिनटों में यह क्या हो गया। मेरी साँस तेज-तेज चल रही थी। मैं घबराया हुआ भी था। बीटर्स बोली, “सॉरी इंदर, घर में ड्रिंक नहीं है, नहीं तो मैं तुझे देती क्योंकि इस वक्त तुझे ड्रिंक की सख़्त ज़रूरत है।"

मुझे भी लगा कि अब मुझे शराब चाहिए थी। मैं उठा और दुकानों की ओर चल पड़ा। बीटर्स भी मेरे संग आ गयी। उसने बच्चों के लिए चिप्स आदि खरीदे। वोदका और व्हिस्की की बोतलें लीं। साथ में, जूस, कोक-लैमनेड आदि भी। वापस लौटकर हम पीने लग पड़े। दो पैग पीने के बाद मैं कुछ भी सोचने के योग्य न रहा और बीटर्स के साथ हँसी-मजाक करने लगा।



सुबह आँख खुली तो बीटर्स मेरे संग लेटी थी। मैं झटके से उठ खड़ा हुआ। रात वाली घटना याद करने लगा। मुझे स्वयं पर गुस्सा भी आ रहा था और मैं डर भी रहा था कि यह क्या मुसीबत मोल ले ली। मैंने घड़ी देखी, छह बजे थे। मेरा सिर दर्द कर रहा था। मुझे याद आया कि रात को कई किस्म की शराब पी थी, सिर तो दुखना ही था।

मुझे हिलता देखकर बीटर्स भी जाग गयी।

“गुड मार्निंग इंदर, नींद ठीक आयी?” उसने मुझसे पूछा।

मैं उठते हुए बोला, “यह नींद कहाँ थी, बेहोशी थी। पता नहीं कहाँ था पिछले आठ-दस घंटे।"

मेरे बाथरूम से लौटने तक वह चाय ले आयी। मैं शीघ्र यहाँ से निकल जाना चाहता था। आज काम करने का मूड नहीं था।

मैं बीटर्स के यहाँ से सीधे घर आया। नहा कर कपड़े बदले। चाय के संग कुछ टोस्ट लिए। फिर से, कल वाली घटना और बीटर्स के संग बिताई रात के बारे में सोचने लगा। सब कुछ ही गलत हो गया था। पीटर से लड़ना, फिर रात में बीटर्स के पास रह जाना। सवेरे बीटर्स भावुक-सी हुई पड़ी थी। कोई मेरे साथ इस तरह जुड़ जाये, जब तक मैं न जुड़ा होऊँ, मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं ‘रात गयी, बात गयी’ की तरह भूलने की कोशिश करने लगा।

बारह बज गये। मेरे पास कुछ भी करने के लिए नहीं था। अखबार मैं अंकल भुल्लर की दुकान से लेता आया था, उसे पढ़ चुका था। एक-दो किताबें खोलीं, पर मन नहीं रमा। रात वाली घटना रह-रहकर याद आ रही थी। आख़िरकार यही सोचा कि क्यों न काम पर ही चला जाऊँ, जितने घंटे लगें, लगा लूँ। मैं रेडियो आन करके कंट्रोलर को सूचना देने लगा, “रोजर, ईको नाइन, ईको नाइन।"

“रोजर, रोजर।"

“मैं काम पर आ रहा हूँ, इस वक्त शैफर्ड बुश के पास हूँ।"

“बेस को ही आ जा, काम बहुत ठंडा है, कोई बीटर्स नाम की औरत तेरे लिए दो बार फोन कर चुकी है।"

मैंने कल ही बीटर्स को अपनी कम्पनी का कार्ड दिया था। अवश्य पीटर वापस आ घुसा होगा। मैं सोचने लगा, अगर वह वापस आ भी गया हो तो मैं क्या कर सकता था। मेरे से तो अपनी मुश्किलें ही नहीं सम्भाली जाती थीं। बीटर्स करती रहे फोन, अब मैं उसकी ओर नहीं जाऊँगा। पहले ही, मेरे काम का पूरा दिन खराब हो गया और आधा दिन आज का भी गया।

पोर्ट बैलो रोड पर मुझे कोई काम नहीं था, पर मेरी कार उधर मुड़ गयी। अवचेतन में शायद सोच रहा होऊँगा कि इन सड़कों पर खड़े होकर काम की प्रतीक्षा कर लूँगा। फिर, मुझे ख़याल आया कि सवेरे बीटर्स ने मुझे अपने फ्लैट की एक चाबी भी दी थी कि जब दिल हो, मैं आऊँ-जाऊँ। चाबी को मैंने अपनी चाबियों के गुच्छे में ही टांग लिया था। मैंने छल्ले को छुआ। उसमें बीटर्स के फ्लैट की चाबी पर उंगलियाँ फे्रीं। मैंने देखा कि मेरी कार रोबर्ट हाउस के करीब जा चुकी थी और अगले ही पल मैं चाबियों के संग खेलता बीटर्स के फ्लैट के सामने जा खड़ा हुआ था।

बीटर्स घर में नहीं थी। सुबह जैसे सब कुछ छोड़ा था, वैसा ही था। पीटर के आने का कोई चिह्न वहाँ नहीं था। अब तक मुझे कुछ-कुछ भूख भी लग आयी थी। मैंने फ्रिज खोला, वह खाली पड़ा था। दूध की बूंद तक नहीं थी। मैं सोचने लगा- अगर मैं कल रात उसके बच्चों को चिप्स आदि लेकर न देता, तो शायद बच्चों को भूखे ही सोना पड़ता। मेरा मन पसीज उठा। तीन बजे थे। बीटर्स पता नहीं कहाँ मारी-मारी फिरती होगी। और अगले आधे घंटे तक वह स्कूल के सामने होगी, बच्चों को लेने के लिए।

वह मुझे स्कूल के नज़दीक मिल गयी। मैंने हॉर्न दिया तो वह कार में आ बैठी। बैठते ही बोली, “मैंने तेरे लिए सन्देशा छोड़ा था, मिल गया?”

“हाँ, क्या बात है?”

“मुझे टोमी ने बताया कि पीटर अपने दोस्त लेकर तुझे खोज रहा है।"

“अच्छा!”

“हाँ, वह बहुत खराब आदमी है, मुज़रिम किस्म का। उसके दोस्त भी अच्छे आदमी नहीं।"

एकबार तो मैं डर गया कि अब क्या होगा। लेकिन, अपने अन्दर के डर को मैंने बीटर्स के सामने प्रकट नहीं होने दिया और उससे कहा, “बच्चे लेकर आ, हम टैस्को चलते हैं, कुछ शॉपिंग कर लें।"

“क्यों?”

“मैं तेरे घर गया था, तेरा फ्रिज बिलकुल खाली था।"

“कल मेरी बुक आ जाएगी, मुझे पैसे मिल जाएँगे।"

“कल तो दूर है, इन्हें तो आज कुछ खाने के लिए चाहिए।"

“तू इतना फिक्र न कर इंदर, ये गरीब माँ के बच्चे हैं और सख़्त जान हैं। तू फिक्र न कर।"

“ये दलील बाद में देना, वक्त हो रहा है, बच्चों को ले आ।"

वह स्कूल के अन्दर गयी और बच्चों को ले आयी।

वहाँ से हम टैस्को गये। उसके बच्चों के लिए और घर के लिए कुछ खरीद-फरोख़्त की। उसके बच्चों को मैंने चॉकलेट लेकर दिए तो वे मेरे आगे-पीछे मंडराने लगे। बड़ा डैनी छह-सात साल का था और छोटा जॉन चारेक साल का। मुझे वे बहुत प्यारे लग रहे थे। मैंने सोचा, अब इन्हें उतार कर मैं घर चला जाऊँगा और कल सुबह से ही दुबारा काम शुरू कर दूँगा।

उसके घर के सामने गाड़ी रोकी। सामान कार में से निकाला जिसे अकेले बीटर्स नहीं उठा सकती थी। उसकी मदद के लिए ऊपर तक चला गया। सामान रखकर लौटने लगा तो बीटर्स बोली, “इंदर, अन्दर आ, कुछ खाकर जाना। कुछ पी भी लेना। अन्दर आ।"

मैं अन्दर चला गया। भूख तो लगी थी, पर कुछ भी खाने का मूड नहीं था। समय भी नहीं था। मैं सैटी पर बैठ गया। बीटर्स ने मेरे आगे रात वाली व्हिस्की की बोतल लाकर रख दी। पहले मेरा दिल भाग जाने को कर रहा था, पर बोतल देखकर मुझसे हिला न गया। पहला पैग पिया और टेक लगाकर बैठ गया। दूसरे पैग के बाद मैंने टांगे मेज पर फैला लीं।

एक-दो बार मैंने उठने की कोशिश की। बीटर्स बोली, “आज यहीं ठहर जा, यहीं से काम पर चले जाना सवेरे।"

बच्चों को जल्दी सुलाकर बीटर्स मेरे पास आ गयी। वह बहुत खुश थी। मेरी ज़रूरत से अधिक तारीफ़ कर रही थी।


जिस बात का भय था, वही हो गयी। पीटर ने अपने दोस्त लेकर मेरी कार को घेर लिया। मैं जेईअर रोड से स्कोट्स रोड की ओर मुड़ा तो एक मैले-से कपड़ों वाला गोरा मेरी कार के आगे आकर खड़ा हो गया। उसके साथ दो आदमी और थे। थोड़ी दूरी पर खड़े पीटर को मैंने पहचान लिया। मैंने मन ही मन कहा, “इंदर सिंह, हो जा मार खाने को तैयार!” मैंने तुरन्त सोचा कि अब क्या करूँ? एक तो यह था कि कार दौड़ा कर ले जाऊँ। दूसरा यह कि रुक कर उनका सामना करूँ। कार दौड़ा ले जाने के लिए मैंने उसे गियर में डाला कि तभी मुझे ख़याल आया कि अगर आज भाग गया तो कल फिर ये यहीं पर होंगे। और मेरा काम भी यहीं पर था। मैंने कार रोक ली। एक बड़ी-सी लोहे की रॉड जिसे मैंने ऐसे मौकों पर हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए सीट के साथ रखा हुआ था, को हाथ में पकड़ लिया और धीमे से दरवाजा खोला और खुला ही रहने दिया। कार भी बन्द नहीं की, ताकि ज़रूरत पड़ने पर दौड़ा सकूँ। एक गोरा जो अधिक आयु का था, मेरी ओर बढ़ा। मुझसे पूछने लगा, “क्या नाम है तेरा?”

“तू बता, तेरा क्या नाम है? तूने मुझे क्यों रोका है?”

“मेरा नाम बिल्ल है। मैं चाहता हूँ, तू पीटर और बीटर्स के बीच में न आये। वह उसकी औरत है।"

“पर बीटर्स ऐसा नहीं कहती। उसने तो इसके खिलाफ़ कोर्ट के आर्डर भी ले रखे हैं।"

“यह तेरा मसला नहीं।"

“मेरा मसला तो नहीं था, पर बीटर्स ने बना दिया है। वह एक बार कह दे, मैं एक तरफ हो जाऊँगा।"

“तू हमें नहीं जानता, तुझे एक तरफ तो हम कर ही देंगे।"

उसके शब्दों में भरपूर धमकी थी। उसके दूसरे साथी मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूरे जा रहे थे। आसपास लोग तो थे ही नहीं, जो मेरी मदद कर सकते। मैंने रॉड को हवा में लहराया और जवाबी धमकी में कहा, “बिल्ल, इस वक्त तो तू मेरी कार के आगे से हट जा, फिर मुझे दोष न देना। और जा जो करना है, कर ले।" कहकर मैं कार में बैठ गया। मैंने कार को थोड़ा आगे बढ़ाया तो बिल्ल थूकता हुआ एक ओर हो गया। उसके साथी गालियाँ बकने लगे। मैं भी गालियाँ बकता आगे बढ़ गया। मैंने शुक्र मनाया कि घड़ी टल गयी।

यह घटना मेरे लिए बहुत डरावनी थी। इसका अर्थ था कि मेरे ऊपर किसी भी वक्त हमला हो सकता था। सबसे पहले तो मैंने काम पर पहुँच कर कंट्रोलर जैक को सारी बात बताई। जैक ने कम्पनी के मालिक पैट मलोनी को बताया। पैट मलोनी ने इसकी शिकायत पुलिस को कर दी कि कुछ अनजान आदमियों ने कम्पनी के ड्राइवर को धमकाया है। पुलिस का एक अफसर मेरे पास आकर कागजी कारवाई करके चला गया। इससे अधिक वे कर भी नहीं सकते थे। पीटर और बीटर्स वाली कहानी मैं छिपा गया था।

अब मैं बहुत चौकस होकर रहने लगा था। खास तौर पर बीटर्स के घर की ओर जाते हुए और उसके घर से लौटते हुए। मुझे यह भी भय सताने लगा कि कहीं वह मेरी कार को ही कोई नुकसान न पहुँचा दें।

कुछेक दिन तो मैंने बहुत ही डर कर गुजारे। एक दिन, बिल्ल मुझे हैरो रोड पर जाते हुए दिखाई दिया। मैंने कार उसके पीछे लगाकर उसे रोक लिया। मैंने उसके सामने खड़े होकर कहा, “बिल्ल, उस दिन तू बहुत तकलीफ़ में था, बता तेरी क्या सेवा करूँ।" “यंगमैन, तेरा मेरा कोई झगड़ा नहीं, मैं तो पीटर के कहने पर आया था। जा, ऐश कर।"

डर से उसकी आवाज़ कांप रही थी।

उस दिन के बाद मैं निश्चिंत हो गया। पहले मैंने बीटर्स को कुछ नहीं बताया था। उस दिन के बाद ही सारी बात उसे बताई। वह कहने लगी, “पीटर, अपराधी किस्म का आदमी है, जेल में भी रहा है वह, पर डरने वालो को ही वह डराता है।"

मैं बीटर्स के पास अक्सर रात में ठहर जाता और वहाँ से अगली सुबह काम पर चला जाता। वहाँ से काम भी नज़दीक ही पड़ता था। बीटर्स के साथ संबंध रखने जहाँ पहले मुझे बुरे लगते थे, अब उतने बुरे नहीं लग रहे थे। उसका साथ मुझे कई प्रकार का लुफ़्त देता। वह हर समय खुश रहती। उसका चेहरा ठीक हुआ तो वह बहुत खूबसूरत लगने लगी। लगता नहीं था कि वह दो बच्चों की माँ होगी।

बीटर्स फ्लैटों में रहने वाले पड़ोसियों की बातें मेरे साथ करने लगती। जेईअर रोड पर रहते लोगों की नई-नई खबरें सुनाती। वह बताने लगती, “बारह नंबर में जुआइस रहती है, चार बच्चे हैं इसके, चारों काउन्सल ले गयी। दिन में दस-दस आदमी आते हैं इसके पास, कइयों ने इसकी शिकायत कर रखी है, पर कोई कुछ नहीं कर रहा।" “ऊपर वाली मंजि़ल पर जिही मैरी रहती है, इसे सौ तक गिनना नहीं आता।" “छब्बीस नंबर वाली बारबरा का पहला लड़का आयरिश है, दूसरा किसी काले से, लड़की किसी चीनी से है और सबसे छोटा टर्किश आदमी से। सब उसे यू.एन.ओ. कहते हैं।" “आखिरी घर में माग्रे‍र्ट रहती है। उसके लड़के ने साँप पाल रखा है। मुझे साँपों से बहुत डर लगता है।" सारे मुहल्ले से उसने इस तरह बातों-बातों में ही मेरी जान-पहचान करवा दी थी। वह सवेरे कोई चलताऊ-सी अखबार लाती और ख़बरों की चीर-फाड़ करने लगती। टेलीविज़न के सीरियल देखती और उनके पात्रों को असली ज़िन्दगी से जोड़-जोड़ कर देखने लगती।


एक शाम मैं बीटर्स के घर गया। वह बहुत बेचैन थी। मैंने कारण पूछा तो बोली, “आज पीटर स्कूल के पास मिला था। मुझ पर रौब डाल रहा था। कल सुबह ज़रा मेरे संग चलना।"

अगली सुबह बीटर्स मुझे लेकर एजवेअर रोड की ओर चल पड़ी। छोटी सड़कों पर कार घुमाने के लिए कहते हुए बोली, “इस वक्त वह यहाँ दूध बाँटता घूम रहा होगा।" तभी, सामने से एक दूध वाली फ्लोट आती दिखाई दी। यह पीटर ही था।

बीटर्स उसे देख मुझसे बोली, “इसके पास जाकर रोक तो ज़रा।"

मैंने फ्लोट के बराबर कार रोक दी। बीटर्स गालियाँ बकती हुई उसकी ओर दौड़ी। पीटर फ्लोट छोड़कर भाग खड़ा हुआ। बीटर्स पीछे-पीछे दौड़े जा रही थी और ऊँची आवाज़ में गालियाँ बके जा रही थी। पीटर इतना तेज दौड़ा कि उसने पीछे मुड़ कर भी न देखा। बीटर्स इतने गुस्से में थी कि मैं उसे पकड़ कर वापस लाया। और पीटर उसकी ज़िन्दगी में से हमेशा-हमेशा के लिए निकल गया।

बीटर्स से मैं काफी घुल-मिल गया था। वह मेरी ज़रूरत बन चुकी थी। उसके बच्चे हमारे संबंधों के बीच कभी नहीं आये थे। कभी-कभी मैं दिन में भी उसके घर चला जाता। कई बार वह घर में नहीं होती। अब उसका छोटा बेटा भी सवेरे नर्सरी में जाने लगा था। मैं सोचता कि वह खाली होने के कारण इधर-उधर निकल जाती होगी। मैं पूछता तो कह देती- शीला के घर गयी थी। उसकी सहेली शीला से मैं मिल चुका था।

एक दिन बीटर्स उदास थी। मैंने कारण पूछा तो उसने कुछ न बताया। फिर, वह हर रोज़ उदास रहने लगी। मुझे लगा कि वह कोई बात करना चाहती थी। मैंने पूछा तो टाल गयी। फिर, एक दिन वाइन की बोतल पीकर बोली, “इंदर, मुझे एक बात करनी है।"

“कह।"

“तेरे से पहले मेरी ज़िन्दगी में कोई और भी था।"

“कौन? पीटर?”

“नहीं, कोई और था।"

“फिर...।"

“वह पीटर से डरता था, अब पीटर जा चुका है तो वह अपना हक जता रहा है।"

“फिर, तू क्या कहना चाहती है?”

“मुझसे उसको मना करते नहीं बन रहा, उसके हक से मुकरा नहीं जा रहा इंदर। सच, मैं बहुत परेशान हूँ।"

“कौन है वह?”

“टोमी।"

“कौन टोमी?”

“शीला का पति, जो कभी-कभी स्कूल के पास मिलता है।"

“जो हकला कर बोलता है।"

“हाँ, वही।"

“फिर बीटर्स, तू क्या चाहती है?”

“इंदर, मुझे खुद नहीं पता।"

“तेरा रास्ता साफ कर दूँ? मैं तुम्हारे बीच से हट जाऊँ?”

“हाँ, प्लीज।"

उसने बच्चे की तरह सिर हिलाया।

मैं गुस्से में उठा। मुक्का दीवार में मारा और बोला, “इंदर सिंह ! तू उल्लू का पट्ठा !”