रेत भाग 4 / हरज़ीत अटवाल

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‘ग्रैश्म नाइट क्लब’ किसी समय उत्तरी लंदन में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुआ करता था। आरंभ में यह एक आयरिश क्लब था, लेकिन यहाँ अंग्रेज भी खुश होकर आया करते। थोड़े-बहुत काले भी होते। एशियन तो बहुत ही कम आते। इस इलाके में एशियन कम ही थे। जो थे, वे नाइट क्लबों के शौकीन नहीं थे क्योंकि क्लबों में पैसे खर्च होते थे और झगड़ों का डर भी रहता।

हौलोवे रोड पर स्थित यह क्लब वीक-एंड पर ही खुलता। मतलब– शुक्रवार, शनिवार और इतवार। शाम के छह बजे से लेकर प्रात: चार बजे तक का समय था इसके खुलने का। कानूनी तौर पर तो रात दो बजे बन्द हो जाता, पर लोग प्रात: चार बजे तक बैठे रहते। बाहर से देखने पर यह इतना बड़ा नहीं लगता था, लेकिन अन्दर जाने पर पता चलता था कि यह बहुत बड़ा क्लब था, जिसमें कई हजार लोग डांस आदि का आनन्द उठा सकते थे।

अन्दर प्रवेश करते ही बायें हाथ पर टिकट खिड़की थी। फिर कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर अन्दर जाने के लिए चौड़े दरवाजे थे, जिनके आगे तीन-चार बाउंसर खड़े रहते ताकि अगर कोई गड़बड़ करे तो उसे उठाकर बाहर फेंक सकें। अगर कोई ठीक से कपड़े पहनकर न आया हो तो उसे रोक सकें। दरवाजे से अन्दर घुसो तो दायें हाथ डिस्को हॉल था, जहाँ तेज ताल वाला संगीत चल रहा होता। नौजवान ही इस हॉल में ज्यादा हुआ करते। चलते संगीत में डिस्क-जोकी अपने कमेंट्स देता रहता। नाचने वालों के भीतरी जोश को तीखा करता रहता।

यहीं से, बायीं ओर बालकॉनी के लिए सीढ़ियाँ थीं। बालकॉनी में चिप्स आदि तथा अन्य खाने-पीने की चीजों की दुकान थी और बालकॉनी में खड़े होकर पूरे हॉल का नज़ारा देखा जा सकता था। अगर आप डिस्को हॉल में नहीं जाना चाहते तो सीधा रास्ता बड़े हॉल की ओर जाता था। हॉल में मेज-कुर्सियाँ भी लगी थीं। खड़े-खड़े बियर पीने का भी प्रबंध था। बायीं ओर एक लम्बी बार थी। उससे आगे, डांस फ्लोर। डांस फ्लोर से आगे एक स्टेज था, जहाँ संगीत चलता था। अगर डी.जे. चलाना हो तो भी, अगर किसी ग्रुप ने गाना गाना हो, तो भी। अधिकतर कोई मशहूर ग्रुप ही बुलाया जाता। लोगों को इकट्ठा करने के लिए किसी नामी ग्रुप को बुलाना पड़ता। वह ग्रुप कुछ अपने और कुछ दूसरे ग्रुपों के ताजा गाने पेश किया करता। अधिकतर गाने उनकी अपनी मर्जी के हुआ करते। कभी-कभी फरमाइशी गीत भी गा देते। ग्रुप के सभी मेंबर बारी-बारी से गीत गाते ताकि मुख्य गायक थोड़ा दम ले सके। जैसा गीत चल रहा हो, वैसे ही लोग उठकर डांस फ्लोर पर नाचने के लिए चले जाते। किसी की मन-पसन्द धुन होती तो नाचने से खुद को रोक पाना उसके लिए मुश्किल हो जाता। जैसे-जैसे रात गहराने लगती, गाने वाले प्रेम की गहराइयों की बात करने लगते। संगीत की तान धीमी होती तो डांस भी धीमा हो जाता। जोड़े एक-दूजे को बांहों में लेकर झूमते हुए नृत्य कर रहे होते। रोशनियाँ बन्द कर दी जातीं। कभी ऐसा संगीत भी बजने लगता कि सारा हॉल ही डांस फ्लोर पर आ जुटता। कभी-कभी लोग गोल-दायरा बनाकर एक-दूजे का हाथ थामे नृत्य करते। रात के दो बजे नेशनल ऐंथम के साथ नृत्य समाप्त होता। ‘रानी अमर रहे’ वाला कौमी तराना सभी क्लबों में नहीं गाया जाता। कम से कम ‘ग्रैश्म’ में तो नहीं ही। यहाँ आयरिश कौमी तराना ही गाया जाता क्योंकि यहाँ अधिकतर आयरिश ही होते थे।

मैं इस क्लब में जाता रहता था और इससे अच्छी तरह से परिचित था। नाचना मुझे आता नहीं था। बस, टांगें-बाहें हिलाकर काम चला लेता था। ‘हैमरस्मिथ पैले’ में युवा वर्ग अधिक आता। जब तक एक इंडियन लड़की एक जाने-माने ग्रुप के साथ यहाँ आती रही, मैं निरंतर ‘हैमरस्मिथ पैले’ में जाता रहा। वह ताशा बजाया करती थी और कभी-कभी कोई गीत भी गाती। संगीत खत्म होने पर मैं उसे खोजता रहता ताकि उसका आटोग्राफ ले सकूँ या कोई बात ही कर सकूँ। लेकिन, वह छिप जाया करती। जब वह स्टेज पर होती, मुझसे आँखें मिलते ही शरमा जाती। यहाँ भी इंडियन लड़के कम ही होते थे।

उस दिन बीटर्स को नाइट क्लब लेकर जाना था। मैंने ‘ग्रैश्म’ में जाना ही पसन्द किया। ‘ग्रैश्म’ का माहौल मुझे अच्छा लगता था। हमें देर हो गयी थी जिसके कारण टिकट भी मंहगा मिला। घर से निकलते हुए हमें पहले ही देर हो गयी थी, उस पर बीटर्स को स्कर्ट पसन्द नहीं आ रही थी जबकि इस बारे में उसने कभी परवाह नहीं की थी कि उसने क्या पहन रखा है। जब उसने कैथी की स्कर्ट उधार मांग कर पहनी, तभी हम जा पाये। पहुँचने में भी आधा घंटा लग गया। हम ‘ग्रैश्म’ पहुँचे तो संगीत की महफिल पूरे यौवन पर थी।

पहले हम डिस्को हॉल में गये। बीटर्स आज एक कमसिन लड़की की तरह बात कर रही थी। कंधे झटक कर नृत्य करते समय अधिक जोर लगाती। फिर हम मुख्य हॉल में गये। हॉल भरा पड़ा था। बीटर्स एक खाली पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी और मैं बियर लेने वालों की कतार में जा खड़ा हुआ। भीड़ इतनी थी कि बियर लेने के लिए पन्द्रह-बीस मिनट प्रतीक्षा करनी पड़ रही थी। कतार में खड़ा मैं देख रहा था कि बीटर्स को नृत्य के लिए दो-तीन निमंत्रण आये, पर वह मेरी ओर देखती, हँसती और ‘न’ करती रही। बीटर्स आज सुन्दर भी बहुत लग रही थी। दो बच्चों की माँ तो वह वैसे भी नहीं लगती थी। मैं सोचने लगा कि कहीं कोई उसे मुझसे छीनकर ही न ले जाए। फिर किसी के साथ मुझे लड़ना पड़े।

बीटर्स अच्छा नाच लेती थी। उसे बाल-डांस अच्छी तरह आता था। स्कूल में सीखा होगा। वह मुझे नृत्य के बारे में बताने की कोशिश कर रही थी। शोर इतना था कि कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। डांस खत्म होने पर मैं वापस बैठकर बियर पीने लगा और बीटर्स बाथरूम में चली गयी। तभी मेरे पास एक सुन्दर-सी लड़की आ खड़ी हुई। उसने जांघों तक स्कर्ट पहन रखी थी। उसने मुझे अपने संग नाचने का न्यौता दिया। न्यौता देते समय वह अपनी जांघ मेरे करीब लाकर हिलाने लगी थी। मैं उठकर खड़ा हो गया। उसकी जांघें और छातियाँ बीटर्स से भारी थीं। उसने जिस लहजे में मेरा साथ मांगा था, मैं इन्कार नहीं कर पाया। मैं उसके संग चल दिया। नाचते हुए वह लड़की अपने बारे में बताती रही, पर कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। बीटर्स लौट आई। वह मेरी ओर देखे जा रही थी। उसका चेहरा गुस्से में तना पड़ा था। मैंने दूर से हाथ हिलाया तो वह थोड़ा-सा मुस्कराई। दो गानों तक मैंने उस लड़की के साथ डांस किया। डांस खत्म कर लड़की अपने दोस्तों के समूह में जा मिली और मैं बीटर्स के पास आकर बैठ गया। मैंने उसे चूमा तो वह ठीक हो गयी।

अंत में, आयरिश नेशनल ऐंथम चला और संगीत का शोर खत्म हुआ। कानों को कुछ राहत मिली। अब लोगों की हँसी और बातों का शोर-शराबा रह गया था, जो कि पहले की अपेक्षा कुछ भी नहीं था। बीटर्स बैंड के सदस्यों से मिलना चाहती थी। उनकी कैसेट्स उसके पास थी। हम स्टेज के करीब गये तो वे सभी हमसे बड़े चाव से मिले। मुझसे मिलकर वे और भी खुश थे कि एक इंडियन भी उनका फैन था।

हम घर लौटे तो सुबह चार बजने वाले थे। बच्चे कैथी के पास थे। इस वक्त उन्हें जगाना हमने उचित नहीं समझा।


मुझे बीटर्स में ऐसी कोई चीज दिखाई नहीं देती थी कि मैं उसके साथ बंधा रहना चाहता। अपितु, मेरे अन्दर से कोई आवाज़ उठती रहती कि इसके साथ मैं अपना वक्त बर्बाद कर रहा हूँ। मुझे इससे बढ़िया लड़की दोस्ती के लिए मिल सकती थी। फिर भी, मैं बीटर्स की ओर झुका हुआ था। शायद, इसलिए कि बीटर्स मुझे यूँ ही नहीं मिली थी, उसे प्राप्त करने के लिए कैसी मुश्किलें मेरी राह में आ खड़ी हुई थीं, उन्हें सर करने में मैंने जो कुछ किया, वही ‘कुछ’ बीटर्स की ओर मेरे झुकाव के लिए काफी था। जब बीटर्स ने टौमी के बारे में बताया था, तो मुझसे सहन नहीं हुआ था। टोमी उसकी सहेली का पति था। उसके साथ हमदर्दी रखने की एवज़ में नाजायज़ संबंध बनाना चाहता था। मैंने बीटर्स से पूछा था, “क्या टोमी शीला को छोड़कर तेरे संग रहना चाहता है?”

“नहीं, वह शीला को नहीं छोड़ सकता।"

“फिर, तुम दोनों को साथ-साथ रखना चाहता है?”

“नहीं, शीला को छोड़ेगा पर धीरे-धीरे।"

“बीटर्स, पीटर से लड़ाई किये बग़ैर मैं तेरे तक पहुँचा होता तो तुझे टोमी के पास जाने देता।"

“इंदर, वह बहुत अच्छा आदमी है।"

“फिर तेरे साथ क्यों नहीं खड़ा हुआ? डरता क्यों घूमता था? बीटर्स, पहले तो मैं तेरी खातिर लड़ा था, अब मैं अपनी खातिर लड़ूंगा और टोमी की अक्ल ठिकाने लगा दूँगा। लड़ते समय मेरे पास हमदर्दी नहीं हुआ करती।"

“नहीं इंदर, तू ऐसा नहीं कर सकता। मैं उसे समझा दूँगी।"

इसके बाद बीटर्स के मुँह से दुबारा टोमी का नाम नहीं सुना। इसके बाद मैंने टोमी को कहीं देखा भी नहीं। लेकिन, यह बात मैंने अपने आपको समझा ली कि बीटर्स के साथ रिश्ता लम्बे समय तक नहीं रह सकता।

जब उसके बच्चे मेरे से कुछ अधिक ही लिपटने-चिपटने लगे तो मैंने बीटर्स से कहा, “चल, एक बच्चा कर लेते हैं।"

वह कई बार मेरे इस प्रस्ताव को दरकिनार कर चुकी थी, पर एक दिन कहने लगी, “मेरे दोनों बच्चे दो अलग-अलग मर्दों से हैं, और अब तीसरा, तीसरे से होगा। बन गयी न खुद-ब-खुद यू.एन.ओ.!” कहकर वह हँसी। फिर बोली, “इससे भी बड़ी बात यह है कि तेरे बच्चे का रंग अलग होगा, और ये उसे स्वीकार नहीं करेंगे, किसी भी कीमत पर नहीं।"

मेरा दोस्त तरसेम फक्कर कभी-कभी अच्छी बात कर जाता था। वह कहा करता कि जो मिली-जुली नस्ल के बच्चे आएँगे अर्थात गोरों और कालों के साझे बच्चे, वे नस्लवाद को खत्म करेंगे। बीटर्स को यह दलील देने का कोई फायदा नहीं था। मैंने दोबारा यह बात ही नहीं की। एक बार विवाह करवाने की बात चली तो उसने कहा, “क्या कागज का एक टुकड़ा– विवाह का सर्टिफिकेट– दो बंदों को बांध सकता है?”

अब तक बीटर्स के आसपास के लोग मेरे परिचित ही नहीं, दोस्त भी बन चुके थे। उसकी एक सहेली ऐना अपने पति से लड़-झगड़ कर कुछ दिन उसके पास रह गयी थी। उसका पति शॉन मेरा ऐसा दोस्त बना कि बाद में भी कई वर्षों तक दोस्ती की गरमाहट के साथ मिलता रहा। उसके पहले घर की पड़ोसन मैरी मुझे राह में मिलती तो बताने लगती, “पीटर तुझे पसन्द नहीं करता। कहता है, एक पाकि (पाकिस्तानी) जॉन को पाल रहा है।"

इस पर मुझे गुस्सा भी आता और हँसी भी।

बीटर्स को काउन्सल ने दूसरा घर दे दिया था। पीटर की समस्या के चलते कुछ जल्दी मिल गया। वैसे, उसने घर बदलने की अर्जी बहुत पहले से दे रखी थी। था तो यह भी दो बैड-रूम वाला फ्लैट ही, पर इसके साथ बगीचा भी था। ‘बगीचा’ सुनने में अच्छा ज़रूर लगता, पर बीटर्स ने इसकी देखभाल कभी नहीं की थी। बागवानी का उसे कभी कोई शौक नहीं रहा था। गर्मियों में वहाँ घास उग आती और सर्दियों में खुद ही मर जाती।

इस फ्लैट की ऊपरली मंजि़ल पर वैस्ट इंडियन परिवार रहता था, जो हर वक्त शोर भरा संगीत लगाए रखता। उनके शैतान-से बच्चे शरारतें ही किये जाते। बीटर्स के बराबर वाले फ्लैट में एक आयरिश लड़की कैथी रहती थी। वह आयरलैंड से भागकर यहाँ आई थी और यहीं बस गयी थी। आयरलैंड में कुंआरी लड़की के बच्चा ठहर जाना एक बड़ा गुनाह है और फिर गर्भपात तो है ही कानूनी जुर्म ! कैथी घर से भागकर अपने बॉय-फ्रेंड के साथ यहाँ आई थी। बॉय-फ्रेंड छोड़ गया तो वह अकेली रह गयी। अकेली ने ही पॉल को जन्म दिया। जहाँ बीटर्स दब्बू स्वभाव की थी, वहीं कैथी लड़ाकू किस्म की औरत थी। किसी से भिड़ने से डरती नहीं थी। मर्दों के साथ झगड़ा करते समय हाथापाई पर उतर सकने वाली औरत थी। शायद यही कारण था कि उसके पास कोई मर्द-दोस्त नहीं था। मेरे देखते एक-दो आये भी, पर चले गये। मुझसे कैथी बहुत प्यार से पेश आती।

बीटर्स और वह एक-दूसरे के लिए काफी मददगार थीं। उसने बाहर जाना होता तो अपने बेटे पॉल को बीटर्स के पास छोड़ जाती। ऐसे ही, कैथी भी डैनी और जॉन को सम्भाल लेती थी। कई बार हम तीनों इकट्ठा बैठकर दारू भी पीते। ज्यादा पीकर वह गन्दे लतीफे सुनाने लगती। मुझसे कई बार कहती, “इंदर, मेरे लिए कोई मर्द तलाश, अपने जैसा। गोरे तो धोखेबाज होते हैं, इस बार मैं इंडियन ट्राई करना चाहती हूँ।"



उस दिन मुझे कंट्रोलर का कार-रेडियो पर सन्देश मिला। उसने बताया कि तेरे भाई का फोन आया था। कोई ज़रूरी काम था। मैं थोड़ा चिंतित हो उठा कि प्रितपाल का फोन क्यों आया? इंडिया में सब ठीकठाक हो। या फिर, यह भी हो सकता था कि साउथाल गये मुझे बहुत दिन हो गये थे, फोन भी नहीं कर सका था, मेरी राजी- खुशी जानने के लिए फोन किया होगा। वक्त मिलने पर मैंने फोन किया, “हाँ भई छोटे, फोन किया था?”

“तू तो हमें भूल ही गया है। अच्छा गोरी ने तुझे फँसाया।"

“नहीं यार, बिजी बहुत था।"

“मैं कितनी बार तेरे फ्लैट में गया।"

“मैं काम पर ही रहा।"

“मक्खन कह रहा था कि उसने तो तुझे देखा ही नहीं कई दिनों से।"

“मैं अंधेरे-सवेरे ही घर लौटता हूँ।"

“चल छोड़ बड़े, घर आ कभी, सूबेदार का फोन आया था। कहता है– तेरे से बात करनी है। बच्चे भी तुझे याद करते हैं।"

“वीक एंड पर आऊँगा।"

मैं भी हैरान था कि कितने दिन प्रितपाल से मिले बिना गुजर गये। करीब दो हफ्ते बाद मैं उसके घर का चक्कर लगा ही लिया करता था। मुझे अपने भतीजों और शैरन की याद आने लगी। बापू जी का फोन भी आया होगा। उनके फोन का तो मुझे पता था कि वे यही कहेंगे कि मैं जल्दी विवाह करवाऊँ। इस बार, हो सकता था कि प्रितपाल ने उनके कान भरे हों, बीटर्स के बारे में या कुछ और ही।

मैं साउथाल गया। वे सब मुझे इस तरह मिले, जैसे बरसों बाद मिले हों। दोनों भतीजे अपने शिकवे कर रहे थे और शैरन के अपने गिले थे। यद्यपि शैरन मेरे लिए छोटी थी क्योंकि प्रितपाल मेरे से छोटा था, पर शैरन भी और प्रितपाल भी, दोनों मेरे साथ ऐसा व्यवहार करते जैसे वे मुझसे बड़े हों। वे मेरा बहुत फिक्र करते। मैं तो लंडा चिड़ा था, मेरा क्या था। मुझे उनको लेकर यही फिक्र लगी रहती कि मेरे कारण उनके घर में किसी किस्म की समस्या खड़ी न हो। प्रितपाल मेरा भाई ही नहीं, दोस्त भी था। मेरी खातिर वह बहुत कुछ कर जाता। मैं उदास होता तो मेरे पास बैठ जाता और काम से छुट्टी कर लेता। मैं कोई गलत काम करता तो एक बाप की तरह मेरे ऐबों को छुपा जाता। मेरी खातिर वह शैरन की उपेक्षा तक कर जाता। ऐसी ही कुछ बातें थीं जो मेरे मन में रहती थीं, जिनके कारण मैं उनके घर कम ही जाया करता। शैरन कहने लगी, “भाजी, आपकी रोटी, आपके कपड़ों, आपकी सेहत की हमें बहुत चिंता रहती है। आप फ्लैट बेचकर घर ले लो और चाबी मुझे दे दो। मैं घर को सम्हालूँगी, जब तक सम्हालने वाली नहीं आ जाती।"

“वो फ्लैट बेच दे यार बड़े! कितना फर्क है प्राइस का, मेरे लोग हैं कुछ।"

“सोचा तो मैंने भी है कई बार, फ्लैट का तो ग्राहक भी है मक्खन, पर टाइम ही नहीं मिल पा रहा।"

“मेरे पास टाइम ही टाइम है, बता कैसा घर चाहिए, कहाँ चाहिए?”

“छोटे, सच्ची बात कहूँ, मेरा कुछ भी करने का मूड नहीं। तेरी जो मर्जी हो, कर दे, तू ही तलाश दे, इस वाले को सेल पर लगा दे।"

“यह तो हो जाएगा... इंडिया फोन कर ले। गाँव में एस.टी.डी. लग गयी है, वो बुला देते हैं।"

“मुझे पता है, उन्होंने क्या कहना है। फिर तूने भी कहा होगा कुछ मेरे खिलाफ।"

“मैंने तो कुछ नहीं कहा, पर तूने तो गोरी के घर जाकर ही डेरे लगा लिए।"

“नहीं, नहीं । मेरा काम ही उधर है।"

“काम तो तेरा काफी देर से उधर है, चुप करके विवाह करवा ले अब।"

“बाहर दूध सस्ता मिलता है यार, क्यों गाय खरीदने के लिए कहता है।"

“तेरा दिल नहीं भरा अभी गोरियों से? बुढ़ापे के समय ये गोरियाँ काम नहीं आतीं, उस वक्त बन्तो-सन्तो ही सही उतरेंगी।"

“बन्तो-सन्तो भी इस मुल्क में आकर बदल जाती हैं। कह देती हैं – मी डोंट लैक यू।"

“बड़े, यार विवाह करवा ले। जल्दी करा ले। तुझे अकेले को देखकर मेरा मन बहुत खराब होता है, रीयली यार!”

“सच बात तो यह है कि अब विवाह करवाने को दिल नहीं करता। इतना समय हो गया अकेले रहते हुए।"

“अकेला कहाँ है तू? गोरी की बगल में तो घुसा रहता है।"

“यह तो खाली मुँह को गाजरें वाली बात है।"

उसकी विवाह वाली बात मैंने फिर टाल दी। मेरे तीन-चार मित्र अकेले ही रहते थे। उनके जीने के ढंग से मैं बहुत प्रभावित होता। उनकी ज़िन्दगी अपनी मर्जी की होती। मैं प्रितपाल की ओर देखता कि उसे पत्नी और बच्चों की मर्जी का भी ध्यान रखना पड़ता है। मेरे दोस्त कहते कि उन्हें तो अकेले ही नींद आती है। किसी के साथ तो वे सो ही नहीं सकते थे। मेरा हाल भी ऐसा ही था। पर बीटर्स के साथ रहकर मेरी आदत बदल गयी थी। अब मैं अकेला नहीं सो सकता था। यदि मेरे संग बीटर्स न होती तो खूब शराब पीने के बाद ही मुझे नींद आती।


मुझे प्रितपाल ने बहुत कहा कि मैं उनके यहाँ रहूँ, पर मैं किराये पर रहने लगा। फिर शीघ्र ही अपना फ्लैट खरीद लिया। उस समय खरीद तो मैं घर भी लेता, पर फ्लैटों में रहने की दुश्वारियों का मुझे पता नहीं था। एक दूसरे की निजता में सीधा दख़ल होने लगता है। मेरे एक ओर इटालियन जोड़ा रहता था, जिनके यहाँ पार्टी पर पार्टी होती रहती। इतना शोर होता कि सोना कठिन हो जाता। दूसरी ओर कालेज के विद्यार्थी रहते थे जिनके सोने का कोई वक्त ही नहीं था। जब वे आते तो उनका दरवाजा इतने ज़ोर से खड़कता कि सारा फ्लैट ही हिल जाता। अगर मैं शराब पीकर सोया होता तो किसी चीज़ का असर न होता, नहीं तो बहुत तकलीफ़ होती। फ्लैट बढ़िया थे और इनकी अब कीमतें भी बढ़ गयी थी। इनमें से कोई बिकने के लिए लगता तो तुरन्त बिक जाता, अधिक देर ग्राहक की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती।

मेरे फ्लैट का ग्राहक तो पहले ही खड़ा था– मक्खन। मक्खन की इन फ्लैटों के नीचे शराब की दुकान थी। वह स्वयं स्लौ में रहता था और वहीं से रोज़ आता-जाता था। कई बार कह चुका था कि फ्लैट बेचना हो तो बताना।

जब मैं इस फ्लैट में आया, तभी मक्खन से परिचय हुआ था। तरसेम फक्कर के साथ भी यहीं मुलाकात हुई थी। तरसेम फक्कर का तो फुर्सत का सारा समय मक्खन की दुकान में ही बीतता। घर जाने को उसका दिल ही नहीं करता था। मक्खन के पास खड़ा होकर उसकी छोटी-मोटी मदद भी कर देता, बदले में बियर पी लेता।

मैं भी जब कुछ खरीदने निकलता, मक्खन के पास खड़ा हो जाता। मक्खन तरसेम फक्कर के बारे में बताता, “साला बहुत कंजूस है। अच्छी-भली जॉब है पर पैनी नहीं निकालता। सब मुफ़्त में चाहता है। घरवाली भी तंग हुई पड़ी होगी, तभी तो डरता है घर जाने से।"

मक्खन ने एक गोरी से विवाह कर रखा था। उसकी पत्नी मैरी कभी-कभार ही दुकान में आती। दो-तीन बार ही मिला था मैं उससे। जब भी मिलती, बहुत प्यार से पेश आती। उनका विवाह बीस साल पहले हुआ था। मैरी स्कोटिस थी। उसका पति छोड़कर जा चुका था। चार बच्चे थे। उसके लिए उनको पालना कठिन था। मक्खन से मुलाकात हुई। मक्खन उन दिनों गैर-कानूनी ढंग से यहाँ रह रहा था। वह मैरी से विवाह करवाकर पक्का हो गया। बच्चों को पालने में उसने मैरी की मदद की। अब तो बच्चे बड़े होकर जा चुके थे। मैरी उम्र में कुछ बड़ी थी, पर मक्खन पर जान छिड़कती थी। एक दिन मक्खन की तारीफ़ करते हुए उसने बताया, “इस आदमी ने मेरा बहुत साथ दिया। ईयन हरामी तो मेरे पल्ले चार बच्चे डालकर भाग गया। मैंने तो यहाँ तक सोच लिया था कि बच्चों का नाम पेजली से बदल कर सिंह रख दूँ, मैं स्कूल में भी गयी, पर हैडमास्टर बोला कि इन्हें बड़े होने पर कई मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है, केवल सरनेम सिंह होने के कारण।" करीब दो बार बीटर्स मेरे फ्लैट में आई थी और रात बिता कर चली गयी थी। मैं डैनी और जॉन को मक्खन की दुकान पर ले गया था–चॉकलेट आदि दिलाने के लिए। मक्खन गोरे बच्चों को देखकर बोला, “मैंने मैरी के चार पाले, सब कुछ ठीक रहा। लड़कियाँ बड़ी हुईं तो बॉय-फ्रेंड ले आईं, घर में ही गन्द डालने लगीं। हम फिर भी पंजाबी हैं, मैंने तो हमेशा ही उन्हें अपनी बेटियाँ ही समझा, मैं शर्म से मरा जाता हूँ, अब क्या-क्या बताऊँ। बच्चे तो अपने ही होने चाहिएँ।"

प्रितपाल के पास फ्लैट की चाबी थी। मुझे खोजता हुआ आता तो मक्खन के पास खड़ा हो जाता था। लाजमी था कि मेरे बारे में भी बातें करते होंगे। मक्खन की बातों से ही मुझे इस बात की टोह मिल जाती थी। वह कहता, “इंदर पाल, इंडिया जा, पेरेंट्स की बात मानकर विवाह करवा ले। बेगाने बच्चे अपने नहीं बनते। और फिर, ये साले गोरे तो हैं ही हरामी। एक बार मैरी का छोटा बेटा शरारतें कर रहा था, मैं थप्पड़ मार बैठा। पड़ोसी गोरे मुझे पीटने पर उतारू हो गये कि पाकिस्तानी होकर गोरे बच्चे को थप्पड़ क्यों मारा।"

फिर, प्रितपाल ने उसके साथ फ्लैट का सौदा करना शुरू कर दिया। मुझे मक्खन ने दिल की बात बताते हुए कहा, “मैं तो खुद इंडिया जाना चाहता हूँ, विवाह करवाने।"

“बड़े भाई, टाइम ज्यादा नहीं हो गया?”

“नहीं यार, अभी पचास का नहीं हुआ। कबड्डी खेली है, लोहे जैसा ज़िस्म है साला। सच बात तो यह है कि अपना बच्चा खिलाने को मन करता है, अपना खून हो। बेगाने साले बहुत खिला लिए।"

“इस मैरी का क्या करेगा?”

“इसे स्लौ वाला घर दे दूँगा। तभी तो तेरा फ्लैट मांगता था।"

वह तरसेम फक्कर के साथ विवाह करवाने की योजनाएँ बनाता रहता। फक्कर उसे रिश्तों का लालच देकर शराब भी पीता रहता।


तरसेम फक्कर वाकई फक्कड़ आदमी था। उसे सिर्फ़ काम पर जाने की ही परवाह थी, नहीं तो वह किसी चीज़ की चिंता न करता। न पत्नी की, न बच्चों की, न घर की। उसे कैसा भी नशा करवा लो, वह हमेशा तैयार रहता। शराब, सिगरेट, गांजा, ज़र्दा, जो चाहे। कई बार कैमिस्ट से डोडे (अफीम) भी ले आता। थोड़ा नशे में आकर गाना गाने लगता। फिल्मी गीतों की किताब तो वह जेब में ही रखता था। कभी-कभी अंग्रेजी के गाने भी गाने लगता। काम से लौटकर सीधा मक्खन की दुकान पर पहुँचता। रात में शराब में धुत्त होकर घर लौटता। सवेरे उठकर काम पर चला जाता। वीक-एंड भी उसका नशे में ही बीतता। जब मैं इस फ्लैट में आया तो उसकी दोस्ती मुझसे हो गयी। मुझे फक्कर का यह फायदा था कि वह मीट बहुत उम्दा बनाता था। बस, मेरी कार उसे दिख भर जाये, सीधा मेरे फ्लैट में आ घुसता। जब मैं कभी बीटर्स के घर रुक जाता तो उसे बहुत तकलीफ़ होती। मक्खन हँसते हुए कहता, “इंदर पाल, तू क्यों बाहर रहता है? फक्कर बेचारे की मुफ्त की शराब, मुफ्त का मीट मारा जाता है।" फक्कर की पत्नी जीती भी कभी-कभी मिलती। मुझे वह बढ़िया औरत लगती थी। फक्कर पर हर वक्त खीझी रहती, लेकिन दूसरे लोगों के बीच उसे सही ढंग से बुलाती।

ईलिंग वाला मेरा यह फ्लैट बिका तो तरसेम फक्कर को बहुत दु:ख हुआ। वह कहता, “तूने यार फ्लैट नहीं बेचा, मेरा ठिकाना बेच दिया।" कभी कहने लगता, “इंदर पाल, अगर यारी निभाना चाहता है तो अपनी गोरी जैसी गोरी मुझे भी तलाश दे, बेशक बारह बच्चों वाली हो। कसम से, जीती तो मेरी ओर झांकती तक नहीं।"

मैं ईलिंग से ग्रीनफोर्ड चला गया। प्रितपाल ने यहीं पर घर पसन्द किया था। मैंने उसकी किसी बात में दख़ल नहीं दिया। मैंने सारा घर शैरन के हवाले कर दिया। वह समय निकालकर सफाई आदि कर जाती। मेरे कपड़े धो जाती। कपड़ों की कभी मुझे तंगी आयी ही नहीं थी। मैं प्रितपाल के घर की ओर जाता। उसके कपड़े उठाकर पहन लेता। मैंने कभी ज्यादा खरीदे भी नहीं थे। ग्रीनफोर्ड वाला घर तो ठीक ही था, पर अब मैं यहाँ तरसेम फक्कर जैसे दोस्त या बीटर्स, सांडरा जैसी सहेलियों को नहीं ला सकता था। शैरन और उसके बच्चों का पता नहीं होता था कि कब और किस वक्त आ जाएँ। घर लेने के काफी दिन बाद एक बार बीटर्स और उसके बेटे एक रात रहकर गये थे। वह भी तब, जब प्रितपाल और शैरन इंडिया गये हुए थे।

घर लेने से मेरी किस्त बढ़ गयी जिसके कारण मुझे काम की ओर अधिक ध्यान देना पड़ता। बीटर्स की ओर जाने के कारण मैं काम पर भी न जा पाता था और पैसे अलग खर्च होते। अगर कभी हमारे बीच कैथी आ बैठती तो वोदका की पूरी बोतल वह अकेली ही पी जाती। मैंने कई दिनों तक डटकर काम किया। बीटर्स की ओर न जा सका। हालाँकि मैं फोन करता रहता था। बीटर्स मेरे इतने दिन बाहर रहने के कारण नाराज थी। उसे खुश करने के लिए मैंने एक छुट्टी करने और पूरी रात उसके साथ बैठने के बारे में सोचा। रात भर जाग कर बातें करना, शराब पीना, बीटर्स को भी अच्छा लगता और मुझे भी।

मैं ईलिंग गया तो मक्खन को मिलने चला गया। तरसेम फक्कर वहीं था। उसने पहला प्रश्न यही किया–

“क्या हाल है तेरी बिल्लो का ?”

“उधर ही जा रहा हूँ, तूने चलना है ?”

“तू हमें कहाँ ले जाता है।"

“फिर हो जा तैयार।"

“मुझे कौन-सा घोड़े कसने हैं।"

मैं उसे अपने संग ले गया। बीटर्स के घर के करीब पहुँचे तो मैंने कहा, “ले भई फक्कर, आज तेरा उलाहना उतार दूँगा मैं।"

“कैसे ?”

“तुझे गोरी इंट्रोड्यूस करा दूँगा, आगे तेरी किस्मत।"

“कर दे यार यह अहसान मेरे पर, तेरे पैर धो कर पिऊँगा सारी उम्र।"

“बस, तू जरा कंजूसी कम दिखाना, कम से कम आज का दिन।"

“तू फिक्र न कर भाई मेरे!”

तरसेम फक्कर बहुत खुश था। हम बीटर्स के घर गये। वह तरसेम से पहले भी मिल चुकी थी। मैंने पहले एक बार उसे बताया था कि मेरे इस दोस्त का नाम तरसेम फक्कर है। ‘फक्कर’ शब्द पर वह खूब हँसी थी क्योंकि अंग्रेजी में फक्कर के अर्थ ही कुछ ऐसे थे। सैटी पर बैठते ही मैंने पूछा, “बीटर्स, कैथी घर में है तो बुला लेते हैं। उसे बंदे से मिलवा दूँ, रोज़ कहती रहती थी।"

बीटर्स कैथी को बुलाने चली गयी। तरसेम बोला, “तू तो सीरियस है, मैंने तो सोचा था, जोक कर रहा है।"

“कैसा जोक ! मैं तेरा बिचौलिया बनने जा रहा हूँ अब।"

“पहले क्यों नहीं बताया, मैं ज़रा कपड़े बदल आता।"

“हुंह, कपड़े बदल आता ! यहाँ क्या तेरा शगन पड़ने जा रहा है?”

बीटर्स वापस आई तो कहने लगी, “कैथी वहीं बुला रही है।"

मैं और तरसेम कैथी के फ्लैट में चल गये। उन दोनों का एक-दूजे से परिचय कराया। हमारे पीछे-पीछे बीटर्स भी आ गयी। मैंने तरसेम से कहा, “जा फिर दौड़ कर तीन बोतलें वोदका की और जूस क्रिप्स वगैरह ले आ, तेरे वाला मंतर आज पढ़ ही दें।"

तरसेम हवा हो गया और तुरन्त ही लौट आया। मैंने उसका बैग देखा– तीन की जगह वोदका की दो ही बोतलें थीं। ऊपर वाला सामान भी कम था। उसके जाने के बाद मैंने कैथी को उसके विषय में मोटी-मोटी जानकारी दे दी थी। वह बोली थी, “आदमी तो ठीक ही लगता है। बस, ज़रा धोने वाला है। लगता है, नहाता नहीं है।"

“इतना काम भी नहीं कर सकेगी?”

“क्यों नहीं। मैंने बड़े-बड़े धो दिये।" कहकर वह हँसी।

तरसेम सिगरेट की डिब्बी भी ले आया था। आमतौर पर वह सिगरेट कम ही पीता था, पर अब साथ मिल गया था शायद इसीलिए। उसके हाथ में सिगरेट की डिब्बी देखकर कैथी ने कहा, “यह तो मेरे वाला ब्राँड ही है, मैं भी मार्लब्रो ही पीती हूँ।"

“चलो, तुम लोगों की एक चीज तो आपस में मिली।"

सबने एक-एक पैग पिया। बीटर्स थोड़ा मूड में आकर मुझसे पूछने लगी, “इंदर, तेरे इस दोस्त का पूरा नाम क्या है?”

“तरसेम फक्कर।"

“क्या?”

“मिस्टर फक्कर।"

वे दोनों हँस-हँसकर लोट-पोट हो गईं। मैं और तरसेम भी हँसने लगे। कैथी बोली, “इंदर, तू मेरे लिए बंदा भी लाया तो फक्कर ही, इसे और कोई काम ही नहीं आता।"

वह फिर हँसी। मैं भूल ही गया था कि ‘फक्कर’ के मायने उसका मज़ाक उड़वा सकते थे। मैंने मौके को सम्भालते हुए कहा, “वैसे इसका नाम तो सैंडी है, बाकी तो हम मज़ाक में कहते हैं।"

दो बोतलें हँसी-हँसी में ही खत्म हो गईं। पौना भर बोतल बीटर्स के पास पड़ी थी। वह उसे भी उठा लाई। वह भी हमने पीकर खत्म कर दी। कैथी और फक्कर एक- दूसरे को चोर निगाहों से देखते रहे। मैं और बीटर्स वहाँ से उठकर आ गये। तरसेम कैथी के पास ही रह गया।

मैं सुबह उठा तो अच्छी-खासी भूख लगी हुई थी। रात में हमने कुछ खाया नहीं था। बीटर्स ने टोस्ट बनाकर दिये तो कुछ चैन पड़ा। बीटर्स को खाना बनाने की आदत बहुत कम थी। वह बच्चों को समय से कुछ न कुछ बनाकर खिला देती। स्वयं कभी कुछ खा लेती और कभी यूँ ही सो जाती। उसके कारण मैं भी कुछ न खाता। कभी बाहर से ‘टेक अवे’ ले आते। मेरी दिहाड़ी अच्छी हो जाती तो रेस्तरां में भी चले जाते।

मैं उठकर कैथी के फ्लैट में गया तो तरसेम बैठकर नाश्ता कर रहा था। भरपूर अंग्रेजी नाश्ता– अण्डे, बेकन, बीन्ज़, कितना कुछ ही। कैथी रसोई में अभी भी कुछ बना रही थी। तरसेम धीमे स्वर में बोला, “इतनी सेवा तो यार कभी नये विवाह के समय भी नहीं हुई।"

“रात कैसी रही?”

“थैंक यू यार... हम तो अंधेरे में रहते हैं, हमारी औरतें तो निरी भैंसें हैं, उन्हें ज़िन्दगी का कुछ पता ही नहीं।"

मैंने रसोई में जाकर पूछा, “सैंडी अपने नाम पर खरा उतरता है कि नहीं?”

पहले वह शरमा गयी और फिर हँसने लगी।

अब तरसेम कैथी के घर निरंतर जाने लगा। उसका हर वीक-एंड कैथी के यहाँ ही गुजरता। कैथी ने अपना काम बदलकर वो काम पकड़ लिया था जिसमें वीक-एंड खाली था ताकि वह तरसेम के साथ वक्त गुजार सके। कैथी को तरसेम जैसा ही आदमी चाहिए था जो वीक-एंड पर ही आये और बाकी दिन उसे तंग न करे।

वह अब जब कभी मिलता तो कैथी के घर ही मिलता। वीक-एंड पर मैं व्यस्त होता और बीटर्स की तरफ जा नहीं पाता। अगर कभी जाता भी तो कुछ पल ही रुकता। कैथी मिलती तो तरसेम की ही बातें करती रहती। वह बताती कि वह कैसे शराबी होकर कैथी की प्रशंसा में गीत गाने लगता है। वह तरसेम के उतावलेपन की, उसकी मस्ती की बातें बड़े चाव से किया करती। वह उसके लिए आये दिन फूल लेकर जाता। कैथी खुश थी।

वह मिलता तो कैथी की प्रशंसा करने से न हटता। कैथी में बीटर्स से कहीं अधिक गुण थे, जो बाहर से दिखाई देते थे। परन्तु सीरत में वह बीटर्स के मुकाबले शायद ही होती। मैंने कभी तुलना करने की कोशिश नहीं की थी, पर तरसेम सदैव कैथी को ऐसे ही पेश करता। एक दिन, मैंने मजाक में कहा, “कैथी बता रही थी कि तू फूल बहुत लेकर जाता है, बड़े पैसे खर्च करता है फूलों पर।"

“कहाँ यार! पैडग्टिन स्टेशन पर एक फूलवाला दोस्त बना हुआ है। लेट नाइट मरने वाले फूल ज़रा सस्ते दे देता है। पर एक बात बता दूँ, जिस दिन फूल लेकर जाता हूँ, उस दिन वह अधिक लिपटती-चिपटती है।"

बीटर्स आम गोरी औरतों की तरह छोटी-सी खुशी या गम पर असहज होने वाली औरत नहीं थी। उसे अपने जन्मदिन का कोई फिक्र नहीं था। मेरे जन्मदिन पर भी कोई उत्साह नहीं दिखाया। लड़कों को उनके जन्मदिन पर अवश्य कुछ लेकर देती। लड़के भी उसके ठीक ही थे। कभी कोई जिद्द नहीं करते थे। छोटा जॉन पढ़ने में कुछ ढीला था और वह हर समय शरारतों में ही लगा रहता। बड़ा वाला डैनी गंभीर था। वह अपने काम से काम रखता। कुछ न कुछ पढ़ता रहता। कैथी का बेटा पॉल इनकी उम्र का ही था। कभी-कभार इनके संग खेलने आ जाता। डैनी उसके संग भी अधिक बात न करता जबकि जॉन घुला-मिला था। डैनी के बारे में बीटर्स बताती, “इसका बाप बहुत ऊँचे घराने से था, वह भी इस वक्त कहीं न कहीं अफसर होगा, मेरा बेटा भी एक दिन बड़ा आदमी बनेगा।"

बीटर्स कई बार मेरी बहुत तारीफ करती। मेरी चाल की, मेरे धैर्य की, मेरे ज़िस्म की। थोड़ी तारीफ तो मुझे अच्छी लगती, पर अधिक तंग करने लगती। लगता, जैसे वह झूठ बोल रही हो। मैं उसे रोकता तो कहती, “मैं तुझे खुश करने के लिए नहीं कह रही, मुझे तो जैसा महसूस होता है, वैसा ही कह रही हूँ।"

कभी-कभी मुझे लगता, मैं इन गोरों के समाज का ही एक हिस्सा होऊँ। अब मैं अंग्रेजी में ही सोचने लग पड़ा था। मुझे अंग्रेजी खाना तो पहले दिन से ही पसन्द था, अब जैसे देशी खाने का ज़ायका ही भूल गया होऊँ। कभी शैरन मेरे लिए रोटी बनाती, पर मुझे स्वाद न आता। मैं बहुत बदल गया था। प्रितपाल भी मुझे देखकर कहता, “बड़े, तू तो यार हमारे बीच से लगता ही नहीं, जा इंडिया हो आ। विवाह मत करवाना अगर मन नहीं है। ज्यादा के लालच में थोड़े को भी न खो बैठें।"

वह जब से इंडिया से लौटा था, मुझ पर इंडिया जाने के लिए जोर डालता रहता था।



एक शनिवार मैंने देर तक काम करने का मन बनाया। शनिवार की रात शराबियों की रात होती है, झगड़ों की रात। टैक्सी वालों के लिए कठिन रात। लेकिन, पैसे बन जाते हैं। अगले हफ्ते मेरी किस्त आ रही थी। कुछ अधिक काम करने से मेरी किस्त की चिंता कम हो सकती थी। मैं काम खत्म करके बीटर्स की ओर ही आ गया। उसे मैंने बता रखा था, वह जाग कर मेरी प्रतीक्षा कर रही थी।

बहुत तड़के ही बीटर्स ने मुझे जगाया। बहुत जोरों की नींद आई हुई थी। मैंने समय देखा। चार के करीब था। बीटर्स बोली, “बाहर जाकर देख ज़रा, कैथी की आवाज़ लग रही है।"

मेरे उठने तक बच्चे भी उठ गये। तभी, मुझे मालूम हुआ कि पॉल भी यहीं था। ज़रूर कैथी और तरसेम बाहर गये होंगे। ऐसा भी होता था कि कैथी तरसेम के आने पर पॉल को बीटर्स के घर भेज देती थी। शराब पीकर कैथी ने खरमस्तियाँ भी तो करनी होती थीं। तरसेम भी ऐसा ही था। मैं गाउन पहनते हुए बाहर निकला तो अधनंगा तरसेम खड़ा दिखाई दिया। कैथी गंदी-गंदी गालियाँ बकते हुए कहे जा रही थी, “तू पाकि, हरामी, दफ़ा हो जा मेरे घर से, अपनी औरत की गोद में से उठकर आ जाता है ऐश करने... जेब में तेरी कोक लेने लायक पैसे नहीं होते, घर के किसी खर्चे का हिस्सा देना तो दूर की बात है। तुम पाकि लोग उन चुड़ेलों लायक ही हो। दफ़ा हो जा और फिर कभी मेरे घर में ना घुसना। वापस जा उसी बदबू मारती औरत के पास।"

तरसेम ‘प्लीज़ कुआइट कैथी, प्लीज़ कुआइट’ कहता हुआ उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था। लेकिन, कैथी थी कि बोले ही जा रही थी। शोर सुनकर दूसरे पड़ोसी भी निकल आये। पॉल और डैनी भी बाहर आ गये। मुझे देखकर तरसेम ने नज़रें झुका लीं। कैथी भी कुछ झिझकी, फिर बोली, “इंदर, इस पाकि को कह दे, दोबारा मेरे घर में न घुसे, नहीं तो हड्डियाँ तोड़ दूँगी।"

मैं चुप रहा। मेरे समीप ही बीटर्स का बेटा डैनी खड़ा था। वह मुझसे कहने लगा, “और, तू पाकि, तू भी मेरे घर से दफ़ा हो जा!”

बीटर्स ने सुना तो उसे थप्पड़ मारती हुई अन्दर ले गयी। वह कहे जा रही थी, तुझे कितनी बार कहा कि यह बात नहीं कहते, ऐसा कहना बुरी बात है।