रेत भाग 5 / हरज़ीत अटवाल
ब्रैडफील्ड में काम करते हुए मुझे दो साल हो गये थे। मैं पुराने कर्मचारियों में गिनी जाती थी। यहाँ वेतन ठीक था। बड़ी फर्म होने के कारण इसके अपने ही मजे थे। ब्रैडफील्ड की कर्मचारी होने का लोगों में अलग ही रौब पड़ता था। ब्रैडफील्ड दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे मंहगा स्टोर था। यह दस मंजि़ली इमारत विक्टोरिया में पड़ती थी। दुनियाभर के अमीर लोग यहाँ शॉपिंग करने आते। आम आदमी तो इस स्टोर की कीमतें सुनकर ही डर जाता। साधारण वस्त्रों वाले आदमी को गार्ड ही अन्दर न घुसने देते। ज़ीन या निक्कर पहनकर तो अमीर आदमी को भी अन्दर आने की इजाज़त नहीं थी, जेब भले ही पैसों से भरी हो। शाही परिवार का यह चहेता स्टोर था। उनके लिए रात में यह विशेष तौर पर खोला जाता जबकि आम जनता को नहीं आने दिया जाता। इतने वर्षों में मैंने कभी यहाँ शाही परिवार का कोई सदस्य नहीं देखा था। हॉलीवुड के एक्टर, सिंगर या अन्य नामी-गरामी व्यक्ति अक्सर दिखाई दे जाते। बम्बई के एक्टर वगैरह तो शायद ही आते होंगे क्योंकि रुपयों को पौंडों में बदलना मुश्किल पड़ता होगा। फिर, मेरी ड्यूटी भी काउण्टर पर कम ही लगा करती, जहाँ आम जनता से वास्ता पड़ता था। अब तो मैं सीनियर हो गयी थी। पहले भी ऐंडी मुझे प्राइसिंग रूम में भेज दिया करता था। वहाँ मेरी पसन्द का काम था। वस्तुओं के दाम वाले लेबल तैयार करने होते थे। कम्प्यूटर में सब फीड किया हुआ होता था और लेबल भी निकालने होते थे। साथ ही साथ, ‘बार-कोड’ छप जाता। यह सारा काम मेरी पकड़ में आ चुका था और मुझे बहुत आसान लगता। हर कोई प्राइसिंग रूम में काम करने को इच्छुक होता क्योंकि यहाँ पब्लिक के साथ वास्ता न पड़ता और सुपर-विज़न भी कम होता। वैसे हम सभी को स्टोर के सभी काम सिखाये जाते थे ताकि आवश्यकता पड़ने पर कहीं भी काम किया जा सके। लारियों-वैनों से सामान उतारने से लेकर कीमतें तैयार करने, चीज़ों को अलग-अलग करके सैल्फ़ों में रखने या हैंगरों में टांगने तक और फिर ग्राहकों के बैगों में डालने तक का सारा काम मैं कर चुकी थी। या यूँ कह लो– मेरे हाथों में से निकल चुका था।
घर से काम पर आना बड़ा आसान था। ‘टोटनहैम हेल’ से सीधी ट्यूब (रेल) विक्टोरिया पहुँचती। सिर्फ़ बीस-पच्चीस मिनट में। पार्क एवेन्यू यानी घर से स्टेशन तक पैदल चलने में पन्द्रह मिनट लग जाते थे, पर विक्टोरिया पहुँचकर स्टेशन के एकदम बाहर ही ब्रैडफील्ड था। हरे रंग की विशाल इमारत हर किसी का ध्यान खींचती थी। आते-जाते लोग, खास कर सैलानी एक-दूजे को बताते हुए इमारत की ओर इशारे करते कि यही है– ब्रैडफील्ड! मैं घर से सुबह सवा सात बजे निकलती और आराम से आठ बजे काम पर पहुँचकर साइन कर देती। बारिश हो रही होती तो स्टेशन तक कार ले आती। यूँ तो मेरी शिफ्ट सवेरे दस बजे से लेकर शाम छह बजे तक की थी, पर सुबह आठ से दस दो घंटे का ओवर टाइम भी लग जाता। इस तरह मेरी पूरी शिफ्ट सवेरे आठ से शाम छह बजे तक की बन जाती। सुबह जब घर से निकलती तो परी सो रही होती। कभी-कभी यूँ लिपट जाती कि उठने न देती। उसे मम्मी ही तैयार करती और स्कूल छोड़कर आती। हालाँकि परी अब खुद तैयार होने लग पड़ी थी, पर मम्मी ने कुछ अधिक ही लाड़ली बना रखा था। मुझे मम्मी पर बहुत दया आती। पहले उसने हमें पाला और अब हमारे बच्चे भी पाल रही थी। नीता भी अपने बेटे को मम्मी के पास ही छोड़कर जाने लगी थी।
उस दिन काम कुछ कम था। निरंतर बारिश होने के कारण ब्रैडफील्ड में ग्राहक नहीं के बराबर थे। जब ‘सेल’ खत्म होती तो ऐसा ही होता। प्राइसिंग रूम में मैं अकेली बैठी थी। ऐंडी की लाई हुई अखबार के पन्ने उलट-पलट रही थी। रवि की तरह ऐंडी भी बड़ी अखबार खरीदा करता था जिसमें ढंग की न कोई तस्वीर होती और न ही कोई चटपटी खबर। ऐंडी अन्दर आया और अपना पेन जेब में रखते हुए पूछने लगा, “टी-ब्रेक में कैंटीन में आओगी?”
“मैं देखूँगी।"
“तेरी चाय लेकर रखूँ ?”
“नहीं, मेरा अभी कुछ पता नहीं।"
मैं ऐंडी के साथ हर ब्रेक में जाने से झिझकती थी। वह मुझे आँख-सी मारकर बाहर निकल गया। वह गया तो चंदा आ गयी। वह मेरे साथ वाले कम्प्यूटर पर काम किया करती थी। अन्दर आते ही बोली, “आज तो साला कोई काम नहीं, बोर हो गये। वैदर साला खराब है।"
चंदा अपनी सीट पर बैठकर कम्प्यूटर के पेज खोलने लगी। वह हमेशा कुछ नया ही खोजने की कोशिश करती। इतने में कुलविंदर, शमीस और रजनी भी आ गयीं। वे चंदा के पास आयी थीं। मेरे से उनकी इतनी बातचीत नहीं थी। मुझे ‘हैलो’ कहकर वे चंदा के साथ बातें करने लग पड़ी। चंदा स्क्रीन पढ़ते हुए हैरान होकर बोली, “इधर आओ, देखो, इट्स स्ट्रेंज !”
“क्या हुआ ?”
“ये देखो किचन टावल, बंगला देश से आता है। इसकी कीमत दस पैनी है और ये लोग दस पौंड में बेचता है। ये मुहम्मद नून बहुत प्रोफिट बनाता है।"
वे सब की सब हँसने लग। मुझे इसमें हँसी वाली कोई बात न दिखाई दी, मैं चुप रही। मैं उनके साथ सीमित-सा वास्ता रखना चाहती थी। मुझे पता था कि वे ऐंडी को लेकर मेरे से कोई मज़ाक कर सकती थीं, जो मुझे सहन नहीं होता। उन्होंने चंदा को कैंटीन चलने के लिए कहा तो चंदा ने मुझे भी सलाह दी। मैं भी उठकर उनके साथ चल पड़ी। मैंने सोचा कि चाय का एक कप पी आती हूँ, यहाँ बैठकर भी क्या करना है।
हम चाय के लिए लाइन में खड़ी थीं। कुछ मेज छोड़कर ऐंडी अपने दोस्तों के संग बैठा था। शमीस ने मेरी ओर देखकर कुलविंदर से कहा, “आज तो ऐंडी ने लाल रंग की शर्ट पहन रखी है, खूब फब रही है।"
“बाल भी तो खूब अच्छी तरह बना रखे हैं।"
“यह गोरा है– जे़म्स बांड हीरो !”
वे मुझे सुना-सुनाकर बातें कर रही थीं। मुझे गुस्सा आ रहा था। मैं अपनी चाय लेकर एक तरफ़ चली गयी। मैं जानती थी कि अगर मैं इनके पास बैठी तो झगड़ा कर बैठूँगी। मैंने एक बार इधर-उधर नज़र दौड़ाई, पर कांता कहीं दिखाई न दी।
ऐंडी से मेरी निकटता को लेकर ब्रैडफील्ड में बातें चल पड़ी थीं। ऐंडी बहाना तलाश कर मेरे से बातें करने बैठ जाता। उसकी बातें मुझे अच्छी लगतीं। मुझे वह पसन्द भी था। प्राइसिंग रूम में वह मेरा सुपरवाइज़र भी था। यद्यपि काम करवाने में वह कुछ सख़्त था, पर बात इस तरह करता कि किसी को चुभती नहीं थी। जब भी उसे समय मिलता, मेरे से भारतीय-संस्कृति के विषय में प्रश्न पूछने लगता। कई बातों का तो मुझे भी पता न होता, पर उसकी तसल्ली हो जाती।
मेरे साथ बात करता तो सीधा मेरी आँखों में झाँक कर करता। उसकी नीली आँखें मुझे निश्च्छल प्रतीत होंती। कोई देसी आदमी अगर ‘हैलो’ कहता तो उसके कहने के पीछे कोई मकसद होता। किसी के संग बात कर लो तो लोग उसके कई अर्थ निकाल लेते। देसी आदमी के साथ मज़ाक करना मुसीबत मोल लेने वाली बात होती, जबकि गोरे किसी बात के बारे में गम्भीर नहीं होते थे। ऐंडी जब मेरे साथ बहुत-सी बातें करता, मेरे में दिलचस्पी लेता तो इसका मतलब था कि वह मेरे बारे में सोचता रहता था। एक दिन उसने कहा, “कंवल, तू मुझे बहुत सुन्दर लगती है।"
“धन्यवाद।"
“ये धन्यवाद वाली सुन्दर नहीं, और ही तरह की सुन्दर है... दिल को अच्छी लगती हो।"
“मज़ाक न कर ऐंडी, मुझे मज़ाक पसन्द नहीं ?”
“मैं मज़ाक नहीं कर रहा। जबसे मैं अपनी गर्ल-फ़्रेंड से अलग हुआ हूँ, औरतों में मेरी दिलचस्पी खत्म हो गयी थी, तुझे देखकर लगता है कि औरत अभी भी खूबसूरत चीज़ है। मैं तेरे सपने देखने लगा हूँ।"
“ऐंडी, तू इंडियन फिल्में तो नहीं देखता ? इंडियन फिल्मों में ऐसे डायलाग्स होते हैं।"
“नहीं कंवल, मैं तुझे प्यार करने लगा हूँ। दिल की गहराई से।"
यह बात सभी मर्द सहजता से कह जाते हैं, पर मुझे पता था कि ऐंडी आम मर्दों में से नहीं था। मैंने ऐंडी को टाल दिया। मैं सोच रही थी कि अगर देसी लोगों को पता चल गया तो वे क्या कहेंगे। लेकिन, फिर सोचने लगी कि पूरे ब्रैडफील्ड में तो बात फैल चुकी होगी। हमें एक साथ कैंटीन में जाते या इधर-उधर घूमते देखकर लोगों ने बातें बनाना तो शुरु कर ही दिया था। कुछ बातें तो कांता के माध्यम से मेरे तक पहुँच जाती थीं। मैं ऐंडी के बारे में सोचती तो वह मुझे बहुत अच्छा लगता। उसे सभी कहते थे कि वह जेम्स बांड की तरह चलता था। ऐंडी की ओर ज़रा और ध्यान देती तो कहीं कोई कमी प्रतीत होती। वह रवि के मुकाबले खड़ा नहीं होता था। रवि के सुडौल कंधे और मज़बूत बाहें ऐसी थीं कि आप उनकी जकड़ में एक बार आ जाओ तो फिर आसानी से छूट नहीं सकते। लेकिन, रवि तो मुझे छोड़कर कभी का जा चुका था।
ऐंडी अगले दिन कहने लगा, “तेरा जन्मदिन मई में है न ?”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“तेरा रिकार्ड देखकर आया हूँ, तू अकेली है ? तलाकशुदा ?”
“तो क्या हुआ ?”
“तू अकेली है, तेरी जि़न्दगी में कोई दूसरा मर्द नहीं तो मेरी क्यों उपेक्षा कर रही है ?”
“तुझे हमारे समाज के बारे में नहीं पता, हमारे समाज में यह सम्भव नहीं।"
“क्या सम्भव नहीं ?”
“देख ऐंडी, यहाँ हम काम करते हैं। बस, काम ही करें। अगर इंडियन लोगों को पता चलेगा तो मेरा मज़ाक उड़ाया जाएगा।"
“इसमें मज़ाक उड़ाने की कौन-सी बात है। बात तो सिर्फ़ इतनी है कि मैं तुझे पसन्द करता हूँ, संबंध बनाना चाहता हूँ और हो सकता है, तेरे साथ विवाह भी करवा लूँ।"
“पर ऐंडी मैं तेरे संग संबंध नहीं बढ़ाना चाहती।"
“क्यों ? क्योंकि मेरा रंग गोरा है। तू अपने रंग से जुड़े रहना चाहती है।"
“नहीं ऐंडी, यह बात नहीं।"
“और क्या बात है ?”
“बस, ऐंडी, तू मुझे अकेला छोड़ दे और जा।"
मैं रुआँसी हो उठी। वह मेरे पास से चला गया। पीछे मुड़कर फिर कहने लगा, “कंवल, याद रख। मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ।"
उसने पूरे हक के साथ कहा और मैं सोच में पड़ गयी। सोच में नहीं पड़ी बल्कि उखड़ गयी। मेरा काम में मन नहीं लगा। घर पहुँचकर भी मन में बेचैनी-सी होती रही। खाना खाने को भी मन नह कर रहा था। मम्मी ने मेरी ओर ध्यान से देखा और देखती ही रही। कभी-कभी वह ऐसा ही करती है। उसे मेरे अन्दर हो रही हलचल का पता लग जाता था। कभी सलाहें भी देने लग पड़ती और कभी-कभी तो बुआ गुलाबां और बड़ी बुआ चन्नो को गालियाँ बकने लगती।
मैं जल्दी ही बैडरूम में चली गयी। परी के संग अधिक बातें भी न कर सकी। वह सो गयी। कपड़े बदलते हुए मैं आईने के सामने जा खड़ी हुई। मुझे अपने आप पर प्यार आने लगा। मुझे अपना आपा तो हमेशा ही अच्छा लगता था। मेरे चेहरे की चमड़ी अभी कसी हुई थी। चेहरे की चमड़ी तो बुआ गुलाबां की भी कसी हुई थी। बुआ कहा करती, “लोग जितना चाहे कोशिश कर लें, मैं बूढ़ी नह होने वाली।" मम्मी कहा करती थी कि मैं बुआ पर गयी थी। मम्मी क्या, सभी कहते थे, पर मम्मी गुस्से में कहा करती। मुझे अपना पता था कि मेरे में मर्दों के लिए विशेष खिंचाव था। रवि तो सदैव कहा करता था और अब ऐंडी भी। दूसरे मर्द भी आवाजें कसते रहते। मैंने कभी परवाह नहीं की थी और न ही मन में अधिक घमंड आया था। पिछले काफी समय से मेरे अन्दर का एक हिस्सा सोया ही पड़ा था। आज ऐंडी ने इस हिस्से में फिर से एक हलचल पैदा कर दी थी। पतली नाइटी में से झांकता मेरा जिस्म मुझे बहुत प्यारा लग रहा था। रवि तो अक्सर कहा करता था कि मैं अपनी छाती पर ईटें बांधे घूमती हूँ।
बमुश्किल नींद आयी। सवेरे आँख खुली तो रवि का सपना आ रहा था। बहुत लम्बा सपना था। जगह-जगह घूमते हम होर्स-शू हिल पर आ पहुँचे थे। आनन्द भरे झटके से नींद से जाग उठी। उठकर मैंने पानी पिया। दुबारा नींद नहीं आयी। रवि को कोसने लगी जिसने मुड़कर पीछे नहीं देखा।
रवि कहीं लुप्त ही हो गया था। उसका कुछ पता नहीं था कि कहाँ रहता था, किस हाल में था। कितने ही बरस बीत गये थे। उसने परी को तीस पौंड हफ्ते के देने आरंभ कर दिये थे। महीने की पहली तारीख को 120 पौंड मेरे खाते में आ जाते। पर वह कहीं दिखाई नहीं दिया था। घर बिकने के बाद मैंने उसे तलाक के समय ही देखा था। जिस समय घर बेचने के लिए लगाया था, उस समय वह खुशामद और मिन्नतें करता था और उसी मुँह से डैडी को गालियाँ बकने लगता था। घर बिक जाने के बाद वह गुम हो गया। उन्हीं दिनों मैंने सूजी बैरिमन से परामर्श करके तलाक के लिए अप्लाई कर दिया था। मैंने एक तरह से जुआ खेला था कि या तो रवि लौट आएगा या फिर सब कुछ खत्म!
रवि आया था। मुझे तलाक का केस वापस लेने के लिए कहता रहा। वह तलाक के लिए किसी भी तरह से तैयार नहीं था। मैं भी कहाँ चाहती थी। एक दिन रवि परी को देखने के बहाने से आया और रोने लगा। मेरा दिल पसीज उठा। मैंने उससे वायदा किया कि मैं केस वापस ले लूँगी। मैंने वापस उसके पास जाने का वायदा भी किया। रवि बहुत खुश था। वह तो चाहता था कि मैं उसी समय उसके साथ चलूँ, पर डैडी अस्पताल में थे। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। अब कुछ ठीक थे, पर अभी अस्पताल में ही थे। मैंने डैडी और मम्मी को बता दिया था कि मैं रवि के पास वापस जा रही थी। सूजी बैरिमन से भी अपाइंटमेंट ले ली ताकि उसे बता सकूँ कि केस वापस लेना है।
पता नह कौन–सी शक्ति मेरे खिलाफ काम कर रही थी। मैं बैरिमन के दफ़्तर में जा ही नह सकी। डैडी की सेहत सुधरकर फिर बिगड़ गयी थी। मैं अस्पताल में ही चक्कर काटती रह गयी कि केस की डिगरी भी हो गयी। सर्टिफिकेट घर में आया देखकर मैं हैरान रह गयी। उसी समय सूजी बैरिमन को फोन किया और बताया कि मुझे तलाक नहीं चाहिए। उसी शाम रवि को भी आना था। कभी-कभी वह परी को ले जाया करता था। उस दिन के बारे में पहले ही तय हो गया था। वह गुस्से में बोला था, “नहीं मानी न, अब तलाक से तसल्ली हो गयी ?”
“नहीं रवि, आई डोंट वांट डिवोर्स, मैंने सूजी को फोन करके बता दिया है, अभी तो यह प्रिलिमनरी डिगरी है, मैं फाइनल डिगरी तक बात पहुँचने ही नहीं दूँगी। आई लव यू रवि ! आई डोंट वांट डिवोर्स।"
रवि को तसल्ली-सी हुई तो उसका मूड सहज हुआ। उस दिन हमने रेस्तराँ में खाना खाया और आने वाले समय को लेकर ढेर सारी बातें कीं। रवि ने दो-टूक फैसले की तरह कहा, “तुझे अपने डैडी और मेरे में से एक को चुनना पड़ेगा।"
“डोंट वरी, देअर वुड नाट बी ऐनी प्रॉब्लम नाउ।"
मैंने फैसला कर लिया था कि जैसे रवि कहेगा, करुँगी। अब नीता खाली हो चुकी थी। वह मम्मी की मदद कर देती थी, घर के काम में भी और डैडी की देखभाल में भी। रवि फिर कहने लगा, “अब हम नार्थ लंडन में भी नहीं रहेंगे, साउथ ईस्ट या वेस्ट लंडन में घर देख लेंगे।"
“श्योर।"
मैं रवि को खोना नहीं चाहती थी। तलाक तक बात पहुँची तो लगा कि हम बहुत दूर निकल गये थे। वापस लौटना चाहिए था। अब हम आये दिन मिलने लगे थे। परी फिर से उसकी वाकिफ़ बन गयी थी। वक्त इतनी तेजी से गुजरा कि पता ही न चला कि छह हफ्ते कब बीत गये। छह हफ्ते बीते तो तलाक की फाइनल डिगरी घर में आ गयी। मैंने उसी समय बैरिमन को फोन किया। वह मेरा केस वापस लेना भूल गयी थी। अगर रवि चाहे तो अभी भी तलाक की डिगरी खारिज की जा सकती थी। मैं पूरा दिन रवि की तलाश में इधर-उधर घूमती-भटकती रही। जहाँ वह रहता था, वहाँ तो वह कभी-कभी ही आता था, अधिक समय कहीं बाहर ही रहता था। वह क्या काम करता था और कहाँ करता था, उसने मुझे कभी बताया ही नहीं था और न ही मैंने कभी पूछा था। मैं पागलों की भाँति इधर-उधर कार दौड़ाती रही, पर रवि न मिला। मैं चाहती थी कि रवि मिल जाये, उसे अपनी कोताही के बारे में बताऊँ और सूजी बैरिमन के पास ले जाकर सारा काम ठीक करवा लूँ।
सर्दी का मौसम होने के कारण अंधेरा जल्दी हो गया। ऊपर से बर्फ़बारी शुरू हो गयी। मैं रवि को फोन करती रही, वह न मिला। अब उम्मीद भी नहीं रही थी। कल तक इस बात के मायने और भी गहरे हो जाने वाले थे। आज तो शायद रवि को कचहरी की चिट्ठी भी न मिली हो और मैं उसको सम्भाल सकती थी। करीब आठ बजे बाहर हॉर्न बजा। यह रवि ही था। ऐसा ही छोटा-सा हॉर्न बजाता था। परी सो चुकी थी, पर मैंने उसे साथ ले जाना ही ठीक समझा। मैंने उसे सोये-सोये ही जैकेट पहनाई और बर्फ़ को कुचलती हुई बाहर आ गयी। रवि ने कार सड़क के एक ओर लगा रखी थी, आम तौर पर वह सड़क के बीच खड़ी करके ही मेरा इंतजार किया करता था।
अन्दर बैठे-बैठे ही उसने दरवाजा खोल दिया और मेरी तरफ देखकर मुस्कराया। उसकी मुस्कराहट आम दिनों से बड़ी थी। उसने सोई हुई परी को मुझसे ले लिया और उसके गाल चूमने लगा। मैंने कहा, “रवि, कल मेरे साथ सूजी बैरिमन के दफ़्तर चल, हम डिवोर्स वाली बात खत्म कर दें... आई लव यू रवि।"
वह हँसने लगा। इतने जोर से कि परी उठ गयी और रोने लगी। वह कितनी ही देर तक हँसता रहा। वैसे वह बहुत कम हँसता था। मैंने पूछा, “हँस क्यूँ रहे हो, रवि ? आई एम सीरियस।"
“तू तो सदा ही सीरियस रही है, मैं ही सीरियस नहीं था।"
उसने परी को वापस मुझे पकड़ाया और बोला, “मैडम, अब घर जा।"
“क्यों ?”
“क्यों नहीं ... आई एम नाट योर हसबैंड ऐनी मोर। कार में से बाहर हो जा।"
मैं रोने लगी। वह बोला, “मेरी कार में बैठकर न रो, रोना है तो अन्दर जाकर उनको रो जिनकी खातिर तूने मेरी लाइफ रुइन की है, अपनी और इस बच्ची की भी।"
मैंने आँखें पोंछी, उसकी ओर घूरकर देखा और कार में से बाहर निकल आई। बर्फ़ पर सावधानी से चलते हुए जब मैंने दरवाजा खोला तो मम्मी दरवाजे के पीछे खड़ी थी। मैं उसके गले लगकर सिसकने लगी। मम्मी मेरा कंधा थपथपाती हुई बोली, चुप हो जा बेटी, तेरे डैडी की नद टूट जाएगी।
मम्मी मेरे साथ ही मेरे कमरे में आ गयी और मेरे साथ ही सो गयी। आज उसने बुआ गुलाबां को या बुआ चन्नो को कुछ नहीं कहा। मुझे सारी रात नींद न आयी। मैं बुआ गुलाबां के बारे में सोचती रही, जो विवाह के महीने भर बाद ही पति से झगड़ा करके घर में आ बैठी थी और फिर लौटकर नहीं गयी थी। उसकी जिद्द थी कि उसका घरवाला स्वयं आये, किये हुए की गलती स्वीकार करे और ले जाये। उधर आदमी भी वैसा ही निकला। वह न आया और दूसरा विवाह कर लिया। बुआ ने अकेली रहकर जीवन काट लिया था लेकिन, उफ्फ तक नहीं की। बड़ी बुआ चन्नो डैडी की बुआ थी। उसका घरवाला मुकलावे (गौने) से पहले ही मर गया था। उसने भी सारी उम्र घर में बैठकर गुजार ली थी। देवर या जेठ पर चादर डालने से साफ इन्कार कर दिया था। मायके में बैठकर ही उम्र भोग ली।
ऐंडी मेरे साथ निकटता बढ़ाने लगा तो रवि की याद मुझे और ज्यादा सताने लगी। शायद चार बरस हो गये थे, उसे लुप्त हुए। कभी-कभी, मम्मी मेरी ओर देखकर कहने लगती, “चंदरे ने मुड़कर मुँह ही नहीं दिखाया, कभी अपनी बेटी को ही देखने आ जाता, कभी फोन ही कर देता, पहले कितने चक्कर लगाता था।"
एक दिन मम्मी बोली, “कंवल, बेटी लगता है, तू पाठ का नागा कर देती है, तभी तो तेरा चेहरा उतरा-उतरा रहता है। मन पर काबू रखने के लिए पाठ ज़रूरी है।" मैं स्वयं को थका-थका-सा महसूस करती रहती थी। मैं रोज़ यह सोचकर घर से निकलती कि आज ऐंडी को डपट दूँगी कि मेरे से सिर्फ़ मतलब की बात किया करे। लेकिन, ऐसा न होता। मेरा दिल करता कि उड़कर इंडिया चली जाऊँ, बुआ से पूछूँ कि इतना सब्र तेरे में कहाँ से आया। फिर, सोचने लगती कि हो सकता है कि बुआ को कोई ऐंडी मिला ही न हो।
मैंने ऐंडी से बचने के लिए अपनी ड्यूटी फ्लोर पर करवा ली, जहाँ मैं सेल्फों को भरती या ‘टिल्ल’ पर खड़ी होती। मुझसे लड़कियाँ आ-आकर पूछतीं कि आसान काम छोड़कर यहाँ क्यों आ गयी। मैं बहाना मार जाती कि क्म्प्यूटर पर बैठे-बैठे मेरी आँखों में से पानी बहने लगता था। कांता जिससे मैं दिल की बातें कर लिया करती थी, पूछने लगी, “ऐंडी के साथ कोई गड़बड़ हुई ?”
“नहीं, वो इश्क बहुत फरमाने लगा था, बस अवाइड कर रही हूँ।"
“फेंकता है साला ! गोरा क्या और इश्क क्या !” वह मुँह को कसैला-सा बनाकर बोली। लेकिन, मैं उसकी बात से पूरी तरह सहमत नहीं थी। मुझे ऐंडी में बनावट नहीं दिखाई देती थी। अब वह समझने लगा था कि मैं जानबूझकर उससे दूर रहती हूँ, इसलिए वह अधिक पीछा न करता, पर फिर भी बहाने से इधर-उधर आते- जाते विश कर जाता। अगर वह न आता तो मुझे उसकी प्रतीक्षा रहती। जब मैं उसे न देख पाती तो उदासी-सी छाई रहती। मेरी हालत अजीब-सी हो जाती।
मम्मी मेरी ओर देखते हुए कहती, “उसने नहीं आना अब, पहाड़ जितनी ज़िन्दगी है बेटी, गुलाबां न बन, विवाह कर ले, हम लड़का देखते हैं, बस तू हाँ कर।"
“नहीं मम्मी, मैं बुआ नहीं बनूँगी, मेरे पास है मेरा सहारा।"
“पर आदमी का साथ भी ज़रूरी है।"
“नहीं चाहिए मुझे आदमी का साथ। अजनबी आदमी मेरी बेटी को बेटी कहाँ समझेगा।"
“परी अभी छोटी है, करवा ले, हम सम्भाल लेंगे।"
“नहीं मम्मी, यह बात न कहा कर, मैं ठीक हूँ ऐसे ही।"
मम्मी अगली बार फिर यह बात दोहराने लगती। मैं बेशक गुस्सा होकर बोलती, पर मम्मी थी कि अपनी बात कहकर ही रहती। जिस समय मम्मी ऐसी बात कर रही होती, मैं ऐंडी के बारे में सोचने लगती।
एक सुबह काम पर पहुँचने के लिए मैं विक्टोरिया स्टेशन से निकल रही थी कि सामने ऐंडी खड़ा मुस्करा रहा था। उसने अपने दोनों हाथ पीछे कर रखे थे मानो कुछ छिपा रहा हो। वह लगातार मेरी ओर देखे जा रहा था। मैंने हाथ हिलाकर उसे ‘हैलो’ कहा और उसके करीब से होकर आगे बढ़ने लगी तो उसने मेरा रास्ता रोक लिया। अपने पीछे छिपा रखे फूल मेरे सामने करता हुआ बोला, “हैप्पी बर्थ डे कंवल।"
मैंने पहले ऐंडी की तरफ देखा, फिर फूलों की ओर– लाल, पीले, सफे़द, गुलाबी नरम-नरम फूल ! मैंने फूल ले लिए और उन्हें अपने चेहरे से छुआ कर देखा। बहुत प्यारे थे। मुझे ऐंडी बहुत अच्छा लगा। मैंने उसकी गर्दन के पीछे हाथ रख उसके चेहरे को नीचे करके चूमा। उसने मुझे बांहों में कस लिया। मुझे आसपास की, स्टेशन पर आते-जाते लोगों की कोई परवाह न रही। उसी पल मुझे ख़याल आया कि कभी-कभी मैं और रवि भी ऐसे ही भीड़ में बेसुध हो जाया करते थे। ऐसा ख़याल आते ही मैं ऐंडी से दूर हट गयी और फूलों के लिए उसका धन्यवाद करने लगी। उसने जेब में से एक कार्ड और घड़ी निकालकर मेरे आगे कर दी। मैंने
कहा, “ऐंडी यह क्या ?”
“तेरे जन्मदिन पर मेरी ओर से सच्चे प्यार के साथ।"
“नहीं ऐंडी, ये मैं नहीं ले सकती, तेरे फूल ही बहुत हैं। फूल ही दिल की बात कह रहे हैं।"
“कंवल, फूल अपनी जगह हैं, घड़ी अपनी जगह, और फिर मैंने तेरे हाथ में घड़ी बंधी देखी नहीं कभी।"
“मुझे आदत नहीं है घड़ी बांधने की।"
“आदत डाल ले अब। तेरी कई आदतें खराब हैं, इन्हें बदलने की ज़रूरत है।"
वह मेरा हाथ पकड़कर घड़ी बांधने की कोशिश करने लगा। मैंने घड़ी उससे ले ली। हम एक साथ ब्रैडफील्ड की ओर बढ़ने लगे। मैंने कहा,“ऐंडी, हमारे रिवाज ऐसे हैं कि मुझे एक हद में रहना पड़ता है, नहीं तो मैं तुझे...।"
मैंने बात को बीच में ही छोड़ दिया। सोचने लगी कि भावुक होकर मुझे कोई बात नहीं कहनी चाहिए।
मेरे से कुछ दिन बाद ही ऐंडी का जन्मदिन था। मेरा मई के आख़िर में और उसका जून के पहले सप्ताह। हम दोनों की राशि जैमिनी थी। मुझे राशियों में यकीन नहीं था, पर ऐंडी राशिफल पढ़ता रहता। उसके साथ मिलकर मैं भी पढ़ने लगती। मैं रवि का राशिफल भी ज़रूर देखती। ऐंडी के जन्मदिन पर मैंने भी उसको तोहफा दिया।
अब हम काम पर खुलेआम एक साथ घूमते। मुझे अब किसी का डर नहीं रहा था। मुझे पता था कि लोग मेरे बारे में बातें करेंगे और खुद ही चुप कर जाएँगे। एक दिन, उसने कहा, “चल बाहर चलें, रेस्ट्रोरेंट में खाना खाएँ।"
“नहीं ऐंडी, मैं नहीं जा सकती।"
“क्यों ?"
“क्योंकि... अपनी बेटी के कारण... ।"
“तेरी माँ नहीं सम्भाल सकती ?”
“नहीं, उसकी सेहत ठीक नहीं रहती।"
“आज नहीं तो फिर किसी दिन, तेरी बेटी को खिलाने का इंतजाम कर लेंगे।"
“सोचूँगी, मैं वायदा नहीं कर सकती।"
उसके इस निमंत्रण को मैंने झटक दिया। असल में, अभी उसके संग बाहर जाने के लिए मैं तैयार नहीं थी। मुझे पता था कि बाहर ले जाकर वह मुझे विवाह के लिए प्रपोज करना चाहता था। मैंने उसकी बातों से भांप लिया था। मैं स्वयं को समझाने लगती कि रवि ने एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा। ऐसा गया कि लौटकर मेरी या परी की खबर ही नहीं ली, अब मैं उसके बारे में क्यों सोचूँ, उसकी चिंता क्यों करुँ ?
एक दिन, मैंने कांता के साथ अपना दिल खंगाला, “कांता, ऐंडी मुझे प्रपोज करना चाहता है। क्या करुँ ?”
“हाँ, कर दे।"
“समझ में नहीं आता कि गोरे के साथ मैरिज चलेगी।"
“चलेगी क्यों नहीं ?... गोरे अच्छे हसबैंड होते हैं, इंडियन जैसे हिपोक्रेट नहीं होते, घर का काम वाइफ की तरह करते हैं, टालरेंस ज्यादा होती है, लव भी अच्छा मेक करते हैं।" कहकर वह मुँह पर हाथ रखकर हँसने लगी।
मैंने अपनी चिंता प्रकट की, “पर अपना कल्चर डिफरेंट है न।"
“मेरा भाई बताता है कि टाइम्ज में रिपोर्ट छपा है कि गोरे मर्द शादी के लिए इंडियन औरतें चूज करते हैं और इंडियन औरतें भी गोरों को पसन्द करती हैं।"
मैं ऐंडी से विवाह करवाने की बात पर गम्भीरता से सोचने लगी थी। मम्मी के कहने पर जब भी विवाह के बारे में सोचती तो मेरे सामने यही होता कि बेगाना आदमी परी के लिए ठीक नहीं रहेगा। सौतेले पिताओं के बारे में कितनी ही कहानियाँ सुनने में आती थीं। यद्यपि मम्मी कह देती कि परी को वह सम्भाल लेगी, पर मैं परी के बग़ैर नहीं रह सकती थी। अब ऐंडी के बारे में सोचने लगी तो लगता था कि शायद परी ऐंडी के साथ खुश रह सके। गोरों में सौतेले बाप वाले अंश कम होते हैं। यह एक आम सच्चाई थी।
ऐंडी को लेकर मैं बहुत परेशान रही। कोई भी नहीं था मेरा जिसके साथ मैं बात कर सकती। मम्मी से यह बात करना इतना सरल नहीं था। नीता अपनी ज़िन्दगी में इतनी व्यस्त हो गयी थी कि उसे किसी का ख़याल ही नहीं था। वह अपना बेटा छोड़ने मम्मी के पास आया करती, पर मुझसे मुलाकात नहीं होती थी। अगर कभी मिलती भी तो बहुत जल्दी में होती। इस वक्त कोई करीबी सहेली भी नहीं थी। कांता के साथ बात की, पर मेरी तसल्ली नहीं हुई थी। कभी सोचती कि मम्मी से बात साफ़ कर दूँ। कभी यह भी डर लगता कि मम्मी-डैडी गोरे से मेरे विवाह के लिए तैयार भी होंगे ? अन्त में, मैंने उसके संग बाहर जाने का फैसला कर ही लिया। मम्मी या डैडी जो भी सोचेंगे, बाद में देखा जाएगा।
लम्बे समय तक ‘न’ करने के बाद मैंने ऐंडी के साथ डिनर पर जाने के लिए ‘हाँ’ कह दी। ऐंडी के अनुसार वह फरवरी के महीने में मुझे कुछ कहना चाहता था। 14 फरवरी प्रेमियों का दिन माना जाता है। वह इसी दिन प्रपोज करना चाहता होगा। अगर ऐसा था तो हमारा साथ-साथ वक्त गुजारना, बाहर घूमना ज़रूरी था ताकि हम एक-दूसरे को अच्छी तरह जान सकें, पर मेरे अन्दर एक डर-सा भी था।
नवंबर का महीना था। मौसम ठंडा तो था ही, साथ में तेज हवा भी चल रही थी। ऐंडी बार-बार कहता कि उन्नीस नवंबर, शुक्रवार का दिन मैं कहीं भूल न जाऊँ। हमने यह दिन बाहर जाने के लिए निश्चित कर लिया था। मैंने इस दिन के लिए विशेष तौर पर महरून रंग का लहंगा खरीदा। पहले मैं मैक्सी पहनकर जाना चाहती थी, पर जब मैक्सी और लहंगे की तुलना करके देखा तो मुझे लहंगा ही अधिक पसन्द आया। उस दिन के लिए मैं विशेष तौर पर ब्यूटी पार्लर गयी, जहाँ मैं कभी नहीं जाती थी। वैक्सिंग करवाई, फेशियल करवाया। नकली गहनों का सैट पहना। ऊँचा-सा जूड़ा बनाया। शोख रंग का मेकअप किया। मम्मी को मेरी यह तैयारी पसन्द नहीं थी। बहाना तो मैंने पहले ही घड़ा हुआ था कि सहेली के घर पार्टी थी। उसने मुझे कई बार कहा कि बिन्नी को संग ले जाऊँ, पर मैंने कह दिया कि वहाँ सिर्फ़ लड़कियाँ ही होंगी। मम्मी मेरी ओर देखे जाती थी, पर मुँह से कुछ न बोली। डैडी फ्रंट रूम में बैठे थे। जाते समय मैंने परी को ‘किस’ किया और किसी को कुछ कहे बगै़र बाहर अपनी कार में जा बैठी।
जैसा कि पहले तय हो चुका था, मैंने अपनी कार में ‘मैनर हाउस’ पहुँचना था, वहाँ ऐंडी को अपनी कार लेकर आना था। मुझे अपनी कार ‘मैनर हाउस’ पर खड़ी करके आगे ऐंडी की कार में उसके साथ जाना था। मैं निश्चित समय पर ‘मैनर हाउस’ पहुँच गयी। ऐंडी अपनी होंडा में बैठा मेरी प्रतीक्षा कर रहा था। मैं अपनी कार पॉर्क करके उसकी कार में चली गयी। ऐंडी की कार में इस तरह बैठकर अजीब-सा भी लगा और अच्छा भी।
ऐंजल्स के इलाके में ‘बब्ज़’ नाम का रेस्ट्रोरेंट था। मैंने इसका नाम बहुत बार पढ़-सुन रखा था। ऐंडी ने यहाँ टेबल बुक करवा रखी थी। बाहर से देखने में यह रेस्ट्रोरेंट इतना बढ़िया प्रभाव नहीं छोड़ता था, पर अन्दर प्रवेश करते ही इसके अन्दर का खूबसूरत माहौल ध्यान खींचता था। अन्दर प्रवेश करते ही बैरे ने हमारे ओवरकोट पकड़ लिए और हमें हमारे टेबल तक ले गया, जो एक कोने में सुन्दर-सी जगह पर था। बाहर की ठंड के मुकाबले यह जगह बहुत गर्माहट भरी थी। हमारे ऊपर वाला बल्ब बन्द करके बैरा हमारे मेज पर मोमबत्ती जला गया। मैंने रेस्ट्रोरेंट में निगाह दौड़ाई। अधिक लोग नहीं थे। रेस्ट्रोरेंट के बीचोंबीच बार बनी हुई थी। एक ओर उठते शोर से लगता था कि वहाँ कोई छोटी-मोटी पार्टी चल रही थी। मुझे घूरते हुए ऐंडी ने पूछा, “क्या खाओगी ?”
“कुछ भी, पर ज्यादा नहीं।"
उसी वक्त मुझे ख़याल आया कि जब हम रेस्ट्रोरेंट जाया करते थे तो रवि बहुत कुछ मंगवा लेता था। फिर हमसे खाया ही न जाता। रवि की याद आते ही मेरे दिल ने चाहा कि काश, रवि आज यहाँ हो, हमें डिनर करते हुए देखे और मुँहकी खाकर रह जाये। उसे सबक मिले कि कैसे वह मुझे अकेला छोड़कर चला गया था। उसने एक बार भी नहीं सोचा कि इतनी बड़ी दनिया में मैं अकेली कैसे जीऊँगी और परी को कैसे पालूँगी। अब यहाँ मुझे बैठी को देखे कि मैं जी रही थी और शान से जी रही थी। ऐंडी स्टेक का आर्डर कर रहा था। रवि हफ्ते में एक बार स्टेक अवश्य खाता था। वैस्टर्न फूड उसका मनभावन खाना था। अधभुनी स्टेक पर जान छिड़कता था। कहा करता–“ज्यादा कुक करके स्टेक का भट्ठा न बिठा देना, लोग तो लहू चूती स्टेक खाते हैं।"
ऐंडी ने मेरे लिए वाइन और अपने लिए बियर का आर्डर दिया। रवि के बाद पहली बार पी रही थी। स्वीट वाइन के दो गिलास लेना मुझे हमेशा पसन्द थे। ऐंडी बियर पी रहा था। बियर पीते हुए अपनी ज़िन्दगी की कुछ खास घटनाएँ बता रहा था। सोमरसेंट के इलाके की, जहाँ वह जन्मा था। अपने माँ-बाप और भाई-बहन के बारे में बताता जा रहा था। रवि को लेकर भी उसने एक-दो सवाल किए थे, पर मैंने टाल दिये। ऐंडी की आँखों में बेइन्तहा मोह होता, जब वह मेरी ओर झुक कर बात कर रहा होता। बात करते समय मेरे लिए चुन-चुनकर विशेषणों का प्रयोग करता। बात करते-करते कभी मेरा हाथ थाम लेता, कभी बालों में उंगली फेरने लगता। ‘कैंडल लाइट डिनर’ तो मैंने रवि के साथ कई बार किया था, पर ऐसे रेस्ट्रोरेंट में मैं पहले कभी नहीं आयी थी। डिस्को पर जाते रहते थे। आर्च-वे रहते हुए नज़दीक ही एक बड़ी क्लब हुआ करती थी। यह रेस्ट्रोरेंट ज्यादा पश्चिमी रंग का और मिडिल क्लास लोगों के लिए प्रतीत होता था। इसीलिए चढ़ती उम्र का कोई जोड़ा नहीं दिखाई दे रहा था। संगीत चल रहा था। नया गीत लगा तो एक युगल उठकर डांस करने आ गया। अगले गीत पर दो और जोड़े डांस-फ्लोर पर चले गये। उनकी तरफ देखकर मेरा भी मूड हो रहा था। बैले डांस मुझे भी कुछ-कुछ आता था। इसके कुछ स्टैप स्कूल में सीखे थे। ‘डायना रोस’ का गीत शुरु हुआ। इस गीत की एलबम मेरे पास थी। ऐंडी को भी डायना रोस पसन्द थी। उसने मेरी ओर हाथ बढ़ाया। मैंने दायां हाथ उसे थमा दिया और हम भी डांस-फ्लोर पर नाचने लगे। लहंगा मेरे लिए मुसीबत बन रहा था। अगर मालूम होता कि डांस करने का अवसर मिलेगा तो उसके अनुरूप ही कपड़े पहनकर आती। गीत खत्म हुआ तो शुक्र मनाया। घर से चलते समय सोचा था कि ग्यारह बजे तक वापस लौट जाऊँगी, पर ग्यारह तो यह बज रहे थे; जब हमारे लिए खाना आया। खाने के अन्त में हमें ‘लिकर’ दे गये और ऐंडी को सिगार भी। मैंने वाइन का एक गिलास ही पिया था। लिकर ने जहाँ मुँह का स्वाद आनंदित बना दिया, वह सुरूर में भी वृद्धि कर दी। खाना बहुत बच गया था। बातें करता ऐंडी उठकर मेरे साथ वाली सीट पर मुझसे सट कर बैठ गया।
रेस्ट्रोरेंट में एक तरफ जहाँ पार्टी चल रही थी, वहाँ अचानक ठहाकों का शोर उठा। मेरा ध्यान उधर चला गया। कोई किसी बात पर अभी भी हँसे जा रहा था। मुझे लगा जैसे रवि हो। रवि जैसी ही पीठ मेरी तरफ थी। वैसी ही गर्दन। उसी की तरह कोई टांगें फैलाकर बैठा था। शायद रवि ही हो, किसी की एनीवर्सरी वगैरह होगी। मैं उधर ही देखे जा रही थी। ऐंडी ने मेरा चेहरा अपनी ओर खींचा और चूमने लगा। उसके ऐसा करते ही मेरा पूरा बदन कांपने लगा और निरंतर कांपता रहा। ऐंडी घबरा गया। वह उतावला होकर कहने लगा, “कंवल, तू ठीक तो है न। क्या हुआ ?”
“कुछ नहीं, मैं ठीक हूँ।"
वह ज़रा पीछे हुआ तो मैं तनिक सहज हुई। मैं उसी तरफ देखे जा रही थी। मैंने ऐंडी से कहा, “ऐंडी, चल चलें। बहुत देर हो गयी है।"
ऐंडी ने घड़ी देखी और बोला, “वक्त तो इतना नहीं हुआ, चल, जैसी तेरी मर्जी।"
बिल देने तक ऐंडी ने एक बार फिर मेरे करीब होने की कोशिश की। मुझे फिर कंपकंपी छूट गयी।
हम रेस्ट्रोरेंट से बाहर आ गये। बाहर उसी ठंड ने फिर से हमारा स्वागत किया। बल्कि ठंड पहले से बढ़ गयी थी। हम कार में आ बैठे। कार को गर्म होने में कुछ पल लग गये। मैं परी के बारे में सोच रही थी कि अब तक वह सो चुकी होगी। ऐंडी ने कार किसी अनजानी राह की ओर बढ़ा ली। रास्ता न पहचानते हुए मैंने
पूछा, “किधर ले चला ?”
“अपने फ्लैट में।"
“नहीं, मुझे घर जाना है, मुझे मैनर हाउस मेरी कार तक छोड़ दे।"
“कुछ देर ठहर कर चली जाना, ज्यादा मत रुकना।"
“नहीं, हर्गिज़ नहीं। मुझे वापस छोड़ दे, मैं बहुत लेट हूँ।"
“हम अधिक देर नहीं लगाएँगे।"
“नहीं।"
“मेरे पास सारा इंतजाम है, घबरा मत, डर नहीं।"
“नहीं ऐंडी, ऐसी बातें मत कर।"
“तुझे सैक्स अच्छा नहीं लगता ?"
“नहीं।"
“कोई बीमारी है ?”
“नहीं, बस, तू मुझे मेरी कार तक पहुँचा दे।"
“नहीं कंवल, मैं ऐसा नहीं कर सकता। आखिर तू मेरे साथ डिनर पर आयी है। इतनी देर मेरे साथ रही है।" कहते हुए उसने मुझे पकड़ कर चूमने की कोशिश की। मैंने उसे दूर धकेलते हुए कहा, “मुझे पीरियड आया हुआ है।"
ऐंडी कुछ ठंडा हो गया और सीधा होकर कार चलाने लगा।
घर पहुँची तो एक बज चुका था। घर के सभी सदस्य अभी भी जग रहे थे। शुक्रवार को ज़रा देर से ही सोया करते क्योंकि शनिवार को उठने की जल्दी न होती, पर इतना भी लेट नहीं सोते थे कि एक बज जाये। मुझे अन्दर घुसते हुए भी झिझक हो रही थी। अब किसी से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं थी। बिन्नी सत्रह साल का हो गया था। कभी-कभी मेरे पर रौब भी झाड़ने लगता। बिन्नी ने मेरी ओर कुछ अलग ढंग से देखा। डैडी भी खुंडी पकड़े हुए बैठे थे। उनका तेज-तेज हिलता हाथ और उनकी चुप्पी बता रही थी कि वे मुझसे खफ़ा थे। उबासियाँ लेती परी को लेकर मैं ऊपर बैड-रूम में आ गयी। किसी से कुछ न बोली। मम्मी मेरी ओर खड़ी-खड़ी घूरती रही और फिर मेरे पीछे-पीछे ही आ गयी, जैसा कि उसकी आदत थी। वह गुस्से में कहने लगी, “बता, कहाँ गयी थी ?"
“तुम्हें बताया था न कि सहेली के घर पार्टी थी।"
“बिन्नी ने कांता के घर फोन किया था, वह तो बता रही थी कि कह कोई पार्टी नहीं थी।"
“मम्मी, कांता किसी दूसरे डिपार्टमेंट में है, उसे पार्टी का क्या पता।"
“तेरी आँखें बता रही हैं कि तूने शराब पी है।"
“मम्मी, तू भी बस।"
उसने मुझे बांह से पकड़कर बैड पर बिठा दिया और बोली, “देख कंवल, मुझे और दु:ख न दे, सच बता, क्या करती फिरती है ?”
मुझे लगा कि यही सबसे उत्तम मौका है, मम्मी को ऐंडी के बारे में बता देने का। मैंने कहा, “मम्मी, तू कहती थी न कि मैं विवाह कर लूँ।"
“हाँ।"
“मैंने लड़का देख लिया है।"
“कौन है ?”
“एक गोरा है, मेरे संग काम करता है, मेरे पर जान छिड़कता है।"
मम्मी कुछ न बोली। मेरी तरफ देखती रही और फिर बाहर चली गयी।
अगली सुबह मैं जानबूझ कर कुछ ज्यादा ही देर से उठी। रात वाली बात की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा थी मुझे। मम्मी मेरे कमरे में आयी और बोली, “कंवल, तैयार होकर नीचे आ, बिन्नी और तेरे डैडी वेट कर रहे हैं।"
मैं उठकर बैठ गयी। कुछ सोचती हुई बोली, “मम्मी, डैडी तो ठीक है, अब बिन्नी भी मेरी वेट करने लगा है।"
“तेरा भाई है, बराबर का हो गया है अब।"
“क्या कहना चाहते हैं ?”
“यही कि अगर विवाह होगा तो अपनी बिरादरी में, किसी गोरे के साथ तो किसी कीमत पर भी नहीं।"