रेत भाग 9 / हरज़ीत अटवाल

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समय कितनी तेजी से दौड़ता है, इसका अहसास अब जा कर होने लगा। अभी कल ही मेरा विवाह हुआ, कल ही परी का जन्म हुआ और आज यह इतनी बड़ी होकर मेरे सामने खड़ी थी। छोटी-सी परी मेरे साथ सो रही होती थी कभी, अब पूरा बिस्तर घेरने लगी थी। जिसे मैं कभी गोद में उठाया करती थी, अब सहेली बनती जा रही थी।

बचपन में परी बहुत सुन्दर थी। अधिक रोती भी नहीं थी। जब रवि ने इसे पेट पर सुलाने की आदत डाल ली थी, तब थोड़ा तंग करने लग पड़ी थी। नर्सरी में जाते समय वह वहाँ अकेली नहीं रहना चाहती थी। मम्मी को उसके पास ठहरना पड़ता। बिन्नी और नीता ने भी उसे उठा-उठाकर बिगाड़ दिया था। वे उसे खिलौना ही समझते। डैडी भी घर में घुसते ही उसे पुकारना शुरू कर देते। परी मम्मी के घर पर होती तो उनके घर की रौनक बढ़ जाती। मम्मी ने परी के जन्म पर थोड़ा-सा नाक सिकोड़ा था, पर अब बहुत प्यार करती है। रवि कहा करता, परी हमें और अधिक करीब लाएगी। मुझे मुफ्त में मिली यह एक और खुशी है। पर परी के जन्म के बाद ही सब कुछ बिगड़ गया था।

परी ने रेंगना सीखा, फिर चलना, फिर बोलना। जब वह कोई नई चीज़ सीखती तो वह बहुत खुश होती। वह बिलकुल रवि जैसी लगती थी। उस जैसी आँखें, चौड़ा माथा और बैठे हुए होंठ। बैठे हुए होंठ भी ऐसे कि मानो पूरा दिन बोल-बोलकर थक गये हों। जैसे ये अब मुश्किल से ही खुलेंगे।

जहाँ परी ने बहुत-सी बातें अपनी उम्र से पहले ही सीख ली थीं, वहीं उसका तुतलाना ज़रा ठहरकर साफ हुआ था। उसका तोतलापन, उसकी सुन्दरता में और वृद्धि करता। तुतलाकर बोलती वह बहुत प्यारी लगती।

हमारे घर में होती तो परी कई बार खुद को अकेला महसूस करने लगती। खास तौर पर तब, जब हम उसकी ओर ध्यान न देते। मम्मी के घर की बात और थी। वहाँ नीता, बिन्नी, मम्मी और डैडी उसके संग हर समय खेलते रहते थे। वैसे, रवि उसे व्यस्त रखने के लिए कोई न कोई उल्टी-सीधी बात सिखाता रहता। वह उससे पूछता कि तेरे मामा के कान कैसे हैं, तो परी अपने कान खींचकर दिखाने लगती। रवि पूछता कि तेरे नाना की आँखें कैसी हैं, तो वह आँखें भैंगी कर लेती। ऐसे ही, मम्मी के मुँह की नकल और नीता की तरह चलकर दिखाने लगती।

इसी तरह, नीता ने भी रवि के हँसने के ढंग की नकल उसे सिखा दी थी, पर परी रवि के सामने चुप रहती। कभी-कभी मुझे डर लगता कि परी लाड़-लाड़ में बिगड़ न जाये।

मेरा भी ध्यान हर वक्त उसी में रहता। काम पर जाती तो फोन करके उसके बारे में पूछती रहती। मम्मी खीझकर कहती, “कुछ नहीं होता तेरी लड़की को।”

जब परी की उम्र नर्सरी में जाने की हुई तो रवि उसके लिए स्कूल या नर्सरी तलाशने लगा। मैं चाहती थी कि वह मम्मी के घर के नज़दीक ही नर्सरी में जाये। एक तो उस वक्त मेरा काम भी नज़दीक था और दूसरा, मम्मी उसे नर्सरी में छोड़-ला सकती थी। रवि चाहता था कि वह आर्च-वे में ही किसी नर्सरी में जाये, पर मैंने उसे दलीलें देकर मना लिया था। जब मैं रवि से लड़कर मम्मी के घर आई, तो उस समय इस बात की बहुत सुविधा हो गयी थी। नहीं तो दुबारा उसका स्कूल बदलना पड़ता। पहले भी हम मम्मी के घर पर होते, तो रवि हमारे संग न होता, परी को उसकी प्रतीक्षा न होती। इसीलिए परी ने रवि को बहुत मिस नहीं किया था। वह जल्द ही रवि के बगै़र रहना सीख गयी थी, पर भूली नहीं थी।

परी सातवें साल में थी, जब उसने पूछा था, “मम्म, डैडी कहाँ रहते हैं ? किस शहर ?”

मुझे कुछ मालूम नहीं था। कुछ बता कर भी नहीं गया था। मैं उसे क्या बताती। मुझे आस थी कि वह साउथाल में होगा। उसका भाई प्रितपाल साउथाल में ही रहता था। उस पते पर उसके साथ चिट्ठी-पत्री होती थी। या फिर, बहन की ओर चला गया हो। उसकी बहन मिडलैंड में रहती थी। मैं कई बार सोचती कि रवि के घर जाऊँ। शमिंदरजीत का देवर भी साउथाल में रहता था। वह प्रितपाल को कुछ-कुछ जानता भी था। एक बार वही ख़बर लाया था कि रवि लम्बे समय के लिए इंडिया चला गया था। मुझे लगता कि जब वह मेरी परवाह नहीं करता तो मुझे उसे खोजने की क्या ज़रूरत थी।

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परी स्कूल से लौटते ही पढ़ने बैठ जाती। रात में सोने के समय भी उसके हाथ में किताब होती। मैं मन ही मन कहती–‘बाप जैसी’ और उसे बांहों में भर लेती। डैडी उसे इस तरह पढ़ते देखकर कहते, “किताबी कीड़ा बाप की तरह! कहीं अक्ल में भी उसी की तरह न हो।... सबको पढ़ा देगी।”

मुझे उनकी बात चुभती। कोई परिचित घर में आता तो रवि की बात शुरू करके उसको बुरा-भला कहने लगते। मुझे अच्छा न लगता। मैं वहाँ से उठ जाती। रात में सपनों में रवि आ घुसता। अब परी उसके बारे में कोई न कोई बात करने लगी थी। हम दोनों की विवाह के समय की फोटो हमारे कमरे में पड़ी थी। परी फोटो उठाती और कहती, “फोटो में तो डैडी अच्छा लगता है।”

“अगर अच्छा होता तो तुझे देखने न आता।”

“नाना जी भी कहते हैं कि डैडी बुरा आदमी है, तुझे मारता था, नाना जी को भी मारा था।”

मैं चुप रहती। अगर मैं कोई उत्तर देती, तो भी उसकी तसल्ली न होती। वह फिर पूछती, “वह मुझे भी मारता था ?”

“नहीं, तुझे तो बहुत प्यार करता था।”

“फिर मुझे मिलने क्यों नहीं आता ?”

“यह तो तू उसी से पूछ लेना जब भी मिले।” कहकर मैं उसे सो जाने के लिए जोर डालने लगती।

एक दिन, परी गार्डन में खेलते-खेलते डैडी की नकल उतारने लगी। हाथ में सोटी पकड़कर बायीं टांग और बांह हिलाते हुए चल रही थी। हम सब खिड़की में से देख रहे थे। मैं दौड़ कर गयी और उसे थप्पड़ दे मारा। वह ‘डैडी’ ‘डैडी’ करके रोने लगी। डैडी ने उसे पास बुलाकर कहा, “अब मैं ही तेरा डैडी हूँ।”

“तुम मेरे डैडी नहीं हो, तुम मम्मी के डैडी हो, और मामा के।” डैडी का चेहरा उतर गया।

और फिर, धीरे-धीरे परी रवि को भूल-सी गयी। या फिर, उसकी बात करना उसने छोड़ दिया। शायद इसलिए कि घर में रवि की कभी कोई चर्चा नहीं करता था। अगर कोई करता भी तो बुरे शब्दों में। जब परी ने उसकी बात करना छोड़ दिया तो मैं करने लग पड़ी। रात में जब सोने का समय होता तो परी किताब लेकर बैठ जाती। अपना टेबल-लैम्प जलाकर पढ़ने लगती। मैं कहती, “ऐसे ही तेरा डैडी मेरी नींद खराब करता था। मेरा सोने का समय होता तो वह पढ़ने बैठ जाता।”

“तुम्हें नींद नहीं आती थी ?”

“कहाँ आती थी, फिर तेरे डैडी ने आदत डाल दी।”

“मम्म, मैं भी पंजाबी सिखूँगी।”

“पहले बोलनी तो सीख ले।”

“मुझे आती है बोलनी, मैं नानी के साथ बोला करती हूँ, नाना जी के साथ भी।”

उसी रात मुझे रवि का सपना आता। वह मेरे साथ झगड़ा कर रहा होता कि मैं परी की सही देखभाल नहीं करती। मैं पूछती कि मुझे मिलने क्यों नहीं आता तो वह जवाब देता – तेरे डैडी के कारण।

डैडी की मृत्यु के बाद तो एक बार मैं यहाँ तक सोच गयी थी कि अच्छा हुआ, अब रवि आ जाएगा।

वह न आया। आता कैसे ? उस वक्त तक तो वह दूसरी शादी कर चुका था।

ऐंडी के साथ दोस्ती के समय, मैंने परी से पूछा था, “नया डैडी ले आएँ।”

उसने मेरी ओर देखा था और कुछ नहीं बोली थी। उस समय परी आठ बरस की थी, पर बहुत बड़ी लगी थी मुझे। मैंने प्रश्न दोहराया तो उसने कहा था, “मुझे पसन्द करेगा ?”

“तुझे पसन्द नहीं करेगा तो मैंने उससे क्या लेना है।”

“कौन है ?”

“मेरे संग काम करता है, किसी दिन मिलवाऊँगी।”

“सुन्दर है ?”

“हाँ।”

“पहले वाले डैडी से ज्यादा ?” मैं सोचने लगी कि क्या जवाब दूँ। मैंने कहा, “नहीं, उतना सुन्दर तो नहीं।”

“फिर तुम्हें क्या करना है, पहला वाला डैडी क्यों नहीं ले लेते।”

“पहला डैडी तो तुझे छोड़कर चला गया था।”

परी सोच में पड़ गयी। मैंने फिर कहा, “तू फि़क्र न कर, यह तुझे बहुत प्यार करेगा, रोज घुमाने ले जाया करेगा।”

वह कुछ कहे बिना मुझसे लिपट गयी थी। धनोये के समय भी नया डैडी लाने की बात की थी। मैं यह भूल ही गयी थी कि डैडी लाने की बात परी के साथ पहले भी कर चुकी थी। बाद में, मैंने महसूस किया कि उससे यह प्रश्न न करती तो ठीक था। ये प्रश्न परी के लिए बहुत बोझिल प्रश्न थे।


ऐंडी के साथ मैंने एकदम किनारा कर लिया था। उससे रिश्ता जोड़ते समय मुझे याद नहीं था कि वह गोरा था और मेरे समाज में वह फिट नहीं होने वाला। वह इंडियन होता तो कुछ हो सकता था। ऐंडी वाली कहानी मुझे इतने झटके के साथ खत्म करनी पड़ी कि ऐंडी भी हैरान रह गया होगा। हैरी धनोये को भी मैंने सख्ती से कह दिया था कि अपने रास्ते अलग हैं। उस समय परी ने पूछा था, “तुम तो नया डैडी लाने वाली थी ?”

“नहीं, मैं तो मजाक कर रही थी।”

मेरे संग सचमुच ही मजाक हो गया था। एक बार नहीं, दो बार, बल्कि तीन बार। रवि भी तो मजाक-सा ही कर गया था। मैं कई औरतों को जानती थी जिनके एक्स हसबैंड आते-जाते थे। बच्चों से मिलते-जुलते थे। उन्हें खर्चा भी देते। उनकी ज़रूरतों का ध्यान भी रखते।

रवि के दूसरे विवाह के बारे में पता चलने के बाद हम सभी बदल-से गये। मम्मी जो अभी तक रवि को गलत नहीं ठहराती थी, अगर ठहराती भी तो दबी जबान में, अब सहजता से ही उसके लिए बुरे शब्द इस्तेमाल कर जाती। परी ने भी एक दिन कह दिया, “अब मैं अपने डैडी को बिलकुल पसन्द नहीं करती।”

“क्यों ?”

“उसने दूसरा विवाह करवा लिया है न।”

मम्मी के ऊपर एक असर मैंने और देखा कि वह परी के प्रति जिम्मेदारी ज्यादा समझने लग पड़ी थी। कुछ घर छोड़कर गोरों की एक लड़की परी की सहेली बनी थी। मम्मी को वह अच्छी न लगती। वह कहती कि परी की आदतें भी गोरों जैसी न हो जायें। पहले वह परी को पास खड़े होकर खाना खिलाया करती थी। अब टोकती रहती कि कहीं मोटी न हो जाये। परी की सेहत अच्छी हो रही थी। मम्मी कह रही थी, “देख तो, कैसे चर्बी चढ़ी जाती है, कम खाया कर।”

परी मेरे संग बहुत सारी बातें करती। स्कूल की छोटी से छोटी बात मुझे आकर बताती। हम दोनों को बातें करते देख मम्मी खीझने लगती, कहती, “पता नहीं कौन-सी चंडी चढ़ी है, तुम माँ-बेटी को।”

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जब तक नीता का विवाह नहीं हुआ था, मेरे संग सहेलियों जैसी रही, पर विवाह के बाद उसका हमारे घर में आना बहुत कम हो गया। मम्मी ने एक दिन बताया, “इसकी सास सोचती है कि कहीं इस पर कंवल के जिद्दी स्वभाव का असर न पड़ जाये।”

मम्मी की बात सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। मेरा मन हुआ कि संधू अंटी से जाकर पूछूँ कि मैंने उसके साथ कौन-सी जिद्द की थी। लेकिन, जब अंटी मुझे मिलती तो मुझे ऐसा कुछ महसूस न होता। वह बहुत प्यार से मिला करती थी।

मैं घर से काम पर जाती और काम से घर। मेरी कोई सहेली नहीं थी जिसके पास बैठ सकती। काम पर कांता थी, बस। एक सुनीता भी थी, जिसके दो बच्चे थे, जिन्हें वह पति से अलग रहकर पाल रही थी। उसका पति भी रवि की तरह चला गया था, बिना कुछ बताये। उसने भी रवि की तरह ही, इसकी या बच्चों की कोई मदद नहीं की थी। वह मुझसे भी अधिक दु:खी थी। उसे घर की किस्त देनी पड़ती थी। मम्मी को सुनीता बिलकुल पसन्द नहीं थी। वह उसे छुट्टड़ कहकर उसके बारे में बातें किया करती। कुछेक बार सुनीता हमारे घर आई, फिर मम्मी का व्यवहार देखकर उसने आना बन्द कर दिया था।


संधू अंटी के घर मैं जाती नहीं थी। असल में, मैंने किसी पार्टी आदि में जाना बन्द कर दिया था। लोग रवि के बारे में सवाल करने लगते थे। जैसे मम्मी मेरे ऊपर बुआ की परछाईं की बात करती थी, हो सकता था कि लोग मेरे बारे भी ऐसे विचार रखते हों। कहीं जाकर मन खराब करने से घर में रहना ज्यादा ठीक था।

अंकल संधू यहाँ से निकलने वाले पंजाबी के अखबार पढ़ते रहते थे। इनमें छपने वाले रिश्तों के कॉलम में मेरे लिए लड़के देखते रहते थे। इन लड़कों में अधिकतर गैर-कानूनी रूप से यहाँ रह रहे लड़के ही होते, जिनका इरादा विवाह से ज्यादा पासपोर्ट पर पक्की मोहर लगवाने का होता। यह मोहर मैं रवि के पासपोर्ट पर लगवा चुकी थी। अगर मुझे पता होता कि रवि मेरे साथ ऐसा करेगा तो मैं उसे स्थायी ही न होने देती। अब मैंने विवाह न करवाने का निर्णय कर लिया था। पहले काम पर भी कोई न कोई रिश्तों की जानकारी देता रहता था। लेकिन, अब कुछ समय से शांति थी। किसी ने रिश्ते की बात नहीं की थी। मन भी अब इतना नहीं भटकता था।

कभी-कभी आईना देखते हुए अपना आपा बहुत सुन्दर लगता। कितनी-कितनी देर खड़ी शीशा देखती रहती। मन में खलल पैदा होने लगता। बिरती उखड़ जाती। ऐसे समय मैं पाठ का समय बढ़ा देती। ‘कीर्तन सोहले’ का पाठ तीन-तीन बार पढ़ती। सुनीता जिम जाया करती थी। वह बताती कि कसरत मन को कंट्रोल करने का बढि़या साधन है। मुझे जिम जाने में ज़रा संकोच था। नौकरी पर हर काम को जल्दी-जल्दी निपटाने की कोशिश करती। तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ती। तेज-तेज चलती। कभी मम्मी कहती, “री, क्या तुझे आँधी चढ़ी है!”

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पिछले इतने सालों में अगर कोई मेरे से उकताया नहीं था, तो वह थी शमिंदरजीत। शमिंदरजीत मेरे मामा इंदर सिंह की बेटी थी। डैडी उसे हमारे बराबर ही समझते। मुझ से कुछ देर पहले ही उसका विवाह हुआ था। मेरी हमउम्र होने के कारण भी मेरा उसके साथ सखीपना था। यहाँ उसका दूसरा कोई रिश्तेदार भी न्हीं था। उसका पति भगवंत उसे कहीं लेकर भी नहीं जाता था। हमारे यहाँ भी आती तो वह संग ही होता। मम्मी बहुत कहती कि कभी लड़की को हमारे घर रात रहने दे, पर वह कोई न कोई बहाना बना देता।

पहले कुछ बरस वह ससुराल में रही तो बहुत दु:खी रही। सास ने बहुत तंग किया। मुझसे कहा करती कि तू बड़ी किस्मत वाली है कि अकेली रहती है। फिर, इन्होंने अपना घर ले लिया। अपना अलग घर लेकर शमिंदरजीत खुश थी, पर जल्दी ही भगवंत से तंग रहने लग पड़ी। वह शराब पीता था और उस पर ज्यादतियाँ करता था। मैं सोचा करती कि अगर रवि ऐसा करे कि शराब पीकर दोस्तों में बैठा रहे, पब से आधी रात को घर में घुसे और आकर उल्टा मेरे पर रौब झाड़े, तो मैं कभी भी उसके साथ न रह सकूँ। लेकिन, रवि तो भगवंत से भी आगे निकल गया और मुझे मारने-पीटने लगा। भगवंत की एक खास बात थी कि वह हमेशा ही शमिंदरजीत के साथ खड़ा हो जाता था। हमें कभी ज़रूरत पड़ती तो शमिंदरजीत और वह आ जाते।

जब घर बटा तो भगवंत रवि के हिस्से का सामान प्रितपात के घर छोड़ आया था। मेरा सामान जब घर आया तो मम्मी गुस्से में आकर गालियाँ देने लगी थी। वह भगवंत को भी गलत बोल गयी थी, पर उसने कोई बात दिल पर नहीं रखी थी। समय-असमय डैडी को डॉक्टर के यहाँ भी ले जाया करता। नीता के विवाह में उसने आगे बढ़कर सारा काम किया था। डैडी भी उसको पसन्द करते थे, उसके मददगार स्वभाव के कारण। डैडी के फ्यूनरल में भगवंत ने संधू अंकल के साथ मिलकर काम किये थे।

भगवंत अपने भाई की मार्फत रवि की खोज-ख़बर रखने की कोशिश करता। हालाँकि मुझे वह या शमिंदरजीत पूरी बात न्हीं बताते थे।

बेशक भगवंत और शमिंदरजीत हमारे मददगार सिद्ध होते रहे थे, पर एक दिन उन्होंने फिर से मुझे उखाड़ फेंका। वे हमारे घर आये। शायद विशेष तौर पर आये हों।

शमिंदरजीत कहने लगी, “कल हम साउथाल गये थे, वहाँ पब में इन्हें प्रितपाल मिला था।”

मैं चुप रही। कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। मैं रवि के बारे में कोई बात नहीं करना चाहती थी। कम से कम रवि की कोई बात किसी से साझा करने को दिल नहीं करता था। वह फिर बोली, “इन्होंने उससे परी के डैडी के बारे में पूछा था।”

वह एक पल रुककर मेरी ओर देखते हुए बोली, “उसने बताया कि वह ग्रीनफोर्ड में रहता है, टैक्सियों का बिजनेस करता है, काम अच्छा है, एक बेटी भी है उसके, पर वैसे खुश नहीं।”

मेरे से रहा नहीं गया। मैंने कहना शुरू किया, “क्यों ? खुश क्यों नहीं ? विवाह करवा लिया, बेटी पैदा कर ली, बिजनेस चला लिया, हमें कभी पैनी दी नहीं, और कैसे खुश होना है ?”

“प्रितपाल कहता था कि नई औरत से खुश नहीं, उसमें से कंवल को ढूँढ़ता रहता है।”

उसकी बात मुझे बेचैन करने लगी तो मैंने बात बदल ली। मैं अपने भीतर की उथल-पुथल उसको या किसी दूसरे को नहीं दिखाना चाहती थी। मैंने सोचने की कोशिश की कि मैं इतनी बेचैन क्यों हो रही हूँ, पर मेरी समझ में कुछ न आया।

नींद भी मुझे देर से आई। पहले जब मुझे रवि का सपना आता तो रवि मुझ पर हँस रहा होता। मैं उसे पूछ रही होती, “रवि, तू भी मेरे पर हँसता है।” उस दिन सपना आया तो मैं रवि पर हँस रही थी, उसके ही अंदाज में। वह मेरी ओर देखता जा रहा था, जैसे कह रहा हो, “जान, हँस ले, जितना चाहे हँस ले, आज तेरी बारी है।”