लंगड़ी लड़की / मुक्तक / नैनसुख / सुशोभित

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लंगड़ी लड़की
सुशोभित


लड़की लंगड़ी है।

लंगड़ी लड़की ने लाल साड़ी पहन रखी है!

लंगड़ी लड़की ख़ूबसूरत तो है ही, उसकी लाल साड़ी शायद उससे भी ख़ूबसूरत है।

लंगड़ी लड़की की लाल साड़ी कुछ समय के लिए उसके लंगड़ेपन को छुपा जाती है- लेकिन उसके लिए नहीं, औरों के लिए। क्योंकि लड़की को तो लाल साड़ी पहनने के बावजूद हमेशा याद ही रहता है कि वह लंगड़ी है।

लड़की साड़ियाँ बेचने का काम करती है। साड़ियों की एक दुकान पर वह सेल्सगर्ल है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह साड़ी उतारने का भी काम करती है!

लेकिन एक दिन एक शोहदा फ़्लर्ट करने के मक़सद से उसकी दुकान पर चला आता है। वह लड़की से कहता है, "मुझे ठीक वैसी ही साड़ी दिखाइए, जैसी आपने पहन रखी है।"

लड़की तुरंत ताड़ जाती है कि उसके मंसूबे क्या हैं। औरत को पुरुष के मंसूबे ताड़ने में देर नहीं लगती। लड़की चुपचाप ठीक वैसी ही साड़ी उसे दिखा देती है, जैसी उसने पहनी है।

अब शोहदा नया पैंतरा चलता है। वह कहता है, “आपको पता है, आप बिलकुल मेरी बहन जैसी दिखाई देती हैं, मैं यह साड़ी अपनी बहन के लिए ले रहा था।"

लड़की पलभर को उसकी आँखों में झाँककर देखती है, यह मालूम करने के लिए कि इस बयान में कितनी सचाई है। लेकिन अगले ही पल शोहदा ख़ुद ही सबकुछ चौपट कर देता है। वह कहता है, “आप बिलकुल मेरी बहन की तरह ख़ूबसूरत हैं, बल्कि उससे भी बढ़कर।"

लड़की एक अदृश्य मायूसी से आँख घुमा लेती है। भौंडेपन की यह अति भीतर ही भीतर उसको छलनी करने लगती है। शोहदा कहता है, “आपने जैसी साड़ी पहनी है, उसे देखकर मालूम होता है कि आपकी पसंद बहुत ऊँची है।” लड़की चुपचाप दूसरी तरफ़ देखती रहती है।

शोहदा अब थोड़ा और आगे बढ़ता है। वह कहता है, "मेरी एक गुज़ारिश है। क्या आप मुझे यह साड़ी पहनकर दिखाएँगी?"

लड़की ठंडी नज़रों से उसे देखती है। फिर अपनी कुर्सी से उठती है और लंगड़ाते हुए बाहर आ जाती है।

शोहदा अब जाकर देख पाता है कि अरे, लाल साड़ी पहनने वाली यह ख़ूबसूरत लड़की तो लंगड़ी है!

लड़की कहती है, “तो? मैं तुम्हारी बहन जैसी दिखाई देती हूँ?” शोहदा चुप रहता है।

लड़की पूछती है, “बिलकुल बहन जैसी?“ शोहदा चुप है।

लड़की पूछती है, "तो क्या तुम्हारी बहन भी लंगड़ी है?" शोहदे को काटो तो खून नहीं।

लड़की फिर दोहराती है, “तुम्हारी बहन बहुत ही ख़ूबसूरत है ना? तो क्या वह लंगड़ी भी है?"

सभी दर्शक चुपचाप यह दृश्य देख रहे हैं। सभी ख़ामोश हैं।

लड़की का नाम है स्मिता पाटिल।

जिस फ़िल्म का यह दृश्य है, उस फ़िल्म का नाम है, 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है?'

सन् 80 का यह साल है, जो अब 44 साल पुराना हो गया है। लेकिन इन बीते बरसों में इस मेयार का, इस इंटेंस-आइरनी का कोई दूसरा सीन मुझको दिखला दीजिए। ज़ेहन में देर तक गूंजते रहने वाला दृश्य।

“तुम्हारी बहन बहुत ही ख़ूबसूरत है ना? तो क्या वह लंगड़ी भी है?"