लिली के फूल / अशोक कुमार शुक्ला
("पिताजी हमको चर्च जाना है" )
.....इस बीच स्कूल में एक और महत्वपूर्ण घटना घटी। चेचक का टीका लगने के बाद सबके टीके पकने लगे थे और कई बच्चो को बुखार आया था इसलिए उन्हें छुट्टी पर भेजा जा रहा था। स्कूल की प्रातः प्रार्थना में सभी बच्चो का बुखार शीघ्र ठीक करने की दुआ प्यारे प्रभु येसु मसीह से की जाती। महीना बीस दिन बाद सभी बच्चों के टीके धीरे धीरे ठीक भी हो गए जिसे इन दुआओ का असर कहा गया। स्कूल के पिछवाड़े बाउंड्री के साथ लिली के फूल लगे थे जो हर सुबह खिलते थे और मध्यावकाश होते होते बड़े आकर्षक हो जाते। इन्हें तोड़ने की मनाही थी...मैं इंटरवेल में इन फूलो के पास पहुँच जाता और निहारता रहता।ऐसे ही फूल अपने घर लगाए जाने के कामना मेरे मन में जागी और एक दिन मैंने सबसे नजरें बचाकर फूल का पूरा पोधा ही उखाड़ लिया। सबकी नजरो उसे छिपाकर चुपचाप अपने बस्ते में भी रख लिया था परन्तु न जाने कहाँ से उस पर क्लास मानिटर बेबी की निगाह पड गयी। मानिटर यानी प्रशासक ने अपना दायित्व बखूबी निभाया और उसने इंटरवेल के बाद कक्षा में आये अध्यापक से न सिर्फ शिकायत ही की अपितु उखाड़े हुए फूल को मेरे बस्ते से बरामद भी करवा दिया। अब उस पौधे को यथास्थान रोपने के लिए मुझे क्लास मानिटर की अभिरक्षा में क्यारी तक भेज दिया गया।उस दिन मेरे मन में क्लास मानिटर के प्रति ईर्ष्या, वैमनस्यता और बदला जैसे अनेक भाव जाग्रत हुए जिसकी वजह से घर ले जाकर पौधा रोपने का मेरा सपना तो टूटा ही था साथ में समूची कक्षा के आगे जलील भी होना पडा था। रास्ते में मुझे दुखी देखकर बेबी ने कहा था-"हमारे चर्च में तो इससे भी सुन्दर सुन्दर फूल लगे है लेकिन उन्हें कोई नहीं तोड़ता।चर्च का माली खूब सारे फूलो के पौधे लगाता है" बेबी के प्रति मन में गुस्सा तो इतना था और मैं उससे बदला तक लेने का भाव रखता था और उससे बात तक नहीं करना चाहता था लेकिन चर्च में लगे पौधे लाने के मोह ने मुझे यह पूछने पर विवश कर दिया-"कहाँ है यह चर्च?" "यहीं सीनिअर स्कूल से उपर जो सड़क गड़ोली जाती है उसी पर है.! वहीँ तो हमारा घर भी है.." बेबी ने बताया। छुट्टी में घर पहुंचकर बस पिता के लौटने की प्रतीक्षा करने लगा। दफ्तर से उनके लौटते ही अपना आग्रह उड़ेल डाला- "पिताजी हमको चर्च जाना है" हिन्दू संस्कारों से जुड़े एक पिता के लिए उसके बालक का यह आग्रह हतप्रभ करने वाला था कि उनका बेटा किसी हिन्दू भगवान् के मंदिर की चर्चा करने के स्थान पर सीधे चर्च जाने का आग्रह करे सो उन्होंने तुरन्त पूंछा- "क्यों वहाँ क्या है?" मैंने उन्हें स्कूल में घटित घटनाक्रम के बारे में बताया और यह भी बताया कि चर्च गडोली में है जहाँ हमारे स्कूल की प्रिंसिपल भी रहती है... अब तक मैं इतना जान गया था कि हमारे स्कूल की प्रिंसिपल मैसी मैडम के पति श्री जे0एन0मैसी सीनिअर स्कूल के प्रिंसिपल थे और ये लोग इसाई थे जिनका घर चर्च के पास था। मेरे उत्तर से पिता आश्वस्त हुए और उन्होंने छुट्टी वाले दिन चर्च चलने का आश्वासन भी दिया। अगले ही दिन मैंने अपनी क्लास मानिटर को बताया कि हम लोग छुट्टी वाले दिन चर्च आने वाले हैं। बेबी ने यह बात प्रिंसिपल मैम यानी अपनी माँ को बताई होगी तभी तो उन्होंने मुझे अपने कक्ष में बुलाकर पुचकारा और क्रूस पर लटके ईसा मसीह के चित्र वाले कुछ कागज देकर कहा की उन्हें माँजी और पिताजी को देने को कहा। अब सोचता हूँ कि सन1873ई0 में मिशनरी द्वारा स्थापित मेस्मोर कालेज के प्रबंधतंत्र से जुड़े लोगो का शायद कोई ऐसा अजेंडा रहा हो जिसके पूरा होने की सम्भावना उन्हें मेरे माध्यम से मेरे माता पिता में तलाशनी थी।