वसन्त सेना / भाग 10 / यशवंत कोठारी
किसी भी राज्य में कानून और व्यवस्था का सुचारू रूप से चलना बहुत आवश्यक है। राज्य में सुख, समृद्धि तथा षांति कानून और व्यवस्था पर निर्भर हैं। अपराधी को दंड और निरपराधी को माफी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। न्याय व्यवस्था इसीलिए होती है कि नियम व कानून सब पर बराबरी से लागू हो। कानून से ऊपर कोई नहीं है। न्याय तथा न्याय व्यवस्था का सम्मान हर नागरिक का कर्तव्य है। राज सत्ता भी न्याय से ऊपर नहीं है, लेकिन यदि किसी कारणवश अपराधी खुले घूमें तो सम्पूर्ण व्यवस्था चरमरा जाती है, और इस टूटती जर्जर होती व्यवस्था में से एक नई व्यवस्था जन्म लेती है, जो ज्यादा सुदृढ़, ज्यादा मजबूत और ज्यादा स्थिर होती है। स्थिरता से ही समाज में समरसता एवं समृद्धि आती है। न्याय इस सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखता है।
उज्जयिनी नगर में भी न्याय के लिए न्यायालय थे।
न्यायालय के अधिकारियों की आज्ञा पाकर षोधनक न्यायमंडल के आसनों को जमा रहा है। आसनों की तथा कक्षों में सब तरफ की सफाई कर रहा है। इसी समय राजा का साला शकार भड़कीलंे कपड़ांे में प्रवेश करता है। षोधनक उससे बचना चाहता है। शकार न्यायालय में वसन्त सेना की हत्या का पाप गरीब चारूदत्त के ऊपर लगाने को उपस्थित हुआ है। वह जानता है कि निर्धन पर सब कुछ थोपा जा सकता है। वह न्यायालय में आता है। इसी समय न्यायाधीश न्यायालय में प्रवेश करते हैं। उनके साथ सेठ, कायस्थ आदि भी चल रहे हैं। षोधनक न्यायाधीश, सेठ व कायस्थ को न्यायालय के मुख्य कक्ष में ले जाता है। न्यायाधीश की आज्ञा पाकर षोधक बाहर आकर लोगों से अपील करता है कि जो लोग न्याय मांगने आये हैं वे अपना पक्ष प्रस्तुत करने हेतु माननीय न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत हो। तभी शकार घंमड से बोलता है --
‘मैं राजा का षाला षंस्थानक न्याय की मांग करता हूं।‘
‘शोधनक अन्दर जाकर सूचना देता है कि राजा का साला संस्थानक न्याय मांगने हेतु उपस्थित हुआ है।‘ षोधनक की बात सुन कर न्यायाधीश कहते हैं।
‘आज अवश्य कुछ अनर्थ होगा। तुम राजा के साले से जाकर कह दो कि आज उसके अभियोग पर विचार नहीं हो सकेगा।‘
यह सूचना जब राजा के साले शकार यानि संस्थानक को मिलती है तो वह क्रोध में न्यायाधीश को आज ही अभियोग पर विचार करने की अपील करता है। षोधनक पुनः न्यायाधीश से निवेदन करता है। न्यायाधीश शकार की बात सुनने के लिए उसे कक्ष में बुलाते हैं।
न्यायाधीश -‘ आप न्याय चाहते हैं।‘
शकार -‘हां।‘
न्यायाधीश -‘तो बोलिये क्या बात है?‘
शकार अपने परिवार की प्रशंसा करता है। मगर न्यायाधीश उसे मूल बात कहने को प्रेरित करते हैं।
शकार -‘तो सुनिये। मेरी बहन के प्रिय राजापालक ने मुझे पुष्पकरण्डक बाग उपहार में दिया है। आज जब मैं वहां पर गया तो मैनंे वहां पर एक स्त्री के शव को देखा।‘
न्यायाधीश -‘कौन सी स्त्री।‘
शकार-‘उसको कौन नहीं जानता। वह तो उज्जयिनी नगरी की षोभा वसन्त सेना थी। किसी अपराधी ने उसको धन के लालच में मार डाला।
मैनंे नहीं...................।‘
न्यायाधीश -‘सेठ। कायस्थ। तुम इन बयानों को लिख लो। यह नगरी के पहरेदारों की असावधानी का फल है।‘
शकार -‘वसन्त सेना के शरीर पर कोई गहना नहीं था।‘
न्यायाधीश -‘इस मामले में निर्णय होना मुश्किल है। षोधनक वसन्त सेना की मां को बुलाओ।‘
वसन्त सेना की मां को न्यायालय में प्रवेश मिलता है। वह वृद्धा, मोटी, चपला, गणिका की मां की तरफ लगती है।
‘मेरी पुत्री तो अपने मित्र के यहां पर गई हुई है। आपने मुझे यहां क्यों बुलाया हैं? ईश्वर आपका कल्याण करें।‘
न्यायाधीश वसन्त सेना की मां से प्रश्न करते हैं।‘
‘आपकी पुत्री किस मित्र के यहां गई थी? उस मित्र का क्या नाम है?‘
मां -‘मेरी पुत्री कहां गई थी। यह बताना तो बड़ी सजा की बात है, मगर न्याय की खातिर सब बताना आवश्यक भी है, मेरी पुत्री सागरदत्त के पुत्र आर्य चारूदत्त के यहां पर गई थी।‘
शकार -‘इन शब्दांे का भी अंकन कीजिये। इसी चारूदत्त से मेरी लड़ाई है।‘
न्यायाधीश -‘अब न्याय से पूर्व आर्य चारूदत्त को बुलाना भी आवश्यक है।‘
न्यायाधीश षोधनक को चारूदत्त को न्यायालय में प्रस्तुत करने का आदेश देता है। षोधनक आर्य चारूदत्त को लेकर न्यायालय में प्रवेश करता है। आर्य चारूदत्त चिंतित मुद्रा में न्यायालय में आते हैं। सोचते हैं - गरीब आदमी की बड़ी मुसीबत है। क्या आर्यक और मेरी वार्ता का समाचार षासन को मिल गया है। चारों तरफ अपशुकन हो रहंे हैं। मुझे अपराधी की तरह क्यों बुलाया जा रहा है। क्या कोई भयानक दुर्घटना होने वाली है। ईश्वर मेरी रक्षा करे। यह सोचते हुए वे न्यायालय में उपस्थित होते हैं।
न्यायाधीश चारूदत्त के स्वरूप को देखकर प्रशंसात्मक मुद्रा में सोचते हैं, यह युवक दोशी नहीं हो सकता। वे चारूदत्त को बैठने के लिए आसन लगाने का आदेश देते हैं। आर्य चारूदत्त को देखकर शकार क्रोधित हो जाता है। कहता है --
‘तुम हत्यारे हो, तुमने स्त्री की हत्या की है। तुम्हें आशन नहीं दंड मिलना चाहिए।‘
तभी न्यायाधीश शकार को चुपकर चारूदत्त से पूछते हैं --
‘क्या आप इस वृद्धा की लड़की को जानते हैं? उससे आपका कोई संबंध है?‘ वसन्त सेना की मां को देखकर चारूदत्त शर्मा जाते हैं। न्यायाधीश स्पष्ट रूप से कहने में निर्देश देते हैं तो चारूदत्त बोलते हैं।
‘जी हां, वसन्त सेना, मेरी मित्र है।‘
न्यायाधीश -‘इस समय वसन्त सेना कहां हैं?‘
-‘अपने घर होंगी।‘ चारूदत्त ने सीधा उत्तर दिया। सेठ कायस्थ -‘कब गई? किसके साथ गई? कैसे गई? सब सच-सच बताओ।‘
चारूदत्त -‘अब ये सब मैं क्या बताऊं?‘
शकार -‘तुमने उशे मेरे बाग में ले जाकर मार डाला।‘
चारूदत्त यह सुनकर क्रोधित हो उठता है।
‘अरे बकवादी क्यों झूठ बोल रहा है। तेरा मुँह झूठ बोलने से काला पड़ गया है।‘
न्यायाधीश विचार करते हैं आर्य चारूदत्त ऐसा अपराध कैसे कर सकते हैं। यह राजा का साला अवश्य झूठ बोल रहा है, मगर सही स्थिति का पता कैसे लगे? अपनी बेटी की हत्या के समाचार से वसन्त सेना की मां रोने लग जाती है।
तभी न्यायाधीश न्यायालय में नगर रक्षक आते हैं, न्यायाधीश उन्हें पुष्परण्डक बाग में जाकर मरी पड़ी लाश की जानकारी लेने का आदेश देते हैं।