वसन्त सेना / भाग 9 / यशवंत कोठारी
एक बौद्ध भिक्षु अपनी धीर गंभीर चाल से अपने हाथ में गीला चौला लेकर चल रहा हैं। वे लोगों को धर्म के अनुसार चलने के लिए उपदेश देते हैं। धर्म ही सब कुछ है। धर्म के अलावा सब कुछ मिट जायेगा। धर्म के अनुसार आचरण करो। इन्द्रियों को वश में करो। अविद्या का नाश करो। सिर दाढ़ी मुण्डाने से कुछ नहीं होता, मन मुंडवाना चाहिए। मेरा चौला गंदा हो गया है। इसे धोना जरूरी है। ‘बौद्ध भिक्षु राजाके साले शकार के बाग में प्रवेश करते हैं।‘ वे कहते हैं -
‘बुद्धम शरणम् गच्छामि।
संघम् शरणम् गच्छामि।।
धम्म शरणम् गच्छामि।।।‘
तभी राजा का साला शकार हाथ में नंगी तलवार लेकर विट के साथ बाग में आता है। राजा का षाला भिक्षु को देखकर क्रोधित स्वर में कहता है।
‘ठहर भिक्खू ठहर। मैं अभी तेरा सिर काट कर फंेकता हूं।‘
विट शकार को ऐसा करने से रोकता है। वह शकार को दूसरी तरफ ले जाना चाहता है। भिक्षु की तरफ देख कर शकार फिर उसे मारने दौड़ता है। भिक्षु उसके कल्याण की कामना करता है। कहता है --
‘आप पुण्यवान हैं। धनवान हैं। आप का कल्याण हो।‘
‘ये मुझे गाली क्यों दे रहा है।‘ शकार ने पूछा
‘यह गाली नहीं प्रशंसा कर रहा है।‘ विट ने समझाया।
शकार भिक्षु से पूछता है।
‘तुम इधर क्यों आये हो।‘
‘मैं अपना चौला धोने आया हूँ।‘
‘अच्छा तो तुम मेरे शबसे षुन्दर बाग में अपना गंदा चौला धोने के लिए आया है। तुम इस बाग के षाफ पानी को गंदा कर रहे हो। मैं तुम्हें एक बंेत की शजा षुनाता हूं।‘
विट उसे फिर बचाने का प्रयास करता है। कहता है --
‘इसके मुण्डे सिर तथा गेरुए वस्त्र पहनने की स्थिति से ऐसा लगता है कि यह नया-नया भिक्षु बना है।‘
‘ठीक है तो यह जन्म से भिक्षु क्यों नहीं है।‘ शकार ने पूछा।
लेकिन विट उसे समझा बुझाकर मना लेता है। भिक्षु एक तरफ चला जाता है।
विट और शकार बाग में विचरण करते हैं। एक शिलाखण्ड पर बैठ कर शकार वसन्त सेना की याद में खो जाता है। शकार विट से पूछता है-
‘श्थावरक को गये इतना समय व्यतीत हो गया है। वो अभी तक बैलगाड़ी लेकर वापस नहीं आया है। मैं बड़ी देर से भूखा हूं। अब मैं चल भी नहीं सकता।‘
‘आप ठीक कह रहे हैं। प्यास से व्याकुल जंगली जानवर पानी पीकर आराम कर रहे हैं। तपती दोपहर है, बैलगाड़ी भी कहीं ठहर गयी होगी।‘ विट के इस प्रत्युत्तर से शकार का मन षांत होता है। वह गाने लगता है। --
‘कैसा लगा मेरा गाना।‘
‘आप तो गन्धर्व हैं। आपका गाना तो सुन्दर है।‘ वह फिर गाता है।
‘श्थावरक अभी भी नहीं आया।‘ शकार फिर उद्धिग्नता से पूछता है। तभी दूर से बैलगाड़ी के आने की आवाजें आती हैं। ष्थावरक बैलगाड़ी में वसन्त सेना को लेकर आता हैं। वह बैलगाड़ी को बड़ी तेजी से हांक कर लाता है और आवाज लगाता है।
आवाज सुनकर वसन्त सेना सोचती है वह आवाज तो वर्द्धमानक की नहीं है। क्या बात है क्या आर्य चारूदत्त ने किसी दूसरे गाड़ीवान को भेजा है। मेरा मन अशांत क्यों हैं? क्या कोई अघट घटने वाला है। शकार गाड़ी की आवाज सुनकर गाड़ी के निकट आता है। गाड़ी को देख कर शकार खुश होता है। गाड़ी को अन्दर लाने की आज्ञा देता है। शकार विट को गाड़ी पर चढ़ने की आज्ञा देता है। फिर उसे रोक कर स्वयं गाड़ी में देखता है। डर कर पीछे हट जाता है। गाड़ी में स्त्री है या राक्षसी है। ‘तभी वसन्त सेना भी गाड़ी में से शकार को देखती है। सोचती है - यह राजा का साला शकार कहां से टपक पड़ा। मैं तो अपने प्रियतम आर्य चारूदत्त की सेवा में आई थी। हाय मैं बड़ी अभागन हूं। अब मैं क्या करूं?‘ वह घबरा जाती है। विट वसन्त सेना को देखता है। और कहता है - ‘तुम राजा के साले का पीछा क्यों कर रही हो। यह अनुचित है। धन के लोभ से षायद तुम अपनी मां के कहने से राजा के साले के पीछे पड़ी हो।‘
वसन्त सेना इस बात से इंकार करती है। उसकी समझ में आ गया कि गाड़ी बदल गई है। वह कहती हैं - परन्तु मेरा कोई दोश नहीं है। गाड़ी बदल गई है। गाड़ी बदल जाने के कारण मैं यहां पहुंची हूं। आप मेरी रक्षा करना।‘ वह विट से रक्षा की याचना करती है। विट उसे आश्वासन देता हैं। वह शकार के पास जाकर कहता है - सच में गाड़ी में कोई राक्षसी ही है।‘
शकार उसकी बात नहीं मानता। विट उसे उज्जयिनी चलने की सलाह देता है, शकार उसे भी नकार देता है। तभी वह गाड़ी पर बैठ कर जाने का विचार करता है। वह वसन्त सेना को देख लेता है। प्रसन्न हो जाता है। वह वसन्त सेना के पांव में गिर कर कहता है।
‘देवी मैं सुन्दरता का पुजारी हूं। मेरी प्रार्थना सुनो। मैं भिखारी हूं। मेरी झोली भर दो। समर्पण दो।‘ वसन्त सेना क्रोध से उसे झिड़क देती है। वह शकार को पांव से ठोकर लगाती है। शकार क्रोधित हो जाता है। क्रोध में कहता है --
‘जिश मस्तक पर अम्बिका ने प्यार से चुम्बन लिया था। जो शिर देवताओ के षामने नहीं झुका, तुमने उशी शिर को ठोकर मार दी। ष्थावरक तुम इसे कहां से लाये हों?‘
ष्थावरक उसे वस्तुस्थिति से अवगत कराता है, कि राजपथ पर बहुत सी बैलगाडि़यां थी, और चारूदत्त के बाग के द्वार पर गाड़ी खड़ी की थी वहीं पर षायद गलती से वसन्त सेना गाड़ी में बैठ गई।
‘अच्छा तो ये गाड़ी बदलने से यहां आई है। मुझसे मिलने नहीं। उतारो। इशे गाड़ी से उतारो। तू इस गरीब चारूदत्त से मिलने के लिए मेरे बैलों पर भार डाल रही हो। उतरो जल्दी करो।‘ तभी शकार क्रोध में वसन्त सेना को उतरने के लिए कहता है - उतर नीचे उतर मैं तेरे केशांे को पकड़ कर खीचूंगा। तुझे मारूंगा।‘
तभी विट वसन्त सेना को नीचे उतारता है। वसंत सेना एक तरफ खड़ी होकर कांपने लगती है।
शकार का क्रोध और भड़क जाता है। वह अपमान का बदला लेना चाहता है। वह विट को वसन्त सेना को मारने का आदेश देता है, मगर वसन्त सेना को विट नहीं मारता। फिर वह ष्थावरक को कहता है, वह भी सोने के लालच के बावजूद वसन्त सेना को नहीं मारता। तब क्रोध में शकार स्वयं वसन्त सेना को मारने के लिए आगे बढ़ता है। विट उसे रोकता है। विट वसन्त सेना की रक्षा हेतु पास में छुप जाता है। शकार वसन्त सेना को प्यार करने के लिए तैयार होता है लेकिन वसन्त सेना उसे प्रताडि़त करते हुए कहती है --
‘एक बार आम खाने के बाद में आक को मुंह नहीं लगाती।‘ शकार को पुनः क्रोध आता है। वह स्वयं को अपमानित महसूस करता है।
शकार क्रोध में उसे मारने दौड़ता है। वसन्त सेना आर्तनाद करती है।‘ मां? आर्य चारूदत्त को पुकारती है। मगर शकार वसन्त सेना का गला दबा देता है। वसन्त सेना आर्य चारूदत्त को पुकारती-पुकारती बेहोश हो जाती है। शकार उसे मरा समझ कर दूर बैठ जाता है।
विट वापस जाता है तो बाग के रास्ते में वसन्त सेना को पड़ा देखता है। वह चिल्लाता है।
‘नीच पापी तूने वसन्त सेना को मार डाला। तूने अत्याचार क्यों किया? अब भगवान ही भला करेंगे।‘
विट शकार को देखकर वसन्त सेना के बारे में पूछता है, उसे अपनी धरोहर बताता है। मगर शकार बताता है कि वह तो चली गयी षायद पूर्व की ओर या दक्षिण की ओर। लेकिन बाद में विट को बता देता है कि उसने वसन्त सेना को मार कर बदला ले लिया। विट यह सुनकर मूर्छित हो जाता है।
ष्थावरक भी अपने आपको इस हत्या का अपराधी समझता है। शकार वसन्त सेना की हत्या का आरोप विट पर लगा कर उसे फंसाना चाहता है। शकार विट को अपराध स्वीकार करने की सलाह देता है। विट तलवार खींच कर लड़ने का प्रयास करता है। वह ष्थावरक को अपने गहने देकर अपनी तरफ मिलाने का प्रयास करता है, मगर ष्थावरक नहीं मानता वह ष्थावरक को महल भेज देता है। बाद में बुर्जी में कैद कर देता है। अब शकार वसन्त सेना के शरीर को सूखे पत्तों से ढक लेता है। और न्यायाधीश के पास जाकर फरियाद करने की योजना बनाता है, ताकि वसन्त सेना की हत्या का अभियोग चारूदत्त पर लगा सके। शकार बाग से निकल भागता है। तभी एक बौद्ध भिक्षु उस रास्ते से निकलता है। वह वसन्त सेना को सूखे पत्तों से निकालता है। पानी पिलाता है। वसन्त सेना को होश आता है। भिक्षु उसे पहचान लेता है, कहता है-
‘आपने मेरी जान जुआरियों से बचाई थी।‘ भिक्षु उसे विहार में ले जाकर आराम से ठहरा देता है। भिक्षु की बहन वसन्त सेना की सेवा करती है। वसन्त सेना शीघ्र ही स्वस्थ हो जाती है। वसन्त सेना मन ही मन चारूदत्त को याद करती हैं।