वसन्त सेना / भाग 11 / यशवंत कोठारी

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न्यायाधीश के आदेश पर नगर रक्षक बाग में चले जाते हैं। शकार न्यायाधीश को कहता है --

‘आप कब तक इश नीच चारूदत्त को आशन पर बिठायेंगे। इसे तो शजा मिलनी चाहिए। राजा।‘

तभी चारूदत्त का विदूशक मित्र मैत्रेय भी न्यायालय में आ जाता है।

मैत्रेय चारूदत्त से पूछते हैं-

‘क्या बात है मित्र कुशल तो हैं?‘

‘मेरे ऊपर अभियोग है कि मैंने वसन्त सेना को..............। अब मेरा क्या होगा?‘

‘क्या?‘

‘हां अभियोग चल रहा है।‘ मैं गरीब निर्धन ब्राह्माण हूं, इसलिए मेरी बात पर कोई विश्वास नहीं कर रहा है। हे मित्र, मैत्रेय ये क्या हो गया? तभी मैत्रेय के पास स्वर्ण के आभूशण देखकर शकार कहता है -

- माननीय न्यायाधीश ये गहने वशन्त सेना के ही है। इन्हीं गहनों के लिए उसकी हत्या कर दी गई है।‘

चारूदत्त और भी अभियोग में फंस जाता है। सेठ-कायस्थ गहनों की परख वसन्त सेना की मां से कराते हैं।

मां -‘ये गहने वैसे ही है, मगर वे नहीं है?‘

कायस्थ -‘एक बार पुनः देखिये।‘

मां -‘देख लिये वे गहने नहीं है।‘

न्यायाधीश चारूदत्त के अभियोग पर विचार करते हैं।

‘मैं आपसे निवेदन करता हूं कि आप सच बोले। नहीं तो दंड के भागी होंगे।‘

चारूदत्त -‘अब मैं क्या कहूं। मैं निर्दोश हूं।‘

शकार -‘ कह दें उसे मैंने मार दिया है।‘

चारूदत्त -‘आपने तो कह ही दिया है।‘

शकार -‘देखा आप लोगों ने इशने ही वशन्त सेना को मार डाला है अब इसे दण्ड दीजिये।‘

न्यायाधीश -‘शकार का कथन उचित है। चारूदत्त को बंदी बना लो।‘

वसन्त सेना की मां रोती है। कलपती है। षोधनक उसे बाहर छोड़ आता है। न्यायाधीश षोधनक को आदेश देते हैं कि महाराज पालक को इस अभियोग की सूचना दी जाये। ब्राह्माण को मारा नहीं जा सकता मगर देश निकाला दिया जा सकता है। यह निर्णय अब महाराज को ही करना है।

महाराज का आदेश षोधनक सुनाता है जिन गहनों के कारण वसन्त सेना की हत्या हुई है, उन्हीं गहनों को पहनाकर चारूदत्त को दक्षिण मरघट पर फांसी पर लटका दिया जावे। इस हृदय विदारक समाचार को सुनकर चारूदत्त अपने मित्र मैत्रेय से कहता है --

‘मेरे मित्र जाओ मेरी प्राणप्रिया धूता को इस दुखद समाचार से अवगत कराओ और कहना मेरे बाद मेरे बच्चे को पालन करे।‘

‘मित्र जब जड़ ही सूख जायेगी तो पेड़ कैसे चलेगा।‘ मैत्रेय बोला।

‘ऐसा न कहो मित्र। मेरे ऊपर तुम्हारा जो प्रेम है उसे रोहसेन पर समर्पित कर दो।‘ चारूदत्त रुधंे गले से कहता है।

‘मित्र मैं तुमसे बिछड़ कर जी कर क्या करुंगा?‘

‘एक बार मुझे रोहसेन और धूता से मिला देना।‘चारूदत्त फिर कहता है।

न्यायाधीश महोदय चारूदत्त को ले जाने का आदेश देते हैं। वे फांसी देने वाले कर्मचारियों को तैयार रखने के भी आदेश देते हैं। षोधनक चारूदत्त को काराग्रह मेंं ले जाता है। मैत्रेय घर की आरे जाकर धूता को सूचित करता है।

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आर्य चारूदत्त को फांसी पर चढ़ाने की तैयारी हो रही है। उन्हंे राज कर्मचारी फांसी स्थल तक ले जा रहे हैं। फांसी देने वाली कर्मचारी अनावश्यक भीड़ को हटा रहे हैं। हर चौराहे पर रोक कर प्रजा को उनके अपराध की जानकारी दी जा रही है। चारूदत्त मन में विचार करते हुए चल रहे हैं। भाग्य की लीला का क्या कहना। आज में किस हालत में पहुँच गया। जीवन तो उतार-चढ़ाव का दूसरा नाम हैं। शरीर पर चंदन लगा दिया गया है। तिल, चावल, कुकुम लग गया है। अब अन्त समीप है। दुःख है कि निर्दोश होने के बावजूद सजा मिल रही है।

कर्मचारी लोगों को दूर हटा रहे हैं। प्रथम चौराहे पर कर्मचारी ढिंढोरा पीट कर लोगों को चारूदत्त के अपराध और सजा की घोशणा करते है कर्मचारी कहता हैं --

‘सुनो, प्रजा जनो सुनो। आर्य चारूदत्त पिता सागरदत्त ने धन के लोभ में गणिका वसन्त सेना को पुष्पकंडरक बाग में ले जाकर मार डाला है। गहनों सहित उन्हंे पकड़ लिया गया है और राजापालक ने उन्हंे सूली पर चढ़ाने की आज्ञा दे दी है। यदि कोई दूसरा प्रजाजन भी ऐसा काम करेगा तो दण्ड का भागी होगा। सुनो........। ‘कर्मचारी चारूदत्त को ले चलते हैं। प्रजा में से कोई कहता है --

‘सबका भला करने और भला सोचने वाले आर्य चारूदत्त आज इस दशा को प्राप्त हो गये हैं। वे इस दुनिया से जा रहे हैं। संसार में निर्धन की कोई नहीं सुनता। धनवान, शक्तिशाली की सभी सुनते हैं। ‘हे भाग्य तू भी क्या खेल दिखाता है।‘ राजमार्ग से होते हुए कर्मचारी चारूदत्त को वन स्थल की ओर ले जाते हैं। चारूदत्त वसन्त सेना को याद करते हैं। आर्य चारूदत्त वध-स्थल के पास है। कर्मचारी उन्हंे सूली पर चढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं। आर्य चारूदत्त अंतिम इच्छा के रूप में अपने पुत्र रोहसेन को देखने की इच्छा प्रकट करते हैं। कर्मचारी रोहसेन को लाते हैं। रोहसेन ‘पिताजी - पिताजी‘ कह कर दौड़ता हुआ है और चारूदत्त से लिपट जाता है। चारूदत्त आंखांे में आंसू भरकर पुत्र को देखता है छाती से लगा लेता है - कहता है।

‘हाय मेरे पुत्र - हाय मेरे मित्र मैत्रेय। यह सब देखना भी बदा था। मैं अपने पुत्र को क्या दूं। मेरी जनेऊ तू रख ले पुत्र। जनेऊ अलंकार है पुत्र। तू इसे ग्रहण कर।‘

राजकर्मचारी चारूदत्त को ले जाने लगते हैं।‘

रोहसेन कर्मचारियों को रोकने की असफल कोशिश करता है। चारूदत्त कंधे पर सूली, गले में करवीर की माला और मन में संताप लिए वध-स्थल की ओर प्रस्थान करते हैं। रोहसेन कर्मचारियों को कहता है --

‘‘तुम मुझे मार डालो। मेरे पिता को छोड़ दो।‘

लेकिन कोई नहीं मानता। आर्य चारूदत्त को लेकर कर्मचारी जाते हैं। रोहसेन रोता रहता हैं। नगर में बार-बार घोशणा की जा रही है कि वसन्त सेना के हत्यारे चारूदत्त को सूली पर लटकाया जा रहा है। यह सूचना स्थावरक को मिलती है। वह महल से चिल्लाता है -‘ सुनो लोगों आर्य चारूदत्त निर्दोश है। मैं ही गाड़ी बदल जाने के कारण आर्या वसन्त सेना को पुष्पकरडंक वन में ले गया था। वहीं पर राजा के साले शकार ने वसन्त सेना को मार कर अपने अपमान का बदला लिया है।‘ मगर स्थावरक की आवाज महल में होने के कारण लोगों को सुनाई नहीं देती। स्थावरक महल से कूद कर आर्य चारूदत्त को बचाने का प्रयास करता है। वह कूद पड़ता है, उसकी बेड़ी भी टूट जाती है। वह तेजी से दौड़ कर रास्ता बनता हुआ सूली देने वाले कर्मचारियों तक पहुंचता है। वह घोशणा करता है --

‘राजा के साले शकार ने वसन्त सेना को गला घांेट कर मार डाला है क्योंकि वह राजा के साले को प्यार नहीं करती थी। उसने वसन्त सेना को मार कर अपने अपमान का बदला लिया है।‘

कर्मचारी -‘ क्या तुम सच बोल रहे हो?‘

‘हां मैं सच बोल रहा हूं। यह बात किसी से कहूँ नहीं इसलिए शकार ने मेरे को जकड़ कर महल की बुर्जी पर फंेक दिया था। मैं बुर्जी से कूद कर आया हूं ताकि निर्दोश चारूदत्त की जान बचा सकूं। ‘तभी शकार भी वहां पर आ जाता है। स्थावरक उसे देखकर कहता है ‘ यही है वसन्त सेना का हत्यारा। राजा का साला शकार।

शकार स्थावरक को समझाना चाहता है, मगर स्थावरक नहीं मानता है। शकार कहता है -

‘मैं तो बहुत दयालु हूं। मैं किसी स्त्री को कैसे मार शकता हूं।‘

प्रजानन -‘वसन्त सेना को तुमने ही मारा है। चारूदत्त ने नहीं मारा है। तुम हत्यारे हो।‘

शकार -‘कौन कहता हैं?‘

प्रजानन -‘स्थावरक कहता है।‘

शकार स्थावरक को पुनः अपनी ओर करने के प्रयास करता है। मगर स्थावरक जोर से कहता है।

‘दखो लोगों इसने मुझे यह कंगन देकर मुझसे चुप रहने के लिए कहा था। मगर मैं सच कहूँगा।‘