विपदा और प्रेम / पवित्र पाप / सुशोभित
सुशोभित
विपदा और प्रेम
इमरे कर्तेश के एक नॉवल का नौजवान नायक मृत्यु शिविर में भेजे जाने से ऐन पहले प्रेम में पड़ गया था।
वो उस लड़की को रिझाने के मनसूबे ही बांध रहा था, जब नाज़ियों ने उसे एक कैटल कार में ठूँसकर ऑश्वित्ज़ भेज दिया। मृत्यु के उस समारोह में तब उसके मन-प्राण का केवल एक ही उद्यम रह गया था-- एक और दिन कैसे जीवित रहा जाए!
एक सदी बाद टूटी हुई आत्मा लिए जब वो घर लौटता है, तो सीढ़ियों पर उसी लड़की को पाता है, जिसे प्यार करना कभी उसका सबसे दूरस्थ स्वप्न था।
किंतु अब वो ऐसी रिक्त दृष्टि से उस लड़की को देखता है, जैसे मरे हुए लोग देखते हैं महाभोज का उत्सव!
एक और दिन जीवित रहना -- प्रार्थना जैसा तीव्र, तन्मय, पवित्र आवेग था इस विवश जिजीविषा में, चाहना का कलुष ना था। प्यार की आत्मरति ना थी।
कौन जाने, शायद एक विराट विध्वंस ही प्रेम के शोक से हमारी रक्षा कर सकता था!