शालभंजिका / भाग 1 / पृष्ठ 3 / मनीषा कुलश्रेष्ठ

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उसी के गाँव, उसी के घर, उसी के रेस्तराँ में जाकर, उसी की मम्मी को कह कर मैंने अपने लिए बकार्डी, उसके लिए रेवेरा वाइन ऑर्डर की। मैं इसलिए पी रहा था कि हिम्मत जुटाऊँ और जो महसूस कर रहा हूँ इसे साफ-साफ कह दूँ कि जो मेरे-तुम्हारे बीच है वह प्रेम नहीं, बस एक खूबसूरत स्क्रिप्ट है, इसे जी लो। मगर बात उसने शुरू कर दी और सब कुछ बिगड़ गया। माना कि मैं एक स्क्रिप्ट नहीं लिख पा रहा था इस फिल्म की, शुरू में तो एक आईडिया की तरह मैंने उसे सिगरेट की डिब्बी पर ही लिखा था, बाद में अपने वॉलेट में बरसों से रखे फोटो का प्रिंटआउट निकाल कर उसके पीछे कुछ वाक्यों में, लेकिन ऐसा नहीं था कि और कुछ ठोस नहीं था, इस डिब्बी के अलावा मैंने खुद 'स्टोरीबोर्डिंग' की थी इन दिनों, हर उस सीक्वेंस की जो उस फिल्म के महत्वपूर्ण हिस्से थे। जिन्हें मैंने अपने लैपटॉप पर स्क्रीन सेवर की तरह डाल रखा था जो कि स्लाइड शो की तरह चलता रहता था।

"मुझे पता चल गया है कि स्क्रिप्टनुमा कोई चीज ही नहीं है तुम्हारे पास... बस मुँहजबानी एक कहानी है, यह फिल्म बन रही है या कोई मॉकिंग हैं... ।"

वह कुछ खीजी-सी थी। "तुम बेवकूफ हो, मैं जब से गोआ आया हूँ, तुमसे मिला हूँ, मैं लगातार कम्प्यूटर पर 'स्टोरीबोर्डिंग' पर काम कर रहा हूँ।"

"स्टोरीबोर्डिंग!"

"सीन का फ्रेम-दर-फ्रेम स्केच बनाना, जैसे कॉमिक्स होते हैं... स्टोरीबोर्डिंग से फिल्म कसी हुई बनती है, डायरेक्शन ही नहीं, एडिटिंग आसान हो जाती है। इन वर्चुअल स्केचों में पूरी कहानी होती है, एंगल्स होते हैं, कौन कहाँ से एंटर होगा या कहाँ खड़ा होगा... यह तय होता है, डायलॉग बॉक्स भी होते हैं, यह तेज-रफ्तार तरीका है फिल्मस्क्रिप्टिंग का, फालतू बातें नहीं लिखनी होती हैं कि फलाँ बन्दा यहाँ से घुसा, उसने यह पहना था, यह पकड़ा था... पिछली बार जब मैं इटली एक फिल्म फेस्टिवल में गया था तब एक स्क्रिप्टराइटर से यह ट्रिक सीखी, न केवल सीखी बल्कि इसके लिए बाकायदा पिछले साल मैंने यह आर्ट सीखी, कॉरल ड्रॉ सीखा। एनीमेशन सीखा।"

मैंने लैपटॉप निकाल कर उसे वे सीक्वेंसेज़ दिखाए।

   "वाह!"
   "…. "
   "क्या वह सच में बहुत खूबसूरत और टेलेंटेड थी?"
   "खूबसूरत! हाँ थी,  मगर तब जब तक अल्कोहलिक नहीं हुई थी।"
   "क्या तब भी तुम उसे प्रेम करते थे?"
   "बता चुका हूँ।"
   "वह?"
   "वह भी।"
   "क्या तुम मुझे…।"

"मैं तुम्हें प्रेम नहीं करता, अब प्रेम होता नहीं है, लेकिन तुम मुझे अच्छी लगती हो, क्या तुम मुझे छूने दोगी?"

मैंने अचानक यह पूछ लिया तो वह रोने लगी। मैं बाहर उठ आया, मैं किसी के रोने से घबरा जाता हूँ। बाहर पेवमेंट गीला था, पतझरी पत्तियों के भूरे कीच के कारण रपटन भरा हो गया था, लकड़ियों के जलने की महक हर तरफ थी। कोहरे की पतली सतह स्ट्रीटलाइट के चारों ओर लिपटी हुई एक पीली तैरती हुई गैस को जन्म दे रही थी। आवाज़ें बस गुनगुन-सी थीं और आवागमन सुस्त था। कारें गन्दे पानी की सतह पर तैरती-सी निकल रही थीं। मानसून के आखिरी विकट दिन थे सैलानियों से सूना शहर उदास था, अभी ड्रिंक्स का समय भी नहीं हुआ था और शहर को सोने भेज दिया गया था। मैं भीतर आया तो वह रोकर चुप हो चुकी थी।

"क्या तुम पहले भी अपनी हीरोइनों के साथ सोए हो?"

"बहुत ही कम… दो या तीन…।"

"दो या फिर तीन।"

"तीन।"

"यानी हर फिल्म... तीन ही तो फिल्म... "

"ग्रेशल, यह सवाल एकदम बेहूदा है, तुम्हारी सोच भी। यह कोई फिल्म में काम करने की शर्त नहीं है, बस तुम अच्छी लगती हो और मैंने महसूस किया कि तुम मुझसे आकर्षित हो... तुम शब्दों में मत उलझो, शब्द विस्मृत हो जाते हैं। क्या मैंने कहा और क्या तुमने... या क्या कहें क्या न कहें... सब बेमानी है, त्वचा पर जो छूट जाता है, सुगंध और स्पर्श के रूप में, चेतना उन्हें विस्मृत नहीं करेगी क्योंकि यह उनकी भूखी है।"

उसने कहा, "नहीं, नहीं। मैं अभी तैयार नहीं हूँ।" यह कहते हुए उसने मुझे ऐसी उदास आँखों से देखा कि मुझे लगा कि मेरे साथ सोने का फैसला खुद उसका न होकर किसी अलौकिक शक्ति के हाथ हो।