संभोग से समाधि की ओर / ओशो / पृष्ठ 44
गंदा बूढ़ा जैसी अभिव्यक्ति क्यों बनी?
क्योंकि लंबे समय से समाज दमन करता चला आया है इसलिए गंदे बूढ़े होते है। यह तुम्हारे साधु-संतों, पंडित-पुजारियों की देन है।
यदि लोग अपने सेक्स जीवन को आनंदपूर्ण ढंग से जी सके तो बयालीस साल के होत-होत, याद रखो में कह रहा हूं, बयालीस, न कि चौरासी…बयालीस के होते सेक्स उन पर से अपनी पकड़ छोड़ना शुरू कर देगा। ऐसे ही जैसे कि चौदह के होते स्वयं सेक्स आता है और ताकतवर होता है। ऐसे ही कोई बयालीस का होता है सेक्स विदा हो जाता है। बूढ़ा व्यक्ति अधिक प्रेम पूर्ण, करुणापूर्ण, एक उत्सव से भरा व्यक्ति हो जाता है। उसके प्रेम में कामुकता नहीं होती। कोई चाहत नहीं होगी, इसके द्वारा किसी तरह की वासना को पूरी करने की मंशा नहीं होगी। उसका प्रेम शुद्ध होगा। मासूम; उसका प्रेम आनंद होगा।
सेक्स तुम्हें सुख देता है। और सेक्स तभी सुख देता है जब तुम इसमें से गूजरों तब सुख इसका परिणाम होगा। यदि सेक्स अप्रासंगिक हो गया हो—न कि दमन, बल्कि तुमने इतनी गहनता से अनुभव किया कि इसका कोई मुल्य नहीं है। तुमने इसे पूर्णता से जान लिया, और ज्ञान हमेशा स्वतंत्रता लता है। तुमने इसे पूर्णता से जाना और चूंकि तुमने इसे जान लिया, रहस्य समाप्त हो गया, इससे अधिक जानने को कुछ नहीं रहा। इस जानने में, सारी ऊर्जा, काम की ऊर्जा, प्रेम और करूण में रूपांतरित हो जाती है। आनंद वश कोई देता है। तब बूढ़ा व्यक्ति दुनिया का सबसे सुंदर व्यक्ति है, दुनिया का सर्वाधिक स्वच्छ व्यक्ति।
दुनिया की किसी भाषा में स्वच्छ बूढ़ा जैसा कोई शब्द नहीं है। मैंने कभी नहीं सूना। लेकिन गंदा बूढ़ा सारी भाषाओं में होता है। कारण यह है कि शरीर बूढा हो गया है। शरीर थक गया है। शरीर सारी कामुकता से मुक्त होना चाहिए। लेकिन मन, दमित इच्छाओं की वजह से, अब भी लालायित रहता है। जब कि शरीर इसके काबिल नहीं रहा। और मन सतत मांग करता रहता है। जिसके लिए शरीर सक्षम नहीं है। सच तो बूढ़ा व्यक्ति परेशान होता है। उसकी आंखें, कामुक, वासना से भरी है, उसका शरीर मृतप्राय हो थका हुआ है। और उसका मन उसे उत्तेजित किये जाता है। वह भद्दे ढंग से देखने लगता है, गंदा-चेहरा; उसके भीतर कुछ गंदा निर्मित होने लगता है।
शरीर देर सबेर बूढ़ा होता है; इसका बूढ़ा होना पक्का है। लेकिन यदि तुमने अपनी वासनाओं को ठीक से नहीं जिया तो वे तुम्हारे आसपास घूमती रहेंगी। वे तुम्हारे भीतर कुछ गंदा निर्मित करके रहेगी। या तो बूढ़ा व्यक्ति दूनिया का सबसे सुंदर व्यक्ति होता है। क्योंकि उसने वहीं भोलापन अर्जित कर लिया है। जो छोटे बच्चे में होता है। या यूं कह लीजिए की छोटे बच्चे से भी अधिक गहरा भोलापन। वह संत हो जाता है। लेकिन यदि वासनाएं अभी भी है, आंतरिक विद्युत की भांति दौड़ती हुई, तब वह परेशानी में पड़ने ही वाला है।
यदि तुम बूढ़े हो रहे हो, याद रखो वृद्धावस्था जीवन का सबसे अधिक सुंदर अनुभव है। अगर तुम इसे बना सको तो। क्योंकि बच्चें को भविष्य की चिंता है। यह करना है और वह करना है उसकी महान इच्छाएं है। हर बच्चा सोचता है कि वह कुछ विशेष होने वाला है वह वासनाओं और भविष्य में जीता है। युवा अपनी सभी इंद्रियों में बहुत अधिक उलझा होता है। सेक्स वहां है, आधुनिक खोज कहती है। हर आदमी तीन सेकेंड में एक बार सेक्स के बारे में सोचता है। स्त्रियां थोड़ी अधिक ठीक है। वे छ: सेकंड में एक बार सेक्स के बारे में सोचती है। यह बहुत बड़ा अंतर है। लगभग दोगुना; पति पत्नी के बीच होने वाली कलह का यह एक कारण हो सकता है।
हर तीन सेकंड में सेक्स मन में कौंधता है। युवक प्रकृति की ऐसी ताकत होती है। इससे वह स्वतंत्र नहीं हो पाता। महत्वाकांक्षा है, और समय तेज गति से भागा जा रहा है। और उसे कुछ करना है। सभी इच्छाएं, वासनाएं और बचपन की परिकल्पनांए पूरी करनी है; वह पागल दौड़ में है, बहुत जल्दी में है।
बूढ़ा व्यक्ति जानता है कि यौवन के वे सारे दिन और उनकी परेशानियां जा चुकी है। बूढ़ा उसी दशा में है जैसे कि तूफान के बाद शांति उतर आती है। वह मौन अत्यधिक सुंदर, गहन संपदा से भरा हो सकता है। यदि बूढा व्यक्ति सचमुच प्रौढ़ है, जो कि बहुत कम होता है। तब वह सुंदर होगा। लेकिन लोग सिर्फ उम्र में बढ़ते है, वे प्रौढ़ नहीं होते। इस कारण समस्या है।
परिपक्व होओ, अधिक प्रौढ़ होओ, और अधिक जागरूक और सचेत होओ। और वृद्धावस्था तुम्हें अंतिम अवसर दिया गया है: इसके पहले कि मौत आये, तैयार हो जाओ। और कोई मृत्यु के लिए कैसे तैयार होता है? अधिक ध्यान पूर्ण होकर।
यदि कुछ वासनाएं अभी अटकी है, और शरीर बूढा हो रहा है। और शरीर उनको पूरा करने की दशा में नहीं है, चिंता मत करो। उन वासनाओं पर ध्यान करो, साक्षा बनो, सचेत होओ। सिर्फ सचेत होने व साक्षी होने से और जागरूक होने से, वे वासनाएं और उनमें लगी ऊर्जा रूपांतरित हो सकती है। लेकिन इसके पहले कि मौत आये सभी वासनाओं से मुक्त हो जाओ।
जब मैं कहता हूं कि सभी वासनाओं से मुक्त हो जाओं तो मरा यह मतलब है कि वासनाओं के सभी संसाधनों से मुक्त हो जाओ। तब वहां शुद्ध अभीप्सा होगी, बगैर किसी विषय वासना के बगैर किसी पते के, बगैर किसी दिशा के, बगैर किसी मंजिल के। शुद्ध ऊर्जा, ऊर्जा का कुंड, ठहरा हुआ। बुद्ध होने का यही मतलब है।
ओशो
दि बुक ऑफ विज़डन