संभोग से समाधि की ओर / ओशो / पृष्ठ 45

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सेक्स अनैतिक अथवा नैतिक भाग-3

ऐसा लगता है कि पश्‍चिम के लिए यह स्‍वीकारना बहुत मुश्‍किल है कि सेक्‍स का बिदा होना आनंद और अनंत का आशीर्वाद की तरह हो सकता है। क्‍योंकि वे मात्र भौतिक शरीर में ही विश्‍वास करते है। किसी भी पल काम तृप्‍ति का आनंद लेने के लिए सेक्‍स एक साधन मात्र है। यदि तुम पर्याप्‍त भाग्‍यशाली हो तो, जोकि लाखों लोग नहीं है।

सिर्फ कभी-कभार कोई थोड़ा सा काम के चरमोत्‍कर्ष का अनुभव ले पाता है। तुम्‍हारे संस्‍कार तुम्‍हें रोकते है। पूरब में यदि सेक्‍स स्‍वत: गिर जाता है यह तो उत्‍सव है1 हमने जीवन को पूरा दूसरी ही तरह से लिया है, हमने इसे सेक्‍स का पर्यायवाची नहीं बनाया। इसके विपरीत, जब तक सेक्‍स रहता है इसका मतलब है कि तुम पर्याप्‍त प्रौढ़ नहीं हुए।

जब सेक्‍स बिदा हो जाता है, तुम में अत्‍यधिक प्रौढ़ता और केंद्रीयता आती है। और असली ब्रह्मचर्य, प्रामाणिक ब्रह्मचर्य। और अब तुम जैविक बंधनों से मुक्‍त हुए जो सिर्फ ज़ंजीरें मात्र है। जो तुम्‍हें अंधी शक्‍तियों के कैदी बनाते है, तुम आंखे खोलते हो और इस अस्‍तित्‍व की सुंदरता को देख सकते हो। तुम अपने ब्रह्मचर्य के दिनों में अपनी ही मूढ़ता पर हंसोगे। कि कभी तुम सोचते थे कि यही सब कुछ है जो जीवन हमें देता है।

ओशो

सत्‍यम, शिवम्, सुंदरम्