सफ़ेद गुलदान / मुक्तक / नैनसुख / सुशोभित
सुशोभित
एक सफ़ेद गुलदान है। बहुत शानदार, क़ीमती, नायाब, अनूठा। वह ख़ूबसूरत गुलदान खाने की एक मेज़ पर रखा है। दस्तरख्वान पर छह लोग बैठे हैं। और वे सभी सफ़ेद रौशनी से धुले एक कमरे के भीतर हैं।
दुनिया इसी क्रम में बनाई गई थी- कमरे के भीतर मेज़ नहीं थी, मेज़ पर गुलदान नहीं था। गुलदान के आसपास मेज़ फैली हुई थी, मेज़ के आसपास कमरा उग आया था! वह गुलदान इस सबके में था-जैसे सौरमंडल के केन्द्र में होता है आग का गोला!
गुलदान बहुत क़ीमती था। पेरिस में बना, सिंगापुर से ख़रीदा गया। “हिंदुस्तान में कहाँ बनती हैं ऐसी चीजें? यहाँ तो केवल कचरापट्टी", मेज़ पर बैठा एक शख़्स कहता है, दूसरा सहमति में सिर हिलाता है। वे सभी लोग हिंदुस्तान में बने थे, पेरिस में बना गुलदान उन सबसे बड़ा था। वे गुलदान के सामने मामूली हो गए थे।
सभी लोग एक साथ एक मेज़ पर बैठे हैं लेकिन सभी एक जैसे नहीं हैं। मिसाल के तौर पर अल्बर्ट पिंटो मोटर मैकेनिक है। वह तो सिंगापुर से वैसा शानदार गुलदान ख़रीदने का सपना भी नहीं देख सकता।
और तब, धीरे-धीरे उस कमरे में गुलदान बड़ा होने लगता है और उसके सामने अल्बर्ट पिंटो की हस्ती सिमटने लगती है! कमरे में तनाव है, वर्ग-चेतना के टकराव हैं, बहस-जिरहें हैं, खाने की मच-मच आवाज़ें हैं, चीनी के बर्तन से टकराती चम्मचों की खनकती ध्वनियाँ हैं। और इन सबके बीच गुलदान एक शानदार मीनार की तरह खड़ा हुआ है।
तभी कोई कहता है, यह गुलदान तो बहुत मज़बूत मालूम होता है। कोई और कहता है, जितना महंगा है उतना ही टिकाऊ भी है। अनब्रेकेबल है! “अनब्रेकेबल? “ अल्बर्ट पिंटो पूछता है, “वाक़ई? चलो, आजमाकर देख लेते हैं।“ और वह उस शानदार गुलदान को हवा में उछाल देता है। किसी जादुई चीज़ की तरह गुलदान हवा में ऊपर उठता है, फिर तेज़ी से गिरता है और सख़्त फ़र्श से टकराते ही टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर जाता है।
एक गुब्बारा फूटने के बाद जैसे सहमकर ख़ुद में सिमट जाता है, वैसे ही सफ़ेद रोशनियों वाला वह कमरा भी सिकुड़ जाता है। आखिर, गुलदान के भीतर कमरा था, कमरे के भीतर गुलदान थोड़े ना था!
कैमरा एक-एक कर सभी छह लोगों के चेहरों का मुआयना करता है- अचरज, हैरत, खीझ, अंदेशा, राहत, शर्म और दर्प के अनेकानेक चुप्पियों भरे चित्र। सबसे आख़िर में कैमरा अल्बर्ट पिंटो के चेहरे पर जाकर रुक जाता है। अल्बर्ट चुपचाप खाना खाता रहता है, और फिर, कंधे उचकाकर कहता है- “टूट गया!"
जो कभी नहीं टूट सकता था, वह एक पल में चकनाचूर होकर फ़र्श पर बिखर गया था, और केवल गुलदान ही नहीं!
अल्बर्ट पिंटो को इसीलिए तो गुस्सा आता है कि जो इतनी आसानी से टूट सकता है, उसको सभी ने अटूट क्यों मान लिया था? और केवल गुलदान ही नहीं!