समाजसेवा क्षेत्र के शिखर पर / कृष्णा जाखड़
समाजसेवा क्षेत्र के शिखर पर :
स्व के केन्द्र से बाहर निकलकर इतर के लिए निस्स्वार्थ भाव से किए जाने वाले कार्य ही समाज सेवा के रूप में जाने जाते हैं। परिवार के बाद बालक का जुड़ाव समाज से होता है। प्रभा खेतान का संबंध एक धनी परिवार से रहा। पैसे वालों का अपना अलग समाज है वे प्राय: गरीब व निम्न तबके से सरोकार नहीं रखते। परंतु प्रभा का जुड़ाव पैसों में पलते हुए भी गरीबों से रहा। गरीबों के जीवन को करीब से देखा- दाई मां के रूप में, खेदरवा व उसकी मां के रूप में, फैक्ट्री के मजदूरों के रूप में। इन सबके माध्यम से प्रभा ने निम्नवर्गीय समाज को समझा। नारी समाज की स्थितियों से तो अपने माध्यम से खूब गहराई से जान ही लिया था। विदेशों में घूमते हुए नारी की दशा से प्रभा को और समझने का मौका मिला।
प्रभा का रूझान इन कमजोर एवं शोषित वर्गों की सेवा के प्रति हुआ।
बचपन से ही प्रभा संवेनशील थीं। प्रभा जब भी किसी के साथ भेदभाव होता हुआ देखती या फिर उच्च वर्ग द्वारा निम्न वर्ग व पुरुष द्वारा नारी का शोषण देखती तो हजारों अनसुलझे सवाल सामने आ खड़े होते। तार्किक विवेचन उनका पीछा करता। परंतु जैसे-जैसे प्रभा बड़ी होती गईं, दुनियां को समझती गईं और अनसुलझे प्रश्नों की तह धीरे-धीरे खुलती गई।
अपने जीवन की परिस्थितियों के कारण प्रभा मजबूत हेाती गईं और साहित्यिक तथा व्यावसायिक जगत् में स्थापित होते-होते कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ गईं। प्रभा ने पैसों को दूसरों के हितार्थ खूब बांटां। अपनी आत्मकथा में प्रभा लिखती हैं-
उदार हाथों से पैसा लुटाया है मैंने, जी भरकर दिया है आसपास के लोगों को। सम्पर्कों ने खूब-खूब फायदा उठाया है इसका...... धन को जितना समेटूंगी उतनी गरीब हो जाऊंगी। मुझे कृपण और ओछे मन के लोग कभी पसंद नहीं आते।``
आगे बढ़ने की इच्छा रखने वालों की मदद के लिए प्रभा के हाथ हरदम खुले रहे। अनेकों संस्थाओं के माध्यम से प्रभा ने लोगों की सहायता कीं। अंतरराष्ट्रीय मारवाड़ी सम्मेलन की युवा शाखा तथा प्रभा खेतान फाउण्डेशन के सांझा कार्यक्रम 'सभी के लिए शिक्षा` के तहत एक वृहत्तर कार्यक्रम का संचालन प्रभा द्वारा समाज सेवा में बड़ा कदम रहा। इसमें गरीब और मेधावी छात्र-छात्राओं के लिए विशेष व्यवस्था का प्रबंध रखा गया।
प्रभा का मानना था कि शिक्षित पीढ़ी ही भारत का भविष्य है और इसी वजह से शिक्षा के प्रति सेवा-सहयोग भाव सदैव रहा। छात्राओं का साहित्य के प्रति रूझान हो इसीलिए प्रभा ने 'प्रभा खेतान प्रतिभा पुरस्कार` शुरू किया। इसमें राजस्थान की साहित्यिक छात्रा प्रतिभाओं का पुरस्कृत किया गया।
प्रभा खेतान स्वयं 'प्रभा खेतान फाउण्डेशन` की संस्थापिका अध्यक्षा थीं। इस संस्था के माध्यम से प्रभा ने अनेक तरहों से सामाजिक योगदान दिया।
नारी विषयक कार्यों में प्रभा सक्रिय रूप से भागीदार रहीं। स्त्री शिक्षा के प्रसारात्मक भी अनेक कदम उठाएं। प्रभा खेतान फाउण्डेशन के द्वारा स्थाई कोष बनाकर 'कलकत्ता चेम्बर ऑफ कॉमर्स` के माध्यम से 'प्रभा खेतान पुरस्कार` की स्थापना की। अपने क्षेत्र में विशेष योगदान देने वाली किसी महिला को प्रतिवर्ष इस पुरस्कार से नवाजा जाता है। पुरस्कार स्वरूप एक लाख रुपये की नगद राशि दी जाती हैं। इस पुरस्कार के संबंध में प्रभा खेतान कहती हैं,
यह एक सेल्फमेड स्त्री की ओर से एक सेल्फमेड स्त्री के काम की पहचान और सम्मान है।``
यह पुरस्कार अब तक मेधा पाटेकर, शबाना आजमी, कपिला वात्सायायन, मीरा मुखर्जी, वंदना शिवा, उषा गांगुली आदि को मिल चुका है।
प्रभा अनेक सामाजिक गतिविधियों में भागीदार रहीं-
प्रभा खेतान दातव्य न्यासों से जुड़े रहकर पूरे भारत में सक्रिय रहीं। रेडक्रास सोसायटी के माध्यम से भी काफी लोगों की मदद की। रेडक्रास सोसायटी के कल्याण शाखा की प्रभा खेतान चेयरपर्सन भी रहीं।``
'देशभक्त ट्रस्ट` में भी न्यासी के रूप में प्रभा का योगदान उल्लेखनीय रहा। भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन जैसे लोगों के साथ प्रभा का इस ट्रस्ट में न्यासी होना अपने-आप सक्रियता का भान कराता रहा।
जिला सैनिक बोर्ड, कलकत्ता की मानद सदस्या के रूप में भी प्रभा ने सैनिक कल्याणार्थ कार्य किए। सौ वर्षों से अधिक पुरानी प्रतिष्ठित व एशिया की सबसे पुरानी संस्था 'कलकत्ता चेम्बर ऑफ कॉमर्स` (स्थापना सन् १९३०) की प्रथम अध्यक्षा पद पर भी प्रभा रहीं।
गरीब व असहायों की मदद के लिए प्रभा खेतान सदैव आगे रहीं। नीचे से चलकर ऊपर उठने की चाह रखने वालों को प्रभा का सदैव सहयोग मिला।
प्रभा में सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने की प्रवृत्ति प्रारम्भ से ही थीं। राष्ट्रसेवा के निमित्त तो उन्होंने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया। सन् १९६२ में नेहरूजी के आह्वान पर अपनी प्रिय धरोहर सोने के गहने दान कर दिए। प्रभा के ही शब्दों में-
यह १९६२ का साथ था। भारत पर चीन का आक्रमण हुआ। मेरा राष्ट्रवादी मानस पूरी तरह सत्ता के साथ था। मैं अपने सोने के तमाम गहने दान कर आई थी ......... देश को धन की जरूरत है।``
जब एक लड़की मां के पहनाए हुए गहनों को बेहिचक दान करने का माद्दा रख सकती है तो फिर अपनी मेहनत से व्यावसायिक उपलब्धियों से लबरेज होने के बाद समाज सेवा में आर्थिक योगदान असम्भव कैसे हो सकता है? प्रभा ने कभी नहीं देखा कि समाज ने उनको क्या दिया बस वे तो खुले हृद्य से समाज सेवा को जैसा भी बन पड़ा अर्पण करती रहीं और आजीवन अपने कर्म को जारी रखते हुए आगे बढ़ती गईं।