सुंदरता का आखेट / पवित्र पाप / सुशोभित
सुशोभित
अज्ञेय की एक बड़ी सुंदर कहानी है- ‘सांप।’
अक्तूबर 1950 में यह लिखी थी उन्होंने। कम ही लोग उस पर बात करते हैं। कम से कम मैंने तो किसी को उस पर बात करते नहीं देखा। किंतु आधुनिकता का शिल्प, मनोवैज्ञानिक पर्यवेक्षण, ऐन्द्रिक स्फुरण और सुघड़ भाषा का जो रचाव उसमें आपको मिलता है, वो अज्ञेय के लिए भले बहुत स्वाभाविक हो, हमारी भाषा में तो अत्यंत दुर्लभ ही है।
कहानी क्या है, एक दृश्य है। एक लड़की है, बहुत भली है, बहुत सुंदर है। एक पुरुष है, जिसे लड़की पर अनुराग है। उसकी लालसा है। स्वप्न में उसने आज लड़की को प्यार किया है। किंतु स्वप्न ही तो था, स्वप्न से किसकी तृषा मिटती है? सो वह नींद टूटते ही उसके पास चला आया है, जैसे स्वप्न की मोहिनी से मुक्त नहीं होना चाहता हो। चाहना उसके भीतर उमग रही है। वो उससे रिस रही है।
दोनों साथ घूमने निकलते हैं। जंगल चले जाते हैं। जंगल घना हो जाता है, वहां वे दोनों अब अकेले ही हैं। उस एकांत का सम्मोहन पुरुष को ग्रस लेता है। किंतु लड़की को तो जैसे उसकी प्रतीति तक नहीं। या हो भी तो वो जतलाती नहीं! अनभिज्ञता के स्वांग में सिद्ध होती हैं लड़कियां!
बीहड़ में एक देवी मंदिर है। मंदिर की दीवार से सटा एक सांप पड़ा है। लड़की सहसा कहती है- देखो तो कितना सुंदर सांप है। पुरुष को लड़की के भोले विस्मय पर लाड़ आ जाता है। तब भी, बेपरवाही से कहता है- सुंदर तो है किंतु कितना वेध्य। अभी एक ढेला मारूं तो यों ही मर जाय। सारा रूप लिए ज्यों का त्यों पड़ा रह जाए, बिटुर-बिटुर ताकता। लड़की कहती है, किंतु मारो ही क्यों? कितना तो सुंदर है।
पुरुष ने इस अवसर पर जो कहना था, वो कहा नहीं। कहा हो तो कहानी में उसे दर्ज नहीं किया गया। किंतु मुझे पता है, अज्ञेय को पता था, और उस पुरुष को भी पता होगा कि वहां वह क्या कह उठता। तीनों की एक जाति जो ठहरी!
यही ना कि सुंदर है तो क्या, सुंदरता ही तो वेध्य होती है, और सुंदरता का ही तो आखेट किया जाता है!
बीहड़ में जैसे वो सांप वेध्य था, वैसे ही वह लड़की भी वेध्य थी। सुंदरता उन दोनों की ही रक्षा नहीं करती थी, उल्टे उसने उन्हें और निष्कवच ही बना दिया था।
कहानी में इससे अधिक कुछ होता नहीं, लड़की और पुरुष दोनों जैसे वहां गए थे, वैसे ही वहां से लौट भी आते हैं। किंतु उस अनुभूति का आदिम स्पर्श पाठक के मन पर जम जाता है। जैसे कोई विद्युल्लता अभी छूकर गुज़री हो। इस सूक्ष्मश्रवा पर्यवेक्षण के सम्मुख उत्तेजना के बड़े से बड़े कथानक बौने हैं। ऐन्द्रिकता के निरूपण के उपकरण वैसे ही अमूर्त हो सकते हैं।