सुबह की लाली / खंड 1 / भाग 10 / जीतेन्द्र वर्मा

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“हमारे पूर्वजों ने कभी पूरे हिंदुस्तान पर शासन किया था। एक-दो दिन नहीं वरन् सदियों तक। हमें अपने अतीत को फिर से याद करना होगा। आज हमारे ऊपर घोर अत्याचार हो रहे हैं। कहने के लिए तो यह धर्मनिरपेक्ष देश है। परंतु व्यवहार में यह हिंदू राष्ट्र है। हम यहाँ दूसरे दर्जे के नागरिक हैं। हमें शक की निगाह से देखा जाता है।

काश्मीर मुस्लिम बहुल्य क्षेत्र है। नियमतः उसे पाकिस्तान में होना चाहिए था, परंतु हिंदुस्तान ने उस पर जबरन कब्जा कर रखा है। भारत की सेना वहाँ हमारे माँ-बहनों के साथ बलात्कार करती है और सारे अमानवीय अत्याचारों से तो आप परिचित ही होंगे। उसे दुहराने की मैं जरूरत नहीं समझता.............

आज इस्लाम पर चारों तरफ से आक्रमण हो रहे हैं, पर बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारा ध्यान इस ओर नहीं है। हमारी आपसी एकता कम हो रही है। इस्लाम के प्रति समर्पण का भाव नई पीढ़ी में कम हो रही है। यही सब देखकर हमने गाँव-गाँव में इस्लाम पर आये खतरों से लोगों को आगाह करने का अभियान चलाया है।.............”

और इस तरह की बहुत सारी बातें रात के सन्नाटे को भंग कर रही हैं। बोलने वाले हैं मौलाना अब्दुला। गैस बत्ती के लाइट में एक पेड़ के नीचे डेढ़-दो सौ लोग बैठे हैं। उन्हें बताया गया है कि शहर से तकरीर देने वाले एक मौलाना आए हैं। मौलाना कहे जा रहे हैं-

“आज देश में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। हिंदू अब संगठित हो रहे हैं। वे हिंदुस्तान से मुलसमानों का सफाया करने की तैयारी कर रहे हैं। सरकार सेना, पुलिस, प्रशासन सब जगह वही भरे हैं।............. अगर समय रहते हम नहीं जगे तो कहीं के नहीं रहंेगे। हिंदू बड़ी संख्या में हथियार जमा कर रहे हैं............. हमने भी कुछ हथियार मँगाए हैं। अपनी रक्षा के लिए हथियार होना बड़ी जरूरी है। पुलिस, प्रशासन सब उनका है। आप अकेले हैं।............

ये काफिर तो बहुसंख्यक हरदम रहे हैं पर उससे क्या! सौ भेड़ शासन नहीं करते, एक शेर शासन करता है...”

उपस्थित लोग बड़ी तन्यमता से तकरीर सुन रहे हैं। बीच-बीच में ताली भी बजती है।