सुबह की लाली / खंड 1 / भाग 8 / जीतेन्द्र वर्मा

Gadya Kosh से
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आज युवकों में बड़ी मस्ती दिख रही है। चेहरा चमक रहा है। हँसी के फव्वारे कुछ ज्यादा फूट रहे हैं। एक-दूसरे को धक्का देने, धौल जमाने, आलिंगन करने की मात्रा कुछ ज्यादा ही है। कुछ युवक अजीब-अजीब आवाज निकाल रहे हैं।

आज बात कुछ खास लग रही हैं आज युवकों के अलावा प्रौढ़ व्यक्ति भी चौराहे के इर्द गिर्द जमा हैं। सभी किसी एक ही मुद्दे पर बातचीत कर रहे हैं। आज का विषय है कल शहर में हुआ एक लड़की के साथ बलात्कार।

कुछ युवक दावा कर रहे हैं कि बलात्कार करने वाले युवक का नाम अजय है तो कुछ दावा कर रहे हैं कि उसका नाम गुड्डू है। विवाद बढ़ने लगा। बड़ा शोधपूर्ण काम है कि कौन नाम सही है !

तभी एक युवक, जो खिजाब लगाकर बाल काला किए हुए है, बोला-

“उसका नाम अजय होगा। घर पर लोग उसे प्यार से गुड्डू कहते होंगे।”

समन्वय की पद्धति अपनाने से दोनों पक्ष संतुष्ट नजर आ रहे हैं।

दूसरे ग्रुप में एक युवक बड़े गर्व से इस बात का दावा कर रहा है कि वह गुड्डू का क्लासफेलो रहा है।

अधिकांश युवक उसे ईर्ष्याजनित दृष्टि से देखते हैं, कुछ अविश्वास की नजर से। वह कह रहा है-

“मैंने उसे काफी नजदीक से देखा है। शुरू से ही वह मस्तमौल स्वभाव का है।”

और फिर ठहाका |

एक युवक बड़े उत्साह के साथ बता रहा है कि वह उस रिक्शेवाला को जानता है जिस पर बैठकर लड़की कॉलेज गई थी। अब सभी उस लड़की के बारे में जानने के लिए उत्सुक हो गये। पर वह युवक इससे आगे कुछ नहीं बता पाता है।

“गुड्डू ने अकेले रेप किया है।”

-एक युवक ऐसे बोला जैसे गुड्डू ने अकेले बहादुरी का काम किया है। दूसरे ने कहा-

“नहीं, उसमें उसके कुछ दोस्त भी थे।”

“तुम्हें कैसे मालूम?”

“तो तुम्हें कैसे मालूम कि वह अकेले था।”

“सब लोग तो यही कह रहे हैं बच्चू!”

“अभी असलियत पूरी तरह किसी को मालूम नहीं है। समझे!”

आगे वह ऐसे बोला जैसे किसी बहुत बड़े रहस्य का भंडाफोड़ कर रहा है-

“गुड्डू बहुत दिनों से उस पर लाइन मार रहा था, पर वह थी साली कि लिफ्ट ही नहीं दे रही थी। गड्डू को रहा नहीं गया। वह प्लान में वे अपने साथियों के साथ कॉलेज से आते समय उसे उठा कर होटल मे ले गया।’’

फिर हा हा हा हा ....

ही ही ही ही ....

हे हे हे हे ....

हो हो........।

अभी हँसी थमी नहीं कि एक मजदूर-सा दिखनेवाला व्यक्ति आ कर बोला-

“वह एक रिक्शावाला किसी गाड़ी से धक्का खाकर बेहोश पड़ा है। सिर से खून बह रहा है। आप में से कोई साथ चलता तो उसे हम अस्पताल पहुँचा देते।”

सबको लगा कि कबाब में हड्डी आ गया। एक युवक ने अपने क्रोध को भरसक काबू में करते हुए कहा-

“यह सब काम पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाओं का है तुम उन्हें खबर करो।”

“अच्छा खासा मूड इसने खराब कर दिया।”

फिर धीरे-धीरे वे अपने मूल विषय पर लौट आए।

“सबने खूब मौज मनाया होगा।”

मस्ती और ईर्ष्या से मिश्रित स्वर उभरा और फिर ठहाका-

“परंतु सभी सिर्फ गुड्डू का नाम ही क्यों ले रहे हैं? उसके साथ औरों के होने की बात कोई क्यों नहीं कर रहा है।”

“लड़की ने सिर्फ गुड्डू का नाम बताया होगा।”

“और लड़कों का नाम क्यों नहीं बताया?”

“मुझे तो पता चला है कि लड़की के घरवालों ने बहुत समझाया कि किसी को कुछ मत बताओ। मामला रफा-दफा हो जाएगा। किसी को कानों-कान खबर नहीं होगी, परंतु वह साली मानी नहीं। पुलिस स्टेशन चली गई। पेपर में सब छप गया। जान गए सभी।”

और फिर ठहाका।

“सुना है कि अब उसे घर वाले भी रखने को तैयार नहीं हैं। किसी आश्रम में रह रही है। बेचारी!”

फिर ठहाका।

“किस आश्रम में रह रही है? पता लगता तो दर्शन कर आते।”

फिर ठहाका। आज देर रात तक गप्पबाजी चलती रही। शुरू से अंत तक चर्चा के केंद्र में लड़की के बलात्कार की घटना ही रही। सभी ग्रुप के लड़कों ने तय किया कि आज अच्छी क्वालिटी का शराब पी जाए। कुछ ग्रुप ने इसके बाद का भी प्लान बनाया।