स्त्री-मन की गुत्थी / पवित्र पाप / सुशोभित
सुशोभित
स्त्री-मन की थाह लेने वाली अनेक कहानियाँ चेक-उपन्यासकार मिलान कुन्देरा ने लिखी हैं। एक कहानी में एक वेश्या को एक युवक से प्रेम हो जाता है। युवक शिकारी-पुरुष है। वह तुरंत उसका प्रेम-प्रस्ताव स्वीकार कर लेता है। वह सोचता है कि यह गणिका है तो इसे सुख-शैया तक ले जाने में अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ेगा, स्वांग नहीं रचना पड़ेगा, झूठ नहीं बोलना पड़ेगा, बहलाने-फुसलाने में समय नहीं गँवाना पड़ेगा, यह सरलता से तैयार हो जाएगी।
किन्तु उसे यह देखकर आश्चर्य होता है कि वेश्या उससे संसर्ग के लिए एकदम इनकार कर देती है। वो कहती है कि मेरा शरीर तो सबके लिए उपलब्ध है! पर मैं तुमसे प्रेम करती हूँ, जो मैंने सबको दिया वो तुमको कैसे दे सकती हूँ? यह देह अब मैली हो चुकी है। मैं तुम्हें वही देना चाहती हूँ, जो अनछुआ है, और मेरे लिए सबसे मूल्यवान है- मेरी निष्ठा, मेरा विदेह-प्रेम, मेरी पवित्रता, मेरी भावनाएँ।
कहने की ज़रूरत नहीं युवक इन बातों को समझ नहीं पाता और चुपचाप उससे किनारा कर लेता है।
इससे ठीक विपरीत कहानी एक दूसरी स्त्री की है। वह सुन्दर और आकर्षक नहीं थी और उसे यह खटकता था कि पुरुष उसकी देह के प्रति व्यभिचारियों की तरह आकृष्ट नहीं होते। किंतु एक युवक को उससे प्रेम हो जाता है। कुछ दिनों बाद दोनों स्वयं को एकान्त के क्षणों में पाते हैं। युवक संकोच से भर जाता है। वह सोचने लगता है कि अगर मैंने स्त्री के समक्ष प्रणय-प्रस्ताव रखा तो कहीं वह यह तो नहीं सोचने लगेगी कि पहला अवसर मिलते ही उसने अपनी इच्छा जतला दी, यानी उसका प्रेम एक स्वांग था, वो वास्तव में उससे यही चाहता था। युवक इस दुविधा के मारे पूरे समय स्त्री से दूरी बनाए रहता है।
किन्तु स्त्री के मन में कुछ और ही चल रहा था। वो यह सोचकर आहत हो जाती है कि एकान्त होने के बावजूद यह युवक मेरे निकट आने का प्रयास क्यों नहीं कर रहा? क्या वह भी मुझे सुन्दर, आकर्षक और वांछनीय नहीं समझता? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे मुझसे प्रेम नहीं है, केवल सहानुभूतिवश ही वह मेरे साथ इस सम्बंध में चला आया है!