स्वच्छता, फ़ासिज़्म और सेक्शुएलिटी / पवित्र पाप / सुशोभित
सुशोभित
नवम्बर 1980 की बात है। अमेरिका में फ़िलिप रॉथ और मिलान कुन्देरा बात कर रहे थे। कुन्देरा की ‘द बुक ऑफ़ लॉफ़्टर एंड फ़रगेटिंग’ छप चुकी थी, जिसने उसे यूरोपियन उपन्यासकारों में एक ‘हॉट केक’ बना दिया था। अभी कुन्देरा ने ‘द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ़ बीइंग’ लिखना बाक़ी था। वह मिलान कुन्देरा का दशक था और फ़िलिप रॉथ भी जैसे उसकी ‘ऑ’ में आकर उससे बात कर रहा था।
सहसा, रॉथ ने कुन्देरा से पूछा कि ‘तुम्हारी किताबों में इतना ‘सेक्स’ क्यों है?’
यह रॉथ का ‘लुक हू इज़ टॉकिंग मोमेंट’ था, क्योंकि यूरोप में अगर कुन्देरा से अधिक ‘एरोटिसिज़्म’ की पड़ताल किसी और राइटर ने नहीं की है तो अमरीका में यह ख़िताब ‘प्रोफ़ेसर ऑफ़ डिज़ायर’ कहलाने वाले फ़िलिप रॉथ को ही प्राप्त है। कहा तो यह भी जाता रहा है कि अतिशय सेक्स-वृत्तांतों के कारण ही रॉथ को साहित्य का नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया। हालांकि यह आरोप इसलिए बेबुनियाद जान पड़ता है, क्योंकि अगर यही मानदंड होता तो फिर अल्फ्रीद येलीनेक को कभी भी नोबेल पुरस्कार नहीं मिलना था।
बहरहाल : रॉथ ने कुन्देरा से पूछा कि ‘मिलान, तुम्हारे सारे सीन्स और कहानियां ‘एरोटिक एडवेंचर’ में ही ख़त्म क्यों होते हैं? एक नॉवलिस्ट के रूप में तुम्हारे लिए सेक्स के क्या मायने हैं?’
सही व्यक्ति से, सही व्यक्ति के द्वारा, सही समय पर पूछा गया, सही सवाल।
वेल, मिलान कुन्देरा इस पर कई दिनों और हफ़्तों तक लगातार बात कर सकता था, लेकिन उसने एक पंक्ति में इतना ही कहा कि ‘आज जब डीएच लॉरेंस और हेनरी मिलर का ‘एरोटिसिज़्म’ भी तिथिबाह्य हो चुका है, तब मुझे लगता है कि अपने किसी कैरेक्टर के बारे में सबसे सटीक ‘इनसाइट’ हासिल करने के लिए मेरे पास इसके सिवा कोई और चारा ही नहीं है कि मैं उसे एक ‘एरोटिक’ सीन में धकेल दूं, क्योंकि ऐन यही वह स्थिति है, जिसमें हमारे गहरे अंतर्सत्य और रहस्य जाहिर हो पाते हैं, अन्यथा नहीं।
मुझे नहीं मालूम मार्टिन एमिस ने रॉथ और कुन्देरा की वह बातचीत पढ़ी होगी या नहीं, लेकिन इतना तय है कि अपनी नई किताब ‘द ज़ोन ऑफ़ इंटरेस्ट’ पर बात करते समय मार्टिन एमिस ठीक उसी जगह पर पहुंचे, जहां कुन्देरा पहुंचे थे, और वह भी, गेस वॉट, एडॉल्फ़ हिटलर और एवा ब्राउन के यौन संबंधों के परिप्रेक्ष्य में।
‘द ज़ोन ऑफ़ इंटरेस्ट’ नाज़ी जर्मनी के कालखंड में केंद्रित कहानी है, जिसके मूल में तमाम नृशंसताओं के बीच प्रेम और आकर्षण का एक त्रिकोण है। ग्लूस्टरशाइर, इंग्लैंड के चेस्टनहम क़स्बे में आयोजित एक लिट्रेचर फ़ेस्टिवल में अपनी इस नई किताब के बारे में बात करने पहुंचे मार्टिन एमिस ने एक गहरी अंतर्दृष्टि दी। उन्होंने कहा, ‘आपको पता है, हम लोग हिटलर के बारे में कुछ भी क्यों नहीं जानते? क्योंकि हमें यह नहीं मालूम कि उसकी ‘सेक्स-लाइफ़’ कैसी थी।’
यह सीधे-सीधे मिलान कुन्देरा की किताब से आई थ्योरी थी। बहरहाल, यहां पर महत्व कुन्देरा, रॉथ या एमिस का उतना नहीं है, जितना कि इस स्थापना का है, जो कि अगर फ्रायडियन मनोविश्लेषण की सुचिंतित परंपरा में सोचें तो अपने इस हठ पर क़ायम रहती है कि किसी भी व्यक्ति के सेक्शुअल व्यवहार और फ़ंतासियों के आधार पर उसके बारे में सटीक सूचनाएं हासिल की जा सकती हैं।
एमिस ने कहा, ‘हम हिटलर को कभी नहीं जान पाएंगे, क्योंकि हम नहीं जानते कि उसकी सेक्शुअलिटी का स्वरूप क्या था।’ अलबत्ता हज़ार तरह की थ्योरियां हिटलर के यौन रुझानों के संबंध में प्रचलित हैं, लेकिन इनमें कोई भी दृढ़तापूर्वक अपनी बात पर टिकी नहीं रह सकती। एमिस ने कहा कि तीन ही संभावनाएं हो सकती हैं। पहली यह कि हिटलर की नॉर्मल सेक्स-लाइफ़ थी, जो कि पूरी तरह से असंभव है, क्योंकि आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि हिटलर अपनी प्रेयसी के साथ बहुत कोमलता से प्रेम कर रहा होगा। दूसरी यह कि उसके भीतर यौन रुझान ही नहीं थे, यह भी इसलिए ग़लत कि अनेक स्त्रियों के प्रति उसके आकर्षण को अच्छी तरह से डॉक्यूमेंट किया गया है। तीसरी यह कि वह ‘परवर्ट’ था, और यह थ्योरी शायद उसके सबसे क़रीब पहुंचती हो। लेकिन वह किस तरह की विकृतियों का शिकार था और इसका उसके व्यक्तित्व और प्रकारांतर से मनुष्यता के इतिहास पर क्या असर पड़ा, यह जानने का अब कोई साधन नहीं है।
एक अन्य सूचना, जो इस दिशा में इंगित करती है, वो यह है कि हिटलर ‘हाईजीन फ़ैनेटिक’ था और जो व्यक्ति सफ़ाई को लेकर हद्द दर्जे तक ‘ऑब्सेस्ड’ हो, वह ‘लवर’ नहीं हो सकता, क्योंकि, यू नो, ‘लव इज़ अ डर्टी वर्क इन मेनी वेज़।’ यहां पर एक और महत्वपूर्ण सूचना हमें यह प्राप्त होती है कि जो लोग ‘हाईजीन फ़ैनेटिक’ होते हैं, वे या तो ‘फ़ासिस्ट’ प्रवृत्तियों से लैस होते हैं, या वे ‘ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर’ यानी ‘ओसीडी’ की अस्तित्ववादी भूलभुलैयाओं में गुम रहते हैं, या वे घोर शुद्धतावादी होते हैं, और इसीलिए ये तीनों ही सामान्य मनुष्यता के दायरे में फ़िट नहीं बैठते।
बहरहाल, एवा ब्राउन को ‘जर्मनी की सबसे उदास औरत’ कहकर पुकारा गया था। कोई बीस साल तक वह हिटलर की ‘मिस्ट्रेस’ बनकर रही। हिटलर ने अपनी मृत्यु से एक दिन पहले एवा से ब्याह रचाया था। इसके बाद दोनों ‘प्रेमियों’ ने एक साथ आत्महत्या कर ली थी!