होने का असह्य हलकापन / पवित्र पाप / सुशोभित

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होने का असह्य हलकापन
सुशोभित


सन् 1984 में मिलान कुन्देरा ने एक नॉवल लिखा, जिसका शीर्षक था- द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ़ बीइंग। इसमें उसने कहा कि दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं : एक वे, जिनकी आत्मा में भारहीनता होती है, और दूसरे वे, जिनकी चेतना को एक गुरुत्वाकर्षण लगातार खींचता रहता है। फ्रेडरिक नीत्शे के एटर्नल रिटर्न को आधार बनाकर उसने कहा कि जिन लोगों के लिए समय रिकरिंग या घुमावदार होता है, वे बोझ से दबे होते हैं और जिनके लिए समय लीनियर या एकरैखिक होता है, वे पल-दर-पल जीते हैं। उनके पंखों पर कोई नमक नहीं होता।

इस बात को बल देने के लिए उसने प्राग और जेनेवा में बसे चार किरदार रचे और उनके इर्द-गिर्द एक कहानी बुनी। ये चार किरदार थे : तोमाष, तेरेज़ा, फ्रांत्स और सबीना। इनमें फ्रांत्स सबसे हैवी कैरेक्टर था। वह बौद्धिक था, और औचित्यों और राजनीतिक नैतिकताओं के बोझ तले दबा था। इससे ज़रा कम तेरेज़ा थी, जो कि अपनी देह के प्रति सहज नहीं थी और निष्ठा को एक नैतिक मूल्य समझती थी। इसके बाद तोमाष था, जो कि वस्तुत: वुमनाइज़र था, लेकिन तेरज़ा के प्रति प्रेम ने उसे एक छोर पर बांध रखा था। इनमें सबसे मुक्त थी- सबीना। उसकी चेतना पर कोई भार नहीं था, औचित्य की कोई सीमारेखाएं उसे छलती नहीं थीं। समय उसके लिए लीनियर था और वह एटर्नल रिटर्न की परवाह नहीं करती थी।

उपन्यास का एक दृश्य-बंध है कि प्राग-वसंत के बाद कम्युनिस्टों ने चेकोस्लोवाकिया पर कब्ज़ा कर लिया है। वहां सबीना और फ्रांत्स मिलते हैं। दोनों एक-दूसरे से अजनबी। फ्रांत्स उससे पूछता है कि सोवियत ऑक्युपेशन के इस दौर में वह कैसा महसूस कर रही है, जिस पर सबीना कहती है : ‘मुझे अभी केवल भूख लग रही है और क्या तुम मुझे डिनर पर लेकर जा सकते हो?’ फ्रांत्स मुस्करा देता है। वह कहता है, लेकिन मैं तो अभी जेनेवा जा रहा हूं। इस पर वह कहती है : ‘ओह, रेलगाड़ियाँ कितनी एरोटिक होती हैं।’ इसके बाद फ्रांत्स और तेरेज़ा साथ सफ़र करते हैं और ट्रेन के कम्पार्टमेंट में वे प्रेम करते हैं।

और एक दृश्य है। इस बार तेरेज़ा और सबीना को साथ लेकर। तेरेज़ा प्रोफ़ेशनल फ़ोटोग्राफ़र है और उसे कुछ न्यूड तस्वीरों की आवश्यकता होती है। सबीना ख़ुशी-ख़ुशी उसके लिए यह करने को तैयार हो जाती है। ऐसा लगता है, जैसे निर्वसन होने के बेमाप सुख को वह भलीभांति बूझती है और शायद उसके लिए देह पर वस्त्र किसी धूल की ही तरह हैं, जिन्हें जल्दी से जल्दी झाड़ देना ही बेहतर। वह तेरेज़ा की आंखों में झांकते हुए उसके लिए पोज़ देती है। इस दौरान उसकी भूखी आंखों को भुलाना सम्भव नहीं। रोजर एबर्ट ने कुन्देरा के इस नॉवल पर इसी शीर्षक से बनी एक फ़िल्म के रिव्यू में इस दृश्य को ‘बैले ऑफ़ एरोटिसिज़्म’ की संज्ञा दी थी।

आत्मचेतना, अहंकार, दायित्वबोध, उचित-अनुचित का निरूपण, अपमान का भय और लोकमान्यता की लिप्सा- ये वे गुण हैं, जो आपकी आत्मा को भारी बना देते हैं। वैसी भारी आत्मा वाला कोई व्यक्ति वैसी ही भारी चेतना वाले साथी से प्रेम कर बैठे तो यह एक हादसा होता है, और दोनों आजीवन संघर्ष करते रहते हैं। फ्रांत्स को हमेशा एक सबीना की आवश्यकता होती है, तेरेज़ा को हमेशा एक तोमाष चाहिए। गर्वीली को इसी तरह मसखरे से प्रेम हो जाता है। अहंमन्य ऐसे ही किसी नादान को दिल दे बैठता है। ऊपर से देखने पर ये जोड़ियां भले बेमेल मालूम हों, सम्बंध में वे एक-दूसरे के परिपूरक बन जाते हैं, प्रयोजनमूलकता के स्तर पर। अहंकारी को किसी गर्वीली की कामना एक दूसरे स्तर पर सदैव बनी रहती है, किंतु जीवनभर का साथ दोनों के भाग्य में बदा नहीं होता। उनके लिए एक सांयोगिक एडवेंचर अधिक संतोषप्रद सिद्ध हो सकता है।

चेतना में न्यस्त भारीपन और हलकेपन के प्रतिमान इसी तरह हमारे सम्बंधों को दूर तक प्रभावित करते हैं।