17 अगस्त, 1946 / अमृतलाल नागर
Gadya Kosh से
लखनऊ
जिदंगी के तीस साल गुजर गए। आज इकतीसवें साल की गिरह बँधी। मेरा खोयापन मेरे साथ है। चेतना दूर से सत्य का परिचय करा रही है।
इलाहाबाद, बनारस घूम आया। सब जगह, सब लोग लेकिन इनमें ही कहीं जीवन की झलक भी देख आता हूँ। अपने को देख रहा हूँ। हारा नहीं, घिसट-घिसट कर चल रहा हूँ।