23 जुलाई, 1946 / अमृतलाल नागर

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज हम लोग आगरा जा रहे हैं। मुझे यू.पी. से आए - लगभग डेढ़ साल हो गया। प्रतिभा भी सवा साल से इधर ही हैं। चि. मदन और चि. दिलीप हमारे साथ हैं। दोनों लखनऊ जा रहे हैं। झाँसी तक साथ रहेगा। जमीन चि. रतन ने खरीद ली है। मकान बनवाने की इच्‍छा ईश्‍वर के आधीन है। माते प्रसन्‍न रहीं। सौ. साधना बुखार से परेशान रहीं। अब ठीक है।

बच्‍चों से मिलेंगे। फिर अगस्त में प्रयाग जाना है। बूँद और समुद्र की छपाई, सुना हो रही है। सितंबर में तमिल मीरा की Dubbing के सिलसिले में यहाँ आना पड़ेगा। पंतजी बीमार हैं। नरेंद्र की सगाई पक्‍की हो गई, उनकी भावी पत्‍नी को देखा। सुशील हैं - बातूनी तो हैं ही। मेरा विश्‍वास है, नरेंद्र का जीवन इनके साथ सुखी होगा। बंबईपन ज्यादा है। नरेंद्र के जीवन में साहित्‍य अब जरा दूर की और शौक की चीज है। मेरा विश्‍वास है, उनका जीवन फिर सही राह पर आएगा। भगवती बाबू शायद आर्थिक रूप से बेहद चिंतित हैं। उनके मानसिक संघर्ष में हार और खीझ है। फिल्‍म में युग का संधिकाल स्‍पष्‍ट दृष्टिगोचर हुआ। नई चेतना का रूप विकसित होने से पहले झकोले आएँगे। जमाना हड़तालों का है। यह उभरी हुई प्‍यास न बुझने वाली सी दीखती है। प्रश्‍न केवल इस देश का ही नहीं, मानवता का है। इस देश में विशेष रूप से युग और मानवता के विश्‍वास का चित्र उभर कर आता है। पुराना सब मिट्टी - नया सब सोना - हिंदोस्‍तान का संघर्ष यदि बाँध कर सही राह पर न लगाया गया तो दुनिया का भविष्‍य एक भावी उलझन देखेगा -तीसरे महायुद्ध के बाद भी।

दूसरे उपन्‍यास की रूपरेखा बनाने में लग गया हूँ। अभी बहुत कुछ इकट्ठा करना है। खास तौर पर बूढ़े और अधेड़ वर्ग से उनके बचपन की कहानियाँ लेनी हैं। दो गोलार्द्धों में विकास पाई हुई सभ्‍यता और संस्‍कृति और ज्ञान के सहारे आज मनुष्‍य कहाँ है? यह भी देखना है।