24 जनवरी, 1946 / अमृतलाल नागर

Gadya Kosh से
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बहुत दिनों बाद ! कल मद्रास जा रहा हूँ। प्रतिभा साथ हैं। पंतजी का तार और रुपया पाकर उदयशंकर की पिक्‍चर का काम करने। आज अचला आगरा गई। जाते समय दुखी थी। पहली बार प्रतिभा से अलग हुई है।

खोसलाजी के पास पैसा डूब गया।

चिमनलाल देसाई ने 1200/ - रुपये कम दिए।

किशोर वीर कुणाल में अनायास मेरा credit हज्म कर गए।

Dolls' house के set पर पहले दिन रतन cameraman हो रहा था; नोटिस पर नाम भी आ गया था; फिर उस दिन कुमार photograph करने लगे। रतन को बड़ा Shock लगा।

काम इस वर्ष मैंने बहुत किया। बंगाल पर मेरा उपन्‍यास भी पूरा हुआ।

अब के आर्थिक और मानसिक रूप से बराबर धक्‍के खाए। नियति !

मन असंतुष्‍ट रहा। अभी भी है। अहं का प्रकोप मुझ पर पूरा है। मैं हारता हूँ। मुझे बचना चाहिए। मन में उस अमर प्रेम और सेवा भाव को जगाना चाहता हूँ जिससे अहं की कमजोरियाँ और दुख जल जाएँ। मैं खुद कमजोर हूँ। भविष्‍य ईश्‍वराधीन है। मुझे कुछ नहीं सूझता है। अपने से बहुत दूर हूँ।