अंतिम वाक्य / कल्पतरु / सुशोभित
सुशोभित
अंतिम वाक्य सबसे कठिन थे। मैं किसी बात को चाहे जैसे शुरू करूं, हमेशा यही चाहता कि उसे बहुत सुघड़ ढंग से ख़त्म करूं। दरवाज़े लगा देने के बाद कमरे में भर जाने वाली गूंज। संध्या का सुन्न पटाक्षेप। कि मेरे बाद जब कोई लौटकर मेरे आख़िरी वाक्य देखे तो कहे, शायद वो पहले ही जानता था कि अब कुछ कहना नहीं होगा। उसने इसे ऐसी तबीयत से कहा है, जैसे यही आख़िरी है। अब कुछ रह नहीं गया था। इस कथन में गूंजते संकेत तो सुनो!
वैसी पूर्वकल्पनाएं सुख देती हैं। इस छलना से क्या मुस्कराऊंगा, अगर किसी रूप में शेष रहा तो? पता नहीं, पर एक बेतुकी बात कहकर मर जाना बुरा है। एक अधूरा वाक्य जोड़कर। बहुतेरे अंत मैंने इसीलिए स्थगित किए कि मैं आख़िर में एक सुंदर बात नहीं सोच पाया था। बहुतेरी बातें बीच में छोड़ दीं। तब यह कहना मुनासिब नहीं था कि अब जाता हूं। आख़िरी बात तो पूरी होनी चाहिए। मुकम्मल की एक तस्वीर। विदाई के ख़त इतने सुंदर हों कि बरबस कोई कलेजा थाम ले और कहे, काश तुम सच में ही चले नहीं गए होते।
ज़्यादा कहना यों भी दुरुस्त नहीं। किंतु जो भी कहो, उसको ठीक से ख़त्म करो। बाहर जाने से पहले एक बार खिड़की की चिटखनी जांच लो। कहीं परदा गुलदान में तो नहीं उलझ रहा। रूमाल रसोई में ही तो नहीं छूट गया। एक बार लौटकर देख आओ। बंद कमरे को यों अरमान से निहारो कि अब लौटना न होगा। और फिर सौंप दो अपनी पीठ उस सबको, जिसने तुमको आख़िरी कहकर एक मुद्दत तलक याद रखना है।