तूरीन का घोड़ा / कल्पतरु / सुशोभित
सुशोभित
3 जनवरी 1889 का यह वाक़या है।
इटली के तूरीन शहर में फ्रेडरिक नीत्शे एक अवसन्न-सी मनोदशा में वीया कार्लो अल्बेर्तो के छठे दरवाज़े से बाहर निकलता है तो देखता है कि एक कोचवान अपने घोड़े को चाबुक़ से बेतहाशा पीट रहा है।
अतिमानव का सृजनकर्ता नीत्शे किंकर्तव्यविमूढ़-सा यह दृश्य देखता रह जाता है। फिर दौड़कर जाता है, और करुणा और दैन्य के उद्दाम आप्लावन में उस घोड़े से लिपट जाता है और फूट-फूटकर रोने लगता है।
उसके मुंह से केवल एक वाक्य निकलता है : "Mutter, ich bin dumm!" ['Mother, I am stupid!']
ईश्वर के हत्यारे इस दुर्दम्य दार्शनिक का अपनी स्थिर प्रज्ञा में यह आख़िरी दिन था, जिसके बाद वह विक्षिप्त हो जाता है और इसी अवस्था में ग्यारह और वर्ष जीवित रहता है।
उसकी बहन एलिज़ाबेथ फ़ोस्टर उसकी देखभाल करती है। शून्य में टुकुर-टुकुर ताकते झबरीली मूंछों वाले फ्रेडरिक को देख वह उदास हो जाती है। उसे उदास हुआ जानकर नीत्शे बच्चों-से भोलेपन से पूछते हैं : "लीज़ा, तुम परेशान क्यों हो? क्या हम सुखी नहीं हैं?"
एरिक वॉल्टर फ्रेडरिक टॉमलिन ने अपनी किताब में दर्ज किया है : "उन ग्यारह वर्षों के दौरान नीत्शे सचमुच सुखी था, शायद जीवन में पहली बार।"
लेकिन यहां प्रश्न सुख का नहीं, यहां प्रश्न करुणा की उस बाढ़ का है, जिसने नीत्शे जैसे महामानव को विगलित कर दिया था। क्रौंचवध की करुणा से पहला महाकाव्य जन्मा था।
आह से उपजा था सृष्टि का पहला गान।
और दु:ख में गाए जाने वाले गीत ही सबसे सुमधुर थे।
मनुष्य का घर कहां पर है? उसके रूंधे हुए कंठ में जहां पर आंसू रुके हैं, वहां पर।
मनुष्य इस घर के दरवाज़े पर खड़ा है। वह तब तक भीतर प्रवेश नहीं कर सकेगा, जब तक कि बाढ़ में वो दरवाज़ा बह ना जाए।
एक दिन आप सबने इसी तरह फूट-फूटकर रोना होगा। बच्चों की तरह, निस्सहाय होकर। उसके बिना मुक्ति नहीं। किसी दरख़्त से लिपटकर, पीटे जा रहे किसी घोड़े से लिपटकर, आकाश के किसी तारे से लिपटकर, एक दिन आपने रोना होगा।
एक दिन आपने तोड़ना होगा अपने भीतर का वह बांध, और करना होगा विलाप, जब असम्भव हो जाएगा आपको चुप कराना, और समस्त सांत्वनाएं सुंदरवन की घास की तरह गल जाएंगी!