अस्थियों का मुकुट / कल्पतरु / सुशोभित

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अस्थियों का मुकुट
सुशोभित


देह में कहीं टूट हो और क्ष-किरणों से परीक्षण किया जाए तो परिणाम का अचरज कम नहीं होता. एक स्याह फ़ोटो फ़िल्म पर मेरे हाथों और अंगुलियों, टखनों और ऐड़ियों की छापें. तपेदिक का संशय हो तो पसलियों का पिंजर. कठोर और कुरूप अस्थियों का संजाल. यह मैं हूँ- मांसल नहीं, कोमल नहीं, गोलाइयों और अनुपातों से भरी देह नहीं, चेहरे के तीखे नुक़ूश नहीं-- यह हड्डियों का ढांचा मैं हूँ.

तब मैं सोचता हूँ मेरे भौतिक शरीर का यही वह आयाम है, जो सबसे दीर्घायु है. कुछ वर्ष में देह से प्राण रीत रहेंगे. हवा पानी में पड़ा हो तो हफ्ते पखवाड़े में शव गल जाएगा. तेरह दिन का सूतक होगा, एक वर्ष का स्मृति पर्व. तीसरी पीढ़ी पुण्यतिथि याद नहीं रखती. संसार सहज ही विस्मृत कर देता है. तब भी ये अस्थियां रहेंगी. अनुकूलता रही तो हज़ार साल तक.

अस्थियां दीर्घायु होती हैं. शताधिक वर्ष रहती हैं. भूमि के भीतर तो कालजयी हैं. दाह में भी कपाल का क्षय नहीं होता. अस्थियों के फूल शेष रह जाते हैं. नदी में सिरा आएं तो मछलियाँ कौतूहल से उन्हें परखती हैं. मैं मछलियों का आहार हूं. समुद्र में सिराई अस्थियां क्या सेवार बन जाती हैं? अस्थियों पर क्या काई जमती है? ऐसा नहीं कि अस्थियां अमर हैं. होतीं तो विगत में जीवित रहे असंख्य मनुजों के अवशेष हमें सब तरफ़ से घेरे होते. अरण्य में शिलाओं के साथ अस्थियां के टीले भी होते. किंतु उनकी निश्चय ही मुझसे अधिक उत्तरजीविता है.

मैं यानी मांस का पिंड. तंत्रिका का संजाल. रुधिर की ऊष्मा. हृदय का आवेग. यह क्षणचपल है!

मैं आश्चर्य से वह समाचार देखता रहा, मध्येशिया के गुह्यशैल से पैंतीस सहस्र वर्ष पुराने अस्थिपिंजर मिले थे, पुरामानव के. पैंतीस सहस्र वर्ष पुराना स्मृतिखण्ड. जहाँ कभी जीवन था.

फ़ोटो फ़िल्म पर अपनी अस्थियों का चित्र देखते मैं यही सोचता रहा कि मैं उनके इतिहास का एक अंश भर हूं. हज़ार साल का एक संक्षिप्त पुरोवाक्. मेरी देह में वो अस्थियां नहीं हैं, उन अस्थियों पर मेरी यह देह है. कुछ समय के लिए, अतिथि.

कवि शमशेर ने यों ही नहीं कहा था-- "सूर्य मेरी अस्थियों के मौन में डूबा!" सूर्य के डूबने की इससे सम्यक कोई दिशा नहीं हो सकती.

और फिर, वर्षों बाद 'मलयगिरि का प्रेत' के कवि ने कहा था-- "मैं अस्थियों का मुकुट पहने डूबता हूँ!"

एक दिन मैं डूब जाऊंगा. समुद्र पर जलपोत की तरह तैरेगा मेरा मुकुट, मेरे जीवन का उपाख्यान!