आत्मा का रोग / कल्पतरु / सुशोभित

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आत्मा का रोग
सुशोभित


मनुज की आत्मा का सबसे बड़ा रोग यह है कि उसे अपने से बड़ा कोई प्रयोजन चाहिए, अपने से बाहर कोई मूल्य.

उसे उन्माद चाहिए, आत्मबलिदान का हेतु चाहिए. उसे आप्तवाक्य चाहिए, स्वयंभू सत्य चाहिए.

मनुज की आत्मा का सबसे बड़ा रोग यह है कि उसे ईश्वर चाहिए.

वैसा कहीं कोई सत्य नहीं है, कोई परम मूल्य नहीं है, आँखें खोलकर देख लीजै।

जो कुछ भी है, फ़ौरी व्यवस्थाएं हैं, तात्कालिक और अंतरिम प्रबंध हैं, ढांचे हैं. आदमी को जीने के लिए ये चीज़ें चाहिए. लेकिन ये अंतिम नहीं हैं.

अपने दायित्वों का भले दत्तचित्त होकर निर्वहन करो और चौरस्ते की लाल बत्ती को कभी मत फांदो, लेकिन ये पांच बातें हमेशा याद रखो--

1) ईश्वर को किसी ने नहीं देखा.

2) देवताओं ने कोई नियमावलियां नहीं रचीं.

3) मृत्यु से लौटकर किसी ने दूसरी दुनिया का वृत्तांत नहीं सुनाया.

4) धरती पर कहीं कोई सीमारेखाएं ना थीं, ना हैं.

5) भूख, भय, दैन्य और चाहना के सिवा आदमी की कोई ज़ात नहीं!