इतनी सारी मृत्यु / कल्पतरु / सुशोभित
सुशोभित
फ़ेदरीको फ़ेल्लीनी की फ़िल्म "अमारकोर्द" में एक दृश्य है.
यूरोप का सबसे बड़ा क्रूज़ शिप "रैक्स" रात को भूमध्य सागर के एक कोस्टल टाउन के क़रीब से गुज़रता है. यह ख़बर मिलते ही समूचा क़स्बा रात को नावों में सवार होकर उसे देखने जाता है.
एक स्वप्निल सम्मोहक सीक्वेंस! जहाज़ की बत्तियां रात के अंधेरे में उभरती हैं, धीरे धीरे पूरा जहाज़ नज़र के सामने आता है, आश्चर्य से भरे सभी रूमाल और टोपियां हिलाकर उसका अभिवादन करते हैं.
इसे देखते हुए मैं अकसर सोच में डूब जाता हूँ कि अगर वह जहाज़ वहां सहसा डूबने लगता, तो समूचा कोस्टल टाउन क्या कर सकता था, सिवाय उसे डूबता हुआ देखने के!
कि देखो, इतना अद्भुत, इतना सम्मोहक, इतना अपराजेय यह जहाज़ हमारी आंखों के सामने डूब रहा है. हम उसे समुद्र में तैरता देखने आए थे, अब हम उसे डूबता देख रहे हैं. डूबने की पूरी मियाद के साथ, ब्योरेवार.
जो वो जहाज़ इतना शानदार ना होता, तो चुपचाप डूब रहता, किसी को कानोंकान ख़बर नहीं होती.
कि सदी का सबसे सुंदर सितारा उगता है. लोग दूरबीन से टकटकी लगाए उसे निहारते हैं. सितारा टूटकर गिरता है. अब सब उसका टूटकर गिरना देखते हैं. धीमी गति से, जब तक वो ज़मींदोज़ नहीं हो जाता.
कि एक फूल सौ साल बाद खिलता है और जंगल की आग में जल जाता है.
वैसा कैसे होता है, वैसा क्यूं होता है.
कि भरी जवानी में लोग मर जाते हैं, और आप उनका चेहरा देखकर सोचते रह जाते हैं कि इतनी सारी मृत्यु उन्होंने अपने भीतर कहां छुपा रखी थी!