दु:ख और विपदा / कल्पतरु / सुशोभित
सुशोभित
दु:ख और विपदा में बड़ा भेद है. दु:ख में मृत्यु जैसी प्रशान्ति होती है, विपदा में जीवन जैसा आवेग. दु:ख का तत्व ही मरण का है. विपदा आसन्न होती है, दु:ख में ठहराव होता है. इसीलिए दु:ख में एक क़िस्म की सुंदरता है. दु:ख का अर्थ है जो होना था हो चुका, अब केवल एक लम्बा सूना शोक शेष रह गया है. विपदा का अर्थ है, यह अभी सिर पर है, सम्मुख है. यह अभी हो रहा है.
मनुष्य ने सदैव ही अपने दु:ख को अलंकारों से सजाया है. उससे कला की रचना की है. दु:ख उसके विलम्बित को एक स्पेस देता है. दु:ख मंथर गति की नदी है.
इमरे कर्तेष ने कहा था ना- "द होलोकॉस्ट एज़ कल्चर". क्योंकि दु:ख मानव-त्रासदी का नवनीत है. उससे एक समझ बनती है, परिप्रेक्ष्य उजले होते हैं. आदमी अपने भीतर ठहरकर सोचता है.
बीते एक महीने से मैं धीरे धीरे रिल्के की किताब "द डार्क इंटरवल" पढ़ रहा था. कल रात समाप्त की. वह पूरी किताब ही दु:ख के भीतर घर बनाकर रहने के बारे में है. पहले विश्व युद्ध के रक्तपात के बीच लिखे गए गहरी अनुभूति के वाक्य!
मैं जानता हूँ जब भी महामारी थमेगी, यूरोप में यह महान कलाओं का स्रोत बनेगी. ग्रेट सिनेमा और ग्रेट लिट्रेचर. यूरोप ने यह हमेशा किया है. इटली, फ्रांस और स्पेन साधारण देश नहीं हैं, आधुनिक कलाओं की उत्पत्ति वहीं से हुई है.
अभी यह विपदा है. अपनी भूख मिटाकर जब वह दु:ख बन जाएगी, तब मनुष्य की शोकार्त आत्मा उसमें से रचेगी अनेक दैनन्दिनियां.