ओज़ू की फ़िल्में / कल्पतरु / सुशोभित

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ओज़ू की फ़िल्में
सुशोभित


ओज़ू की फ़िल्में हमेशा एक निश्चित गति पर चलतीं। उनका टेम्पोरल मूवमेंट नपा-तुला होता। ओज़ू की फ़िल्मों में पृष्ठभूमि में बहुत कोमल संगीत बजता रहता। जब वे साउंड पर काम करने बैठते तो अपने तकनीशियनों को हिदायत देते रहते कि आवाज़ को और मद्धम कर दिया जाए। उनकी कम्पोज़िशंस संतुलित होतीं। कैमरा उनके दृश्य के बीच में बैठा होता और एक सुनिश्चित दूरी से अपने ऑब्जेक्ट्स को निहारता। कहीं कोई हॉर्न नहीं बजता, कहीं कोई ज़ोर से नहीं चिल्लाता। डेढ़-दो घंटे की ओज़ू की फ़िल्म एक मेडिटेटिव पेस पर चलती, और उसका प्रभाव अत्यंत स्वप्निल होता।

इस युक्ति से ओज़ू बहुत सारी बातें नहीं कह सकते थे, लेकिन उन्हें जो कहना था, उसे वो बहुत गम्भीरता से व्यक्त कर पाते। जीवन ओज़ू के सिनेमा की तंद्रिल लय पर चले या कुरोसावा के सिनेमा की तीव्र गति पर? ब्रेसां के सिनेमा सा निरद्वेग हो या फ़ेल्लीनी के सिनेमा सा नाटकीय? यह निर्णय तभी लिया जा सकता है, जब आप यह निश्चय कर लें कि कुछ चीज़ें आप कभी नहीं पा सकेंगे, किंतु कुछ ऐसी चीज़ें हैं, जो आपके सिवा किसी और को ना मिलेंगी।

क्या कहना है, एक निर्णय यह होता है। कैसे कहना है, यह दूसरा निर्णय। और किस गति से कहना है, यह तीसरा निर्णय। जीवन निर्णयों का नाम है। जीवन चुनी हुई विफलताओं का भी नाम है। जीवन हताशा का नाम तो है ही।

जिस आत्मा ने समय के भीतर वैसा अवसन्न सिनेमा रचा था, जीवन उसके प्रति लगाव का भी नाम है। सिनेमा का अनुभव समय के भीतर होता है। समय सिनेमा की भाषा है।

जीवन का अनुभव किस भाषा में होता है?

मेरी चेतना के वाक्य-विन्यास कैसे सुघड़ हों?

इन प्रश्नों के उत्तर खोजना भी जीवन के अनेक निर्णयों में से एक।