क्लैरिनेट के लिए घर / कल्पतरु / सुशोभित

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क्लैरिनेट के लिए घर
सुशोभित


कारेल चापेक की एक कहानी है, जिसमें एक बोहेमियाई संगीतकार लिवरपूल में प्रस्तुति देने आता है, किंतु राह भटक जाता है। वो एक पार्क में एक पुरुष और एक महिला को बतियाते सुनता है। उसे अंग्रेज़ी का एक शब्द समझ नहीं आता, किंतु चूंकि वह संगीतकार है, इसलिए वह उनकी आवाज़ के आरोह-अवरोह के आधार पर अनुमान लगाने का प्रयास करता है कि क्या बात की जा रही है।

वह पाता है कि वे आपस में प्रेमालाप नहीं कर रहे थे। पुरुष के स्वर में एक चुनौती थी और स्त्री के स्वर में कातरता। वो स्वयं से कहता है, "मुझे उस स्त्री की आवाज़ क्लैरिनेट से मिलती-जुलती लगी, वह स्वयं कुछ नहीं कर सकती थी, वो केवल दूसरे के हाथ में अपनी चाबी सौंप सकती थी।"

संगीतकार ने वैसा क्यों कहा होगा? क्लैरिनेट जैज़ संगीत का साज़ है, ट्रम्पेट से मिलता-जुलता। वास्तव में बारोक संगीत काल में हान्देल और बाख़ जैसे संगीतकारों के आग्रह पर ही ट्रम्पेट में परिवर्तन कर क्लैरिनेट को तैयार किया गया था! लेकिन यह ऑर्केस्ट्रा में सम्मिलित स्वर में बजता है, यह पियानो या वॉयलिन की तरह ऑर्केस्ट्रा को लीड नहीं करता।

कितने ही पियानो कैन्चर्टो लिखे गए हैं, कोई गिनती है? कितने ही वायलिन कैन्चर्टो, कितने ही फ़्लूट कैन्चर्टो। और ऐसा नहीं है कि क्लैरिनेट के लिए कैन्चर्टो नहीं लिखे गए, किंतु इस साज़ का मूल मक़सद हमेशा दूसरे के हाथ में अपनी चाबी सौंप देना ही रहता है, लिवरपूल की उस कातर महिला की तरह, जिसकी आवाज़ को उस बोहेमियाई संगीतकार ने ग़ौर से सुना था।

मोत्सार्ट ने ज़रूर क्लैरिनेट के लिए कैन्चर्टो लिखा है, और वो भी मरने से ऐन पहले। 626 संगीत-रचनाओं के कोशेल कैटलॉग में यह 622वीं रचना है। और निश्चय ही, मोत्सार्ट की सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक। इस क्लैरिनेट कैन्चर्टो में ऐसी हूक है, ऐसी तन्मयता, ऐसी शांति, कि वह हमारे अस्तित्व पर व्याप जाती है।

उन दिनों वियना में एक क्लैरिनेट-वादक था, जिसने सबसे पहले बैसेट क्लैरिनेट ईजाद किया था। उसका नाम था- अन्तोन पॉल स्तादलर। मोत्सार्ट ने उसी के लिए अपना क्लैरिनेट कैन्चर्टो लिखा था। मोत्सार्ट उसको वर्चुओसो कहकर बुलाता, यानी एक नायाब कलाकार।

मोत्सार्ट बेपरवाह, खिलंदड़ और शाहख़र्च था। स्तादलर भी वैसा ही था। दोनों कर्ज़ के बोझ तले दबकर मरे। क्लैरिनेट जैसा संकोच उनकी आत्मा के भीतर नहीं था।

कोई एक दशक होने आया, फ़रवरी के यही दिन थे, जब मैं मोत्सार्ट के क्लैरिनेट कैन्चर्टो की मांद में दुबका रहता था। वह मेरा घर था।

उन दिनों कोई मेरा पोस्टल एड्रेस पूछता तो मैं कहता-

"क्लैरिनेट कैन्चर्टो

एलेग्रो- अदाजियो, रोन्दो

ए-मेजर, के. 622

मोत्सार्ट"

कभी-कभी मैं सोचता हूं कि मुझे अपने घर लौट जाना चाहिए। और तब मुझे ख़याल आता है कि शायद मेरी आत्मा भी एक क्लैरिनेट की तरह है, कातर स्वर से अपनी चाबियों की तलाश करती हुई।

और केवल क्लैरिनेट का कैन्चर्टो ही मेरा घर नहीं था, शायद मेरी आत्मा में भी क्लैरिनेट के लिए एक घर बना हुआ था।