टाइटस एज़ अ मोन्क / कल्पतरु / सुशोभित
सुशोभित
साल 1660 में जब रैम्ब्रां का बेटा टाइटस उन्नीस साल का हो गया तो रैम्ब्रां ने उसे एक फ्रांसिस्कन चोगा पहनाया और उसकी तस्वीर बनाई।
मुझे नहीं मालूम, रैम्ब्रां ने वैसा क्यों किया?
रैम्ब्रां जो भी करता था, क्यूं करता था, यह भला कौन जान सका है?
मध्यकालीन इतिहास में उससे बड़ा आर्टिस्ट कोई दूसरा नहीं हुआ। ना ही उससे अधिक रहस्यमयी।
टाइटस को सत्ताइस साल का होकर मर जाना था, यह बात भी पूरे तिरसठ साल जीने वाला रैम्ब्रां कैसे जान सकता था?
लेकिन इतना अवश्य है कि जब उसका बेटा उन्नीस साल का हुआ, तब उसने उसे समस्त मृत्युओं के परे चित्रित कर दिया था। यह वही उम्र है, जब बाप अपने बेटों को शायद सजीला नौजवान देखना चाहते हों, तब रैम्ब्रां ने उसे असीसी के संत फ्रांसिस वाला रोब पहना दिया।
ये वही संत फ्रांसिस थे, जिनकी देह पर साल 1224 में जीज़ज़ के वे घाव उभर आए थे, जो उन्हें सलीब पर मिले।
लेकिन रैम्ब्रां की आत्मा पर जो घाव थे, उन्हें कौन चीन्ह पाया था?
रैम्ब्रां की आत्मा में ईश्वर ने किस कूची से रंग भरे थे इसका पता तो रैम्ब्रां के बीसियों सेल्फ़ पोर्ट्रेट्स का मुआयना करके भी नहीं लगाया जा सकता।
भूरा फ्रांसिस्कन चोगा, पृष्ठभूमि में अंधकार भरा अरण्य, और चेहरे पर किसी कंदील का आलोक, जो फ्रेम से बाहर छूट गई है। उस आलोक में दिखाई देती प्रार्थना की सी पवित्रता, शांतचित्त आत्ममंथन, सुख की कोई कल्पना, शोक का कोई अंदेशा, और तरुणाई की वह कोमलता, जिसे असमय ही मर जाना था।
"सुंदरता की एक ही परिभाषा है- वह मर जाती है!" अपने "मेटामोर्फ़ोसीस लेक्चर" में ब्लादीमीर नबोकफ़ ने कहा था।
जो जीवित रह जाती है, वह है केवल एक स्मृति, कि सुंदरता की अनुभूति ने मुझे कभी छुआ था।
जैसे कि यह- संसार का सबसे अवर्णनीय, और इसीलिए सबसे सुंदर चित्र!
साल 1660 में जब रैम्ब्रां का बेटा टाइटस उन्नीस साल का हो गया तो रैम्ब्रां ने उसे एक फ्रांसिस्कन चोगा पहनाया और उसकी तस्वीर बनाई।
मुझे नहीं मालूम, रैम्ब्रां ने वैसा क्यों किया?
रैम्ब्रां जो भी करता था, क्यूं करता था, यह भला कौन जान सका है?
मध्यकालीन इतिहास में उससे बड़ा आर्टिस्ट कोई दूसरा नहीं हुआ। ना ही उससे अधिक रहस्यमयी।
टाइटस को सत्ताइस साल का होकर मर जाना था, यह बात भी पूरे तिरसठ साल जीने वाला रैम्ब्रां कैसे जान सकता था?
लेकिन इतना अवश्य है कि जब उसका बेटा उन्नीस साल का हुआ, तब उसने उसे समस्त मृत्युओं के परे चित्रित कर दिया था।
यह वही उम्र है, जब बाप अपने बेटों को शायद सजीला नौजवान देखना चाहते हों, तब रैम्ब्रां ने उसे असीसी के संत फ्रांसिस वाला रोब पहना दिया।
ये वही संत फ्रांसिस थे, जिनकी देह पर साल 1224 में जीज़ज़ के वे घाव उभर आए थे, जो उन्हें सलीब पर मिले।
लेकिन रैम्ब्रां की आत्मा पर जो घाव थे, उन्हें कौन चीन्ह पाया था?
रैम्ब्रां की आत्मा में ईश्वर ने किस कूची से रंग भरे थे इसका पता तो रैम्ब्रां के बीसियों सेल्फ़ पोर्ट्रेट्स का मुआयना करके भी नहीं लगाया जा सकता।
भूरा फ्रांसिस्कन चोगा, पृष्ठभूमि में अंधकार भरा अरण्य, और चेहरे पर किसी कंदील का आलोक, जो फ्रेम से बाहर छूट गई है। उस आलोक में दिखाई देती प्रार्थना की सी पवित्रता, शांतचित्त आत्ममंथन, सुख की कोई कल्पना, शोक का कोई अंदेशा, और तरुणाई की वह कोमलता, जिसे असमय ही मर जाना था।
"सुंदरता की एक ही परिभाषा है- वह मर जाती है!" अपने "मेटामोर्फ़ोसीस लेक्चर" में ब्लादीमीर नबोकफ़ ने कहा था। जो जीवित रह जाती है, वह है केवल एक स्मृति, कि सुंदरता की अनुभूति ने मुझे कभी छुआ था।
जैसे कि यह- संसार का सबसे अवर्णनीय, और इसीलिए सबसे सुंदर चित्र!