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सुशोभित


"गोइंग होम", 1945 : ये एड क्‍लार्क की तस्‍वीर है!

फ़ोटोग्राफ़ी दिवस पर मुझे बहुत कुछ याद आता है, लेकिन सबसे पहले याद आती है एड क्लार्क की यह तस्वीर!

एप्रिल का महीना है और छह सालों से जारी लड़ाई अभी तक ख़त्म नहीं हुई है। यह अमरीका में जॉर्जिया का "वार्म स्प्र‍िंग्स" नामक क़स्बा है, जो कि मातम मना रहा है।

प्रेसिडेंट रूज़वेल्ट लड़ाई को पूरी किए बिना चल बसे हैं, जबकि उन्हें औरतों और अश्वेतों से किए गए कई वादे अब भी निभाने थे। फ्रैंकलिन का फ़्यूनरल शुरू हो चुका है और चीफ़ पेटी ऑफ़िसर ग्राहम जैक्सन अपने अकॉर्डियन पर "गोइंग होम" गा रहा है, और वह रो रहा है, और आंसुओं की धार उसके चेहरे पर फिसल रही है, और उसको देखकर विलाप कर रही औरतें रूमालों से अपनी आंखें पोंछने लगी हैं!

फ़ोटोग्राफ़रों की भीड़ तस्वीरें उतार रही है। सभी की नज़रें प्रेसिडेंट के फ़्यूनरल पर है, लेकिन एडवर्ड क्लार्क का मन ग्राहम जैक्सन के आंसुओं में अटका हुआ है।

"गोइंग होम", 1945 : ये एड क्‍लार्क की तस्‍वीर है! क्लार्क की सबसे मशहूर तस्वीर। विलाप का सबसे प्रसिद्ध चित्र!

सबसे पहले इस तस्वीर को मैंने जैफ़ डायर की किताब "द ऑनगोइंग मोमेंट" में देखा था, और पन्ने उलटते हुए मेरे हाथ रुक गए थे।

"हर वह चेहरा / जो मेरे समीप से गुज़रता है / एक रहस्‍य है।" यह वर्ड्सवर्थ है। मुझे वर्ड्सवर्थ याद आता है।

"द ऑनगोइंग मोमेंट" : एक अनवरत क्षण। फ़ोटोग्राफ़ी के तिलिस्म के लिए इससे सुंदर परिभाषा क्या कोई हो सकती है?

रुदन एक अनवरत क्षण है!

बार-बार लौटकर घर जाना, "गोइंग होम" गाना अनवरत है। कितनी बार हमने ये गाया है, कितनी बार हमारे लिए ये गाया जाएगा!

"द ऑनगोइंग मोमेंट" में तस्‍वीरें और कविताएं एक-दूसरे के कानों में फुसफुसाती हैं। सड़कें बेंचों के क़रीब से एक रहस्‍य बनकर गुज़र जाती हैं।

बेंचें एक ऐसा अकॉर्डियन हैं, जिसे बहुत दिनों से बजाया नहीं गया!

फ़ोटोग्राफ़ी दिवस पर बहुत कुछ याद आता है- रोलां बार्थ का "कैमेरा ल्यूसिडा", क्रिष्तॉफ़ किष्लोव्स्की का "कैमेरा बफ़", अल्फ्रेड ष्टाइगलाइट्ज़ का "कैमरा वर्क", सुज़ैन सोन्टैग की "ऑन फ़ोटोग्राफ़ी, जॉन बर्जर की "वेज़ ऑफ़ सीइंग"- लेकिन सबसे पहले मुझे याद आती है एड क्लार्क की यह तस्वीर, जिसने महत्ता के एक क्षण में लघुता को ठिठककर निहारा था और उसे एक अनवरत क्षण में बांध लिया था!

एक कभी ना रीतने वाला लमहा!

यह तस्वीर रुदन के बारे में है। यह शोक की गरिमा के बारे में है। यह तस्वीर तस्वीरों के बारे में है!

यह हमें बताती है कि तस्वीरों का काम क्या है। कि प्रोपैगेंडा फ़ोटोग्राफ़ी के उलट तस्वीरें मनुष्यता का एक शोकगीत रचती हैं! ईश्वर ने यह दायित्व छायाचित्रकारों को ही सौंपा है, जो कि मृत्यु के सहोदर हैं!