जरा-मरण / कल्पतरु / सुशोभित

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जरा-मरण
सुशोभित


जीवन इतना तात्कालिक है- इतना अनिवार्य, इतना इमीजियेट, फ़ौरन किए जाने वाले ज़रूरी कामों की फ़ेहरिस्तों से इतना भरा हुआ कि एकबारगी हमें लगने लगता है कि जीवन वास्तविक है!

और मृत्यु इतनी अनिश्चित है- इतनी सुदूर, इतनी असम्भव, इतनी काल्पनिक (क्योंकि हम कभी नहीं मरते, हम हमेशा दाह संस्कार से धुंधुआई आँखें लिए लौट आते हैं) कि एकबारगी हमें लगने लगता है कि जैसे हम इस धरती पर हमेशा रहने वाले हैं!

और तब एक दिन हम पाते हैं कि आलू की बोरी सा शरीर नीचे रह गया है, हम हवा में तैर रहे हैं, गुरुत्वाकर्षण महज़ एक लौकिक अफ़वाह भर रह गई है, और हम फिर लौटकर रौशनी से बने घर में आ गए हैं!

"इतने हज़ार सालों में कितनी बार जन्मा, कितनी बार मरा, कितने जीवन जिए, कितने स्वप्न देखे" -- मैं अचरज से कहता हूं -- "धत्त! मैं तो भूल ही गया था!"

मैं फिर भूल जाऊंगा!

मैं फिर अपने घर से दूर चला जाऊंगा, टु डु लिस्ट्स से भरे रोज़नामचों की ओर!